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जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी द्वारा आयोजित कार्यशाला के प्रतिभागियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी द्वारा आयोजित कार्यशाला के प्रतिभागियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

पोप : तकनीकी को मानव की सेवा के लिए होनी चाहिए

संत पापा फ्राँसिस ने जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी द्वारा आयोजित कार्यशाला के प्रतिभागियों को सम्बोधित किया। कार्यशाला व्यक्ति, उभरती तकनीकी और सार्वजनिक हित के बीच संबंध पर आधारित था। संत पापा ने प्रतिभागियों को जोर दिया कि विज्ञान एवं तकनीकी विकास को हमेशा मानव प्रतिष्ठा एवं समग्र मानव विकास की सेवा में समर्पित होना चाहिए।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

जीवन के लिए गठित परमधर्मपीठीय अकादमी अपनी आमसभा के पूर्व तथाकथित “तकनीकी अभिसरण” के नैतिक पहलुओं पर केंद्रित दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित कर रही है। (नैनोटेक्नोलोजी, बायोटेक्नोलोजी, सूचना तकनीकी और संज्ञात्मक विज्ञान)

“व्यक्ति पर अभिसरण : आम भलाई के लिए उभरती प्रौद्योगिकियाँ” शीर्षक पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला 20-21 फरवरी तक आयोजित की गई है।  

सोमवार को कार्यशाला के प्रतिभागियों को सम्बोधित कर संत पापा ने इस जटिल क्षेत्र के तीन महत्वपूर्ण चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जहाँ प्रगति, नीति और समाज मिलते हैं और जहाँ "विश्वास, अपनी चिरस्थायी प्रासंगिकता में, एक बहुमूल्य योगदान प्रदान कर सकता है।"

मानव जीवन स्थितियों पर तकनीकी विकास का प्रभाव

पहली चुनौती मानव की जीवन स्थितियों में तकनीकी प्रगति द्वारा लाया गया तीव्र परिवर्तन है। संत पापा ने गौर किया कि इस उन्नति की "ताकत और त्वरण" का पर्यावरण एवं मानव जीवन की स्थितियों पर अभूतपूर्व प्रभाव पड़ रहा है, "प्रभाव और विकास जो हमेशा स्पष्ट और अनुमानित नहीं होते हैं", जैसा कि महामारी से लेकर ऊर्जा संकट तक, जलवायु परिवर्तन से लेकर आप्रवासन तक, आज दुनिया जिस तरह के संकटों का सामना कर रही है, उससे पता चलता है कि "स्वस्थ तकनीकी विकास को इन जटिल अंतःक्रियाओं को ध्यान में रखने में विफल नहीं होना चाहिए"।

मानवीय सम्पर्क का स्थान तकनीकी नहीं ले सकता और दुर्बलों को नहीं भूला जा सकता

दूसरी चुनौती है "मानवता" और "संबंध" की परिभाषाओं पर नई तकनीकों का प्रभाव, विशेष रूप से कमजोर व्यक्तियों की स्थिति के संबंध में। यह देखते हुए कि मानव अनुभव का तकनीकी रूप और अधिक "व्यापक" होता जा रहा है, संत पापा फ्राँसिस ने "मानवता के मूल्य पर एक गंभीर प्रतिबिंब" की आवश्यकता पर बल दिया। और विशेष रूप से "एक संबंधपरक अनुभव के रूप में व्यक्तिगत अंतरात्मा की अवधारणा के महत्व की पुष्टि करने के लिए, जो न तो निगम को और न ही संस्कृति की अवहेलना कर सकता है।"

"रिश्तों के नेटवर्क, व्यक्तिपरक और सामुदायिक दोनों में प्रौद्योगिकी मानव संपर्क को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती है, वर्चुवल वास्तविक का स्थान नहीं ले सकता है और न ही सोशल मीडिया सामाजिक क्षेत्र का स्थान ले सकता है।"

संत पापा ने टिप्पणी की कि वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रियाओं के भीतर भी, व्यक्ति और समुदाय के बीच संबंध "तेजी से जटिल नैतिक निहितार्थ" का संकेत देते हैं, उदाहरण के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में, जहाँ उन्होंने देखभाल के लिए समान पहुंच की गारंटी देने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला "विशेषकर" विकलांगों, बीमारों और गरीबों जैसे सबसे नाजुक लोगों के लिए।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देना

अंत में, तीसरी चुनौती है ज्ञान की अवधारणा और नतीजे की परिभाषा। यह देखते हुए कि "जिस प्रकार के ज्ञान को हम क्रियान्वित करते हैं, उसमें पहले से ही नैतिक प्रभाव होते हैं", संत पापा ने सरलीकृत दृष्टिकोण के बजाय "संबंधों के आपस में गुंथने" पर विचार करते हुए अधिक "स्पष्ट मॉडल" की आवश्यकता पर बल दिया।

इस संबंध में उन्होंने अपने प्रेरितिक प्रबोधन एवंजेली गौदियुम एवं सबसे बढ़कर अपने विश्वपत्र लौदातो सी के विचार पर प्रकाश डाला, कि एक मानव-केंद्रित तकनीकी ज्ञान इस सिद्धांत पर आधारित है कि "खंड से बड़ा है संपूर्ण भाग" और यह भी कि "दुनिया में सब कुछ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है", "धार्मिक क्षेत्र में भी सोचने के नए तरीके" को बढ़ावा देता है।

उन्होंने कहा, वास्तव में, "यह अच्छा है कि ईशशास्त्र एक नए मानवतावाद की परिभाषा में योगदान देने और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज के बीच आपस में सुनने और समझने को प्रोत्साहन देने के लिए माफी के दृष्टिकोणों को दूर करना जारी रखेगा।"

"विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज के बीच एक रचनात्मक संवाद की कमी आपसी विश्वास को कम करती है जो सभी मानव सह-अस्तित्व और "सामाजिक मित्रता" के सभी रूपों के आधार पर है।

धर्मों की भूमिका

संत पापा फ्राँसिस ने इस संवाद में धार्मिक परंपराओं के महत्वपूर्ण योगदान पर भी प्रकाश डाला, तथा गौर किया कि उनका प्राचीन ज्ञान "इन प्रक्रियाओं में मदद कर सकता है।"

अपने वक्तव्य को समापन करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने जीवन के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी को यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को जारी रखने हेतु प्रोत्साहित किया कि इन जटिल मुद्दों के साथ "वैज्ञानिक और तकनीकी विकास मानव के समानांतर विकास से तेजी से सामंजस्य स्थापित कर रहा है"।

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21 February 2023, 16:50