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राखबुध के ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान करते संत पापा फ्राँसिस राखबुध के ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान करते संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

पोप और चालीसा तपस्या : एक आत्मा प्रशिक्षण का अभ्यास

आधुनिक संत पापाओं की धर्मसिद्धांत संबंधी शिक्षा हमें चालीसा काल के दौरान उपवास के पारंपरिक पश्चाताप अनुशासन के बारे में समकालीन प्रश्नों के उत्तर प्रदान करती है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटकिन सिटी

चालीसा काल की यात्रा की तीन प्रमुख कुँजियाँ हैं जिसकी शुरूआत हर साल राखबुध से होती है : प्रार्थना, उपवास और दान। उपवास को केवल इसके औपचारिक रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। इसके वास्तविक मायने हैं, जैसा कि संत पापा हमें बार-बार याद दिलाते हैं, भले समारी के उदाहरण पर चलना। इसका मूल्य तभी है जब कोई शांत जीवनशैली अपनाता है, यदि कोई "जीवन का ऐसा तरीका जीता है जो बर्बाद नहीं करता, जो नहीं 'फेंकता' है।"

प्रभु किस तरह का उपवास चाहते हैं?

चालीसा काल उपवास एवं प्रायश्चित का उपयुक्त समय है लेकिन ईश्वर हमसे किस तरह का उपवास चाहते हैं?

संत पापा फ्राँसिस ने इस सवाल का उत्तर 16 फरवरी 2018 को प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में सुबह के ख्रीस्तयाग के दौरान चिंतन करते हुए दिया था। यह केवल भोजन से परहेज करने के हमारे चुनाव तक ही सीमित नहीं है बल्कि एक जीवनशैली है जहाँ व्यक्ति दीन बनता है और अपने पापों को पहचानने और उसमें सुधार लाने की कोशिश करता है।

संत पापा बतलाते हैं कि इसका उत्तर सुसमाचार में मिलता है, जहाँ हम पढ़ते हैं : अपना सिर झुकाओ," अर्थात, "अपने आप को विनम्र करना," और अपने पापों के बारे में चिंतन करना।" संत पापा ने जोर दिया कि प्रभु जिस उपवास की चाह रखते हैं वह है सच्चाई और न्याय संगत होना।

संत सबिना महागिरजाघर में 22 फरवरी 2023 को ख्रीस्तयाग के दौरान अपने उपदेश में संत पापा ने याद दिलाया कि उपवास एक पुरानी भक्ति नहीं है बल्कि एक प्रभावशाली चिन्ह है जो हमें याद दिलाता है कि क्या वास्तव में मायने रखता है और क्या सिर्फ अल्पकालिक है।

उपवास करने का महत्व

चालीसा काल के इस समय में हम अपने आपसे पूछ सकते हैं कि “उन चीजों से अपने आपको वंचित करने का क्या अर्थ हो सकता है जो हमारे शरीर के लिए अच्छा और फैयदेमंद है।” 2009 के चालासी काल के संदेश में संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने पवित्र धर्मग्रंथ की शिक्षा एवं ख्रीस्तीय परम्परा की याद दिलायी थी। उन्होंने कहा था कि वे हमें सिखलाते हैं कि “उपवास करना पाप और पाप की ओर ले जानेवाली हर चीज से दूर रहने के लिए एक बड़ी मदद है।” यही कारण है कि "मुक्ति का इतिहास ऐसे अवसरों से भरा पड़ा है जो उपवास के लिए आमंत्रित करते हैं। बाईबिल के पहले पन्नों पर, ईश्वर मनुष्य को निषिद्ध फल खाने से परहेज करने की आज्ञा देते हैं।”

पोप बेनेडिक्ट ने कहा है कि चूँकि हम सभी पाप और इसके परिणाम के भार से दबे हुए हैं, उपवास हमारे लिए ईश्वर के साथ हमारे संबंध को पुनःस्थापित करने के लिए रखे गये हैं। नये व्यवस्थान के संदर्भ में उन्होंने कहा है कि “इस प्रकार सच्चा उपवास 'सच्चा भोजन' खाने के लिए निर्देशित होता है, जो है, पिता की इच्छा पूरी करना।”

उपवास किस बात को प्रस्तुत करता है

इस प्रकार, चालीसा यात्रा में उपवास, केवल भोजन करने या खाने पीने से परहेज करना मात्र नहीं है। उपवास एक जटिल एवं गहरी सच्चाई को प्रस्तुत करता है, जैसा कि संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने 21 मार्च 1979 को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा था। उन्होंने कहा, उपवास, "एक प्रतीक है, एक चिन्ह है, स्वीकार करने या त्याग करने के लिए एक गंभीर और प्रेरक आह्वान है। कैसा त्याग? 'अहंकार' का त्याग, जो कि बहुत सारी सनक या अस्वास्थ्यकर आकांक्षाओं का है; अपने स्वयं के दोषों, तीव्र जुनून, अवैध इच्छाओं का त्याग है।”

उन्होंने कहा, “उपवास का अर्थ है, कई प्रकार की चाह को सीमित करना, कुछ अच्छी चाह को भी, ताकि अपने आप पर पूरी तरह काबू पाया जा सके, अपनी प्रवृति को नियंत्रित करने सीखा जा सके, क्योंकि अपनी प्रवृति को प्रशिक्षित करना अच्छा है।”

अंततः उन्होंने कहा कि उपवास करने का अर्थ है, “अपने आपको कुछ चीजों से वंचित करना ताकि अपने भाइयों की जरूरतों को पूरा कर सकें...इस तरह अच्छाई के लिए उदारता का अभ्यास करना।”

किस प्रकार के उपवास को पसंद किया जाता है?

चालीसा काल तपस्या और प्रायश्चित का समय है। लेकिन यह सहभागिता एवं एकजुटता का समय भी है। संत पापा पौल 6वें ने सन् 1973 में अपने चालीसाकाल के संदेश में, जिसमें उन्होंने नबी इसायाह के उपदेशों को सुनने के लिए विश्वासियों को आमंत्रित किया: “बल्कि, मैं जो चाहता हूँ यह वह उपवास है: … भूखों के साथ अपनी रोटी बांटना, पीड़ितों और बेघरों को शरण देना; नग्न को पहिनाना, और अपनों को पीठ नहीं दिखाना।”

संत पापा पौल छठवें ने आह्वान करते हुए कहा है, "आज के लोगों की चिंताओं को प्रतिध्वनित करें," और इस तरह, हर व्यक्ति एक दूसरे की पीड़ा एवं दयनीय स्थिति को सचमुच बांट सकता है।”

उनके विचार संत पापा जॉन 23वें के विचारों को दर्शाते हैं। चालीसा की शुरुआत में 1963 के अपने रेडियो संदेश में, पोप जॉन ने कहा था कि कलीसिया "अपने बच्चों को बाहरी प्रथाओं के एक साधारण अभ्यास की ओर नहीं ले जाती है, बल्कि नबियों की प्राचीन शिक्षाओं के आलोक में भाई-बहनों की भलाई के लिए प्यार और उदारता की गंभीर प्रतिबद्धता की ओर लेती है।”

अपने पूर्वाधिकारी की तरह संत पापा जॉन 23वें नबी इसायस के ग्रंथ का हवाला देते हुए कहते हैं, “मैं जो उपवास चाहता हूँ वह इस प्रकार है- अन्याय की बेड़ियों को तोड़ना, जूए के बंधन खोलना, पद्दलितों को मुक्त करना और हर प्रकार की गुलामी समाप्त करना। अपनी रोटी भूखों के साथ खाना, बेघर दरिद्रों को अपने यहाँ ठबराना। जो नंगा है उसे कपड़े पहनाना और अपने भाई से मुँह नहीं मोड़ना। तब तुम्हारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी और तुम्हारा घाव शीघ्र भर जायेगा। तुम्हारी धार्मिकता आगे आगे चलेगी और ईश्वर की महिमा तुम्हारे पीछे पीछे आती रहेगी।” (इसा. 58:6-8)

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04 March 2023, 16:10