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जूबा में धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, उपयाजकों, धर्मसमाजियों एवं सेमिनरी छात्रों से मुलाकात करते हुए संत पापा फ्राँसिस जूबा में धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, उपयाजकों, धर्मसमाजियों एवं सेमिनरी छात्रों से मुलाकात करते हुए संत पापा फ्राँसिस   (Vatican Media)

सूडानी याजकों से पोप : हमें साहसी आत्मा की जरूरत है जो अफ्रीक के लिए मरने को तैयार हो

जूबा में धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, उपयाजकों, धर्मसमाजियों एवं सेमिनरी छात्रों से मुलाकात करते हुए सतं पापा फ्राँसिस ने कहा कि हमें साहसी, उदार आत्मा की जरूरत है जो अफ्रीका के लिए कष्ट उठाने और मरने के लिए तैयार हो।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

दक्षिणी सूडान, शनिवार, 4 फ़रवरी 2023 (रेई) :  संत पापा फ्राँसिस ने दक्षिणी सूडान में अपने यात्रा के दौरान ४ फरवरी को वहाँ के धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, उपयाजकों, धर्मसमाजियों एवं सेमिनरी छात्रों से संत तेरेसा महागिरजाघर में मुलाकात की।

नील नदी की छवि

संत पापा ने उन्होंने सम्बोधित कर कहा, “मैं लम्बे समय से आपसे मिलने के लिए उत्सुक हूँ और इस अवसर के लिए मैं प्रभु को धन्यवाद देता हूँ।" हम सभी को येसु हमारी शांति एवं आशा को अपनाना जरूरी है।

देश में बहनेवाली नील नदी की छवि पर गौर करते हुए संत पापा ने कहा, “बाईबिल में जल को हमेशा ईश्वर की सृष्टि के कार्य के साथ जोड़ा जाता है। मरूभूमि में भटकते समय दया करके उन्होंने लोगों की प्यास बुझायी और जब हम पाप में फंस जाते हैं तो वे अपनी करुणा से हमें शुद्ध करते हैं। बपतिस्मा में उन्होंने जल द्वारा हमें पुनः जन्म दिया एवं पवित्र आत्मा से नवीकृत किया।“ (तितुस 3:5)

संत पापा ने कहा किन्तु मैं नील नदी के जल को दूसरे रूप में लेना चाहूँगा। इसमें उन लोगों के आँसू भी हैं जो दुखित एवं पीड़ित हैं और हिंसा से संतप्त हैं। वे भजनकार के समान इस तरह प्रार्थना कर सकते हैं, “बाबूल की नदियों के तट पर बैठकर हम सियोन की याद करते हुए रोते थे।“(स्तो. 137:1)

निश्चय ही, उस बड़ी नदी के जल में आपके समुदाय की आहें और पीड़ा हैं, अनेक टूटे जीवन के दर्द, भागते हुए लोगों की त्रासदी, दिल में भय और दुःख, अनेक बच्चों और महिलाओं की आँखें।

धर्मसमाजियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस
धर्मसमाजियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस

मूसा का नेतृत्व

इसके साथ ही नील नदी का पानी मूसा की कहानी की याद दिलाता है, यह स्वतंत्रता एवं मुक्ति की भी बात करता है, मूसा पानी से बचाया गया था और अपने लोगों की अगुवाई लाल सागर से होकर की। वे उनके लिए मुक्ति के मध्यस्थ बन गये, ईश्वर की बचानेवाली सहायता के प्रतीक जिसने अपने बच्चों का स्नेह देखा, मरूभूमि में उनके रूदन सुने। संत पापा ने कहा, “हम अपने आपसे पूछें, युद्ध, घृणा, हिंसा और गरीबी के गहरे घाव के निशानवाले इस देश में मेरे लिए ईश्वर के सेवक होने का अर्थ क्या है? इस भूमि में क्या प्रेरिताई की जाए, जहाँ नदी के किनारे कितने निर्दोष खून बहे हैं, कितनों के चेहरो पर आँसू के चिन्ह हैं जिन्हें हमें सौंपा गया है?”

ईश्वर को केंद्र में रखना

इसका उत्तर देते हुए संत पापा ने मूसा के दो आयामों की विशेषता पर चिंतन किया : उनकी विनम्रता एवं उनकी मध्यस्थता। संत पापा ने जोर देते हुए कहा, मूसा की विनम्रता, ईश्वर के निमंत्रण के प्रत्युत्तर में उनकी विनयशीलता के आदर्श उदाहरण है, लेकिन हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि उसका रास्ता हमेशा ऐसा ही रहा। संत पापा ने याद किया कि सबसे पहले मूसा ने अपने लोगों के लिए न्याय एवं शोषण के खिलाफ संघर्ष किया।

संत पापा ने गौर किया कि यहाँ मूसा की गलती थी खुद को ही केंद्र में रखना और अपनी शक्ति पर भरोसा करना, जिसके कारण वह मानवीय रूप से चीजों को करने में फंस गया और "हिंसा का जवाब हिंसा से दिया।"

संत पापा ने याजकों को चेतावनी दी कि वे अपने आपको सब कुछ के केंद्र में रखने के प्रलोभन में न पड़ें।

दक्षिणी सूडान के धर्माध्यक्षों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस
दक्षिणी सूडान के धर्माध्यक्षों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस

हम जो कुछ करते हैं सब प्रभु की ओर से है

कलीसिया के रूप में कई बार हम सोचते हैं कि हम लोगों के दुःखों एवं जरूरतों का उत्तर मानवीय संसाधनों जैसे, धन, चतुराई या सत्ता आदि से दे सकते हैं। लेकिन इसके विपरीत हम जो कुछ करते हैं वह ईश्वर से आता है, "वे प्रभु हैं और हम उनके हाथों में विनम्र साधन बनने के लिए बुलाये गये हैं।"  

संत पापा ने कहा कि इस तरह की विनम्रता हमें हमारी प्रेरिताई के लिए आवश्यक है, "आश्चर्य और विनम्रता में ईश्वर के पास जाने की तत्परता, अपने आप को उसके प्रति आकर्षित होने और उसके द्वारा निर्देशित किये जाने और यह महसूस करने के लिए तैयार करते हैं कि प्रधानता उसकी है।"

“आइये, हम अपने आपको प्रभु के पास लायें एवं प्रार्थना में उनके साथ समय व्यतीत करें, प्रतिदिन ईश्वर के रहस्य पर चिंतन करें ताकि वे हमारे घमंड, हमारे अत्याधिक अभिमान की सूखी लकड़ी को जला डालें और हमें विनम्र बनाकर, उन लोगों के साथ चलने दें, जिनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी हमें सौंपी गयी है।"

एक कलीसिया जो अपना हाथ गंदा करती

उसके बाद संत पापा ने मूसा के आयाम की दूसरी विशेषता की ओर ध्यान आकृष्ट किया। मूसा की विनम्रता ने उन्हें अपने लोगों के लिए मध्यस्थ बनने और उन्हें ईश्वर के करीब लाने में मदद करने के लिए प्रेरित किया।

“हमारा पहला कर्तव्य ऐसी कलीसिया नहीं बनना है जो बिलकुल व्यवस्थित होती बल्कि एक ऐसी कलीसिया बनना है जो ख्रीस्त के नाम पर, कठिनाई में पड़े लोगों के बीच खड़ी होती है, लोगों के लिए अपना हाथ गंदा करना चाहती है।”

संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्षों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए, उन्हें अपनी प्रेरिताई को धार्मिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा की खोज करते हुए कभी नहीं करना चाहिए। बल्कि लोगों के बीच और उनके साथ चलना चाहिए, उन्हें सुनने सीखना और संवाद करना, सेवकों के रूप में एक-दूसरे एवं लोकधर्मियों का सहयोग करना चाहिए।  

दक्षिणी सूडान के धर्मसमाजियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस
दक्षिणी सूडान के धर्मसमाजियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस

उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे व्यक्तिवाद, पक्षपातपूर्ण हित के हर प्रलोभन को दूर करने का प्रयास करें। उन्होंने खेद प्रकट किया कि यह कितना दुखद है जब कलीसिया के पुरोहित एकजुट नहीं हो पाते, एक दूसरे का सहयोग नहीं कर पाते और यहाँ तक कि एक दूसरे की उपेक्षा भी करने लगते हैं।  

संत पापा ने उन्हें आपसी सम्मान, सामीप्य एवं व्यवहारिक सहयोग बनाये रखने का प्रोत्साहन दिया।   

उन्होंने कहा, "यदि हम आपस में ऐसा नहीं कर पाते हैं तो दूसरों को कैसे सिखायेंगे?"

मौलिक अधिकार का उलंघन, ख्रीस्त के विरूद्ध अपराध

मध्यस्थ बनने की कला पर चिंतन करते हुए संत पापा ने मूसा के हाथों पर गौर किया कि धर्मग्रंथ इसके बारे में तीन तस्वीर प्रदान करता है : मूसा अपने हाथ में डंडा लिये हुए, मूसा अपना हाथ फैलाते और अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाते हैं।

पहली छवि जिसमें मूसा अपने हाथ में एक डंडा लेते हैं यह बतलाता है कि वे भविष्यवाणी के साथ मध्यस्थता करते हैं।

उस डंडे के द्वारा मूसा चमत्कार करता हैं, ईश्वर की उपस्थिति एवं शक्ति का चिन्ह प्रकट करते हैं एवं ईश्वर का नाम लेते हैं, शोषण का जबरजस्त विरोध करते हैं जिससे लोग पीड़ित हैं तथा फराऊन से मांग करते हैं कि वे उन्हें जाने दें।

संत पापा ने कहा, "भाइयो एवं बहनो, हम भी हमारे लोगों के मध्यस्थ बनने के लिए बुलाये गये हैं, उन लोगों के अन्याय एवं सत्ता के दुरूपयोग के खिलाफ आवाज उठाने, जो संघर्षों के बादलों के बीच अपने स्वार्थ के लिए दमन और हिंसा का इस्तेमाल करते हैं।"

“यदि हम ऐसे पुरोहित बनना चाहते हैं जो मध्यस्थ बनता है तब हम अन्याय एवं हिंसा के द्वारा उत्पन्न दुःख के सामने तटस्थ नहीं रह सकते। किसी पुरूष या महिला के मौलिक अधिकार का उलंघन, ख्रीस्त के विरूद्ध अपराध है।”

दूसरी तस्वीर है मूसा द्वारा अपना हाथ बढ़ाना। धर्मग्रंथ हमें बतलाता है कि उन्होंने सागर के ऊपर हाथ बढ़ाया। संत पापा ने कहा, यह आवश्यक है कि हम अपना हाथ अपने भाइयों और बहनों के लिए उठायें, ताकि उनके यात्रा में उनका साथ दे सकें। उन्होंने याजकों को याद दिलाते हुए कहा, "हमारे हाथ पवित्र आत्मा के द्वारा अभिषिक्त हैं न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए, बल्कि लोगों को प्रोत्साहन देने, उनकी मदद करने और उनका साथ देने के लिए, अतः उन सभी चीजों को पीछे छोड़ें जो हमें विकलांग बनाते तथा अपने आपमें बंद कर लेते एवं भयभीत बनाते हैं।"  

लोगों के संघर्ष को ईश्वर के सामने लाना

संत पापा ने मूसा की तीसरी छवि पर चिंतन किया जिसमें वे अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाते हैं।

"मूसा लोगों के साथ अंत तक खड़ा रहा एवं उनकी ओर से अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाये रखा। उसने सिर्फ अपने आपको बचाने की कोशिश नहीं की, न ही अपने फायदे के लिए लोगों को बेचा।"

मध्यस्थ का काम करने वालों का कर्तव्य है, प्रार्थना में लोगों के संघर्ष को ईश्वर के पास लाना, उनके लिए क्षमा प्राप्त करना तथा ईश्वर की करुणा के चैनल के रूप में मेलमिलाप लाने की कोशिश करना।

संत पापा ने कहा, "ये नबी के हाथ हैं, फैले एवं उठे हुए हाथ, जो अधिक प्रयास की मांग करते हैं।" नबी बनने, साथ देने एवं मध्यस्थ बनने के लिए, अपने जीवन से ईश्वर के सामीप्य को प्रकट करने के लिए हमें अपने जीवन की कीमत चुकानी पड़ सकती है।"

सुसमाचार के लिए जीवन अर्पित करना

संत पापा ने दुःख प्रकट किया कि "कई पुरोहित एवं धर्मसमाजी हिंसा और आक्रमण के शिकार हुए हैं जिसमें उन्होंने अपना जीवन खो दिया है।" उन्होंने सच्चे रूप में अपना जीवन सुसमाचार के लिए अर्पित किया है।

संत पापा ने कहा कि "भाई-बहनों के लिए उनका सामीप्य एक अच्छा साक्ष्य है जिसको उन्होंने विरासत के रूप में हमें प्रदान किया है, जो हमें उनके मिशन को आगे ले जाने के लिए आमंत्रित करता है।"   

अफ्रीका के लिए जान देने हेतु तैयार साहसी आत्मा की आवश्यकता

संत पापा ने संत दानिएल कोम्बोनी एवं सुसमाचार प्रचार हेतु उनके महान कार्यों की याद की, जिसको उन्होंने अपने मिशनरी भाइयों के साथ पूरा किया। वे कहा करते थे, कि एक मिशनरी को ख्रीस्त एवं सुसमाचार के लिए कुछ भी करने को तैयार रहना चाहिए।"

उन्होंने कहा, "हमें अफ्रीका के लिए दुख सहने और मरने के लिए तैयार साहसी एवं उदार आत्माओं की आवश्यकता है।"

संत पापा ने उपस्थित सभी धर्माध्यक्षों, पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों को कलीसिया की ओर से कठिनाइयों एवं परोशानियों के बीच उनके कार्यों के लिए धन्यवाद दिया, विशेषकर, उनके समर्पण, साहस, त्याग और धैर्य के लिए। उन्होंने प्रार्थना की कि वे हमेशा उदार चरवाहे एवं साक्षी बने रहें, सिर्फ प्रार्थना एवं प्रेम के शस्त्र धारण करें जो उन्हें हमेशा ईश्वर की कृपा से विस्मित होने तथा उनकी प्रजा का साथ देने हेतु हमेशा तत्पर रहने के लिए प्रेरित करेगा।  

अंत में संत पापा ने धन्य कुँवारी मरियम से प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें और उन्होंने उनसे अपने लिए भी प्रार्थना का आग्रह किया।

दक्षिणी सूडान में धर्समाजियों से पोप की मुलाकात

 

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04 February 2023, 15:41