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संत पापा फ्राँसिस जूबा में धर्माध्यक्षों के साथ संत पापा फ्राँसिस जूबा में धर्माध्यक्षों के साथ  (ANSA) संपादकीय

चरवाहे अपने लोगों के बीच में मध्यस्थता करते हैं, वे प्रबंधक नहीं

संत पापा फ्राँसिस जुबा में संत तेरेसा महागिरजाघर में दक्षिण सूडान के धर्माध्यक्षों और पुरोहितों से मिले। सार्वभौम कलीसिया की भूमिका और धर्मसभा के प्रतीक के रूप में मध्यस्थता के बारे में बात करने का अवसर था।

अंद्रेया तोर्नेली द्वारा

जो कोई भी कलीसिया में सेवा देता है उसे प्रभु के लिए जगह बनाने और लोगों के बीच मध्यस्थता करने के लिए कहा जाता है। देश के धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और धर्मबहनों के साथ बैठक के दौरान जुबा के महागिरजाघर में संत पापा फ्राँसिस का भाषण ठोस और अंतर्दृष्टि से भरा हुआ था। संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी ने सबसे पहले यह सोचने की आवश्यकता को याद दिलाय कि हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि "हम सब कुछ के केंद्र में हैं।" हम "अपनी प्रतिभाओं पर" भरोसा न करें, क्योंकि "हम जो कुछ भी हासिल करते हैं वह ईश्वर से आता है। वो सर्वशक्तिमान ईश्वर है औप हम उनकी हाथों में आज्ञाकारी यंत्र होने के लिए बुलाए गए हैं।"

फिर उन्होंने पुरोहितों को दयालु और करुणावान होने के लिए कहा, "अधिपति" या "आदिवासी मुखिया" नहीं। और फिर उन्होंने उन लोगों के मौलिक मनोभाव की ओर इशारा किया जो अपने भाइयों और बहनों की सेवा करने के लिए बुलाए गए हैं, वह है मध्यस्थता।

जैसा कि ईश्वर के पुत्र ने देहधारण करके और क्रूस पर मर कर किया: वह हमें ऊपर उठाने के लिए नीचे इस दुनिया में आया। जैसा कि मूसा ने किया था, लोगों के लिए मध्यस्थता करते हुए, उन्हें ईश्वर के करीब लाने हेतु खुद को उनके इतिहास के अंदर डाल दिया। संत पापा फ्राँसिस ने कार्डिनल मार्टिनी के शब्दों को प्रतिध्वनित करते हुए कहा कि मध्यस्थता का मतलब केवल 'किसी के लिए प्रार्थना करना' नहीं है, जैसा कि हम अक्सर सोचते हैं। व्युत्पत्ति में इसका अर्थ है 'बीच में कदम रखना', एक कदम उठाना ताकि खुद को किसी स्थिति के बीच में रखा जा सके। संत पापा ने टिप्पणी की, "कई बार यह इतना अच्छा नहीं होता," लेकिन आपको इसे करना पड़ेगा।उनकी बात सुनकर यह स्पष्ट था कि रोम के धर्माध्यक्ष अन्य व्यक्ति में बोल रहे थे, लेकिन एक धर्माध्यक्ष के रूप में अपने स्वयं का अनुभव, जो दिल से प्रार्थना करता है, जो मध्यस्थता करता है, जो अपने लोगों की मदद करने के लिए बीच में कदम रखता है। उन्होंने समझाया कि धर्माध्यक्ष के रुप में  "बीच में चलने" की आवश्यकता है: पीड़ा के बीच में, आंसुओं के बीच में, ईश्वर के लिए भूख और अपने भाइयों एवं बहनों के प्यार की प्यास के बीच में।

संत पापा फ्राँसिस ने आगे कहा, "हमारा पहला कर्तव्य एक ऐसी कलीसिया होना नहीं है जो पूरी तरह से संगठित हो – यह तो कोई भी कंपनी ऐसा कर सकती है।" ख्रीस्त की कलीसिया "लोगों के परेशान जीवन के बीच में खड़ी है, जो लोगों के लिए हाथ गंदा करने को तैयार है" और धर्माध्यक्ष, "अपने लोगों के बीच में और साथ-साथ चलते, सुनते और बातचीत करते हैं, एक दूसरे को और आम लोगों को सहयोग देते हैं।" साथ में, किसी जाति के विशेषाधिकार प्राप्त सदस्यों के रूप में नहीं लेकिन एक साथ, गुरु का अनुसरण करते और उनके लिए जगह बनाते हैं, पदाधिकारियों के रूप में या प्रबंधकों के रूप में नहीं जो संरचनाओं और रणनीतियों पर भरोसा करते हैं। क्या यह धर्मसभा का वर्णन करने के लिए सबसे उपयुक्त प्रतीक नहीं है?

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05 February 2023, 15:04