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पोप : पश्चतापी एवं भरोसा रखनेवाले हृदय से हम ईश्वर की करुणा को प्राप्त करते हैं

चालीसा काल की प्रार्थना एवं पापस्वीकार पहल “प्रभु के लिए 24 घंटें” की धर्मविधि में उपदेश के दौरान संत पापा ने सभी विश्वासियों को प्रोत्साहन दिया कि हम पश्चतापी एवं भरोसा रखनेवाले हृदय के साथ प्रभु पर भरोसा रखें, अपने पापों को स्वीकार करें और ईश्वर की दया, सांत्वना एवं आनन्द के दिव्य आलिंगन की कृपा की याचना करें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार शाम को रोम के संत मरिया देल्ले ग्रात्सिये अल त्रिओनफाले पल्ली में “प्रभु के लिए 24 घंटें” पहल में प्रायश्चित की धर्मविधि का अनुष्ठान किया, जहाँ वे पापस्वीकार भी सुने। प्रार्थना और पापस्वीकार संस्कार करने के लिए अवसर के रूप में पहल चालीसा काल के दौरान एक वार्षिक परम्परा बन गई है।    

पहल की शुरूआत संत पापा फ्राँसिस ने की है और इसे विश्वभर के धर्मप्रांतों में पास्का की तैयारी हेतु चालीसा काल के तीसरे सप्ताह के शुक्रवार और शनिवार को सम्पन्न किया जाता है। इसके लिए सभी गिरजाघरों को 24 घंटों तक खुला रखा जाता है। इस दौरान विश्वासियों को प्रोत्साहन दिया जाता है कि वे पापस्वीकार संस्कार में भाग लें एवं आध्यात्मिक रूप से पोप के साथ मिलकर प्रार्थना करें।  

“मुझ पापी पर दया कर”

इस वर्ष इस पहल की विषयवस्तु है : “मुझ पापी पर दया कर।” (लूक.18:13) “प्रभु के लिए 24 घंटे” का आयोजन सुसमाचार प्रचार विभाग द्वारा किया गया है। विभाग ने इस वर्ष के उत्सव के लिए विभिन्न भाषाओं में एक विशेष प्रेरितिक सामग्री भी तैयार की है जिसे डाऊनलॉड किया जा सकता है।

धर्मविधि के पाठ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने इस बात को रेखांकित किया कि किस तरह हमारा अहंकार एवं अभिमान प्रभु से बातचीत करने में हमारे लिए बाधक बन सकता है, जैसा कि हम सुसमाचार में फरीसी के बारे सुनते हैं जो अपने धार्मिक कार्यों के लिए घमंड करता है लेकिन इस मनोभाव के द्वारा वह अपने आपको ईश्वर से दूर कर लेता है।  

धर्मग्रंथ हमें बतलाता है कि “संहिता के अनुसार आचरण बहुत-सी बलियों के बराबर है।“ (प्रवक्ता 35:1) क्योंकि जो मन के दीन हैं और जो मुक्ति एवं क्षमा किये जाने की आवश्वश्यकता के प्रति सचेत हैं वे ईश्वर के पास आते हैं, वे अपनी खूबियों का बखान किये बिना, ढोंग किये बिना उनके सामने आते हैं, क्योंकि उनके पास कुछ नहीं है और जो कुछ भी है उसे उन्होंने प्रभु से प्राप्त किया है।”

दीनता हमेशा

संत लूकस रचित सुसमाचार में येसु के दृष्टांत की याद दिलाते हुए संत पापा ने बतलाया कि किस तरह मंदिर में प्रार्थना करते हुए सिर्फ नाकेदार की प्रार्थना ईश्वर के हृदय तक पहुँची, क्योंकि वह अपने पापों के लिए पछताप करते हुए पीछे खड़ा रहा तथा ईश्वर की करुणा एवं प्रेम की याचना की।   

संत पापा ने कहा, “वह सामने नहीं आया बल्कि पीछे ही खड़ा रहा। फिर भी वह दूरी जो ईश्वर की पवित्रता के सामने उसके पापी होने को दर्शाता है, उन्हें पिता के प्रेम एवं करुणा के आलिंगन का अनुभव कराता है। ईश्वर उसके पास इसलिए आ सकते हैं क्योंकि वह दूर में खड़ा है उसने उनके लिए जगह बनायी है।”

संवाद सेतु का निर्माण करता है

संत पापा ने उपदेश में बतलाया कि “सच्ची वार्ता तब होती है जब हम अपने और दूसरों के बीच जगह बनाते हैं” जब हम चीजों पर गौर करने लगते हैं क्योंकि “वार्ता एवं मुलाकात” दूरी कम करतीं एवं सामीप्य बढ़ाती हैं।     

खुले हृदय से

उन्होंने कहा, “भाइयो और बहनो, हम इस बात को याद रखें, प्रभु हमारे पास आते हैं जब हम अपने अकड़ अहंकार से पीछे हटते हैं। जब कभी हम अपने कमजोरियों को उनके सामने लाते हैं तब वे हमारी दूरी को कम करते हैं...ईश्वर हमारी प्रतीक्षा करते हैं और वे खासकर पापस्वीकार संस्कार में हमारा इंतजार करते हैं।”

संत पापा ने सभी विश्वासियों को प्रोत्साहन दिया कि हम अंतःकरण की जाँच करें क्योंकि हमारे अंदर भी फरीसी एवं नाकेदार के मनोभाव मौजूद हैं। हमें अपने दिखावे के ढोंग को छोड़ना चाहिए और हमारे अंधकार, गलतियों, निकम्मेपन के बदले प्रभु की करूणा पर भरोसा रखना चाहिए। ऐसा करने से, हम "हमारे जीवन के लिए ईश्वर के सपने और हम कौन हैं, उसकी वास्तविकता को देख पायेंगे, ताकि प्रभु इस दूरी को पाट सकें और हमें वापस हमारे पैरों पर खड़ा कर सकें। पापस्वीकार या पुनर्मिलन संस्कार का अर्थ एक आनन्दमय मुलाकात है जो हृदय को चंगा करता और हमें आंतरिक शांति से भर देता है।”   

पाप मोचक पुरोहितों को सम्बोधित करते हुए संत पापा ने उन्हें प्रोत्साहन दिया कि वे प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा क्षमा करें, उन्हें खुले दिल से सुनें और समझें क्योंकि हर पछतापी क्षमाशीलता की खोज करता है, जिससे कि पापस्वीकार संस्कार से उन्हें सचमुच शांति प्राप्त हो सके।

“प्रभु, मुझ पापी पर दया कर”

अंत में संत पापा ने सलाह दी कि हम विशेषकर चालीसा काल में, पछतापी हृदय से नाकेदार की तरह कहें, “प्रभु मुझ पापी पर दया कर।” “हम इसे बार-बार दोहरायें, उन क्षणों को याद करते हुए जब हम अपने दैनिक जीवन में असफल हो जाते हैं तथा प्रभु से क्षमा मांगे।”

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18 March 2023, 15:30