खोज

संत पापाः येसु में सदैव एक नई शुरूआत संभव

संत पापा फ्रांसिस ने आगमन के दूसरे रविवार, देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये अपने संदेश में नम्रता में येसु का स्वागत करने हेतु आहृवान किया, जो सदैव हमारे साथ रहते हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 5 दिसम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवारीय देवदूत प्रार्थना हेतु जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आगमन के द्वितीय रविवार, आराधना विधि का सुसमाचार आज हमें योहन बपतिस्ता के व्यक्तित्व को प्रस्तुत करता है। सुसमाचार के पद हमें कहते हैं, “वह ऊंट के रोओं का कपड़ा पहनता” तथा “उसका भोजन टिड्डियाँ और वन का मधु था”। वह अपने इन वचनों के द्वारा सभों को उपदेश दिया करता था,“पश्चात्ताप करो, स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” वह ईश्वर के राज्य के निकट आने की बात घोषित करता था। संक्षेप में, वह एक कठिन जीवन व्यतीत करने वाला कट्टर व्यक्ति-सा प्रतीत होता था मानों वह लोगों में भय उत्पन्न करने की चाह रखता हो। संत पापा ने कहा कि हम अपने में यह पूछ सकते हैं कि क्योंकि कलीसिया हर साल इस व्यक्ति को आगमन काल में हमारे साथ चलने हेतु मुख्य व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करती हैॽ उसकी कठोरता के पीछे क्या कारण छिपे हैंॽ योहन के जीवन का रहस्य क्या हैॽ योहन के माध्यम आज कलीसिया हमें क्या संदेश देने की चाह रखती हैॽ

हमारी मानसिकता क्या हैॽ

संत पापा ने कहा कि वास्तव में, योहन बपतिस्ता, एक कठोर व्यक्ति होने से अधिक, एक वे व्यक्ति हैं जिन्हें दोहरी जिन्दगी से विरक्ति है। उदाहरण के लिए, जब फरीसी औऱ सदूकिगण, जो अपने दिखावे के लिए विख्यात हैं, उनके पास आते तो वे उन्हें बहुत ही कठोर शब्दों में फटकारते हैं। वास्तव में, उनमें से कुछ लोग उनके पास जिज्ञासा के कारण या अवसरवादी होने के कारण आते हैं, क्योंकि योहन बपतिस्ता अपने में बहुत ही विख्यात हो गये थे। उन फरीसियों और सदूकीयों ने योहन की तीखी अपील के सामने, यह कहते हुए अपने को उचित और न्यायसंगत घोषित किया, “हम इब्रहीम की संतान हैं।” इस भांति, वे अपने में दोहरी मानसिकता के कारण, कृपा के इस अवसर को उचित रुप में नहीं लेते, वे अपने में नये जीवन की शुरूआत नहीं करते, अपने को धार्मिक समझने में यह मानसिकता उन्हें अपने में बंद रखती है। यही कारण है कि योहन उन्हें कहते हैं, “पश्चात्ताप का उचित फल उत्पन्न करो।” यह प्रेम की पुकार को व्यक्त करता है जिसे हम एक पिता में पाते हैं जो अपने पुत्र को विनाशा के पथ में जाते हुए देखकर कहता है, “अपने जीवन को व्यर्थ में नष्ट मत करो।” संत पापा ने कहा कि वास्तव में, दिखावा अपने में सबसे बड़ा खतरा है क्योंकि यह अपने में अति पवित्र सच्चाइयों को भी नष्ट कर सकता है। यही कारण है कि योहन बपतिस्ता येसु ख्रीस्त की तरह ही दिखावा करने वालों की घोर निंदा करते हैं। संत मत्ती रचित सुसमाचार के 23वें अध्याय को हम उदाहरण स्वरूप पढ़ सकते हैं जहाँ येसु अपने समय के आडम्बरकारियों की घोर भर्त्सना करते हैं। हम योहन बपतिस्ता और येसु दोनों को ऐसा करते हुए देखते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैंॽ वे उन्हें झंकझोरते हुए सचेत करना चाहते हैं। वहीं वे जो अपने को पापी समझते वे अपने को, दौड़े उनके पास लाते और अपने पापों के लिए पापस्वीकार करते हुए बपतिस्मा ग्रहण करते हैं।

ईश्वर का स्वागत नम्रता में

संत पापा ने कहा कि ईश्वर के स्वागत हेतु गुणों में निपुणता की जरुरत नहीं लेकिन नम्रता की जरुरत है। इस भांति हम अपनी नम्रता में ईश्वर का स्वगत करते हैं न कि अपने गुणों के द्वारा। हम अपने में शक्तिशाली हैं, हम बड़े लोग हैं, यह अपने में प्रभावकारी नहीं होता, बल्कि इसके बदले हमें दीनता की जरुरत है, हमें अपने को यह कहते हुए नम्र बनने की जरुरत है कि “मैं पापी हूँ।” हमें अपने पापों, अपनी गलतियों, अपने दिखावेपन को ठोस रुप में सबसे पहले स्वीकारने की जरुरत है। हमें अपनी ऊंचाई से उतरते हुए पश्चात्ताप के जल में अपने को डूबोने की आवश्यकता है।

स्वयं पर चिंतन करें

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि योहन बपतिस्ता के “कठोर वचन” हमें चिंतन करने में मदद करते हैं। क्या हम कई बार फरीसियों की तरह नहीं होते हैंॽ शायद हम दूसरों को हीन भावना से देखते हैं, हम अपने को दूसरों से बेहतर समझते हैं, शायद हम अपने जीवन में ईश्वर की आवश्यकता महसूस नहीं करते, हमें कलीसिया की जरुरत नहीं होती, हम अपने रोजदिन में अपने भाई-बहनों की आवश्यकता महसूस नहीं करते हैं क्योंकि हम अपने को, अपने जीवन का मालिक समझते हैं। हम इस बात को भूल जाते हैं कि सिर्फ एक परिस्थिति में हमें नीचे देखने की जरुरत होती है, जब हमें किसी नीचे गिरे हुए को उठाने की जरुरत है, दूसरी परिस्थितियों में इसकी जरुरत महसूस नहीं करते हैं।

कृपा का समय आगमन

आगमन हमारे लिए कृपा का समय है जो हमें मुखौटों को उतारते हुए- जिसे हम सभी अपने में धारण करते हैं, नम्रता को धारण करने का निमंत्रण देता है, यह हमें स्वयं की आत्मा-निर्भरता से बाहर निकलने, अपने पापों के लिए जो हममें छुपे हैं, पापस्वीकार करने और ईश्वर की क्षमा का स्वागत करते हुए दूसरों से क्षमा मांग का आहृवान करता है जिन्हें हमने चोट पहुँचाई है। ऐसा करने के द्वारा हम एक नये जीवन की शुरूआत करते हैं। संत पापा ने कहा कि नम्रता के मार्ग में अग्रसर होने का केवल एक ही तरीका है जहाँ हम अपने बड़प्पन, औपचारिकतावाद और दिखावे से बहार निकलते और दूसरों की तरह अपने को पापी स्वीकारते हैं। हम येसु को अपने मुक्तिदाता की तरह देखते जो हमारी निर्धनता में, कमजोरियों और निराशा में, हम जैसे हैं उसकी स्थिति में हमें उठाने, क्षमा देने और हमें बचाने आते हैं।

येसु का सहचर्य

संत पापा ने सभों को ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि हम एक बात को याद रखें कि येसु ख्रीस्त में हम पुनः एक शुरूआत कर सकते हैं, उनके सानिध्य में हम अपने में देर होने की बात को नहीं पाते हैं। हमें अपने में साहस करने की जरुरत है क्योंकि यह हमारे लिए परिवर्तन का समय है। “मेरी स्थिति ऐसी है, मेरी समस्या यह है जिससे मैं शर्म का अनुभव करता हूं... लेकिन येसु हमारे निकट हैं जिनमें हम सदैव एक नया कदम लेते हुए शुरू कर सकते हैं।” वे हमारा इंतजार करते और कभी नहीं थकते हैं। हम अपने में थक जाते लेकिन वे नहीं थकते हैं। हम योहन बपतिस्ता की पुकार को सुनें जो हमें येसु की ओर लौटने का आहृवान करते हैं जिससे यह आगमन हमें लिए यूं ही पार न हो क्योंकि यह हम सबों के लिए यहाँ और अभी कृपा का समय है। माता मरियम ईश्वर की नम्र सेविका, हमें नम्रता के मार्ग में बढ़ते हुए अपने भाई-बहनों में मिलन हेतु मदद करें, क्योंकि यही वह मार्ग है जो हमें ले चलता है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने सभों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।  

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

05 December 2022, 14:50