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संत पापाः ईश्वर का प्रेम अप्रतिरोध्य है

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में आत्म-परीक्षण के दो अन्य अपरिहार्य तत्वों, ईशवचन और प्रवित्र आत्मा पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

हम आत्म-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा को जारी रखते हैं जो खत्म होने वाली है, जिस किसी ने इन दिनों की धर्मशिक्षा माला पर ध्यान दिया है उसने यही सोचा होगा कि आत्मा-परीक्षण अपने में कितनी जटिल प्रक्रिया है। वास्तव में, यदि हम अपने जीवन को जीना नहीं सीखते तो जीवन हमारे लिए जटिल हो जाता है, हम उसे बर्बाद करने की जोखिम में पड़ जाते हैं, कुछ चालबाजी बातों से जीवन में आगे बढ़ना हमें निराशा कर देता है।

आत्मा-परीक्षण जीवन का अंग

हमारे प्रथम मिलन में, हमने देख की रोज दिन के जीवन में, हम चाहें या न चाहें, हमें सदैव आत्म-परीक्षण करना पड़ा है, हम क्या खायें, क्या पढ़ें, अपने संबंधों के बारे में हम क्या करें, सारी चीजों में। जीवन हमारे लिए सदैव विकल्पों को लाता है और यदि हम अपनी सचेतना में चीजों का चुना नहीं करते तो अंततः जीवन हमें चुनता है, यह हमें वहाँ ले चलता जहाँ हम नहीं जाना चाहते हैं।

संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण अपने में अकेले नहीं किया जाता है। आज हम विशेषरुप से कुछ उन बातों का जिक्र करेंगे जो हमें आत्म-परीक्षण की प्रक्रिया में, इस आधत्यात्मिक जीवन में मदद करते हैं, यद्यपि हमने किसी न किसी रुप में उनके बारे में इन धर्मशिक्षा मालाओं में पहले ही चिंतन किया है।

आत्म-परीक्षण के अन्य अपरिहार्य तत्व  

इन अपरिहार्य तथ्यों में हम सबसे पहले ईश्वर के वचन और कलीसिया के सिद्धांत को पाते हैं। ये हमें इस बात का पता लगाने में मदद करते हैं कि हमारे हृदय के अंदर क्या हो रहा है। वे हमें दूसरी आवाजों की उपस्थिति में जो हमें विचलित करती हैं ईश्वर की आवाज को जानने और उसे पहचानने में मदद करते हैं, लेकिन यह हमें भ्रामित छोड़ देती है। धर्मग्रंथ हमें इस बात से सचेत कराता है कि ईश्वर की आवाज शांत वातावरण, शांतिमय स्थिति, सतर्कता में सुनाई पड़ती है। हम इसे नबी एलियस के अनुभव में पाते हैं, ईश्वर उनसे तेज हवा में जो पत्थरों को तोड़ती है बातें नहीं करते हैं, न ही आग या भूकम्प में लेकिन मंद-मंद शील पवन में उनसे बातें करते हैं।(1 राजा. 19.11-12)। यह हमारे लिए सुन्दर चित्र को प्रस्तुत करता जो हमें यह समझने में मदद करता है कि ईश्वर कैसे हमसे बातें करते हैं। ईश्वर की आवाज हमें अपने को नहीं थोपती है, बल्कि यह विवेकी, सम्मान देने वाली होती है जिसे हम नम्र कह सकते हैं और यही कारण यह हममें शांति उत्पन्न करती है। हम केवल शांति में अपने हृदय की गहराई में प्रवेश कर सकते हैं और सच्ची बातों को जान सकते जिन्हें वे हमारे हृदय में अंकित करते हैं। जीवन की उधेड़बुन के कारण मानव के जीवन में शांति की कठिनाई पर ध्यान आकर्षित कराते हुए संत पापा ने कहा कि हम कम से कम दो मिनट रुक कर अपने हृदय में होने वाली बातों की थाह लें। हम इसका अभ्यास करें क्योंकि ऐसा करने में हम ईश्वर की आवाज को पहचानने में सफल होते हैं।

ईश वचन की महत्वपूर्णत

उन्होंने कहा कि विश्वासियों के लिए ईश्वर के वचन साधारण पद नहीं हैं जिनका पठन किया जाता हो। ईश्वर के वचन एक जीवंत स्थिति है जहाँ हम पवित्र आत्मा को सांत्वना, सुझाव, ज्योति, साहस, शांति और जीवन के प्रति उत्साह से भरता हुआ पाते हैं। “आप ईशवचनों का पाठ करें, छोटे रूप में ही सही”, क्योंकि यह हमारे लिए सचमुच स्वर्गीय अनुभूति का एहसास लाता है। एक महान संत और प्रेरित, अम्बरोस ने इस तथ्य को समझा, जहाँ वे लिखते हैं, “जब मैं पवित्र धर्मग्रंथ का पठन करता हूँ, ईश्वर लौटते और इस पृथ्वी पर विचरन करते हैं”। धर्मग्रंथ के वचनों द्वारा हम अपने हृदय द्वार को ईश्वर के लिए खोलते हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि धर्मग्रँथ के संग हमारा प्रभावकारी संबंध, हमें येसु ख्रीस्त, ईश्वर के संग एक प्रभावकारी संबंध को अनुभव करने में मदद करता है- हम इससे भयभीत न हों, हृदय से हृदय की वार्ता होती है, और यह हमारे लिए एक दूसरा महत्वपूर्ण कारक है जिसे हम सहज रुप में नहीं ले सकते हैं। हम बहुत बार ईश्वर के बारे में विकृत धारणा रखते हैं, हम उन्हें क्रोधी, कठोर न्यायकर्ता, गलती पकड़े हेतु तैयार देखते हैं। ठीक इसके विपरीत, येसु हमें ईश्वर की उस छवि को प्रकट करते हैं जो हमारे प्रति करूणावान और कोमल हैं, जो अपना जीवन अर्पित करने को तैयार रहते हैं जिससे वे हमारे संग रह सकें, ठीक उस पिता की भांति जिसे हम उड़ाव पुत्र के दृष्टांत में पाते हैं (लूका. 15.11-32)। संत पापा ने एक युवा के संग अपने मिलन की बातों का साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि ईश्वर के वचन हमारे हृदय का स्पर्श करते हैं क्योंकि वे हमारा विनाश करना नहीं चाहते बल्कि हमें अपने जीवन में रोज दिन अच्छा और मजबूत होने की चाह रखते हैं। उन्होंने कहा कि जो कोई क्रूस के सामने खड़ा होता है वह एक नई शांति का अनुभव करता है, वह ईश्वर से नहीं डरने को सीखता है, क्योंकि क्रूस से येसु किसी को भयभीत नहीं करते हैं। यह हमारे लिए अति कमजोर, वहीं यह हमारे लिए सम्पूर्ण प्रेम की निशानी है, जो किसी भी मुसीबत का सामना करने की शक्ति को व्यक्त करता है। संतगण सदैव येसु के क्रूस की ओर आकर्षित हुए। येसु के दुःखभोग की कथा हमारे लिए वह निश्चितता है जहाँ हम बुराई का सामना बिना घबराये कर सकते हैं। हम वहाँ न्याय को नहीं पाते और न ही दूर भागने को क्योंकि वहाँ से हमारे लिए एक बृहद ज्योति आती है, जो पास्का की ज्योति है जो हमें उन भयनाक घटनाओं में एक बड़ी योजना को देखने में मदद करती है जिसे कोई भी बाधा, रोड़ा या असफलता नहीं रोक सकती है। संत पापा ने कहा कि ईश्वर का वचन हमें सदैव क्रूस की ओर ध्यान इंगित कराता है जो अपने में बुरा लगता है लेकिन हम वहाँ अपने लिए एक आशा, पुनरूत्थान को देखते हैं। ईश वचन हमारे लिए सभी द्वारों को खोलता है क्योंकि ईश्वर हमारे लिए द्वार हैं। संत पापा ने इस भांति प्रति दिन कम से कम एक मिनट के लिए बाईबल पढ़ने का आहृवान किया।

येसु से मित्रता   

अपने जीवन को ईश्वर के संग एक मित्रता में देखना कितना सुन्दर है जो प्रति दिन विकसित होता है। ईश्वर हमें प्रेम करते औऱ हम से मित्रता की चाह रखते हैं। ईश्वर से हमारी मित्रता हमारे हृदय को परिवर्तित करती है। धार्मिकता, पवित्र आत्मा के उपहारों में एक बड़ा उपहार है जो हमें ईश्वर के पितृतृत्व को समझने में मदद करता है। हमारे एक कोमल, प्रेमी पिता हैं जो हमें प्रेम करते हैं जिन्होंने हमें सदैव प्रेम किया है। जब हम इस बात का अनुभव करते हैं तो हमारा हृदय द्रवित हो उठता है और हमारी शंका, भय और अयोग्यता की अनुभूति हमें से खत्म हो जाती है। ईश्वर से हमारे प्रेम मिलन में कोई भी बात हमारे लिए अवरोधक नहीं हो सकती है।

पवित्र आत्मा, एक उपहार

संत पापा ने कहा कि यह प्रेम हमें एक दूसरी बड़ी सहायता के बारे में याद दिलाता है, जो पवित्र आत्मा का उपहार है, जो हममें उपस्थिति रहते, हमें निर्देश देते, ईश्वर के वचन को जिन्हें हम पढ़ते हममें सजीव बनाते हैं। वे हमारे लिए नयी चीजों को सुझाव स्वरुप लाते, उन द्वारों को खोलते हैं जो बंद-सा लगते हैं, जीवन के मार्ग को इंगित करते जहाँ हमें केवल अंधेरा और विचलित होने की स्थिति को पाते हैं। आत्म-परीक्षण में पवित्र आत्मा हमारे साथ रहते हैं जो ईश्वर की उपस्थिति है। वे हमारे लिए ईश्वर की ओर से सबसे बड़े उपाहर हैं जिसे वे उन्हें देने का आश्वास देते जो उसकी मांग करते हैं। संत पापा ने पवित्र आत्मा के पास प्रार्थना करने का आहृवान किया जिसे हम कई बार भूल जाते हैं। “येसु पवित्र आत्मा को हमारे लिए एक उपहार स्वरुप देते हैं। हम उनके पास प्रार्थना करें और वे हमारे जीवन को बदलते हुए उसमें बढ़ने हेतु मदद करेंगे।”   

संत पापा ने कहा कि हम अपने दैनिक प्रार्थना की शुरूआत इस घोषणा से करते हैं, “हे ईश्वर हमारी सहायता करने आइए, हे प्रभु, हमारी मदद करने शीघ्र आइए”, “प्रभु मेरी मदद कर”। क्योंकि मैं अकेले आगे नहीं बढ़ सकता हूँ, मैं प्रेम नहीं कर सकता, मैं जीवित नहीं रह सकता। मुक्ति की यह पुकार हमारे हृदय की गहराई से उत्पन्न होती है। आत्म-परीक्षण का लक्ष्य ईश्वर के मुक्तिप्रद कार्य को पहचानना है जिसे वे हमारे जीवन में करते हैं। यह हमें इस बात की याद दिलाती है कि मैं अकेला नहीं हूँ, यदि मैं लड़खड़ा रहा हूँ, तो यह महत्वूपर्ण विकास की इंगित करता है। ईश्वर की इन सहायताओं द्वारा जिसे वे हमें देते हैं, हमें भयभीत होने की कोई जरुरत नही हैं।

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21 December 2022, 12:35