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३१ दिसम्बर को संध्या वंदना और ते देयुम की धर्मविधि ३१ दिसम्बर को संध्या वंदना और ते देयुम की धर्मविधि   (AFP or licensors)

पोप फ्राँसिस ने पोप बेनेडिक्ट १६वें के विश्वास, प्रार्थना, दयालुता के साक्ष्य को श्रद्धांजलि दी

ईश माता मरियम के महापर्व की पूर्व संध्या, संत पापा ने संत पेत्रुस महागिरजाघर में संध्या प्रार्थना का नेतृत्व किया। उनके उपदेश का मूल शब्द था दयालुता। उन्होंनेससम्मान संत पापा बेनेडिक्ट १६वें की याद की । जिनका निधन ३१ दिसम्बर को हुआ। उन्होंने उन्हें विश्वास के एक सज्जन और दयालु व्यक्ति के रूप में याद किया तथा कलीसिया के लिए ईश्वर के वरदान के रूप में उन्हें अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। संत पापा ने अपनी ये बातें वर्ष के अंत में संध्या वंदना एवं ते देयुम समारोह के दौरान कही।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

पोप फ्राँसिस ने वर्ष के अंत में संध्या वंदना के पारंपरिक समारोह का नेतृत्व किया, जिसके बाद ते देउम का पाठ किया गया, जो पिछले वर्ष के लिए कलीसिया का धन्यवाद पवित्र मंत्र है। समारोह नव वर्ष की पूर्व संध्या संत पेत्रुस महागिरजाघर में सम्पन्न हुआ। अपने प्रवचन में संत पापा फ्राँसिस ने ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें की याद की, जिनका निधन ३१ दिसम्बर को हुआ।

उन्होंने उनकी महान दयालुता, विश्वास और प्रार्थना के साक्ष्य की याद की। उन्होंने कहा, और दयालुता की बात करते हुए, इस समय, मेरी सोच स्वाभाविक रूप से प्रिय पोप एमेरिटस बेनेडिक्ट सोलहवें की ओर जाता है जो आज सुबह हमें छोड़कर चले गए। जब हम उन्हें एक सज्जन, अत्यन्त नेक व्यक्ति के रूप में याद करते हैं तो हम उनसे प्रेरित हो जाते हैं। और हम अपने हृदय में कृतज्ञता की भावना महसूस करते हैं: ईश्वर के प्रति कृतज्ञता कि उन्होंने उन्हें कलीसिया को और दुनिया को दिया;उन्होंने जो कुछ भी किया उन सब कुछ के लिए कृतज्ञता और सबसे बढ़कर उनके विश्वास एवं प्रार्थना के साक्ष्य के लिए, विशेष कर, इन अंतिम वर्षों में उनके मनन-चिंतनके जीवन के लिए। सिर्फ ईश्वर जानते हैं उनके मूल्य एवं मध्यस्थता की शक्ति को, कलीसिया की अच्छाई के लिए अर्पित उनके त्याग को।”

ईश माता मरियम के महापर्व की पूर्व संध्या, संत पापा ने माता मरियम के जीवन पर चिंतन किया। उन्होंने संत पौलुस के शब्दों में कहा, “वे एक नारी से उत्पन्न हुए।” (गला. 4:4).

जब समय पूरा हो गया तब ईश्वर ने मानव का रूप धारण किया, वे लपककर स्वर्ग से पृथ्वी पर नहीं उतरे, बल्कि मरियम से जन्म लिया। वे एक नारी में नहीं बल्कि एक नारी से उत्पन्न हुए। इसका अर्थ है कि ईश्वर उनके द्वारा शरीरधारण करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने उनका प्रयोग नहीं किया बल्कि उनकी सहमति की मांग की। और उनके “हाँ” से, पाप से मुक्त, कृपा एवं सत्य से पूर्ण, प्रेम और निष्ठा की परिपूर्णता में मानवीय गर्भ की धीमी यात्रा शुरू हुई। एक सुन्दर, अच्छी और सच्ची मानवता, ईश्वर की छवि और स्वरूप में, फिर भी मरियम द्वारा अर्पित मांस से जुड़े; मरियम के हाँ के साथ, वे स्वतंत्रता, मुफ्त, सम्मान एवं प्रेम में बढ़े। 

नया, मुक्त, मेल-मिलाप

ईश्वर ने दुनिया और इतिहास में प्रवेश करने का यही रास्ता चुना। और यह रास्ता आवश्यक था, इतना आवश्यक कि वे इसी रास्ते से होकर आये। मरियम की दिव्य मातृत्व, कुँवारी मातृत्व, फलदायी शुद्धता, एक रास्ता है जो हमारी स्वतंत्रता के लिए ईश्वर के अत्यधिक सम्मान को प्रदर्शित करता है। कि जिन्होंने हमारी रचना की, वे हमारे बिना, हमें बचाना नहीं चाहते।

संत पापा ने कहा कि वे जिस रास्ते पर हमें बचाने आये उसी रास्ते पर उनका अनुसरण करने के लिए हमें निमंत्रण देते हैं, ताकि उनके साथ हम एक नये, मुक्त एवं मेल-मिलाप किये हुए मानवता का निर्माण कर सकें। यह एक तरीका है, हमारे साथ संबंध जोड़ने का रास्ता, जहाँ से एक अच्छे और गरिमामय सह-अस्तित्व के अनेक मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं। उन सदगुणों में से एक है करुणा, जो एक जीवनशैली के रूप में भाईचारा एवं सामाजिक मित्रता का पक्ष लेता है।

दयालुता, वार्ता, शांति

संत पापा ने शांति पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए दयालुता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “दयालुता वार्ता की संस्कृति में एक महत्वपूर्ण आयाम है और वार्ता, भाई एवं बहन के रूप में शांतिमय जीवन व्यतीत करने के लिए अति आवश्यक है जो हमेशा एक दूसरे से सहमत नहीं होते लेकिन बातचीत करते हैं, एक दूसरे को सुनते और समझने की कोशिश करते हैं एवं एक दूसरे से मिलने आते हैं जो कि सामान्य है।” आइये हम कल्पना करें कि कई उदार लोगों के धैर्यपूर्ण वार्ता के बिना दुनिया कैसी होती जिन्होंने परिवारों और समुदायों को एक साथ रखा है। धैर्यशील और साहसी संवाद कोई ऐसा समाचार नहीं बनाता जिसमें झगड़ा और संघर्ष हो, बल्कि सावधानी पूर्वक दुनिया को बेहतर तरीके से जीने में मदद करता है। वास्तव में दयालुता, वार्ता का एक भाग है। यह सिर्फ एक शिष्टाचार, केवल बहादूरी की बात नहीं है, बल्कि एक सदगुण है जिसे पुनः प्राप्त करना एवं हर दिन जीया जाना चाहिए ताकि धारा के विपरीत जाकर हमारे समाज को मानवीय बना सकें।    

अंधकार में चमकते तारे

उपभोगतावादी व्यक्तिवाद की क्षति, सबसे गंभीर क्षति है, जो अपने आसपास दूसरे लोगों को अपनी शांति, अपने आराम में बाधक के रूप में देखता है। व्यक्तिवादी एवं उपभोक्तावादी समाज आक्रामक हो जाता है क्योंकि दूसरे प्रतियोगियों के साथ  प्रतिस्पर्धा करता है। फिर भी हमारे इस समाज के अंदर और सबसे कठिन समय में, कुछ लोग हैं जो दिखलाते हैं कि करुणा को चुनना अब भी संभव है। और वे अपनी जीवन शैली से अंधकार के बीच सितारा बनते हैं।

संत पौलुस गलातियों को लिखे अपने पत्र में पवित्र आत्मा के फलों की चर्चा करते हैं और उन फलों में करुणा को हम एक उदार मनोभाव के रूप में समझ सकते हैं, जो दूसरों का समर्थन करता एवं उन्हें सांत्वना देता है जबकि कठोरता एवं अशिष्टता से परहेज करता। यह इस तरह से वर्ताव करना है ताकि अपने शब्दों या भाव से दूसरों को चोट न लगे, वह दूसरों के दुःखों को सुनने की कोशिश करता, उन्हें अपमानित या तिरस्कृत किए बिना प्रोत्साहन, सहानुभूति, दिलासा देता है।

कुँवारी मरियम पर चिंतन

अंत में संत पापा ने प्रत्येक विश्वासी को प्रोत्साहन दिया कि हम कुँवारी मरियम की तस्वीर को देखें। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें उनकी दिव्य मातृत्व पर चिंतन करना चाहिए।

“आइए हम उनके दिव्य मातृत्व को हल्के में न लें! हम अपने आपको ईश्वर की पसंद से चकित होने दें, जो अपनी शक्ति को प्रकट करने के लिए एक हजार तरीकों से दुनिया में आ सकते थे और मरियम के गर्भ में पूरी आजादी से गर्भधारण करा सकते थे, परन्तु हर बच्चे की तरह नौ महीने विकसित होने और, अंत में, एक महिला से जन्म लेने के लिए उनको चुना।”

संत पापा ने कहा कि हमें इस अद्भुत वास्तविकता के बारे में चिंतन करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह "उद्धार के रहस्य की एक आवश्यक विशेषता" को चिह्नित करता है, जो हमें ईश्वर के अनंत सम्मान और दया का मार्ग दिखाता है, "क्योंकि एक अधिक मानवीय दुनिया का मार्ग कुँवारी की दिव्य मातृत्व में ही पाया जा सकता है।"

३१ दिसम्बर को संध्या वंदना और ते देयुम समारोह

 

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01 January 2023, 16:35