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स्वर्ग की रानी प्रार्थना में पोप : येसु के लिए अपना हृदय खोलें

पास्का के तीसरे रविवार को संत पापा फ्राँसिस ने स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया एवं विश्वासियों को निमंत्रण दिया कि वे हर दिन शाम को येसु के साथ समय बिताना सीखें, ताकि वे हमें जीवन के विभिन्न आयामों को दिखा सकें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 23 अप्रैल को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ स्वर्ग की प्रार्थना का पाठ किया, स्वर्ग की रानी प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पास्का के इस तीसरे रविवार को, सुसमाचार पाठ पुनर्जीवित प्रभु के एम्माउस के रास्ते पर शिष्यों के साथ मुलाकात की घटना का वर्णन करता है। (लूक. 24:13-35) ये ही दो शिष्य हैं जिन्होंने पास्का के दिन येरूसालेम छोड़ने और घर जाने का निर्णय लिया। और जब वे उदास होकर हाल की घटनाओं पर बात करते हुए राह चल रहे थे तब येसु उनके साथ चलने लगे किन्तु उन्होंने उन्हें नहीं पहचाना। उन्होंने उनसे पूछा कि वे क्यों इतने उदास हैं तब उन्होंने कहा, “येरूसालेम में आप ही एक अजनबी हैं! इन दिनों वहाँ क्या हुआ है उसे आप नहीं जानते?" (पद.18) उन्होंने कहा, “क्या हुआ है?” (पद 19)

अपनी कहानी का पुनः अवलोकन

येसु ने उनसे घटना के बारे बताने के लिए आग्रह किया और उन्होंने पूरी कहानी बतलायी: चलते-चलते वे उन्हें ईश्वर के वचन के प्रकाश में तथ्यों को एक अलग तरीके से फिर से समझने में मदद देना चाहते थे। संत पापा ने चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा, “आइए, इस पहलू पर गौर करें।”

वास्तव में, हमारी कहानी को येसु के साथ पुनः समझना हमारे लिए महत्वपूर्ण है : हमारे जीवन की कहानी, हमारी निराशाओं और उम्मीदों के साथ हमारे दिनों के कुछ खास समय को। दूसरी ओर, हम भी उन शिष्यों की तरह, हमारे जीवन में घटनेवाली घटनाओं के सामने, कई सवालों एवं चिंताओं के साथ अकेला एवं अनिश्चित महसूस करते हैं।

प्रतिदिन अंतःकरण की जाँच करें

आज का सुसमाचार पाठ हमें निमंत्रण देता है कि हम येसु को सब कुछ बतलायें, बिना भय उन्हें परेशान करें, गलत कहने के डर के बिना, समझने के हमारे संघर्ष पर शर्मिंदा हुए बिना। जब हम अपने आप को उसके सामने खोलते हैं तो प्रभु प्रसन्न होते हैं; केवल इसी तरह से वे हमारा हाथ पकड़कर ले सकते हैं, हमारा साथ दे सकते हैं और हमारे दिलों को फिर से प्रज्वलित कर सकते हैं। (पद.32) संत पापा ने कहा, “अतः हम भी एम्माउस के शिष्यों की तरह, बातचीत करने के लिए प्रेरित किये जाते हैं ताकि जब शाम हो जाए, तो वे हमारे साथ रह सकें।”(पद 29)

उन्होंने विश्वासियों से कहा, “इसको करने का एक सुन्दर तरीका है और आज मैं आप सभी के सामने प्रस्ताव रखता हूँ। इसके लिए कुछ समय समर्पित करना होगा, हर शाम को अंतःकरण की जाँच करें।” यह क्या है?

मेरा दिनचर्या कैसा है?

यह वास्तव में येसु के साथ फिर से अवलोकन करना है, उनके लिए अपना हृदय खोलना है, लोगों के चुनाव, डर, पतन और उम्मीदों को उनके पास लाना है; धीरे-धीरे चीजों को दूसरी नजर से देखना है, सिर्फ हमारी नहीं उनकी नजर से देखना। इस तरह हम उन दो शिष्यों के अनुभवों को पुनः जी सकते हैं। ख्रीस्त के प्रेम से सामने, थकान और असफलता भी एक अलग प्रकाश में प्रकट हो सकता है: एक क्रूस जिसे स्वीकार करना मुश्किल है, एक अपराध जिसे क्षमा करना कठिन है, एक गलती जिसके लिए बदले की भावना आती, काम की थकान, ईमानदारी जिसकी कीमत चुकानी पड़ती है, पारिवारिक जीवन की चुनौतियाँ आदि के सामने एक नया प्रकाश प्रकट होगा कि क्रूसित एवं पुनर्जीवित प्रभु जानते हैं कि हर पतन को एक कदम के रूप में आगे किस तरह बढ़ाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करने के लिए बचाव को हटाना होगा, येसु के लिए समय एवं स्थान देना होगा, उनसे कुछ नहीं छिपाना, अपनी दुर्दशा को उनके पास लाना होगा, उनकी सच्चाई को स्वीकारना होगा, अपने हृदय को उनके वचनों के कंपन से धड़कने देना होगा।

संत पापा ने कहा, “इसकी शुरूआत हम आज ही कर सकते हैं, शाम को कुछ समय प्रार्थना में व्यतीत कर, जिसमें हम अपने आप से पूछ सकते हैं: मेरा दिन कैसा रहा? कौन सी मोतियाँ थीं, शायद छिपी हुई, जिनके लिए मुझे धन्यवाद देना है? मैंने जो किया उसमें क्या थोड़ा प्रेम था? अपने गलतियों, उदासी, संदेह और भय को येसु के पास लायें ताकि वे हमारे लिए नये रास्ते खोल सकें, हमें उठा सकें एवं प्रोत्साहन दे सकें?"

तब माता मरियम से प्रार्थना करते हुए संत पापा ने कहा, “कुँवारी मरियम, हमें येसु को पहचानने में मदद दे जो हमारे साथ चलते और हम अपने प्रतिदिन के जीवन को उनके सामने रख सकें।”

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23 April 2023, 13:07