बौद्धों से पोप: बंधुत्व को बढ़ावा देने में धर्मों की महत्वपूर्ण भूमिका है
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 16 मार्च 2023 (रेई) : वाटिकन में ताइवान के मानवतावादी बौद्ध धर्म के संयुक्त संघ के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को इस बात पर जोर दिया कि "मानवता और ग्रह को प्रभावित करनेवाले परिवर्तनों के एक निरंतर वृद्धि" द्वारा चिह्नित समय में, धर्मों को विशेष रूप से युवाओं के बीच "मुलाकात की संस्कृति" को बढ़ावा देकर भाईचारा को बढ़ावा देना पहले से कहीं अधिक जरूरी है। संघ के सदस्य एक अंतरधार्मिक "शैक्षिक तीर्थयात्रा" के लिए रोम पहुँचे हैं।
संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि “शैक्षणिक तीर्थयात्रा मुलाकात की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए एक विशेष अवसर है, जिसमें हम खुद को दूसरों के लिए खोलने का जोखिम उठाते हैं, यह विश्वास करते हुए कि हम उनमें दोस्तों और भाइयों एवं बहनों की खोज करेंगे, और इस प्रक्रिया में अपने बारे में और अधिक जानेंगे।”
ताईवान के 104 बौद्ध प्रतिनिधियों से संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की।
संत पापा ने उनकी इस तीर्थयात्रा को मित्रता एवं सहयोग की भावना का साक्ष्य कहा। उन्होंने फो ग्वांग शान मठ के संस्थापक मास्टर हसिंग यून की याद की जिनका निधन कुछ ही दिनों पहले हुआ है। उन्होंने कहा कि मानवतावादी बौद्ध धर्म में अपने योगदान के लिए विश्व प्रसिद्ध, ग्वांग अंतरधार्मिक आतिथ्य के भी गुरू थे।
मुलाकात की संस्कृति सेतु का निर्माण करती और दीवारों को तोड़ती है
संत पापा ने कहा कि उनकी यात्रा जिसको वे शैक्षणिक तीर्थयात्रा कहते हैं “मुलाकात की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए एक विशेष अवसर है, जिसमें हम खुद को दूसरों के लिए खोलने की जोखिम उठाते हैं, यह विश्वास करते हुए कि हम उनमें दोस्तों और भाइयों तथा बहनों की खोज करेंगे, और इस प्रक्रिया में अपने बारे में और अधिक सीखेंगे। क्योंकि जब हम दूसरों को उनकी विविधता के साथ महसूस करते हैं, तो हमें खुद से बाहर जाने और अपने मतभेदों को स्वीकार करने एवं गले लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।”
उन्होंने कहा कि शैक्षणिक तीर्थयात्रा एक महान समृद्धि का स्रोत हो सकता है, यह एक-दूसरे के साथ मुलाकात करने, एक-दूसरे को जानने एवं अपने विभिन्न अनुभवों को साझा करने के कई अवसरों के रूप में। मुलाकात की संस्कृति सेतु का निर्माण करती है और पवित्र मूल्यों एवं आस्था की खिड़की खोलती है जो दूसरों को प्रेरित करती है। यह लोगों को विभाजित करने एवं पूर्वधारणाओं, पूर्वाग्रहों या उदासीनता के कैदी बनानेवाली दीवार को ध्वस्त कर देती है।
संत पापा ने शैक्षणिक तीर्थयात्रा के दूसरे लाभ के बारे बतलाते हुए कहा कि यह ईश्वर के प्रति हमारे दृष्टिकोण की विशिष्टता की सराहना को भी समृद्ध करती है। वाटिकन एवं रोम में धार्मिक कला कृतियाँ उस धारणा को दर्शाती है कि येसु ख्रीस्त में, ईश्वर स्वयं हमारे मानव परिवार के प्रति प्रेम के कारण इस संसार में "तीर्थयात्री" बन गये।”
ख्रीस्तियों के लिए, ईश्वर जो येसु की मानवता में हम में से एक बन गए हैं, हमें पवित्रता की तीर्थयात्रा पर ले जाते हैं, जिसके द्वारा हम उनके समान बनते हैं और संत पेत्रुस के शब्दों में, उनके ईश्वरीय स्वभाव के "भागीदार" बन जाते हैं। (2 पेत्रुस 1:4) पूरे इतिहास में, धार्मिक विश्वासियों ने मुलाकात के मरुस्थल के रूप में पवित्र समय और स्थान बनाए हैं। जहाँ पुरुष और महिलाएँ बुद्धिमानी और अच्छी तरह से जीने के लिए आवश्यक प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह, वे "सिर, हाथ, दिल और आत्मा" को शामिल करते हुए मानव व्यक्ति की एक अभिन्न शिक्षा में योगदान करते हैं और उन्हें "पूरी तरह से मानव होने की सुंदरता और सद्भाव" का अनुभव करने के लिए प्रेरित करते हैं।
संत पापा ने कहा कि मुलाकात के इस मरूस्थल की आवश्यकता हमारे समय में कहीं अधिक है, “जो बढ़ते परिवर्तन से चिन्हित है और मानव एवं ग्रह को प्रभावित कर रहा है।” यह वास्तविक धार्मिक जीवन एवं संस्कृति को प्रभावित कर रहता है एवं उचित प्रशिक्षण एवं कालातीत सत्य और प्रार्थना तथा शांति निर्माण की जाँच के तरीकों में युवाओं की शिक्षा की मांग करता है।
शिक्षा द्वारा मानव भाइचारा को बढ़ावा देना
संत पापा ने कहा, “यहाँ एक बार फिर यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि धर्मों का शिक्षा के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है। पहले की तरह, हमारे समय में भी, हमारी धार्मिक परंपराओं के ज्ञान और मानवता के साथ, हम एक नई शैक्षिक गतिविधि के लिए एक प्रेरणा बनना चाहते हैं जो हमारी दुनिया में सार्वभौमिक बंधुत्व को आगे बढ़ा सके।"
संत पापा ने ताईवान के तीर्थयात्रियों से आशा व्यक्त की कि वे इस शैक्षणिक तीर्थयात्रा में अपने आध्यात्मिक गुरू महात्मा बुद्ध की भावना से प्रेरित होकर, अपने आपसे, दूसरों से, ख्रीस्तीय परम्परा के साथ एवं पृथ्वी हमारे आमघर की सुन्दरता को गहराई से अनुभव कर सकेंगे।
उन्होंने कामना की कि रोम में उनकी तीर्थयात्रा एक सच्ची मुलाकात का अवसर बने, जो ज्ञान, प्रज्ञा, संवाद और समझदारी में बढ़ने का एक बहुमूल्य मौका बने। अंत में, संत पापा ने उन्हें धन्यवाद देते हुए उनके लिए ईश्वरीय आशीष की कामना की।
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