खोज

इस्तीफे के बाद कास्तेल गांदोल्फो से लोगों का अभिवादन करते ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें इस्तीफे के बाद कास्तेल गांदोल्फो से लोगों का अभिवादन करते ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें 

पेत्रुस की दीवार से

संत पापा बेनेडिक्ट १६वें जब परमाध्यक्षीय कार्यभार से इस्तीफा देकर वाटिकन से कस्तेल गंदोल्फो गये जो कलीसिया के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी तब इस घटना को किस तरह समझा गया। इस समय उनके निधन के बाद कई लोग उनके परमाध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे के निर्णय की सराहना कर रहे हैं।

वाटिकन न्यूज हिन्दी-वाटिकन सिटी

कस्तेल गंदोल्फो, बृहस्पतिवार, 28 फरवरी 2013, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि घड़ी की सूई भी आनेवाली जिम्मेदारी से भयभीत थी। उसे प्रेरितिक प्रासाद के सामने वाले प्रांगण में एकत्रित भीड़ तथा वॉल्ड टी वी पर नजर गड़ाये लोगों के सामने समय इंगित करना था। संध्या 8.00 बजे एक ऐसा समारोह होने जा रहा था जिसको पहले कभी नहीं देखा गया था। इसका पूर्ण होना, प्रभावशाली प्रतीकों से भरे वृतांत का एक अनुक्रम था; दो स्वीस गार्डों (वाटिकन सुरक्षा बल) का आपस में अभिवादन, उनके द्वारा द्वार खोला जाना, उसे बंद करने की आवाज, बंदुक की चमक, लोगों की घबराहट आदि।  बंद किवाड़ के सामने के इमारत के मुख्य बरामदे पर लहराता वाटिकन ध्वज भी कुछ संकेत दे रहा था।

ताबोर का छिपा हिस्सा

इन चिन्हों से यह प्रकट होता है कि इसने एक विशाल धारणा को पलट दिया। द्वार बंद इसलिए नहीं हुआ क्योंकि एक परमधर्माध्यक्ष काल आरम्भ नहीं बल्कि समाप्त हो रहा था। कलीसिया विश्वास का वर्ष मना रही थी, फिर भी उन क्षणों, उन दिनों में कलीसिया में कई लोगों का विश्वास डगमगा रहा था। जब झटका अपनी धीमी गति से आगे बढ़ रहा था तथा कलीसिया एवं विश्व, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के ग्रीष्मावकाश हेतु आश्रम के कमरों में एक नई बात की तैयारी कर रहे थे तब यह ताबोर पर्वत पर चढ़ने के प्रथम कदम के समान था, जिसका जिक्र उन्होंने संत पेत्रुस के एक अनन्वेषित क्षेत्र की ओर बढ़ते हुए अपने अंतिम देवदूत प्रार्थना के दौरान किया था-

"प्रभु ने मुझे पर्वत पर चढ़ने के लिए बुलाया है, मुझे प्रार्थना एवं मनन-चिंतन में अधिक समर्पित होने के लिए। इसका मतलब कलीसिया का त्याग करना नहीं है बल्कि ईश्वर ने मुझसे इसकी मांग की है ताकि मैं उसी समर्पण एवं स्नेह से उनकी सेवा जारी रख सकूँ जैसा कि मैंने अभी तक किया है किन्तु मेरी उम्र एवं शक्ति के दृष्टिकोण से मेरे लिए यही अधिक उपयुक्त उपाय है।" (देवदूत प्रार्थना, 24 फरवरी 2013)

चुनाव की स्वतंत्रता

उनकी शक्ति, उनके अथक प्रयासों पर आज भी गौर की जाती है जिसने एक ऐसे चिन्ह को प्रस्तुत किया जिसको हजार वर्षों से नहीं देखा गया था अतः यह एक अपवाद है। इस्तीफा देने के एक साल बाद ससम्मान सेवानिवृत संत पापा ने "लेटेस्ट कनवरसेशन" नामक किताब में पत्रकार पीटर सीवॉल्ड को बतलाया, जिसको कोर अद कोर लिक्वीतुर "हिस सुपीरियर" में प्रकाशित किया गया है। अनकही बाहरी दबाव, वाटिलीक्स तथा ठोकर के साजिशकर्ताओं और साजिशकारी सिद्धांतों की पच्चीकारी (मोसाईक) उसी दिन से चित्रकारी कर रही है। शायद इसीलिए संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें यह स्पष्ट करते हैं, "मैं नहीं छोड़ता क्योंकि हमें ऐसे संमय में नहीं छोड़ना चाहिए जब दबाव हो।"

सदा के लिए बाप

वास्तव में, यह एक अंतर्ज्ञान है, और फिर तर्कसंगत रूप से समझा गया है, कि एक याजक - चाहे वह एक पोप या धर्माध्यक्ष ही क्यों न हो - हालांकि वह "संस्कार के मिशन" से कभी नहीं उतरता, क्योंकि "उसने उसे अपने हृदय में सुनिश्चित किया है, अपने कार्य को जारी रख सकता है। जैसा कि कहा गया है कि जब उम्र का भार महसूस करने के कारण एक पिता, पिता होने की जिम्मेदारी लेना बंद कर देता है तब भी वह पिता बना रहता है। अतः उनका पदत्याग एक विश्वासघात के कारण वापस हो जाना नहीं है, बल्कि एक अलग रास्ते पर वफादार रहना है।

"हमेशा, हमेशा के लिए है – इसमें कोई व्यक्तिगत वापसी नहीं है। पदत्याग करने का मेरा निर्णय इसे निरस्त नहीं करता। व्यक्तिगत जीवन में मैं वापस लौटनेवाला नहीं हूँ यह एक यात्रा, मुलाकात, स्वागत, सम्मेलन आदि का जीवन है। मैं क्रूस का त्याग नहीं करूँगा किन्तु एक नये तरीके से क्रूसित येसु के साथ रहूँगा। संत पेत्रुस के शब्दों में, मैं अब कलीसिया के शासन के लिए कोई आधिकारिक शक्ति नहीं रखता, वरन् प्रार्थना की सेवा में बना रहूँगा।" (आमदर्शन समारोह 27 फरवरी 2013)   

प्रार्थना में सब कुछ समर्पित

अंतिम आमदर्शन समारोह में उच्चरित इन शब्दों में पदत्याग की झलक दिखाई पड़ती है तथा यह त्याग की भूमिका है उस शख्स का, जिन्होंने अलग नहीं किन्तु अदृश्य पोप बनने का निश्चय किया। उनके लिए प्रार्थना ही सेतु है। वाटिकन का पुराना एकांत मठवास, मातेर एक्लेसिया सम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें का आश्रम बन गया किन्तु उनकी प्रार्थना उस छोटे स्थान में ही सीमित नहीं रही बल्कि उसे नई स्वतंत्रता मिल गयी। यदि सार्वजनिक रूप से उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करनेवाली दुनिया के बारे बार-बार बातें कीं, अब यह उनका व्यक्तिगत है कि वे शांत और लगातार उसके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। वे संत पापा फ्राँसिस के भिखारियेट में आध्यात्मिक रूप से उपस्थित हुए, जिन्होंने 13 मार्च से एक नई ऊर्जा एवं शैली के साथ कार्यभार शुरू किया।

"मुझे लगता है कि मैं हर किसी को प्रार्थना में ला रहा हूँ, वर्तमान में वह ईश्वर का है, जहां मैं हर बैठक, हर यात्रा, हर प्रेरितिक दौरा को उन्हें समर्पित कर रहा हूँ। मैं सब कुछ और सभी को प्रार्थना में लाकर उन्हें प्रभु को सौंपता हूँ: क्योंकि उन्हें हमारी इच्छा का पूरा ज्ञान है, सभी ज्ञान और आध्यात्मिक बुद्धि के साथ, ताकि हम उसके योग्य, उसके प्यार का, हर अच्छे काम में फल पा सकें।” (आमदर्शन समारोह, 27 फरवरी 2013)

भाईचारा

23 मार्च 2013 अभी दोपहर भी नहीं हुआ था जब सफेद हेलिकोप्टर कास्तेल गंदोलफो की ओर उड़ान भरी। कुछ ही देर में कैमरा ने ऐसा नजारा दिखलाया जिसको कभी नहीं देखा गया था। दो संत पापाओं ने मुस्कुराते हुए एक-दूसरे का आलिंगन किया जो इतिहास में अंकित हो गया। यह विगत वर्षों में संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण या वाटिकन के कैमरों में की गई मुलाकातों की एक श्रृंखला में पहली बार थी जिसने उन्हें एकान्त में, संत मिखाएल महादूत की छत्रछाया में एक विशेष सहवास का उद्घाटन कराया। उस समय से ख्रीस्त जयन्ती, पास्का, जन्म दिवस एवं वर्षगाँठ पर प्रेरितिक आवास संत मर्था से थोड़ी दूर स्थित आश्रम की यात्रा करना एक अवसर बन गया जहाँ वे परिवार के एक अनुभवी बुजूर्ग की तरह स्नेह प्रकट करते हैं।

नखलिस्तान

तब एक ओर जहाँ संत पापा फ्राँसिस के परमाध्यक्षीय काल की शुरूआत की, वहीं दूसरी ओर ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट 16वें उस एकांत स्थान पर चले गये जहाँ उनके लिए स्थान तैयार किया था। वाटिकन वाटिका के उस स्थान को नागरिकों की पहुँच से दूर रखा गया है जो अब प्रकाश के बिना पोप रतजिंगर का एकान्त संरक्षक बन गया है। उनके दिनचार्य में पढ़ना, लिखना, सैर करना, समाचार देखना, शाम के भोजन के बाद संगीत बजाना आदि शामिल है जिसमें समय-समय पर बदलाव आता है जब विश्वभर से उनके मित्र मिलने आते हैं। उनके मित्रों द्वारा मातेर एक्लेससिया में कुछ दुर्लभ फोटो सामाजिक नेटवर्क द्वारा पोस्ट किये जाते हैं जहाँ संत पापा बेनेडिक्ट 16वें वर्षों के साथ शारीरिक रूप से दुर्बल होते जा रहे हैं।  

अच्छाई से संरक्षित

उनकी आवाज कमजोर हो चुकी है तथा 28 मार्च 2013 से तीन वर्षों से भी अधिक दिनों के बाद एक भावनात्मक तार लोगों के बीच सुनाई पड़ती है। यह 28 तारीख ही था किन्तु 2016 के जून का महीना था, जब संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने  पुरोहित अभिषेक के 65वें वर्षगाँठ के अवसर पर ख्रीस्तयाग अर्पित किया। क्लेमेंटीन सभागार में आयोजित उत्सव में संत पापा फ्राँसिस एवं कई कार्डिनलों ने भाग लिया इस प्रकार ससम्मान सेवानिवृत संत पापा के लिए अपना उत्ताधिकारी संत पापा फ्राँसिस के प्रति आभार प्रकट करने का यह एक अच्छा अवसर था। 

संत पापा बेनेडिक्ट ने कहा, "आपको विशेष रूप से धन्यवाद संत पापा, आपकी अच्छाई के लिए, मेरे चुनाव के क्षण से लेकर अभी तक मेरे जीवन के हर पल मुझे प्रभावित करते हैं, सचमुच वे मुझे अंदर ले चलते हैं। वाटिकन वाटिका से कहीं अधिक मनमोहक आपकी अच्छाई, एक ऐसा स्थान है जहाँ मैं जीता हूँ और सुरक्षित महसूस करता हूँ। आपके धन्यवाद के शब्दों एवं सब कुछ के लिए शुक्रिया। हम आशा करते हैं कि आप हमारे साथ दिव्य करूणा के इस रास्ते पर आगे बढ़ेंगे, येसु का रास्ता दिखलायेंगे, येसु की ओर, ईश्वर की ओर।"

जीवन एवं प्रेम की एक दुनिया

उनका छोटा भाषण, बिना विशेष तैयारी के, सभी के सामने खड़े होकर, यूखरिस्त के मूल्य पर एक गहरा चिंतन था जो शाब्दिक और आध्यात्मिक अर्थ में प्रकट हुआ। यह क्रूस पर पीड़ा के लिए धन्यवाद का संस्कार था जिसको येसु ने मानवता के लिए आशीर्वाद में बदल दिया है। उसी क्रूस पर वे अंत तक निष्ठावान बने रहे। उनके अप्रत्यक्ष जीवन से उनकी दाखबारी में काम करने वाले उनके अंतिम शब्द से प्रेरणा पाते हैं।

"अंत में, हम प्रभु की इस" धन्यवाद "में खुद को सम्मिलित करना चाहते हैं, और इस प्रकार वास्तव में, जीवन की नवीनता प्राप्त करते हैं और संसार के परिवर्तन के लिए अपना योगदान देते हैं: कि यह मृत्यु का नहीं बल्कि जीवन का संसार हो; एक ऐसी दुनिया जिसमें प्यार ने मौत को जीत लिया है।”

 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

04 January 2023, 10:21