संत पापाः पवित्र आत्मा में नई शुरूआत करें
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों औऱ तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
सुसमाचार प्रचार हेतु उत्साह पर अपनी धर्मशिक्षा माला में आज हम येसु के वचनों से शुरू करते हैं, “तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।” (मत्ती.28.19)। पुनर्जीवित प्रभु अपने शिष्यों को कहते हैं, “जाओ” वे धर्मशिक्षा या धर्मपरिवर्तन करने हेतु नहीं, बल्कि शिष्य बनाने हेतु अर्थात हर किसी के लिए अवसर उत्पन्न करने जिससे वे येसु ख्रीस्त से अपना संबंध बना सकें, उन्हें जानें और प्रेम करें। जाओ और बपतिस्मा दो- बपतिस्मा देने का अर्थात डूबोना है और इस तरह यह धर्मविधि के अनुष्ठान से पहले यह एक विशेष कार्य की ओर इंगित करता हैः जो किसी एक व्यक्ति के जीवन में पिता ईश्वर, पुत्र ईश्वर औऱ पवित्र आत्मा ईश्वर में सराबोर होने की बात व्यक्त करता है, जहाँ हम रोज दिन अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते हैं, जो पिता, भाई पवित्र आत्मा के रुप में हमारे जीवन में क्रियाशील रहते हैं, जो हममें वास करते हैं।
पवित्र आत्मा शक्ति को सोत्र
संत पापा ने कहा कि येसु अपने शिष्यों को और हमें भी कहते हैं, “जाओ”। वे हमें केवल शब्द मात्र से नहीं भेजते, बल्कि वे हमें पवित्र आत्मा से विभूषित करते हैं क्योंकि केवल उनसे मिलने वाली कृपा की बदौलत ही हम येसु ख्रीस्त में मिले कार्यों को अपने लिए पाते और उसे आगे बढ़ाने के योग्य होते हैं। प्रेरितगण, भय के कारण, जब तक पेतेंकोस्त के दिन उन पर पवित्र आत्मा नहीं उतरता है, अपने को अंतिम ब्यारी की कोठरी में बंद रखते हैं। उनकी शक्ति से वे मछुवारे, जो प्रायः अपने में अशिक्षित थे, उनके बीच से भय दूर हो जाता और वे दुनिया में परिवर्तन लाते हैं। वे अपने में बातें करने नहीं जानते... लेकिन पवित्र आत्मा की शक्ति से वे दुनिया में परिवर्तन लाने हेतु आगे बढ़ते हैं। सुसमाचार की घोषणा, इस भांति सिर्फ पवित्र आत्मा की शक्ति से पूरी होती है जो प्रेरितों में उतरते और उनके हृदय को तैयार करते हैं, यह वे हैं जो सुसमाचार प्रचार को गति प्रदान करते हैं।
कठिन निर्णयों में आत्मा सहायक
संत पापा ने कहा कि प्रेरित चरित के हर पन्ने में हम इस बात को देखते हैं कि सुसमाचार प्रचार के नायक पेत्रुस, पौलुस, स्तीफन या फिलिप नहीं बल्कि पवित्र आत्मा हैं। प्रेरित चरित की पुस्तिका में हम कलीसिया की महत्वपूर्ण स्थिति के बारे में सुनते हैं, जो हमारे जीवन के बारे भी व्यक्त करता है। उस समय और आज भी हम अपने बीच मुसीबतों की कमी को नहीं पाते हैं, हम अपनी चिंताओं के मध्य खुशी का अनुभव करते हैं, ये दोनों बातें साथ-साथ चलती हैं। उदाहरण के लिए उन दिनों की एक विशेष चिंता यह थी कि गैर-ख्रीस्तियों के संग, जो यहूदी समुदाय के नहीं थे, उनके साथ कैसे व्यवहार किया जाये, वे विश्वास के कारण कलीसिया का अंग बन रहे थे। क्या उनके लिए मूसा की संहिता का अनुपालन करना जरुरी था या नहीं। यह लोगों के लिए एक छोटा सवाल नहीं था। उनके बीच में दो दलों का निर्माण हो गया था एक संहिता को अपरिहार्य मानते थे तो दूसरा नहीं। इस बात पर विचारमंथन करने हेतु प्रेरितों का समुदाय एकजुट हुआ जो कलीसिया के इतिहास में “येरुसालेम की धर्मसभा” के नाम से प्रचलित हुई। समस्या का समाधान कैसे किया जायेॽ उन्होंने परंपरा और नवीनता के मध्य एक उचित तालमेल स्थापित किया होगा, जिसके तहत कुछ नियमों को रखा गया और कुछ का परित्याग किया गया। सामाजिक संतुलन स्थापित करने के इस उत्तरदायित्व में प्रेरितों ने मानवीय विवेक का अनुसरण नहीं किया बल्कि उन्हें पवित्र आत्मा के परामर्श के अनुरूप कार्य किया जो उनके ऊपर पहले उतरा था जो अब गैर-ख्रीस्तीय के ऊपर अपने को प्रकट करते हैं।
आत्मा हमें स्वतंत्र करते हैं
और इस भांति, सहिंता के सभी बाध्य करने वाले नियमों को दूर करते हुए उन्होंने अंतिम निर्णय लिया, नियमों की रूपरेखा तैयार की,“पवित्र आत्मा को और हमें यह उचित जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों के सिवाय आप लोगों पर कोई और भार न डाला जाये” (प्रेरि.15.28)। एक साथ मिलकर, यद्यपि उनके बीच कई संवेदनशील विचार थे, बिना विभाजित हुए, उन्होंने पवित्र आत्मा को सुना। वे हमें इस बात की शिक्षा देते हैं जो आज भी मान्य है कि हर धार्मिक रिवाज अपने में उचित है जो हमें येसु ख्रीस्त से मिलन हेतु अग्रसर करता है। हम कह सकते हैं कि कलीसिया की प्रथम धर्मसभा के ऐतिहासिक निर्णय जिसका लाभ हमें मिलता है, जो एक सिद्धांत से अनुप्रेणित है, घोषणा का सिद्धांत हैः कलीसिया में सारी चीजें सुसमाचार की घोषणा की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए, न कि रूढ़िवादियों या प्रगतिशील विचारों के अनुसार, क्योंकि हमारे लिए सच्चाई यह है कि येसु ख्रीस्त अपनी प्रजा के संग अपने को संयुक्त करना चाहते हैं। अतः हर चुनाव, हर उपयोग, हर संरचना और परंपरा का मूल्यांकन इस तथ्य पर किया जाये कि यह ख्रीस्त की घोषणा के अनुरूप हो। इस संदर्भ में संत पापा ने पुनः पवित्र आत्मा की प्रेरणा और सुसमाचार के वचनों से प्रेरित होकर कार्य-चुनाव का आहृवान किया क्योंकि पवित्र आत्मा हमें अपने कार्यों को पूरा करने हेतु स्वतंत्र करते हैं।
प्रेरणा का दमन न करें
उन्होंने कहा कि इस भांति पवित्र आत्मा कलीसिया के मार्ग को प्रज्वलित करते हैं। वास्तव में, वे हमारे हृदयों के लिए ज्योति मात्र नहीं हैं बल्कि वे कलीसिया की ज्योति हैं जो उसे दिशा प्रदान करती है। वे हमारे लिए स्पष्टता लाते हैं जिसके द्वारा हम चीजों के बीच अतंर स्थापित करते हैं, वे हमें आत्मा परीक्षण में मदद करते हैं। यही कारण है कि हमें सदैव उनका आहृवान करने की जरुरत है, चालीसा के शुरू में, आज हम पुनः उन्हें अपने लिए पुकारें। क्योंकि कलीसिया के रुप में हम अपने में एक उचित समय और स्थान, व्यस्थित समुदाय, संस्थानें और प्रेरितिक कार्य हो सकते हैं, लेकिन पवित्र आत्मा के बिना सारी चीजों आत्म-विहीन रह जाती हैं। कलीसिया यदि पवित्र आत्मा से प्रार्थना नहीं करती, यदि वह अपने में बंद रहती है, अपने सें सूखी और थकान भरी, चिंता में बनी रहती तो हमारी प्रेरिताई की लौ बुझ जाती है। संत पापा ने कहा कि कलीसिया को संसद के रुप में देखना दुःखदायी है। ऐसा न हो क्योंकि यह विश्वासियों का समुदाय है जो पवित्र आत्मा की प्रेरणा से येसु ख्रीस्त को घोषित करते हैं। पवित्र आत्मा हमें अपने आप से बाहर ले चलते और अपने विश्वास को घोषित करने में मदद करते हैं जिससे हम उसमें सुदृढ़ बने रहें। यह हमें प्रेरिताई में आगे ले चलते जहाँ हम अपने को जानते हैं। यही कारण है कि संत पौलुस हम से यह आहृवान करते हैं,“हम आत्मा के प्रेरणा का दमन न करें” (1 थेस.5.19)। कहते हैं। हम सदैव पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें, हम उन्हें पुकारें, हम उनसे आग्रह करें कि वे हमें अपनी ज्योति से रोज दिन आलोकित करें। हम इसे अपने हर मिलन के पूर्व करें जिससे हम येसु के प्रेरित उन लोगों के लिए बन सकें जिनके संग हम मिलते हैं।
आत्मा हेतु खुला रहें
प्रिय भाइयो एवं बहनो, संत पापा ने कहा कलीसिया के रुप में हम नये सिरे से पवित्र आत्मा में नई शुरूआत करें। निश्चित ही हम अपने प्रेरितिक कार्यों को करने के पूर्व सामाजिक आकड़ों को जमा करते और कठिनाइयों का अध्ययन करते हुए परियोजनाएँ बनते और लक्ष्य निर्धारित करते हैं जिससे हम सच्चाई तक पहुंच सकें। इससे भी अधिक जरुरी हमारे लिए यह है कि हम पवित्र आत्मा की अनुभूति से शुरू करें, जो एक सही शुरूआत है। यह हमारे आध्यात्मिक जीवन का मूल सिद्धांत है जहाँ हम अपने लिए सांत्वना और निराशा को पाते हैं। पवित्र आत्मा हमारे लिए सर्वप्रथम सांत्वना, ज्योति, प्रेरणा लाते हैं इसके साथ ही दूसरी ओर हम अपने लिए उदासी, तकलीफ, अंधेरेपन का अनुभव करते हैं लेकिन अपने जीवन की ऐसी परिस्थितियों में हम किस तरह अपने को पवित्र आत्मा की ज्योति में संचालित करते हैं। हम अपने आप से पूछें क्या हम अपने को इस ज्योति के लिए खुला रखते हैं क्या हम पवित्र आत्मा को पुकारते हैंॽ क्या मैं उसके द्वारा अपने को संचालित होता पाता हूँ जो मुझे बंद होने को नहीं लेकिन येसु को, उनकी सांत्वना को इस निराशा भरी दुनिया में आगे ले चलने को प्रेरित करते हैंॽ
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