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हेयती में राख बुधवार 2021 का एक दृश्य हेयती में राख बुधवार 2021 का एक दृश्य  (ANSA)

सन्त पापा का चालीसाकालीन सन्देश 2023 प्रकाशित

वाटिकन ने शुक्रवार को सन्त पापा फ्राँसिस के चालीसाकालीन सन्देश की प्रकाशना कर दी। इसमें सन्त पापा ने चालीसाकालीन तपस्या तथा धर्मसभाई तीर्थयात्रा पर बल दिया है। इस वर्ष चालीसाकाल 22 फरवरी को राख बुधवार से आरम्भ हो रहा है।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 17 फरवरी 2023 (रेई, वाटिकन सिटी): वाटिकन ने शुक्रवार को सन्त पापा फ्राँसिस के चालीसाकालीन सन्देश की प्रकाशना कर दी। इसमें सन्त पापा ने चालीसाकालीन तपस्या तथा धर्मसभाई तीर्थयात्रा पर बल दिया है। इस वर्ष चालीसाकाल 22 फरवरी को राख बुधवार से आरम्भ हो रहा है।

सन्त मत्ती रचित सुसमाचार में निहित प्रभु येसु ख्रीस्त के रूपान्तरण की घटना का स्मरण दिलाते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने अपना चालीसाकालीन सन्देश आरम्भ किया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार रूपान्तरण के बाद प्रभु येसु ख्रीस्त अपने शिष्यों, पेत्रुस, याकूब और योहन को अलग पर्वत पर ले गये थे उसी प्रकार, चालीसाकाल के दौरान प्रभु हमें एक ओर ले जाते हैं, यही कारण है कि प्रतिवर्ष चालीसाकाल के दूसरे रविवार को हम रूपान्तरण के सुसमाचार का पाठ करते तथा उसपर मनन-चिन्तन करते हैं।

आध्यात्मिक अनुशासन और तपस्या  

इस प्रकार, सन्त पापा ने कहा, हमारी सामान्य प्रतिबद्धताएँ हमें अपने सामान्य स्थानों और अक्सर दोहराए जाने वाले और कभी-कभी उबाऊ दिनचर्या में रहने के लिए मजबूर करती हैं, जबकि चालीसाकाल के दौरान हमें, तपस्या करनेवाली ईश प्रजा के रूप में, येसु के साथ मिलकर "एक ऊँचे पहाड़" पर चढ़ने और आध्यात्मिक अनुशासन के एक विशेष अनुभव को जीने के लिए आमंत्रित किया जाता है।  

सन्त पापा ने कहा, चालीसा काल की तपस्या एक प्रतिबद्धता है, जो अनुग्रह द्वारा कायम रहती तथा हमारे विश्वास की कमी और क्रूस के मार्ग पर येसु का अनुसरण करने के हमारे प्रतिरोध पर काबू पाती है।

एकजुटता में येसु का अनुसरण

ताबोर की पहाड़ी पर अपनी "आध्यात्मिक साधना" के समय, येसु अपने साथ तीन शिष्यों को ले जाते हैं, जिन्हें एक अनोखी घटना के साक्षी बनने के लिए चुना गया था और यह इसलिये कि प्रभु येसु चाहते हैं कि अनुग्रह का अनुभव साझा किया जाए, वह एकाकी न रहे, ठीक वैसे ही जैसे विश्वास का हमारा पूरा जीवन एक अनुभव है जिसे साझा किया जाता है, क्योंकि एकजुटता में ही हम येसु का अनुसरण कर सकते हैं।

सन्त पापा ने कहा एक साथ मिलकर ही, एक तीर्थयात्री कलीसिया के रूप में, हम धर्मविधिक वर्ष का अनुभव करते हैं और इसके भीतर चालीसाकाल में उन लोगों के साथ चलते हैं जिन्हें प्रभु ने हमारे बीच साथी यात्रियों के रूप में रखा है। ताबोर की पहाड़ी पर ऊपर की ओर आरोहित प्रभु येसु एवं उनके शिष्यों के सदृश हम भी कह सकते हैं कि हमारी चालीसाकालीन तीर्थयात्रा "धर्मसभाई" तीर्थयात्रा है, क्योंकि इसमें हम एकसाथ मिलकर चलते और इस बात के प्रति सचेत रहते हैं कि येसु स्वयं मार्ग हैं। यही कारण है कि चालीसाकाल में हमारी धर्मविधिक तीर्थयात्रा और धर्मसभाई तीर्थयात्रा के दौरान कलीसिया उद्धारकर्ता येसु मसीह के रहस्य में और अधिक गहराई से और पूरी तरह से प्रवेश करती है।   

सन्त पापा ने कहा, तपस्या की चालीसाकालीन तीर्थयात्रा और धर्मसभा की तीर्थयात्रा, समान रूप से उनके लक्ष्य के रूप में, व्यक्तिगत और कलीसियाई दोनों का रूपान्तरण करती है। एक ऐसा परिवर्तन जिसका आदर्श प्रभु येसु ख्रीस्त का रूपान्तरण है, जो उनके पास्काई रहस्य की कृपा से प्राप्त किया गया है।

येसु की सुनें

सन्त पापा ने मंगलकामना की कि इस वर्ष प्रभु येसु का रूपान्तरण हमारे लिए एक वास्तविकता बन सके। उन्होंने कहा, मैं येसु के साथ पहाड़ पर चढ़ने और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उनके साथ चलने के लिए दो "मार्गों" का प्रस्ताव देना चाहूंगा।

सन्त पापा ने कहा कि पहला पथ है ईश्वर के आदेश का पालन जो उस समय शिष्यों ने बादलों में से सुना था, और वह यह:  "यह मेरा परम प्रिय पुत्र है इसकी सुनो"। अस्तु, सन्त पापा ने कहा कि येसु को सुनने का हमें आदेश दिया गया है, यही पहला आदेश है। उन्होंने कहा कि चालीसाकाल उस हद तक अनुग्रह का समय है जब तक कि हम येसु को सुन न लें। उन्होंने कहा कि कलीसिया द्वारा प्रस्तावित धर्मविधिक पाठों में निहित ईश वचन पर हम मनन-चिन्तन करें और उसी के अनुसार अपना जीवन यापन करें, यही येसु का सच्चा अनुसरण है।

भाइयों की सुनें

सन्त पापा ने कहा कि चालीसाकाल का दूसरा पथ है अन्यों की यानि भाइयों की सुनना, विशेष रूप से, ज़रूरतमन्द भाई की मदद करना। उन्होंने कहा कि प्रभु ईश्वर हमारे भाइयों और बहनों के माध्यम से हमसे बात करते हैं, विशेष रूप से, उन लोगों के चेहरों और कहानियों में जो जरूरतमंद हैं। सन्त पापा ने कहा येसु को सुनने का यही अर्थ है अपने भाइयों की सुनना, उनकी ज़रूरतों के प्रति सचेत रहकर उनकी सहायता को आगे आना। उन्होंने कहा यही धर्मसभाई कलीसिया की अपरिहार्य जीवन शैली है।

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17 February 2023, 11:32