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वाटिकन कूरिया के सदस्यों को क्रिसमस का संदेश देते संत पापा फ्रांँसिस वाटिकन कूरिया के सदस्यों को क्रिसमस का संदेश देते संत पापा फ्रांँसिस 

कूरिया के सदस्यों से पोप : जागते रहें बुराई नये भेष में वापस आती है

संत पापा फ्राँसिस ने क्रिसमस के पूर्व परमाध्यक्षीय रोमी कार्यालय (कूरिया) के सदस्यों के साथ अपनी वार्षिक मुलाकात में उन्हें सलाह दी कि वे ईश्वर के वरदानों के लिए हमेशा कृतज्ञ बनें, यह न सोचें कि उन्हें अब मन-परिवर्तन की जरूरत नहीं है एवं शांति के लिए हर संभव अपना योगदान दें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

बृहस्पतिवार को परम्परा के अनुसार रोमन कूरिया के सदस्यों के साथ संत पापा ने क्रिसमस की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया। अपने संदेश में संत पापा ने उन्हें सलाह दी कि वे ईश्वर के वरदान को यों ही न ले लें, हमेशा मन-परिवर्तन के रास्ते पर चलें और एक ऐसे समय में शांति निर्माता बनें जिसकी चाह इतनी अधिक पहले कभी महसूस नहीं हुई थी।

येसु का जन्म बिलकुल साधारण एवं एक गरीब चरनी में होने पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि हम प्रत्येक जन अपने जीवन के महत्वपूर्ण चीजों की ओर लौटें, ताकि उन सभी चीजों को त्याग सकेंगे जो अनावश्यक हैं और पवित्रता के मार्ग में बाधक।"

कृतज्ञता

संत पापा ने आभार व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जिसको सबसे महत्वपूर्ण आंतरिक मनोभाव के रूप में वर्णित किया गया।

उन्होंने कहा, "जब हम अपने लिए प्रभु की अच्छाई के प्रति सचेत होते हैं तभी हम उस बुराई को नाम दे सकते हैं जिसका हमने अनुभव किया है या जिसको सहा है। ईश्वर के प्रेम की अनुभूति के बिना हमारी गरीबी का अहसास हमें कुचल देगा।“

"कृतज्ञता के निरंतर अभ्यास के बिना, हम केवल अपनी असफलताओं को सूचीबद्ध करते रहेंगे और जो सबसे अधिक मायने रखता है उसे देख नहीं पायेंगे : उस अनुग्रह को जिसे प्रभु हमें हर दिन प्रदान करते हैं।"

मन - परिवर्तन

सालभर की विभिन्न घटनाओं की याद करते हुए पोप ने कहा कि सबसे पहले हम ईश्वर को उनके वरदानों के लिए धन्यवाद देना चाहते हैं। फिर भी उन वरदानों के बीच हम अपना हृदय परिवर्तन करना न भूलें।

उन्होंने कहा, "मन-परिवर्तन कभी अंत नहीं होनेवाली कहानी है। हमारे लिए सबसे बुरी बात होगी यदि हम सोचने लगेंगे कि अब हमारे लिए मन-परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है, अपने लिए अथवा समुदाय के लिए।"   

उन्होंने कहा कि मन-परिवर्तन के लिए हमें सीखना है कि हम किस तरह सुसमाचार के संदेश को गंभीरता से लें और अपने जीवन में उसका अभ्यास करें। इसका अर्थ केवल बुराई से बचना नहीं है बल्कि उन सभी भले कार्यों को करना है जिनको हम कर सकते हैं।

"जहाँ सुसमाचार की बात है हमें हमेशा बच्चों के समान सीखना है। भ्रम जिसमें हम सोचते हैं कि हम सब कुछ सीख गये हैं हमें आध्यात्मिक घमंड में गिरा देता है।"

संत पापा ने याद किया कि द्वितीय वाटिकन महासभा के लिए मन-परिवर्तन की प्रेरणा आज से ठीक ६० साल पहले मिली थी, जिससे सुसमाचार को समझने का अधिक प्रयास किया गया तथा इसे अधिक प्रासंगिक, जीवित और हमारे समय में प्रभावशाली बनाया गया।

शांति - निर्माण

संत पापा ने अपने संदेश के अंतिम भाग में शांति विषय पर प्रकाश डाला, जहाँ उन्होंने कहा कि हम अक्सर युद्धग्रस्त यूक्रेन की याद करते हैं लेकिन विश्व के विभिन्न हिस्सों में कई जगहों में संघर्ष जारी हैं। उन्होंने कहा, "युद्ध और हिंसा हमेशा एक आपदा होती है। संघर्षों को हवा देने के लिए धर्म को समर्पित नहीं होना चाहिए। सुसमाचार हमेशा शांति का सुसमाचार है, और किसी भी ईश्वर के नाम पर कोई भी 'पवित्र' होने के लिए युद्ध की घोषणा नहीं कर सकता।"

संत पापा ने इस बात पर गौर करते हुए कि शांति का निर्माण लोगों और राष्ट्रों के बीच केवल स्थापित नहीं की जा सकती बल्कि हम प्रत्येक के हृदय से शुरू होती है, उन्होंने कहा, "जहाँ युद्ध, विभाजन, संघर्ष और निर्दोष लोगों की पीड़ा है, वहाँ हम केवल क्रूसित येसु को पहचान सकते हैं।² ²युद्ध और हिंसा के प्रसार से जब हम परेशान हैं, जिन भाइयों और बहनों के साथ हम रहते हैं, उनके प्रति हमारे हृदय से सभी घृणा और आक्रोश को जड़ से उखाड़ने का प्रयास करके, हम शांति के लिए अपना योगदान दे सकते हैं और जिसको हमें देना चाहिए।

संत पापा ने कूरिया के सदस्यों को निमंत्रण दिया कि वे अपने हृदय से कड़वाहट, क्रोध और बदले की भावना को दूर करें। उन्होंने कहा, "यदि हम सचमुच चाहते हैं कि युद्ध का अंत हो एवं शांति को जगह मिले तो हम प्रत्येक को अपने आप से शुरू करना होगा।"

दयालुता, करुणा और क्षमाशीलता

संत पापा ने शांति के निर्माण के लिए संत पौलुस द्वारा बताई गई "दवाई" की ओर इशारा किया, वे दवाईयाँ हैं - दयालुता, करुणा और क्षमाशीलता।

संत पापा ने कहा, दयालुता का अर्थ है एक-दूसरे के साथ हमारे व्यवहार में अच्छाई को चुनना, करुणा का अर्थ है यह स्वीकार करना कि दूसरों में भी कमजोरियाँ हैं और क्षमाशीलता का अर्थ है दूसरों को हमेशा एक अवसर देना कि वे महसूस कर सकें कि हम रूक-रूक कर आगे बढ़ने के द्वारा संत बन सकते हैं।

ईश्वर हम प्रत्येक के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। वे हमें क्षमा देते रहते हैं, वे हमें वापस लाते हैं, दूसरा अवसर देते हैं, अतः हमें भी वैसा ही करना चाहिए।

संत पापा ने कहा कि मन - परिवर्तन और शांति हमारे लिए इस क्रिसमस के उपहार बनें।

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22 December 2022, 17:35