पोप : आवश्यक सहायता को सीरिया पहुँचने से न रोकें
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को पूर्वी ऑर्थोडॉक्स कलीसिया के युवा पुरोहितों एवं मठवासियों से वाटिकन में मुलाकात की। उन्हें सम्बोधित कर उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि लोगों के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा, ताकि उन्हें तत्काल और आवश्यक सहायता पहुँचाने में बाधा डालने के लिए कोई कारण या प्रतिबंध नहीं होंगे।"
संत पापा ने कहा, “आप में से कुछ पीड़ित सीरिया से आये हैं; मैं उन प्यारे लोगों के प्रति अपना विशेष सामीप्य व्यक्त करना चाहता हूँ जो न केवल युद्ध से बल्कि भूकम्प से भी पीड़ित हैं, जैसा कि तुर्की में हुआ है, यह बहुत सारे लोगों के लिए पीड़ा और भयानक तबाही का कारण बना है।”
संत पापा ने "इतने सारे निर्दोष लोगों, बच्चों, महिलाओं, माताओं, परिवारों" की गहन पीड़ा के लिए दुःख प्रकट किया।
उन्होंने उपस्थित दल से आग्रह किया कि वे अपने धर्माध्यक्षों एवं कलीसियाओं के लिए पोप का अभिवादन ले जाएँ एवं उनके लिए माता मरियम से प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें।
पिछले हफ्ते की शुरुआत में दक्षिणपूर्वी तुर्की में दो भूकंप आए, जिससे तुर्की और पड़ोसी सीरिया में बड़े पैमाने पर तबाही हुई। भूकंप ने सैकड़ों इमारतों को गिरा दिया और हजारों लोगों की जान ले ली। मरनेवालों की संख्या पहले ही 50,000 से अधिक हो चुकी है।
चालीसा काल की यात्रा
संत पापा ने चालीसा काल की शुरूआत में पुरोहितों का स्वागत करते हुए खुशी व्यक्त की, जब ख्रीस्तीय विश्वासी ख्रीस्त के पास्का को मनाने की तैयारी करते हैं और जो ख्रीस्तीय विश्वास का केंद्रबिन्दु है।
संत पापा ने कहा कि यह उन्हें एक यात्रा की याद दिला रही है, जिसमें दो शिष्य पास्का के दिन एक साथ यात्रा किये थे। यह एम्माउस की यात्रा थी, जो पूर्ण एकता की ओर एक ख्रीस्तीय एकता का प्रतीक है।
तीर्थयात्रा
संत पापा ने कहा, यह एक तीर्थयात्रा है। जब ख्रीस्तीय एक साथ चलते हैं जैसा कि एम्माउस के रास्ते पर शिष्यों ने किया था, उनके साथ ख्रीस्त होते हैं, जो साथ देते तथा यात्रा को पूरा करने के लिए प्रोत्साहन एवं शक्ति प्रदान करते हैं।
येसु उन दो शिष्यों के पास पहुँचते हैं जो व्याकुल एवं अस्त-व्यस्त स्थिति में थे। राह में वे चुपचाप उनके बीच आ जाते हैं।
संत पापा ने कहा कि दुःख और त्यागने की कोशिश के कारण वे उन्हें पहचानने में असमर्थ रहे। उसी तरह निराशा एवं आत्मकेंद्रित होने के कारण विभिन्न ख्रीस्तीय समुदाय उन चीजों को नहीं देख पाते हैं जो उन्हें एक साथ लाता है। वे उन्हें नहीं पहचान पाते हैं जो उन्हें एक साथ बुलाता है।
अतः उन्होंने आग्रह किया कि "विश्वासियों के रूप में हमें यकीन करना चाहिए कि हम जितना अधिक एक साथ चलेंगे, उतना ही अधिक रहस्यात्मक रूप से ख्रीस्त हमारा साथ देंगे क्योंकि एकता एक आम तीर्थयात्रा है।"
वार्ता
दूसरी बात जिसपर संत पापा ने प्रकाश डाला वह है "वार्ता"। उन्होंने याद किया कि सुसमाचार लेखक बतलाते हैं कि दो शिष्यों ने जो कुछ घटा, उसपर आपस में बातें कीं।
संत पापा ने कहा, "एम्माउस के रास्ते पर तीर्थयात्रियों की बातचीत उन्हें येसु से बातचीत करने का अवसर दिया जो उनके व्याख्याता बन गये। अपनी बातचीत के आधार पर ख्रीस्त ने उनके हृदय में बातें कीं, उन्हें आलोकित किया, उनके हृदय में अग्नि सुलगायी...”
एकता
पुरोहितों को सम्बोधित करते हुए तीसरी बात संत पापा ने कही, वह है एकता।
संत पापा याद करते हैं कि येसु ने उनके साथ रहने का दबाव नहीं डाला बल्कि शिष्यों ने उन्हें अपने साथ रूक जाने का आग्रह किया ताकि एवं एक साथ रह सकें।
संत पापा ने जोर देते हुए कहा, "हमें प्रार्थना में एकता की चाह रखनी चाहिए, पूरे हृदय एवं पूरी शक्ति से, बिना थके, क्योंकि यदि एकता की चाह समाप्त हो जाएगी तो एक साथ चलना और वार्ता करना काफी नहीं है। यदि एकता की चाह समाप्त हो जाएगी तो सब कुछ औपचारिकता एवं औचित्य बनकर रह जाएगा।”
दूसरी ओर यदि "इच्छा एक व्यक्ति को अपने भाई के साथ मिलकर ख्रीस्त के लिए द्वार खोलने हेतु प्रेरित करती है तो "सब कुछ बदल जाता है।"
धर्मग्रंथ हमें याद दिलाता है कि “येसु शिष्यों को त्यागते एवं अलग करते हुए रोटी नहीं तोड़ते बल्कि यह उनपर निर्भर करता है कि वे उन्हें निमंत्रण दें, उनका स्वागत करें और एक साथ उनकी अभिलाषा करें।”
संत पापा ने कहा कि आज विभिन्न ख्रीस्तीय समुदायों में इसी चीज की कमी है : एकता की तेज इच्छा की, जो पक्षपातपूर्ण रूचि से पहले आता है।
विश्वास योग्य साक्ष्य
संत पापा ने कहा कि यदि हम इन तीन आयामों को ख्रीस्तीय एकता के रास्ते पर जीते हैं, तो उन शिष्यों की तरह हम भी ख्रीस्त को एक साथ रोटी तोड़ते हुए पहचान पायेंगे एवं यूखरिस्त के एक ही मेज पर उनकी उपस्थिति को महसूस करेंगे।
संत पापा ने अपने संदेश के अंत में उन्हें अपनी आशीष प्रदान की तथा शुभकामनाएँ अर्पित की कि वे रोम की तीर्थयात्रा के दौरान वे प्रभु की उपस्थिति एवं एकता में वृद्धि महसूस कर पायें।
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