पोप फ्राँसिस ने ‘त्रादिसियोनिस कुस्तोदेस’ के दो बिन्दुओं का स्पष्टीकरण दिया
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
संत पापा फ्राँसिस ने “त्रादिसियोनिस कुस्तोदेस” में दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं को स्पष्ट किया है। इस मोतु प्रोप्रियो को जुलाई 2021 को प्रकाशित किया गया था और धर्माध्यक्षों को इन समारोहों पर अधिकार बहाल करके 1962 के रोमन मिस्सा ग्रंथ के प्रयोग के संबंध में मानदंडों को फिर से परिभाषित किया गया था।
संत पापा ने सोमवार को दिव्य उपासना एवं संस्कारों के अनुष्ठान के लिए गठित परमधर्मपीठीय विभाग के अध्यक्ष कार्डिनल अर्तुर रोक से मुलाकात करने के बाद मंगलवार को जारी अध्यादेश में यह स्पष्टीकरण दिया है।
परमधर्मपीठ का अधिकार
ये दोनों बिंदु मीडिया सहित विभिन्न व्याख्याओं और हालिया चर्चाओं में शामिल रहे हैं। ये पल्ली गिरजाघरों के प्रयोग और पल्लीवासियों के लिए 1962 में प्रकाशित रोमन मिस्सा ग्रंथ के प्रयोग की संभावना से संबंधित हैं। मिस्सा ग्रंथ जिसको संत पापा जॉन 23वें ने द्वितीय वाटिकन महासभा के पहले प्रकाशित किया था, 16 जुलाई 2021 के बाद अभिषिक्त पुरोहितों द्वारा 1962 में प्रकाशित मिस्सा ग्रंथ का प्रयोग शामिल है, दूसरे शब्दों में मोतु प्रोप्रियो प्रकाशित होने के बाद।
अध्यादेश में संत पापा ने पुष्ट किया है इन बिन्दुओं पर “त्रादिसियोनिस कुस्तोदेस” स्पष्ट है।
उपयुक्त अनुमति स्थानीय धर्माध्यक्ष के अधिकार में है, जिन्हें निर्णय जारी करने से पहले दिव्य उपासना के लिए गठित विभाग से प्राधिकरण प्राप्त करना चाहिए।
मोतु प्रोप्रियो के अनुसार, यह कदम इस मामले में परमधर्मपीठ के अधिकार का प्रयोग करता है। धर्माध्यक्ष को अनुमति देने से पहले, विभाग परिस्थित के आधार पर यह देखने का प्रयास करेगा कि अनुमति देना उचित है अथवा नहीं।
अध्यादेश में जोर दिया गया है कि दोनों मामले "परमधर्मपीठ के लिए एक विशेष रीति से आरक्षित व्यवस्थाएँ हैं।" जिसमें धर्माध्यक्ष परमधर्मपीठ से प्राधिकरण लेने के लिए बाध्य हैं।
त्रादिसियोनिस कुस्तोदिस
पोप फ्राँसिस के अध्यदेश में यह भी लिखा गया है कि "एक धर्मप्रांतीय धर्माध्यक्ष जिसने उपरोक्त वर्णित दो मामलों में छूट प्रदान की है, दिव्य उपासना और संस्कारों के अनुष्ठान विभाग को सूचित करने के लिए बाध्य है, जो उन मामलों का मूल्यांकन करेगा।"
अतः धर्माध्यक्ष जिन्होंने पल्ली गिरजाघरों के उपयोग को स्वीकार किया है, व्यक्तिगत पल्लियों की स्थापना की है, या 16 जुलाई 2021 के बाद पुरोहितों को परमधर्मपीठ की सहमति के बिना 1962 के मिस्सा ग्रंथ के प्रयोग की अनुमति दी है, उन्हें विभाग के पास एक अनुरोध प्रस्तुत करना होगा और उसके जवाब का इंतजार करना होगा।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here