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रोम के परमधर्मपीठीय विश्वाविद्यालयों के करीब 3,000 गुरूजनों एवं विद्यार्थियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस रोम के परमधर्मपीठीय विश्वाविद्यालयों के करीब 3,000 गुरूजनों एवं विद्यार्थियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस   (ANSA)

परमधर्मपीठीय यूनिवर्सिटी से पोप : एक साथ सौहार्दपूर्वक कार्य करें

पोप फ्राँसिस ने परमधर्मपीठीय रोमन संस्थानों और विश्वविद्यालयों के सदस्यों को संबोधित करते हुए, येसु के पदचिन्हों पर चलकर, एक साथ काम करने का आग्रह किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 25 फरवरी 2023 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार को रोम के परमधर्मपीठीय विश्वाविद्यालयों के करीब 3,000 गुरूजनों एवं विद्यार्थियों से वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में मुलाकात की।

संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, प्रेरितिक संविधान वेरीतास गौदियुम  जिस तरह याद दिलाता है वे कलीसियाई अध्ययन के एक विशाल एवं बहुरूपीय प्रणाली के अंतर्गत आते हैं। जो सदियों से ईश प्रजा की प्रज्ञा द्वारा पूरे विश्व में फैल गया है एवं पूरी कलीसिया के सुसमाचार की प्रेरिताई से नजदीकी से जुड़ा है। उन्होंने कहा, “आप एक ऐसे धन के अंश हैं जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन में शोध, संवाद, समय के संकेतों की समझ और कई अलग-अलग सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को सुनने से विकसित हुआ है।” उन्होंने कहा, इसमें आप अपनी विशेष निकटता के साथ पेत्रुस के उत्तराधिकारी और ख्रीस्त की सच्चाई की आनंदमय घोषणा की प्रेरिताई के लिए खड़े हैं।

यूनिवर्सिटी एक गायक मंडली

इस बात पर गौर करते हुए कि विद्यार्थी अलग अलग अवधि के लिए पढ़ने हेतु रोम आये हैं संत पापा ने अंतियोख के शहीद संत इग्नासियुस के शब्दों में कहा, “अपने आपको गायक दल के रूप में समर्पित करें। वास्तव में विश्वाविद्यालय विभिन्न आवाजों एवं वाद्ययंत्रों के बीच सहमति एवं तलमेल का स्कूल है।” संत जॉन हेनरी न्यूमन इसका जिक्र एक ऐसे स्थान के रूप में करते थे जहाँ विभिन्न प्रकार के ज्ञान एवं दृष्टिकोण स्वयं को सद्भाव में, एक दूसरे के पूरक, सही और संतुलित रूप में अभिव्यक्त करते हैं। यह संतुलन सबसे पहले अपने आपमें होना चाहिए : मन, हृदय और हाथों की बुद्धिमत्ता के बीच सामंजस्य के रूप में।

विद्यार्थियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस
विद्यार्थियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस

हाथों की बुद्धिमता

हाथों की बुद्धिमत्ता पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि यह सबसे अधिक संवेदनशील है लेकिन किसी तरह से कम महत्वपूर्ण नहीं है। वास्तव में, यह विचार और ज्ञान की चिंगारी की तरह है और कुछ मायनों में उनका सबसे परिपक्व परिणाम भी है। अरिस्टोटल के अनुसार हाथ अपनी शक्ति के कारण “आत्मा के समान” है जो संवेदनशील, भेदी एवं शोध करनेवाला है। वहीं कांत के लिए हाथ मनुष्य का बाह्य दिमाग के समान है।"

संत पापा ने हाथ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “मन कुछ भी समझने में असमर्थ होगा यदि हाथ लालच से बंद होगा अथवा यदि यह “छेददार हाथ” होगा, जो समय, स्वास्थ्य एवं क्षमता को नष्ट करेगा या दूसरों को शांति देने, उनका अभिवादन करने एवं उनसे हाथ मिलाने से इंकार करेगा। यदि गलती करनेवाले भाइयों और बहनों पर बिना दया के हाथों की उंगलियां उठेंगी तो वह कुछ भी सीखने में असमर्थ होगा। और इस बात से कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि वे हाथ नहीं जुड़ेंगे और प्रार्थना में स्वर्ग की ओर नहीं उठेंगे।

हम ख्रीस्त के हाथों को देखें। उन हाथों को जो रोटी लेते और धन्यवाद की प्रार्थना के बाद उसे तोड़ते हैं एवं उसे शिष्यों को देते हैं और कहते हैं यह मेरा शरीर है। उसी तरह वे अपने हाथों में प्याला लेते और उसे देते हुए कहते हैं यह मेरा रक्त है। संत पापा ने कहा कि हम इसमें क्या देखते हैं? हम इसमें हाथों को देखते हैं जो लेते हुए शुक्रिया अदा करते हैं। येसु के हाथ जब रोटी और दाखरस का स्पर्श करते हैं तो वे धन्यवाद देते हैं क्योंकि वे महसूस करते हैं कि सबकुछ पिता के वरदान हैं। संत पापा ने सभी विद्यार्थियों को येसु के समान हाथ का प्रयोग करने हेतु प्रोत्साहन दिया जिन्होंने हर परिस्थिति में कृतज्ञता व्यक्त की।

परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालयों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस
परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालयों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस

सभी समुदाय एवं संस्थान एकजुट हों

संत पापा ने उपस्थित सभी लोगों से आग्रह किया कि वे अपने समुदायों एवं संस्थानों में उसी तरह की एक गायक मंडली का निर्माण करें, विशेषकर कोविड- 19 महामारी के बाद। उन्होंने कहा कि एक ऐसी प्रक्रिया शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है जो शैक्षणिक संस्थानों को एक प्रभावी, स्थिर और जैविक तालमेल की ओर ले जाए, ताकि प्रत्येक के विशिष्ट उद्देश्यों का बेहतर सम्मान किया जा सके और कलीसिया के सार्वभौमिक मिशन को बढ़ावा दिया जा सके।"

अपने प्रवचन को समाप्त करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने जोर देकर कहा कि "आशा एक नैतिक वास्तविकता है" और पुनर्जीवित ख्रीस्त के हाथ हमें बताते हुए कहते हैं यह "आपकी बारी" है। अंत में, संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि हम "गायक मंडली", सद्भाव और आवाजों के अनुरूप, "आत्मा की जीवित क्रिया के प्रति विनम्र" होने की अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करें।

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25 February 2023, 16:03