मध्यपूर्वी सिनॉड सभा : युवा “बदलाव के इंजन”
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
मध्यपूर्व के लिए महाद्वीपीय सिनॉड सभा में युवा प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किये तथा आह्वान किया कि “न सिर्फ नाम के लिए बल्कि सचमुच एक साथ चलें।” शुक्रवार को मध्य पूर्व की काथलिक कलीसिया की महादेशीय सिनॉडल असेंबली का अंतिम दिन था।
वाटिकन रेडियो के पत्रकार जॉ पीयेर यमीन ने बेरूत में विभिन्न कलीसियाओं के युवा प्रतिनिधियों से बातें की।
“सचमुच एक साथ चलना, नाममात्र के लिए नहीं”
उन युवा प्रतिनिधियों में इराक के सफा अल अबिया भी थे जिन्होंने खलदेई काथलिक कलीसिया के प्रतिनिधि के रूप में बेरूत की सभा में भाग लिया।
उन्होंने स्वीकार किया कि महादेशीय सिनॉडल सभा में भाग लेने के लिए पहुँचते समय उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी, उन्हें अपने आपमें लग रहा था कि क्या सिनॉड उनकी सैंकड़ों समस्याओं में से एक का भी हल कर सकता है।
“किन्तु” उन्होंने बताया, “जब मैंने अपनी बातों को रखना शुरू किया, दूसरे देशों के लोगों के साथ बातें की, मुझे फिर से उम्मीद जागने लगी। सबसे पहले हमें विश्वास और आशा होना चाहिए, ईश्वर पर और पवित्र आत्मा पर और उन्हें अपने अंदर के काम करने देना है। हमें विश्वस्त और आशावान बने रहना है कि हम कुछ कर सकते हैं चाहे यह छोटा ही क्यों न हो। जरूरी है कि हम कुछ करें क्योंकि हजारों मील की यात्रा भी एक कदम से ही शुरू होती है।”
सिनॉड के लिए उनकी उम्मीदों के बारे पूछे जाने पर अल अबिया ने कहा, “सबसे महत्वपूर्ण आशा इसके शीर्षक ‘सिनॉड’ में हैं : एक साथ चलना।”
“मेरी उम्मीद है कि हम सचमुच एक साथ चलेंगे, सिर्फ नाम के लिए अथवा बात से नहीं।”
युवा “बदलाव के इंजन”
अंतियोख की ग्रीक ऑर्थोडॉक्स कलीसिया की सदस्य मीरा नाइमी भी ऑर्थोडॉक्स युवा आंदोलन के प्रतिनिधि के रूप में सिनॉडल सभा में उपस्थित थी। सभा में भाग लेते हुए उन्होंने कहा कि यह एक “बेहद ज्ञानवर्धक अनुभव रहा, इसने नये दृष्टिकोण को खोल दिया।”
नाइमी ने कहा, “सभा का मूल तत्व है, रास्ते पर एक साथ चलना। मैं अपने साथ यही लेकर जा रही हूँ।” उन्होंने बतलाया कि वे इस दिशा में काथलिक कलीसिया के प्रयास से प्रभावित हैं और सुझाव दिया कि यह एक उदाहरण है जिसपर हरेक व्यक्ति को चलना चाहिए।”
उन्होंने विश्वभर के युवा ख्रीस्तियों का आह्वान किया कि वे अपनी कलीसियाओं की सिनॉडल प्रक्रिया में शामिल हों। उन्होंने कहा, “आप बदलाव के इंजन हैं और बदलाव नहीं आ सकता यदि आप घर में बैठे रहें, वे जिस पर यकीन करते हैं उसके लिए संघर्ष न करें, यदि वे कलीसिया में सच्चाई एवं ईमानदारी के लिए मध्यस्थ न बनें।”
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