खोज

संत पापाः संत पापा बेनेदिक्ट 16वें धर्मशिक्षा के एक “गुरू”

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधावीरय आमदर्शन समारोह के अवसर पर आध्यात्मिक सहचर्य के महत्व पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

संत पापा बेनेदिक्त 16वें अद्भुत धर्मशिक्षक

संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरूआत के पूर्व दिवांगत संत पापा बेनेदिक्त 16वें की याद करते हुए कहा कि मैं उन्हें श्रृद्धजंलि देने वालों के संग पुनः याद करता हूँ जो धर्मशिक्षा के एक महान गुरू थे। उनके ठोस और विनम्र विचार आत्म-संदर्भित नहीं थे बल्कि वे कलीसिया से संबंधित थे क्योंकि उन्होंने सदैव ईश्वर से मिलन हेतु हमारे साथ चलने की चाह रखी। क्रूसित और पुनर्जीवित येसु जो एक मात्र प्रभु हैं, वे क्रेन्द-बिन्दु जिनकी ओर संत पापा बेनेदिक्त 16वें ने हमारे हाथों को पकड़ कर चलने हेतु मदद की। वे हमें ख्रीस्त में विश्वास के अनुरूप मिलने वाली जीवन की खुशी को खोजने और आशा में जीवन जीने को मदद करें।

आध्यात्मिक सहचर्य

संत पापा ने इसके उपरांत आत्म-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा कि हम इस विषय पर अपनी धर्मशिक्षा माला का समापन उस बात पर चिंतन करते हुए करेंगे जो हमें इसकी पूर्णतः में मदद करता है जो हमारे लिए आवश्यक है, यह आध्यात्मिक सहचर्य है जो हमारे स्वयं के ज्ञान हेतु सर्वप्रथम, एक अति महत्वपूर्ण भाग है हमने इसे आत्म-परीक्षण के एक अपरिहार्य कारक स्वरुप देखता है। उन्होंने कहा कि केवल आईने में देखना हमारी मदद नहीं करता क्योंकि हम इसके द्वारा केवल कल्पना तक ही सीमित होकर रह सकते हैं। बल्कि आईने में देखते हुए दूसरे से सहायता की चाह रखना हमारे लिए मददगार सिद्ध होता है क्योंकि इसके द्वारा हमें अपने जीवन की सच्चाई का ज्ञान मिलता है।

ईश्वर की कृपा हमारे स्वभाव में मिलती है

ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर सदैव हमारे स्वभाव में बनी रहती है। सुसमाचार के दृष्टांतानुसार हम इसे अच्छे बीज और भूमि के स्वभाव स्वरुप तुलना कर सकते हैं। सबसे पहले हमारे लिए जरूरी है कि हम अपने को अभिव्यक्त करें, बिना भय के उन बातों को जिसमें हम अपने को अति संवेदनशील पाते हैं, जहाँ हम अपने को अधिक कमजोर पाते या अपने बारे में टीका-टिप्पणी किये जाने से भयभीत होते हैं। ऐसा इसलिए नहीं कि वह हमारे लिए निर्णय का कारण होता है बल्कि हमारी कमजोरी सचमुच में हमारी लिए धन स्वरूप होती है, हम अपनी खाम्मियों में अपने लिए सच्ची समृद्धि को पाते हैं, जिसे हमें सम्मान करने और इसका स्वागत करने की जरुरत है क्योंकि जब हम इसे ईश्वर को अर्पित करते हैं तो यह हमें कोमलता, करूणा और प्रेम के योग्य बनाता है। हम उनके लिए खेद का अनुभव करते हैं जो अपने को मजबूत समझते हैं क्योंकि यह उन्हें कठोर और तानाशाह बना देता है जबकि अपनी कमजोरियों को स्वीकारना हमें दूसरों को समझने में मदद करती है। यह दुर्भाग्य की बात नहीं जहां हम मरूभूमि में येसु ख्रीस्त की एक परीक्षा को भूख से संबंधित पाते हैं, हम इसे एक बुराई के रुप में प्रस्तुत पाते हैं, जो उसके परित्याग हेतु प्रेरित करता है, जो ईश्वर की तरह होने को दिखलाता है। यह हमारे लिए एक अति मूल्यवान निधि है, वास्तव में ईश्वर हमें अपनी तरह बनाते हैं, वे हमारी कमजोरी में पूरी तरह सहभागी होते हैं। इस संदर्भ में संत पापा ने क्रूस की ओर और चरनी को देखने का आहृवान किया जहां येसु को हम कमजोर पाते हैं।

हमारी कमजोरी, हमारी मुक्ति का कारण

आध्यात्मिक सहचर्य, यदि हम पवित्र आत्मा में विनम्र बने रहते हैं तो यह हमारी नसमझियों के अपने से दूर करने  में मदद करता है, यहाँ तक उन्हें जो बहुत बुरी हैं, जहाँ हम अपने बारे में विचार करते और ईश्वर के संग अपने संबंध पर विचार-मंथन करते हैं। सुसमाचार हमारे लिए इसके कई उदाहरणों को प्रस्तुत करता है जहाँ हम येसु के संग वार्ता में कई बातों के स्पष्टीकरण और मुक्ति को पाते हैं। उदाहरण के लिए हम समारी नारी, जकेयुस, पापिनी नारी, निकोदेमुस, येसु का एम्माउस की राह में शिष्यों के संग वार्ता को देख सकते हैं। वे लोग जिनका मिलन सही अर्थ में येसु से हुआ उऩ्होंने अपने हृदय को खोलने में भय का अऩुभव नहीं किया, उन्होंने अपनी कमजोरी या अयोग्यता को उनके सामने रखा। इस भांति, उन्होंने अपने व्यक्तिगत अपने जीवन की बातों को येसु के संग साझा किया और उन्हें सहज ही अपने पापों से क्षमा मिल गई।

अपने को खोलें

किसी दूसरे व्यक्ति के सामने, उन बातों की थाह लेना जिसे हमने जीया है या उनकी खोज करना, हमें अपने बारे में स्पष्टता प्रदान करती है, यह हममें उन विचारों के लेकर आती है जो हमारे अंदर होते हैं, जो बार-बार हमें विचलित करते हैं, “मैंने सारी चीजों को गलत किया है, मैं व्यर्थहीन हूँ, कोई मुझे नहीं समझता है, मैं कभी सफल नहीं होऊंगा, मैं असफलता के लिए बना हूँ”, हम अपने जीवन के अंधेरे क्षणों में कितनी बार इन बातों को सोचते हैं। गलत और जहरीले विचारें, जिन्हें हम दूसरों के संग साझा करते हैं हमें उन्हें अपने से दूर करने में मदद करता है, अतः हम अपने को ईश्वर के द्वारा प्रेम किये जानने और मूल्यवान समझे जाने का अनुभव करते हैं चाहे हम जो कुछ भी हैं, यह हमें उनके लिए अच्छी चीजों को करने के योग्य बनता है। हम आश्चर्यजनक रुप में चीजों को दूसरे रूप में देखने लगते हैं, वे चीजें जो अच्छाइयों के रुप में सदैव हमारे जीवन में व्याप्त रहती हैं।

कोई नर या नारी जो आध्यात्मिक रुप में हमारे संग चलता है वह ईश्वर का स्थान नहीं लेता, वह व्यक्ति के लिए  कार्यों को नहीं करता है, लेकिन उसके साथ चलता है, उसे इस बात को जानने में मदद करता है कि उसके हृदय में क्या हो रहा है, वह स्थल जहाँ ईश्वर हम से बातें करते हैं।

साथ चलना जरुरी है

सहचर्य अपने में सहायक हो सकता है यदि दोनों तरफ से, एक में पुत्रत्व होने की अनुभूति और दूसरे में आध्यात्मिक रूप से भ्रातृत्वमय होने की अनुभूति हो। हम अपने में ईश्वर की संतान होने का एहसास तब करते हैं  जब हम इस बात का अनुभव करते हैं कि एक-दूसरे हमारे लिए भाई-बहनों के रूप में हैं, जिनका पिता एक ही है। यही कारण है कि हमें एक समुदाय के रुप में यात्रा करने की आवश्यकता है। कोई भी अकेला अपने में ईश्वर के पास नहीं पहुंच सकता है। सुसमाचार में कोढ़ीग्रस्त व्यक्ति का दृष्टांत इसे हमारे लिए व्यक्त करता है हम दूसरों के विश्वास द्वारा बचाये और चंगाई प्राप्त करते हैं, वहीं दूसरे समय हम अपने भाई-बहनों की ओर से इस निष्ठापूर्ण कार्य को अपने ऊपर लेते हैं। पुत्रवत और भ्रातृत्व रुप में जुड़े होने की अनुभूति के बिना सहचर्य अपने में एक तरह से झूठी आशा, नसमझी की स्थिति को उत्पन्न कर सकती है जहाँ हम अपने में आश्रित होने, जहाँ कोई अपने को बचकने स्थिति में ही उलझा पा सकता है।

मरियम आत्म-परीक्षण की शिक्षिका

कुंवारी माता मरियम आत्म-परीक्षण के एक बहुत बड़ी शिक्षिका हैं, वे कम बोलती, अधिक सुनती हैं, और सारी बातों को अपने हृदय में संजोकर रखती है। वे कम बोलती हैं लेकिन वह अपने में प्रभावकारी है। संत योहन के सुसमाचार में हम एक छोटे पद को मरियम के द्वारा कहे जाते हुए सुनते हैं जो ख्रीस्तियों के लिए अनिवार्य है, “वे तुम्हें जो कुछ करने को कहें करो,” येसु हमें जो कुछ भी करने को कहते हैं हम उसे करें,। मरियम जानती हैं कि ईश्वर हर व्यक्ति के हृदय में बातें करते हैं, वे हमें अपनी हर बात को कार्यों और चुनावों में परिणत करने को कहते हैं। वह इस कार्य को किसी दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा अच्छी तरह से करना जानती हैं, और वह येसु ख्रीस्त के जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में उपस्थित रहती है विशेषकर उनके क्रूस काठ में मृत्यु के समय।

आत्म-परीक्षण एक कला

संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण एक कला है, एक कला जो सीखी जा सकती है और जिसके अपने ही नियम हैं। यदि हम इसे अच्छी तरह से सीखें तो यह हमें आध्यात्मिक अनुभूतियों को और भी बेहतर तरीके से जीने में मदद करती है। इससे भी बढ़कर, आत्म-परीक्षण ईश्वर का एक उपहार है, जिसकी मांग सदैव की जानी चाहिए, बिना इस बात का विचार किये कि हम उनमें निपुण और आत्म-निर्भर हो गये हैं।

ईश्वर की आवाज को हम सदैव सुनी जा सकती है, इसकी अपनी एक विशेष शैली है, और यह वह आवाज है जो हमें शांति प्रदान करती है, यह हमें प्रोत्साहित करती और कठिनाइयों में सुदृढ़ता प्रदान करती है। सुसमाचार हमें इसके बारे में निरंतर याद दिलाता है,“आप न डरें” यह कितनी सुन्दर बात है जिसे स्वर्गदूत मरियम से कहते हैं,   अपने पुनरूत्थान के बाद येसु कहते हैं “डरो मत” यह येसु की शैली है। येसु आज हम सभों से भी यही कहते हैं,“मत डरो”, यदि हम उनके वचनों पर विश्वास करते हैं तो हम अपने जीवन के खेल को अच्छी तरह खेल सकते हैं, और हम दूसरों की मदद कर सकते हैं। जैसे की स्त्रोत हमारे लिए कहता है, “उनके वचन हमारे पैरों के लिए दीपक और राह के लिए ज्योति की तरह है।” (स्तो.119,105)।  

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

04 January 2023, 12:48