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संत पापाः येसु से मिलें और हृदय परिवर्तन करें

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में सुसमाचार प्रचार के संबंध में संत पौलुस के प्रेरितिक उत्साह पर प्रकाश डालते हुए येसु से मिलन के फलस्वरुप हृदय परिवर्तन का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

प्रेरितिक उत्साह की अपनी धर्मशिक्षा माला में आज से हम कुछेक व्यक्तित्वों के बारे में जिक्र करेंगे, जिन्होंने विभिन्न समय और अपनी शैली के अनुसार सुसमाचार का अनुकरणीय साक्ष्य दिया कि सुसमाचार के उत्साह का अर्थ क्या होता है। यहाँ पहले स्थान पर स्वभाविक रुप से प्रेरित संत पौलुस का साक्ष्य हमारे लिए आता है। हम दो धर्मशिक्षा मालाओं को उनके नाम समर्पित करेंगे।

पौलुस का उत्साह

तारसुस के संत पौलुस का इतिहास इस संदर्भ में विलक्ष्णकारी है। गलातियों के नाम पत्र के प्रथम अध्याय में, जैसे कि हम उसे प्रेरित चरित में वर्णित पाते हैं, अपने मनफिराव के उपरांत हम सुसमाचार के प्रति उनके उत्साह को पाते हैं, वह उत्साह जो उनमें यहूदीवाद के लिए था। वे मूसा की संहिता से संबंधित यहूदीवाद के प्रति उत्साह के भरे थे। पौलुस पहले सौलुस के नाम से जाने जाते थे, जिसमें पहले से उत्साह भरा था, लेकिन येसु ख्रीस्त ने सुसमाचार के लिए उनके उत्साह को परिवर्तित कर दिया। पहले उसकी मंशा कलीसिया का विनाश करने की थी लेकिन बाद में वे उसके निर्माता बन गये। हम अपने में पूछ सकते हैं, उसे क्या हुआॽ वे कैसे विध्वसकर्ता से निर्माता बन जाते हैंॽ पौलुस में कौन-सा परिवर्तन हुआॽ किस अर्थ में उनका उत्साह ईश्वर की महिमा हेतु बदल गयाॽ वहाँ क्या हुआॽ

येसु, पौलुस में परिवर्तन का कारण

संत पापा ने कहा कि संत थोमस अक्वीनस अपनी शिक्षा में कहते हैं कि नैतिक दृष्टिकोण से जोश न तो अच्छा है और न ही बुरा, लेकिन हम जिस रुप में उसका उपयोग करते हैं वह उसे नैतिक रुप में अच्छा और बुरा बनाता है। संत पौलुस के संदर्भ में, जिस चीज ने उनमें परिवर्तन लाया वह कोई साधारण विचार या एक विश्वास नहीं था, बल्कि यह पुनर्जीवित प्रभु से मुलाकात थी जो उनके सम्पूर्ण जीवन में परिवर्तन लाती है। संत पौलुस की नम्रता, ईश्वर के लिए उनका उत्साह और उनकी महिमा खत्म नहीं होती बल्कि यह पवित्र आत्मा के द्वारा “रुपांतरित” हो जाती है। यह केवल पवित्र आत्मा हैं जो हमारे हृदयों में परिवर्तन ला सकते हैं। इस प्रकार उनके जीवन की सारी चीजें बदल जाती हैं। यह उसी तरह होता है जैसे कि पवित्र यूखारिस्तीय संस्कार में- रोटी और दाखरस अपने में अदृश्य नहीं होते बल्कि वे येसु ख्रीस्त के शरीर और रक्त बन जाते हैं। पौलुस में उत्साह बना रहता लेकिन वह उत्साह येसु ख्रीस्त का हो जाता है। हम येसु ख्रीस्त की सेवा अपनी मानवता में, अपनी अच्छाइयों और कमियों में करते हैं यहाँ एक विचार का परिवर्तन नहीं होता वरन सारी चीजें बदल जाती हैं, जैसे कि संत पौलुस स्वयं कहते हैं, “यदि कोई मसीह में एक हो गया है, तो वह नयी सृष्टि बन गया है। पुरानी बातें समाप्त हो गयी हैं और सब कुछ नया हो गया है (2 कुरू.5.17)। यदि कोई ख्रीस्त में है तो वह नयी सृष्टि बनता है। ख्रीस्तीय होना मुखौटा पहनना नहीं है जो चेहरे के रुप को बदल देता है। ख्रीस्तीय होने का अर्थ हृदय में परिवर्तन लाना है, सच्चे अर्थ में हृदय का परिवर्तन होना और यही पौलुस के साथ हुआ।

प्रेरितिक उत्साह की उत्पत्ति अनुभव से

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सुसमाचार के प्रति उत्साह इसकी समझ या पठन नहीं है- आप पूरे धर्मग्रंथ को पढ़ने के बाद भी नास्तिक या दुनियावी हो सकते हैं, दुनिया में बहुत से ईशशास्त्रीगण नास्तिक रहे हैं अतः उत्साह धर्मग्रंथ के पठन से नहीं आता है। अध्ययन अपने में उपयोगी है लेकि यह कृपा उत्पन्न नहीं करता है अर्थात हममें परिवर्तन नहीं लाता है बल्कि यह अनुभव से आता है जहाँ हम “गिरने और पुनरूत्थान” का अनुभव को पाते हैं जो संत पौलुस का अनुभव रहा। इसे हम सौलुस-पौलुस के जीवन में प्रेरितिक उत्साह के रुपांतरण स्वरूप पाते हैं। वास्तव में, लोयोला के संत इग्नासियुस कहते हैं, “ज्ञान की बहुतायत हमें संतुष्टि प्रदान नहीं करती बल्कि ज्ञान का अनुभव और आंतिरक रुप में उसका रसास्वादन हमारी आत्मा को संतुष्टि देती है”। संत पापा ने ईश्वर से मिलन की अनुभूति पर जोर देते हुए कहा कि क्या हमारी मुलाकात उनसे हुई है, क्या हमने उनसे बातें की हैॽ यदि आप धर्मग्रंथ लेकर येसु से बातें करते तो क्या आप यह जानते हैं कि येसु कौन हैंॽ हम इस बात की कमी को अपने जीवन में पाते हैं। येसु ख्रीस्त कैसे आपके जीवन में प्रवेश करते हैं, कैसे उन्होंने पौलुस के जीवन में प्रवेश किया, और जब वे हमारे जीवन में प्रवेश करते तो सारी चीजें बदल जाती हैं। बहुत बार हमने यह कहते हुए सुना है वह कितना बुरा व्यक्ति था लेकिन वह बदल गया है...किसने उसमें परिवर्तन लायाॽ उसने येसु को पाया है। क्या आपके ख्रीस्तीय जीवन में परिवर्तन आता हैॽ यदि येसु हमारे जीवन में प्रवेश नहीं करते तो यह नहीं होता है। आप केवल बाहरी तौर पर ख्रीस्तीय हो सकते हैं। संत पौलुस ने येसु को पाया और वे इस बात का एहसास करते हुए कहते हैं कि ईश्वर का प्रेम हमें प्रेरित करता और हमें आगे ले चलते हैं। सभी संतों के साथ यही हुआ है।

हृदय में येसु को आने दें

संत पौलुस के जीवन में परिवर्तन में हम आगे चिंतन कर सकते हैं वे सताने वाले से ख्रीस्त के एक प्रेरित बन गये। हम यहाँ एक विरोधाभाव को पाते हैं, वास्तव में, जब तब उन्होंने अपने को ईश्वर के सम्मुख धर्मी समझा तब तक वे लोगों को प्रताड़ित करने, उन्हें गिरफ्तार यहाँ तक कि उन्हें मार डालने के अधिकार का एहसास करते हैं, जैसे हम स्तीफन के संदर्भ में पाते हैं, लेकिन जब वे पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त से आलोकित किये जाते, उन्हें यह एहसास होता है कि वे “ईशनिंदक और अत्याचारी” हैं, तो उनमें सच्चा प्रेम जागृति होता है। संत पापा ने कहा यदि हम में कोई यह कहता है कि मैं एक अच्छा व्यक्ति हूँ, मैं अच्छी चीजें करता हूँ, मैं आत्मामारू पाप नहीं करता...” यह अच्छा मार्ग नहीं हैं, यह आत्मनिर्भरता का मार्ग होता है, जो आप को अभिमानी बनता है। यह उत्तम ख्रीस्तीय होने को दिखलाता है लेकिन उत्तम ख्रीस्तीय अपने में पवित्र नहीं है। सच्चा ख्रीस्तीय अपने अंदर येसु ख्रीस्त को स्वीकारता है जो हृदय में परिवर्तन लाते हैं। संत पापा ने कहा कि येसु आप के जीवन में क्या अर्थ रखते हैॽ क्या आप उसे अपने हृदय में प्रवेश करने देते हैं या हम अपने को उनसे दूर रखते हैंॽ क्या मैं अपने को उनके द्वारा बदलने देता हूँॽ या येसु सिर्फ एक विचार, ईशशास्त्र हैं जो हमारे सिर से ऊपर जाते हैं...जब कोई येसु को पाता तो वह अपने में पौलुस की भांति अग्नि का अनुभव करता है,जो दूसरों को येसु के बारे में बतलाता, लोगों को सहायता करता और अच्छी चीजों को करता है। वह जो येसु को विचार के रुप में पाता अपने में आदर्शवादी ख्रीस्तीय की तरह ही रह जाता है, यह न्यायसंगत नहीं होता है केवल येसु हमें न्यायसंगत बनाते हैं। ईश्वर हमें येसु को पाने, उनसे मिलने में मदद करें, और वे येसु हमारे आतंरिक जीवन में परिवर्तन लायें और दूसरों की सेवा करने में हमारी मदद करें। 

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29 March 2023, 15:22