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आगमन, येसु को नये सिरे से जानने का समय

संत पापा फ्रांसिस ने आगमन के तीसरे रविवार को देवदूत प्रार्थना और प्रेरितिक आशीर्वाद हेतु जमा हुए लोगों को अपने संदेश में कहा कि आगमन हमें येसु को नये रुप में जानने का एक अवसर देता है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में, देवदूत  प्रार्थना हेतु जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आगमन के तीसरे रविवार का सुसमाचार हमें योहन बपतिस्ता के बारे में जिक्र करता है, जो कैदखाने में हैं, वे अपने शिष्यों को येसु के पास भेजते हैं यह पूछने के लिए, “क्या आप ही हैं जो आने वाले थे या हम किसी और की प्रतीक्षा करेंॽ (11.4)। वास्तव में, येसु के कार्यो की चर्चा सुनकर वे इस दुविधा में पड़ जाते हैं कि वे सही में मसीह हैं या नहीं। वास्तव में, वे एक ऐसे मुक्तिदाता के बारे में सोच रहे थे जो अपने आने पर न्याय करते हुए पापियों को सजा देंगे। लेकिन वे, येसु ख्रीस्त के शब्दों और कार्यों में सभों के लिए करूणा के भाव पाते हैं, उनके कार्यों का केन्द्र-बिन्दु प्रेम है जिसके फलस्वरुप अंधों को दृष्टि दान मिलता, लंगडे चलते, कोड़ी शुद्ध किये जाते, बहरे सुनते, मुर्दे जिलाये जाते और  दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है। यद्यपि यह हमारे लिए अच्छी बात है, लेकिन हम योहन बपतिस्मा को हुई दुविधा के बारे में चिंतन करें क्योंकि वे हमारे लिए कुछ विशेष संदेश देते हैं।

विश्वास का प्रभाव

सुसमाचार में हम इस बात को पाते हैं कि योहन बंदीगृह में हैं और यह हमारे लिए उनके आंतरिक अनुभव को प्रकट करता है। कैदखाने में हम अंधेरे को पाते हैं, जहाँ चीजों को स्पष्ट रुप से देखने की संभावना नहीं होती और न ही अपने से परे देखा जा सकता है। वास्ताव में, योहन बपतिस्ता येसु को आने वाले मसीह के रुप में पहचान पाने में असमर्थ हैं, उनमें संदेह उत्पन्न होता है अतः वे अपने शिष्यों को इसकी पुष्टि हेतु भेजते हैं। हमें यह आश्चर्यचकित करता है कि योहन के साथ ऐसी बातें घटित होती हैं जिन्होंने येसु को यर्दन नदी में बपतिस्मा दिया था। उन्होंने अपने शिष्यों को उनकी ओर इंगित करते हुए यह कहता था कि देखो ईश्वर का मेमना। अब इसका अर्थ हमारे लिए यही होता है कि एक सबसे बड़ा विश्वासी भीअपने जीवन में संदेह की सुरंग से होकर गुजरता है। यह अपने में खराब बात नहीं है, उसके विपरीत यह कभी-कभी आध्यात्मिकता में बढ़ने हेतु जरूरी है। यह हमें इस बात को समझने में मदद करता है कि ईश्वर हमारी सोच से बड़े हैं, उनके कार्यो हमारी समझ से परे हमें अचंभित करते हैं। ईश्वर अगल ही तरह से कार्य करते हैं, यह हमारी सोच और जरुतों से परे जाती है, और इसीलिए हमें चाहिए कि हम उन्हें खोजें और उनके असल रुप की ओर  अभिमुख और परिवर्तित होने हेतु अपने को कभी न रोकें। एक महान ईशशास्त्री कहा करते थे कि हमें चाहिए की हम हर क्षण ईश्वर की खोज करें...,कभी-कभी हम विश्वास करने में उन्हें खोते हैं। योहन के साथ यही होता है, संदेह में, वे येसु की खोज करते हैं, उनके बारे में सावल करते हैं, उनके संग “विचार-विमार्श” करते और उन्हें अंतत पुनः प्राप्त करते हैं। संक्षेप में, येसु उन्हें इस दुनिया में किसी नारी से जन्मे सबसे महान व्यक्ति के रुप में परिभाषित करते हैं जो हमें यह बतलाता है कि हम ईश्वर को अपनी में सीमित न करें।

हम ईश्वर को अपने अनुरूप सीमित करने की जोखिम और परीक्षा में पड़ जाते हैं जिससे हम उनका उपयोग कर सकें। लेकिन ईश्वर कुछ और हैं।

ईश्वर के प्रति हमारी छवि 

प्रिय भाइयो एवं बहनो, संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम भी इसी तरह की स्थिति में पड़ जाते हैं। हम अपने को स्वयं अपने विचारों में कैद पाते हैं, जहाँ हम ईश्वर की नवीनता को पहचानने में असक्षम होते हैं, हमारी धारण यह होती है कि हम उन उनके बारे में सबकुछ जानते हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसा नहीं जो ईश्वर के बारे में सारी चीजों को जानता हो, यह कभी नहीं हो सकता है। शायद हमारे दिमाग में एक शक्तिशाली ईश्वर की छवि होती है जिसके फलस्वरुप हम यह सोचते हैं कि वे वही करते जो वे चाहते हैं, न कि वे नम्रता और दीनता के ईश्वर हैं, जो करूणा और दया के भाव रखते, जो हमारी स्वतंत्रता और चुनावों का सम्मान करते हैं। शायद हम भी उनके बारे में अपने को यह कहता हुआ पाते हैं, “क्या आप वही हैं, इतने नम्र, जो हमें बचाने आते हैंॽ” ऐसी बातें हमारे भाई-बहनों के संबंध में भी हमारे लिए घटित हो सकती है जहाँ हमें उनके बारे में एक विचार, धारणा और कठोर पूर्वाग्रह से अपने को ग्रस्ति पाते हैं विशेष कर उनके प्रति जो हम से भिन्न हैं।

नयेपन का समय

संत पापा ने कहा कि आगमन का काल अपने देखने के तरीकों को बदले का समय है जहाँ हम अपने को ईश्वर की करूणा द्वारा आश्चर्यचकित होने देते हैं। ईश्वर सदैव हमारे अंदर एक विस्मय के भाव उत्पन्न करते हैं। आगमन हमारे लिए तैयारी का एक समय है जहाँ हम बालक येसु के आने की तैयारी करते हैं, यह समय हमें पुनः एक अवसर प्रदान करता है जहाँ हम ईश्वर को जानते हैं कि वे कौन हैं। यह समय हमें ईश्वर और अपने भाई-बहनों के बारे में कुछ धारणओं का परित्याग करने का समय है। यह वह समय है, जहाँ अपने लिए उपहारों के बारे में सोचने के बदले, हम उन लोगों के लिए सांत्वना के शब्द और कार्य कर सकते हैं जो घायल हैं जैसे कि येसु ख्रीस्त ने अंधों, बहरों और लंगड़ों के लिए किया।

माता मरियम, एक माँ की भांति हमारी हाथों को पकड़ कर आगे ले चलें जहाँ हम इन दिनों अपने को ख्रीस्त जयंती के लिए तैयार करते हैं। वे हमें ईश्वर की उस महानता को समझने में मदद करें जो छोटे बालक के रुप में हमारे बीच आते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने सभों के संग मिलकर देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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12 December 2022, 10:51