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संत पापाः येसु का सिंहासन, चरनी और क्रूस

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में येसु ख्रीस्त की चरनी पर अपने चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि येसु राजा का सिंहासन चरनी और क्रूस है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात और ख्रीस्त जंयती की पुनः शुभकामनाएं ।

यह पूजन विधि काल हमें ख्रीस्त जंयती के रहस्य पर चिंतन करने का निमंत्रण देता है। और आज जब हम संत फ्रांसिस डे स्लेस, कलीसिया के आचार्य और धर्माध्यक्ष की चार सौवीं वर्षगाँठ मना रहे  हैं, हम उनके कुछ विचारों को अपने लिए ले सकते हैं। उन्होंने ख्रीस्त जंयती पर बहुत सारे लेख लिखे हैं। इस संदर्भ में, आज मुझे इस बात की खुशी है कि हम प्रेरितिक पत्र “तूत्तो अप्पारतेने अल-आमोरे”, सब कुछ प्रेम से संबंधित है का प्रकाशन कर रहे हैं। यह संत फ्रांसिस डे सेल्स की विशेष अभिव्यक्तियों को अपने में सम्माहित करता है। वास्तव में, ईश्वरीय प्रेम के इस आलेख में वे लिखते हैं, “पवित्र कलीसिया में, सारी चीजें ईश्वर के प्रेम से संबंधित हैं, जो प्रेम में संचालित होतीं, प्रेम में की जातीं और प्रेम से उत्पन्न होती हैं”

संत पापा ने कहा कि आइए तब हम फ्रांसिस डे सेल्स के संग ख्रीस्त जंयती के रहस्य पर थोड़ा गहराई से चिंतन करें।

चरनी येसु राजा का सिंहासन

संत जेआन फ्रांसिस दे कांतल को लिखे गये अपने बहुत सारे पत्रों में से एक में वे लिखते हैं, “मैं सलोमोन को हाथी दांत के सिंहासन में विराजते हुए सोचता हूँ, जो अपनी खूबसूरती में सोने से गढ़ा गया था जैसे कि हम धर्मग्रँथ में सुनते हैं, ऐसा सिंहासन पृथ्वी पर और कहीं नहीं बनाया गया था (1 राजाओं 10.18-20) न ही कोई ऐसा राजा था जिसकी तुलना उनके शौर्य और वैभव में की जा सकती थी। फिर भी, विश्व के राजाओं के राज सिंहासनों को देखने के बदले मेरी इच्छा सौ बार प्रिय येसु ख्रीस्त की चरनी को देखने की होगी।” दुनिया के राजा, येसु कभी एक राजसिंहासन पर नहीं विराजे- उनका जन्म एक गौशाले में हुआ जहाँ उन्हें कपड़े में लपेट कर चरनी में सुला दिया गया, अंत में वे क्रूस के काठ पर मर गये, उन्हें एक चादर में लपेट कर, क्रब में रख दिया गया। वास्तव में, सुसमाचार लेखक संत लूकस येसु ख्रीस्त के जन्म की चर्चा करते हुए चरनी के बारे में एक बड़ी व्याख्या करते हैं। इसका मतलब यह है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है न केवल एक तार्किक रूप में, बल्कि एक उस निशानी के रुप में जो हमें इस बात को समझने में मदद करती है कि येसु किस तरह के मुक्तिदाता हैं, जिनका जन्म बेतलेहेम में हुआ, वे किस तरह के राजा थे, वे कैसे येसु थे। संत पापा ने कहा कि चरनी को देखते हुए, क्रूस और उनके साधारण जीवन को देखते हुए हम समझ सकते हैं कि येसु कैसे थे। येसु ईश्वर के पुत्र हैं जो हमारी तरह मानव बनकर हमें बचाते हैं। वे अपने महिमा का परित्याग करते और अपने को नम्र बनाते हैं (फिलि.2.7-8)। हम इस रहस्य को एक चरनी के क्रेन्द-विन्दु में पाते हैं जहाँ बालक को लिटा दिया जाता है। यह वह “निशानी” है जिसे ईश्वर हमें ख्रीस्त जयंती के समय देते हैं, यह उस समय बेतलेहेम के चरवाहों के लिए था, यह आज हमारे लिए है और यह सदा के लिए रहेगा। जब चरवाहों को येसु के जन्म का सदेश दिया जाता तो उन्हें कहा जाता है, “आप एक बालक को कपड़ों में लपेटा और चरनी में लिटाया हुआ पायेंगे।” यही वह निशानी है। येसु का सिंहासन चरनी या सड़क है जहां वे अपने जीवन में उपदेश दिया करते हैं या अपने जीवन के अंत में क्रूस, यही हमारे राजा का सिंहासन है।

ईश्वर की शैली

संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए ईश्वर की शैली को व्यक्त करता है जो निकटता, करूणा और कोमलता है, हम ईश्वर के इस कार्य शैली को कभी न भूलें। अपनी इस शैली के साथ ईश्वर हमारे निकट आते हैं। वे हमें अपने को नहीं थोपते हैं, वे अपनी सच्चाई और न्याय को बलपूर्ण ढ़ंग से स्वीकारने हेतु हमें बाध्य नहीं करते हैं। वे हमें अपने प्रेम में, कोमलता से, करूणामय तरीके से आकर्षित करना चाहते हैं। एक दूसरे पत्र में संत फ्रांसिस डे सेल्स लिखते हैं, “चुम्ब लोहे को आकर्षित करता है एम्बर तिनके को अपनी ओर खींचता है। चाहे हम अपने में कड़े लोहे हों या तिनके की तरह हलके और व्यर्थहीन, हमें चाहिए कि हम अपने को इस स्वर्गीय छोटे बालक के संग संयुक्त करें।” हमारी शक्ति, हमारी कमजोरियाँ- चरनी, येसु के सामने या उनके क्रूस के सामने हल हो जाती हैं- वे अपने में गरीब बन गये, उन्होंने अपने को सारी चीजें से वंचित कर लिया, लेकिन हम उनके कार्य शैली में निकटता, करूणा और कोमलता को पाते हैं। हम अपने में जैसे भी हैं ईश्वर हमें अपने प्रेम से आकर्षित करना चाहते हैं। यह अपने में आसक्ति और स्वार्थपूर्ण प्रेम नहीं है जैसे कि हम बहुत बार मानव प्रेम में पाते हैं। यह उनका शुद्ध प्रेम उपहार, कृपा है यह सिर्फ हमारे लिए और हमारी अच्छाई के लिए है। अतः वे हमें खुली बाहों से अपने प्रेम में आकर्षित करते हैं। येसु का यह सरल प्रेम हमें भी अपने घंमड का परित्याग करते हुए नम्र बनने का आहृवान देता है जहाँ हम अपनी मुक्ति की कामना करते हुए उनसे क्षमा की याचना करते हुए अपने लिए ज्योति की मांग करते हैं जिससे हम अपने जीवन में आगे बढ़ सकें।

राजा की निर्धनता, चरनी

संत पापा ने कहा कि एक दूसरी बात जिसे हम चरनी में पाते हैं वह है निर्धनता- जो दुनियावी चीजों के परित्याग की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। उन्होंने दुनियादारी के फलस्वरुप खर्च किये जाने वाले धन की ओर लोगों का ध्यान इंगित कराया जिसमें हम दिखावा को पाते हैं, वहीं येसु हमें नम्रता का पाठ पढ़ाते हैं। संत फ्रांसिस डे सेल्स लिखते हैं, “हे ईश्वर, यह जन्म हमारे हृदयों में कितना प्रेम जागृत करता है, जहाँ हम दुनिया की चीजों का, आडंबरों... का परित्याग करते हैं। मैं नहीं जनता हूँ, मैं कोई दूसरा रहस्य नहीं पाता जो अति सरलता से तपस्या में कोमलता, कठोरता में प्रेम, क्रूरता में मधुरता से घुल-मिल जाती है।” हम इन सारी चीजों को चरनी में पाते हैं। संत पापा ने कहा कि हम सावधान रहें जिससे हम दुनियावी ख्रीस्त जंयती का शिकार न हों जो हमें भौतिकता और रसदार महोत्सव तक ही सीमित कर देता है। ईश्वर का प्रेम हमारे शहद नहीं है। चरनी हमें इसके बारे में बलताली है। ईश्वर का प्रेम हमारे लिए दिखावा भरी अच्छाई नहीं जो हमारी खुशियों और आरामों की खोज को छुपाती हो। हमारे बुजुर्गजन, जिन्होंने युद्ध और भूख का सामना किया है इसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं। ख्रीस्त जंयती खुशी का त्योहार है लेकिन निश्चित रूप में हमें इसे साधारण और मितव्ययिता रूप में मानने की जरुरत है।

ईश्वर के प्रेम से प्रेरित

अपनी धर्मशिक्षा माला के अंत में संत पापा ने संत फ्रांसिस डे सेल्स के विचारों की ओर ध्यान देने का आग्रह किया जो प्रेरितिक पत्र के रुप में लिखा गया है। इसे उन्होंने अपनी मृत्यु के दो दिन पहले विसितांनदीने धर्मसमाज की धर्मबहनों को समर्पित किया है, जहाँ वे कहते हैं,“क्या आप बालक येसु को चरनी में देखते हैंॽ वे उस मौसस की सारी असुविधाओं को स्वीकार करते हैं, हाँड कंपाने वाली ठंड और वे सारी चीजें जिसे पिता उनके लिए लाते हैं। वे अपनी माता के मिलने वाली छोटी सांत्वानाओं को अस्वीकार नहीं करते हैं, हमारे लिए इस बात की चर्चा कभी नहीं की गई कि वे अपने माता की छाती तक पहुँच पाये, लेकिन वे अपने को उनकी देख-रेख में छोड़ते हैं। उसी भांति, हम अपने लिए किसी चीज की चाह न रखें और न ही किसी बात को अस्वीकार करें, लेकिन उन बातों को स्वीकार करें जिसे ईश्वर हमारे लिए लाते हैं, कड़ाके की सर्दी और इस मौसम की असुविधाएं।” संत पापा ने कहा कि हम यहाँ एक बड़ी शिक्षा को पाते हैं जो हमारे लिए बालक येसु के द्वारा संत फ्रांसिस डे सेल्स की ओर से आती है, “किसी चीज की चाह नहीं करना और किसी बात को अस्वीकार नहीं करना, सभी चीजों को स्वीकारना जिसे ईश्वर हमारे लिए भेजते हैं। लेकिन हम सावधान रहें, हम ऐसा सदैव ईश्वर के प्रेम से प्रेरित होकर करें, क्योंकि वे हमें प्रेम करते हैं और सदैव हमारी भलाई चाहते हैं।

संत पापा ने कहा कि हम चरनी की ओर देखें जो येसु का सिंहासन है, हम येसु को यहूदिया, गलीलिया की गलियों में देखें जहाँ वे अपने पिता से संदेश को प्रसारित करते हैं, हम क्रूस रूपी उनके सिंहासन को देखें। येसु हमें इसे प्रदान करते हैं लेकिन यह वह मार्ग है जो हमें खुशी प्रदान करती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सबों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ किया और सभों को प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान करते हुए ख्रीस्त जयंती और नव वर्ष की शुभकामनाएं प्रदान कीं। 

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28 December 2022, 15:43