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संत पापाः ग्वादालुपे की माता ईश्वरीय निकटता की निशानी

संत पापा फ्रांसिस ने ग्वादालुपे की कुंवारी मरियम के पर्व का यूख्ररिस्तीय बलिदान अर्पित करते हुए अमेरिका महादेश के लिए प्रार्थना की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने ग्वादालुपे की कुंवारी माता मरियम के पर्व दिवस के अवसर पर 12 दिसम्बर की शाम को संत पेत्रुस के महागिरजाघर में लातीनी अमेरिका के लिए यूख्ररिस्तीय बलिदान अर्पित किया।

उन्होंने मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि ईश्वर मानव इतिहास का दिशा-निर्देशन हर क्षण करते हैं, कोई भी चीज ऐसी नहीं है जो उनकी करूणामय शक्ति और दिव्य प्रेम से परे हो। वे अपने को एक कर्तव्य, दायित्व, एक घटना या व्यक्ति के माध्यम प्रस्तुत करते हैं। वे दुनिया की ओर- जरुरमंद और घायलों की ओर अपनी दृष्टि सदैव बनाये रखते हैं, जिससे वे उन्हें अपनी करूणा और दया से सहायता कर सकें। उनके कार्य करने का तरीका, अपने को व्यक्त करने की शैली हमेशा हमें आश्चर्यचकित करती औऱ खुशी से भर देती है।

गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र से लिया गया आज का पाठ हमारे लिए इसका विशेष संकेत देता है जो हमें कृतज्ञता के भाव से मुक्तिविधान के इतिहास में हमारे दत्तक पुत्र-पुत्रियों की भांति चुने जाने की बात पर चिंतन करने का आहृवान करता है,“समय पूरा होने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो एक कुंवारी से जन्म लिये। (गला.4.4)।

ईश्वर का दिव्य प्रेम, पुत्र का आना

संत पापा ने कहा कि निश्चित रूप से मानव पुत्र का शरीरधारण कर दुनिया में आना हमारे लिए ईश्वर के दिव्य प्रेम को प्रकट करता है जहाँ वे हमारी मुक्ति की चाह रखते हैं। ईश्वर ने संसार को इतना प्रेम किया कि उन्होंने हमारे लिए अपने पुत्र को भेजा, जो नारी से उत्पन्न हुए, जिससे जो कोई उनमें विश्वास करे उसका सर्वनाश न हो बल्कि अनंत जीवन को प्राप्त करे (यो.3.16)। अतः येसु ख्रीस्त में, जो मरियम से जन्मे, ईश्वर की दिव्यता हमारे समय की अनिश्चितता में प्रवेश करती और हमारे संग सदैव के लिए निवास करती है, जिसे हम एम्मानुएल अर्थात ईश्वर हमारे साथ हैं की संज्ञा देते हैं। वे हमारे बीच में निवास करने आते हैं। हमारे संबंध में ऐसा कुछ नहीं है जिसके बारे में वे नहीं जानते हों क्योंकि वे हमारी तरह ही बन गये, हमारे निकटतम मित्र, पाप को छोड़कर सारी चीजों में हमारी तरह।

करीबन पाँच शताब्दियों पहले, नई दुनिया के लोग जो एक जटिल और कठिन समय से होकर गुजर रहे थे, दो अलग-अलग दुनियाओं के बीच उथल-पुथल की स्थिति में, ईश्वर ने सुसमाचार के खुलेपन में मानव गरिमा की पुनः स्थापित करना चाहा। यह उन्होंने मरियम, अपनी माँ को भेजकर किया, जिसके बारे में आज का सुसमाचार हमें स्मरण दिलाता है, स्वर्गदूत के शुभ संदेश उपरांत, “मरियम शीघ्रता से पहाड़ी प्रदेश, यूदा के एक नगर को चली पड़ी” (11:39)। इस प्रकार, हमारी ग्वादालूपे की माता मरियम का आगमन अमेरिका की धन्य भूमि पर हुआ, “सच्चे ईश्वर की माता जिसके लिए हम जीते हैं”, उन्होंने यह कहते हुए अपने को प्रस्तुत किया, जो गरीबों को सांत्वना देतीं और बिना किसी का परित्याग किये उनकी जरूरतों को पूरा करती हैं। वे एक प्यारी माता की भांति अपनी उपस्थिति में उन्हें प्रेम और सांत्वना के साथ गले लगाती हैं।

ईश्वर का साथ सदैव

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हमारे वर्तमान जीवन इतिहास कठिन परिस्थितियों में हम अकेले नहीं हैं। ईश्वर हमारे लिए सदैव माता के पुत्र को भेजते हैं, जो हमें जीवन में आगे ले चलते हैं, जैसे कि उन्होंने स्वयं अपने जीवन में किया, वह शीघ्रता से दूसरों की सेवा हेतु निकल पड़ती हैं। ग्वादालुपे की माता मरियम हमें इस बात के लिए निमंत्रण देती हैं कि अपने हृदय में भरे सारे पूर्वग्रहों और भयों से बाहर निकलते हुए उस सच्चे ईश्वर में विश्वास करें जिनके लिए हम जीवन जीने हेतु बनाये गये हैं, जो हमें आनंद और विश्वास की ओर अग्रसर करते हैं।

संत पापा ने कहा कि इस साल हम मानवता के एक कठिन समय में ग्वादालुपे का त्योहार मना रहे हैं। यह एक कटु समय है, जहाँ हम युद्ध, अन्याय, आकाल, गरीबी और दुःखों की भरमार पाते हैं। यद्यपि यह क्षीतिज हमारे लिए धुंधली और चिंताजनक लगती है, जहाँ विध्वंस और निराशा के और भी गहरे शकुन दिखलाई देते हैं, उनका दिव्य प्रेम जो हमारे लिए ऊपर से आता है, हमें यह बतलाता है कि यह मुक्ति का एक अनुकूल समय है। इस समय ईश्वर कुंवारी माता के द्वारा हमें अपने पुत्र को देना जारी रखते हैं जो हमें भ्रातृत्वमय जीवन जीने का निमंत्रण देते हैं, वे हमें स्वार्थीपन, उदासीनता और शत्रुता को अपने से अलग रखने को कहते हैं। वे हमें दूसरों के जीवन में “बिना देर” सहभागी होने का आहृवान करते हैं, जहाँ हम अपने से बाहर निकलते हुए अपने भाई-बहनों से मिलने जाने को कहे जाते हैं जिन्हें उपभोक्तावादी और उदासीन समाजों ने छोड़ और भुला दिया है।

माता की चाह

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आज संत प्रेत्रुस के इस महागिरजाघर में, ग्वादालुपे की कुंवारी हम सभों से मिलने की चाह रखती हैं जैसे कि एक बार उन्होंने जुआन दियोगो से तेपेयैक की पहाड़ी में किया। वे हमारे साथ रहना चाहती हैं। वे हमसे निवेदन करती हैं कि हम उन्हें अपनी माता होने दें, अपने को उनके बेटे के लिए खोलें और उनके संदेश का आलिंगन करते हुए उनकी तरह प्रेम करना सीखें।

12 दिसम्बर, आज पूरे आमेरीका महाद्वीप में अंतरराष्ट्रीय ग्वादालुपे की नौ दिवसीय प्रार्थना शुरू की जा रही है, यह एक यात्रा है जो सन्  2031 में ग्वादालुपे के मरियम दर्शन की पांच सौवीं बरसी को महोत्सव स्वरुप मनाने की तैयारी है। संत पापा ने अमेरिकी कलीयिसा के यात्रियों, लोकधर्मियों और विश्वासियों से आग्रह किया कि वे इस तैयारी में सहभागी हों जिसका लक्ष्य ग्वादालुपे माता मरियम की मध्यस्थता द्वारा ईश्वर से मिलन को बढ़ावा देना है, जिससे समाज और लोगों के सामुदायिक जीवन के ताने-बाने में नवीनता लाई जा सकें।

संत पापा ने कहा कि हम ईश्वर की अद्वितीय करूणा हेतु उनके प्रति कृतज्ञता के भाव अर्पित करें जिसे उन्होंने अति पवित्र माता को अमेरिका महादेश में भेजते हुए प्रकट किया है। वे सदैव हम सबों पर अपनी निगाहें बनायें रहती और अपनी ममतामयी कोमलता, सांत्वना और सहायता को प्रकट करती हैं। वे हमें इस बात की याद दिलाना चाहती हैं कि यह सुसमाचार है जो लातीनी आमेरिका के हृदय को पोषित करता है और ख्रीस्त विश्वासियों के रुप में यह हमारा उत्तरदायित्व है कि हम उनके प्रेम का साक्ष्य विश्वासनीय रुप में प्रस्तुत करते हुए एक नई संस्कृति के निर्माणकर्ता बनें जहाँ सेवा और पुनर्वास शामिल है। 

येसु ख्रीस्त जो सभी देशों की चाह हैं, हमें माता मरियम की मध्यस्थता द्वारा खुशी और शांति से भर दें, जिससे ईश्वरीय शांति हमारे दिलों में और उन नर-नारियों के दिलों में निवास करें जो नेक चाह रखते हैं। 

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13 December 2022, 12:32