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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

देवदूत प्रार्थना में पोप : दीन-हीन बनने के लिए फेंकने की संस्कृति को त्यागना

रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने संदेश में संत पापा फ्राँसिस ने पहली धन्यता पर चिंतन किया एवं कहा कि दीन-हीन बनने के लिए सब कुछ को ईश्वर के वरदान के रूप में स्वीकार करना है तथा समाज की फेंकने की मानसिकता के खिलाफ जाना है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 29 जनवरी 2023 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार २९ जनवरी को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज की धर्मविधि में धन्यताओं की घोषणा की गई है जिसको संत मती रचित सुसमाचार से लिया गया है। (मती. 5:1-12) पहला और आधारभूत धन्यता है: “धन्य हैं वे जो अपने को दीन-हीन समझते हैं, स्वर्ग राज उन्हीं का है।”(पद.3)

“दीन-हीन कौन”

संत पापा ने कहा, “दीन-हीन कौन हैं”? दीन-हीन वे लोग हैं जो अपने आप पर निर्भर नहीं रह सकते। वे आत्मनिर्भर नहीं हैं और “ईश्वर के सामने भिखारी” के समान जीते हैं। वे उनकी आवश्यकता महसूस करते हैं और उनसे जो भी चीजें मिलती हैं उन्हें उनकी ओर से वरदान या कृपा के रूप में स्वीकार करते हैं। जो लोग दीन-हीन हैं वे उन चीजों को निधि के रूप में रखते हैं जिनको वे प्राप्त करते। इस प्रकार वे चाहते हैं कि कोई भी उपहार व्यर्थ न हो जाए।

संत पापा ने मन की दीनता के आयाम पर चिंतन करते हुए कहा, “येसु हमें बर्बाद नहीं करने के महत्व को दिखलाते हैं। उदाहरण के लिए, रोटी और मछली के चमत्कार के बाद, येसु रोटी के बचे हुए टुकड़ों को जमा करने के लिए कहते हैं ताकि कुछ भी बर्बाद न हो।”(यो. 6:12) बर्बाद नहीं करना हमें - अपने, अन्य लोगों एवं चीजों के मूल्य की सराहना करने देता है। संत पापा ने फेंकने की संस्कृति के लिए खेद प्रकट करते हुए कहा, “दुर्भाग्य से, एक सिद्धांत है जिसको हमेशा ध्यान नहीं दिया जाता चाहिए, सबसे बढ़कर, समृद्ध समाज में, जहाँ फेंकने की संस्कृति प्रबल है। इसलिए मैं फेंकने की मानसिकता के खिलाफ आपके सामने तीन चुनौतियाँ रखता हूँ।”   

अपने मूल्य को बनाये रखना

पहली चुनौती : उपहार को बर्बाद न करें जो हम स्वयं हैं। हम प्रत्येक जन एक वस्तु के समान हैं, हमारे पास जो उपहार है उससे स्वतंत्र। हर स्त्री, हर पुरूष धनी है न केवल क्षमता से बल्कि प्रतिष्ठा से भी। वह ईश्वर द्वारा प्रेम किया जाता है, वह मूल्यवान है। येसु हमें याद दिलाते हैं कि हम धन्य हैं उन वस्तुओं के कारण नहीं जो हमारे पास हैं बल्कि हम जो हैं उसके कारण। अतः सच्ची गरीबी तभी होती है जब व्यक्ति अपने आपको खोने देता और खुद को फेंकता है, अपने जीवन को बर्बाद करता है। हम अपने आपको अपर्याप्त एवं गलत समझते और गलतियों के लिए पछतावा करते हुए प्रलोभन के खिलाफ ईश्वर की मदद से संघर्ष करते हैं।  

प्राकृतिक संसाधन ईश्वर से मिले वरदान

दूसरी चुनौती : हमारे पास जो उपहार है उसे बर्बाद नहीं करना। यह सच है कि विश्व में हर साल हमारे कुल खाद्य उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है जबकि कई लोग भूख से मरते हैं। प्रकृति के संसाधनों का प्रयोग इस तरह नहीं किया जाना चाहिए। संसाधनों की रक्षा की जानी चाहिए और उसे लोगों के बीच इस तरह बांटा जाना चाहिए कि कोई भी मौलिक आवश्यकता से वंचित न रहे। हमारे पास जो है उसे बर्बाद करने की अपेक्षा, आइये, हम न्याय और उदारता की पारिस्थितिकी का प्रसार करें!  

दूसरे हमारे लिए उपहार

तीसरी चुनौती है : लोगों को बर्बाद नहीं करना। फेंकने की संस्कृति कहता है, “मैं तुम्हें उतना ही प्रयोग करता हूँ जितना तुम्हारी जरूरत है। जब मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं होती या तुम मेरे रास्ते पर आते हो, तो मैं तुम्हें फेंक देता हूँ। यह खासकर, उन लोगों के साथ होता है जो सबसे कमजोर हैं- आजन्मे, बूढ़े, जरूरतमंद और वंचित व्यक्ति। संत पापा ने कहा, “लेकिन लोगों को कभी नहीं फेंका जाना चाहिए। हर व्यक्ति पवित्र और अनुठा है। यह मायने नहीं रखता कि वे किस उम्र और स्थिति में हैं। आइये, हम हमेशा जीवन का सम्मान करें एवं उसे बढ़ावा दें।”

चिंतन एवं कुँवारी मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “प्यारे भाइयो एवं बहनों, आइये हम अपने आपसे एक सवाल करें। मैं मन की दीनता को किस प्रकार जीता हूँ? क्या मैं जानता हूँ कि ईश्वर के लिए स्थान कैसे बनाना है? क्या मैं विश्वास करता हूँ कि वे मेरी खजाने हैं, मेरे सच्चे एवं महान धन? क्या मैं यकीन करता हूँ कि वे मुझे प्यार करते हैं अथवा क्या मैं खुद को उदासी में पड़ने देता हूँ, इस बात को भूलते हुए कि मैं एक उपहार हूँ? और क्या मैं सावधानी करता हूँ कि यह  बर्बाद न हो जाए? क्या मैं चीजों का प्रयोग करने में जिम्मेदार हूँ? क्या मैं चीजों को दूसरों के साथ बांट सकता हूँ? क्या मैं गरीब लोगों को मूल्यवान समझता हूँ जिनकी देखभाल करने के लिए ईश्वर मुझसे कहते हैं? क्या मैं गरीबों का ख्याल रखता हूँ जो अपनी आवश्यकताओं से वंचित हैं?

तब संत पापा ने कुँवारी मरियम से प्रार्थना की कि कुँवारी मरियम, धन्यताओं की नारी, हमें उस आनन्द का साक्ष्य देने में मदद करे कि जीवन एक वरदान है और अपने आपको उपहार के रूप में अर्पित करना कितना सुन्दरता है।   

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29 January 2023, 14:40