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संत पापाः बपतिस्मा प्राप्त प्रेरितिक कलीसिया के अंग

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में कलीसिया में बपतिस्मा प्राप्त प्रत्येक जन को प्रेरितिक कलीसिया का एक अभिन्न अंग निरूपित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिराजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

हमने अपने विगत धर्मशिक्षा माला में कलीसिया के प्रथम “धर्मसभा” की चर्चा की, जो कलीसिया के इतिहास में, येरुसालेम में सुसमाचार प्रचार से संबंधित एक सवाल, विशेषकर गैर-यहूदियों के बीच सुसमाचार प्रचार की विषयवस्तु से आयोजित की गई थी। 20वीं शत्बदी में, एकतावर्धक द्वितीय वाटिकन महा धर्मसभा ने कलीसिया के स्वरुप को एक तीर्थयात्री ईश प्रजा के रुप में प्रस्तुत किया, जो अपने स्वभाव से प्रेरित है (cf. Decree Ad gentes, 2)। सुसमाचार प्रचार की विषयवस्तु प्रथम और द्वितीय महा धर्मसभा के बीच एक सेतु की भांति है जिसके शिल्पकार पवित्र आत्मा हैं। आज हम द्वितीय वाटिकन महासभा के बारे में सुनेंगे जहाँ सुसमाचार प्रचार को हम कलीसिया की सेवा स्वरुप पाते हैं, जो कभी अकेले, उदासी में या व्यक्तिगत रुप में नहीं होती है। सुसमाचार का प्रचार सदैव कलीसिया में होता है अर्थात समुदाय में और धर्मपरिवर्तन के बिना।

विश्वास को बांटना

वास्तव में, सुसमाचार प्रचार उन बातों को प्रसारित करता है जिसे व्यक्ति ने पाया है। संत पौलुस वह पहले व्यक्ति हैं जो इसके बारे में जिक्र करते हैं, जिस सुसमाचार की घोषणा उन्होंने की और जिसे समुदाय ने स्वीकार किया तथा उसमें सुदृढ़ बने रहे, उसे वही शिक्षा सुनाई गई थी (1 कुरि. 15.1-3)। जिस विश्वास को उन्होंने पाया था वे उसी विश्वास का प्रसार करते हैं। कलीसिया द्वारा सुसमाचार के संदेश को प्रसारित करने का आयाम ख्रीस्तीय उद्घोषणा में सत्यता की गारंटी देना है। वहीं संत पौलुस गलातियों के नाम अपने पत्र में लिखते हैं, “चाहे वह मैं या कोई स्वर्गदूत की क्यों न हो- उससे भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो” (1.8)।

पवित्र आत्मा सुसमाचार प्रचारक

सुसमाचार प्रचारक का कलीसियाई आयाम, यद्यपि उसके प्रेरितिक उत्साह की सुदृढ़ता में निहित है। यह सुदृढ़ता अपने में जरुरी है क्योंकि हम इसमें “अकेले” आगे बढ़ने की परीक्षा को छुपा हुआ पाते हैं विशेष रुप है जब हम अपने लिए इस राह को कठिन पाते और इसकी जिम्मेदारी हमारे लिए थकान भरी लगती है। इसके साथ ही हम कलीसिया के मिथ्या राहों का अनुसरण करने की परीक्षा में सहज ही पड़ जाते हैं, जहाँ हम संख्याओं और चुनावों के दुनियावी तर्क का शिकार होते, अपने विचारों की शक्ति, परियोजनाओं, स्वरुपों में आधारित हो जाते, “संबधों जो हमारे लिए मायने रखते हैं”। यह हमारी गलती है, ये सारी चीजें हमारी थोड़ी मदद के लिए होनी चाहिए जबकि मुख्य चीज कुछ और है। यह पवित्र आत्मा है जो हमें शक्ति प्रदान करते हैं जिसकी मदद से हम येसु ख्रीस्त को घोषित करते हैं। दूसरी अन्य चीजें हमारे लिए गौण हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अब हम सीधे तौर पर द्वितीय वाटिकन धर्मसभा की शिक्षा पर आते हैं और अद जेनतेस के कुछ आज्ञप्ति को पुनः पढ़ते हैं, जो कलीसिया की प्रेरिताई क्रियाकलाप का विवरण प्रस्तुत करता है। इन पदों का महत्व आज भी हमारी जटिल और असंख्य संदर्भ में बरकरार है।

पिता का प्रेम सब के लिए

सर्वप्रथम अद जेनतेस हमें ईश्वर के पितातुल्य प्रेम पर चिंतन करने को निमंत्रण देता है जो एक स्रोत की भांति, “अपने बेशुमार और प्रेममय करूणा के कारण हमें अपने पास आने और अपने जीवन में सहभागी होने का आहृवान करते हैं, वे हमें अपनी उदारता से भरते और अपनी दिव्य करूणा में हमारे ऊपर अपनी भलाई उंडेलना बंद नहीं करते हैं। अतः जिन्होंने सारी चीजों की सृष्टि की उसका शासन सदा सर्वदा बना रहे (1 कुरि. 15.28) जो हर किसी पर और साथ ही सब समय अपनी महिमा और खुशी हम पर प्रकट करते हैं। पिता का प्रेम किसी एक समुदाय विशेष के लिए नहीं है हममें से हर कोई इसे अपने मन और हृदय में धारण करे। संत पापा ने कहा कि यह पद हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पिता के प्रेम को सारी मानवजाति के लिए प्रकट करता है। यह वह प्रेम है जो पुत्र की प्रेरिताई में हर नर और नारी के लिए पहुंचता है जो मुक्ति के माध्यम और हमारे उधारकर्ता हैं, तथा पवित्र आत्मा की प्रेरिताई द्वारा, जो हर एक पर कार्य़शील हैं, चाहे वे ख्रीस्तीय और गैर-ख्रीस्तीय है।

कलीसिया ख्रीस्त का अनुसरण करे

धर्मसभा हमें आगे इस बात की याद दिलाती है कि यह कलीसिया का कार्य है कि वह येसु ख्रीस्त की प्रेरिताई को निरंतर आगे बढ़ाये, “जो दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने हेतु भेजे गये”, अतः अद जेनतेस आगे कहता है, “कलीसिया, पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, उसी मार्ग का अनुसरण करे जिसमें येसु चले, दरिद्रता और आज्ञाकारिता का मार्ग, सेवा और मृत्यु तक आत्म-बलिदान का मार्ग, उस मृत्यु से पुनर्जीवित होकर वे विजयी हुए। यदि वह इस मार्ग में निष्ठावान बने रहती, तो कलीसिया की प्रेरिताई एक “प्रभु प्रकाश या ईश्वर के विधान की एक अभिव्यक्ति होती और यह दुनिया तथा विश्व के इतिहास में उसे पूर्ण बनती है”।

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि यह छोटी व्याख्या हमें कलीसिया में हर प्रेरित के प्रेरिताई उत्साह को हमें समझने में मदद करती है, प्रेरितिक उत्साह हमारे लिए ईश्वर की कृपा है जिसे हमे अपने में सुरक्षित रखने का जरुरत है, क्योंकि तीर्थयात्री और सुसमाचार प्रजा के रुप में, हम किसी को सक्रिया और निष्क्रिया व्यक्तिय स्वरुप नहीं पाते हैं। हमारे बीच ऐसे नहीं कि कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं तो कुछ चुपचाप हैं, ऐसी बात नहीं है। “सभी बपतिस्मा प्राप्त, चाहे वे कसीसिया के किसी भी परिस्थिति में है या उनका विश्वास का स्तर कुछ भी क्यों न  हो, अपने में सुसमाचार प्रचार के माध्यम हैं” (Apostolic Exhortation Evangelii gaudium, 120)। बपतिस्मा प्राप्त करने और इसके फलस्वरुप कलीसिया का अंग होने से, हर बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति कलीसिया की प्रेरिताई में सहभागी होता है, और इस भांति वह ख्रीस्त राजा, पुरोहित और नबी की प्रेरिताई का अंग बनता है। संत पापा ने कहा कि यह कार्य सभी जगह और हर परिस्थिति में एक है यद्यपि इसका निर्वाहन विभिन्न परिस्थिति में अलग-अलग तरीकों से होता है। यह हमें इस बात के लिए आहृवान करता है कि हम अपने में कठोर या कड़ा न हों। विश्वासी का प्रेरितिक उत्साह अपने साक्ष्य और सुसमाचार की घोषणा को एक सकारात्मक रूप में व्यक्त करता है, वह येसु ख्रीस्त की तरह घायल मानवता के संग नये रुप में पेश आता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह सुसमाचार और मानवता की सेवा नये रूप में करता है। सुसमाचार प्रचार एक सेवा है। यदि कोई व्यक्ति अपने को सुसमाचार प्रचारक कहता और उसमें सेवा की भावना नहीं है, वह अपने को स्वामी की भांति देखता तो वह सुसमाचार प्रचारक नहीं बल्कि एक बेचारा व्यक्ति है।

जीवन एक उपहार इसे बांटें

पिता के प्रेममय स्रोत और पुत्र तथा पवित्र आत्मा की प्रेरिताई की ओर लौटना हमें अपनी व्यक्तिगत शांति में जड़ित कर नहीं रखता है। इसके विपरीत यह हमें जीवन के मुफ्त उपहार और उसकी परिपूर्णत को देखने में मदद करता है जिसके लिए हम बुलाये गये हैं, एक उपहार जिसके लिए हम ईश्वर की प्रशंसा और उनका धन्यवाद करते हैं। यह हमें उन चीजों को पूर्णरूपेण जीने में मदद करता है जिसे हमने पाया है जिन्हें हम उत्तरदायी ढ़ंग से दूसरों के संग चलते हुए साझा करते हैं, चाहे हमारा जीवन इतिहास कितना भी कठिन और मुश्किल भरा क्यों न हो। हम ईश्वर से कृपा की याचना करें जिससे हम अपने ख्रीस्तीय बुलाहट को एक निधि की भांति अपने हाथों में लेते हुए इसे दूसरों के संग साझा कर सकें।

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08 March 2023, 15:28