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“फ्रातेरना दोमुस” संघ के तत्वधान में आयोजित सेमिनार "काथेद्रा देल अकोलिएंत्सा" के प्रतिभागियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस “फ्रातेरना दोमुस” संघ के तत्वधान में आयोजित सेमिनार "काथेद्रा देल अकोलिएंत्सा" के प्रतिभागियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

पोप : समावेश बेहतर भविष्य की ओर बढ़ने का एक रास्ता है

संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को “फ्रातेरना दोमुस” संघ के तत्वधान में आयोजित सेमिनार "काथेद्रा देल अकोलिएंत्सा" (स्वागत का सिंहासन) के प्रतिभागियों को सम्बोधित किया तथा समावेश एवं स्वागत की संस्कृति को बढ़ावा देने में उनके प्रयासों को प्रोत्साहित किया, ताकि सभी के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सके।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

"काथेद्रा देल अकोलिएंत्सा" या स्वागत का सिंहासन एक सेमिनार है जिसका आयोजन फ्रतेरना दोमुस संघ ने 6 से 10 मार्च को, रोम से 30 किलोमीटर दूर साक्रोफनो शहर में किया है।

सेमिनार में विभिन्न, संस्कृति और धार्मिक पृष्टभूमि के शिक्षक एवं शिक्षा विभाग से जुड़े लोग भाग ले रहे हैं, ताकि जरूरतमंद लोगों का स्वागत किस तरह किया जाए, उसपर प्रशिक्षण दिया जा सके।  

प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने संघ के समर्पण की याद की जो सभी का स्वागत करने की शिक्षा दे रहा है, जो एक खानापूर्ति नहीं बल्कि दैनिक जीवन का अनुभव है।    

स्वागत करना प्रेम की अभिव्यक्ति

संत पापा ने विश्व पत्र "फ्रातेल्ली तुत्ती" से उद्धृत करते हुए कहा कि प्रेम "हमें सार्वभौमिक समन्वय की ओर ले जाता है।"

प्रेम दूसरों का स्वागत करने के लिए एक बड़ी क्षमता की मांग करता है, और यह एक "प्रेम की ही अभिव्यक्ति" है जो हमें दूसरे के लिए बेहतर की तलाश करने को कहती है: यह वह स्थान है जहाँ ईश्वर परोपकार के कार्यों में विद्यामान हैं।

संत पापा ने रेखांकित किया कि खुलापन और स्वागत उस समाज की ओर पहला कदम है जो हरेक सदस्य का स्वागत करता एवं अपने साथ मिलाता है, चाहे वे समाज के सुदूर क्षेत्रों में रहते हों अथवा बहिष्कृत एवं छिपे रूप में रहते हों।

फ्रातेल्ली तूत्ती से एक परिच्छेद का संदर्भ लेते हुए संत पापा ने कहा कि एक देश का सही मानदण्ड सोचने की क्षमा से मापा जाता है, न केवल एक देश के रूप में बल्कि एक मानव परिवार के रूप में भी। जिन देशों को बंद कर दिया गया है, वे स्वागत के लिए अक्षमता प्रकट करते हैं और इसके द्वारा उनमें यह झूठा भ्रम है कि वे अधिक सुरक्षित हैं।

ज्यादातर, आप्रवासी या गरीबों को अक्सर "खतरनाक या बेकार" रूप में देखा जाता है। "एक सामाजिक और राजनीतिक संस्कृति जो मुफ्त स्वागत को अपनाती है उसी का भविष्य हो सकता है।"

मुफ्त होना बंधुत्व और सामाजिक मित्रता उत्पन्न करता है

संत पापा ने कहा कि मुफ्त होने का विषय भ्रातृत्व और सामाजिक मित्रता पैदा करने के लिए आवश्यक है। उन्होंने रेखांकित किया कि केवल वे जो सभी का स्वतंत्र रूप से स्वागत करते हैं, उनका भविष्य हो सकता है।

हालाँकि चर्चा अक्सर इस बात पर केंद्रित होती है कि प्रवासी समाज में कैसे योगदान दे सकते हैं, पोप ने कहा कि मौलिक मानदंड व्यक्ति की "उपयोगिता" पर आधारित नहीं है, बल्कि स्वयं व्यक्ति के मौलिक मूल्य पर आधारित है।

"दूसरों का स्वागत इस बात के लिए नहीं किया जाना चाहिए कि उसके पास क्या है या वे क्या दे सकते हैं, लेकिन इसलिए कि वे कौन हैं।"

पोप ने प्रतिभागियों को अपना प्रशिक्षण जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करते हुए अपने संबोधन का समापन किया ताकि उन लोगों के स्वागत की संस्कृति को बेहतर ढंग से बढ़ावा दिया जा सके जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

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09 March 2023, 17:02