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संत पापाः हृदय रूपी किताब को पढ़ना सीखें

संत पापा फ्रांसिस ने अपनी बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में सांत्वना की परख करने हेतु तीन विन्दुओं की ओर ध्यान देने और हृदय रुपी किताब को पढ़ने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

हम आत्मा-परीक्षण में अपना चिंतन जारी रखते हैं विशेष कर आध्यात्मिक साधना में सांत्वना के अनुभव पर- हम अपने आप से पूछें, “हम कैसे सच्ची सांत्वना को पहचान सकते हैंॽ यह आत्म-परीक्षण हेतु एक बहुत अच्छा सवाल है जिससे हम सत्य की पहचान करने में न छले जायें।

विचारों की परख करें

हम, इस संबंध में संत इग्नासियुस की आध्यात्मिक साधना में कुछ तरीकों को पाते हैं। संत इग्नासियुस कहते हैं, “हमें विचारों पर गौर करने की जरुरत है, यदि शुरू में, बीच में और अंत में सारी चीजें अच्छी हैं, और सबकुछ अच्छाई की ओर अग्रसर होता है तो यह हमारे लिए अच्छी आत्मा की ओर इंगित कराता है।” वहीं दूसरी ओर, विचारों के क्रम, जिसके शुरू में, कुछ बुरी या विचलित करने वाली चीजें होती या उनमें कुछ अनुचित बातें आती जो हृदय को कमजोर या इसमें बेचैनी उत्पन्न करती है, जिससे व्याप्त शांति खत्म हो जाती तो यह स्पष्ट रुप से बुरी आत्मा से आती है। उन्होंने कहा कि यह सत्य है कि हमारे लिए सच्ची सांत्वना है, लेकिन यह भी सत्य है कि कुछ झूठी सांत्वनाएं भी हैं। इसीलिए हमें चाहिए कि हम सांत्वना के मार्ग को अच्छी तरह समझें, कि वे कहां से आतीं और हमें कहाँ ले जाती हैं। यदि वे हमें उन बातों को ओर ले जाती जो अच्छी नहीं  तो वे अच्छी सांत्वना नहीं हैं, वे झूठी हैं।

अच्छाई का सार, शुरूआती भाग

वे हमारे लिए मूल्यवान निशानियाँ हैं जिन पर हमें थोड़ी चर्चा करने की जरुरत है। अच्छाई की ओर अग्रसर होने का अर्थ क्या हैॽ उदाहरण के लिए, मुझ में प्रार्थना करने के विचार आते हैं, यह ईश्वर और पड़ोसी के प्रति प्रेम को उत्प्रेरित करता है, यह हम से उदारता, करूण की मांग करता है, यह एक अच्छी शुरूआत है। इसके बदले, हममें एक विचार की उत्पत्ति होती जो हमारे कार्य या उत्तरदायित्व से हमें दूर करती है-हर समय मुझे बर्तन धोने या घर साफ करने होते हैं, अपने कार्य के बदले हमें प्रार्थना करने की तीव्र इच्छा होती है। लेकिन प्रार्थना करना अपने उत्तरदायित्वों से भागना नहीं है, बल्कि यह हमें अभी और वर्तमान समय में उन अच्छे कार्यों को पूरा करने में मदद करता है जिसके लिए हम बुलाये गये हैं। यह शुरूआती दौर है।

मध्य कड़ी

संत पापा ने कहा कि इसके बाद मध्य कड़ी आती है। संत इग्नासियुस कहते हैं कि इसका सिद्धांत शुरूआती, मध्य और अंतिम भाग में अच्छा होने से है। यदि आप सफाई के बदले प्रार्थना करने की चाह रखते हैं, तो पहले आप सफाई कीजिए और तब प्रार्थना हेतु जाइए। संत पापा ने फरीसी के उदाहरण को प्रस्तुत करते हुए कहा, “मैं प्रार्थना करना शुरू करता हूँ, यह मुझे खुशी प्रदान करती है लेकिन मैं दूसरों का तिरस्कार करता हूँ, मेरे मन में दूसरों के प्रति घृणा के भाव आते हैं तो यह मेरे लिए इस बात की ओर इंगित कराता है कि ये विचार बुरी आत्मा की ओर से मेरे अंदर आतेहैं। फरीसी की प्रार्थना में कहे गये शब्द हमारे लिए मध्य भाग के ठीक नहीं होने को इंगित कराते हैं।

अंतिम भाग 

संत पापा ने अंत के बारे में कहा कि इसका जिक्र हमने पहले ही किया है, मेरे विचार मुझे किस ओर ले चलते हैंॽ मैंने एक अच्छे कार्य हेतु कड़ी मेहनत की लेकिन यह मुझे प्रार्थना करने से रोकती है, क्योंकि मुझे बहुत सारे अन्य कार्य करने हैं, मुझे ऐसा लगता है कि सारी चीजें मुझ में निर्भर करती हैं। मैं अपने को सदैव क्रोधित और आक्रमक पाता हूँ, यहां तक की मैं ईश्वर में अपने विश्वास को खो देता हूँ। ऐसी स्थिति में हम स्पष्ट रुप से देखते हैं कि यह हममें बुरी आत्मा का कार्य है।

शत्रु को पहचानें

हम शुत्र अर्थात शैतान के कार्य शैली को जानें, वह अपने को छुपे रुप में धीरे से प्रस्तुत करता है, यह हमें उन बातों से शुरू करता है जो हमारे लिए अति प्रिय लगती हैं, वह हमें धीरे-धीरे अपने कब्जे में लेता, हम इसका अनुभव भी नहीं करते हैं। इस भांति हमारी कोमलता कठोरता में बदल जाती है।

हमारी सर्तकता, हमारा “पासवर्ड”

अतः यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम धैर्यपूर्वक अपने विचारों की उत्पत्ति का पता लगायें। यह हमारे लिए एक निमंत्रण है जहाँ हम अपने अनुभव से सीखते हैं कि हमें क्या होता है जिससे हम अपनी गलती को पुनः न दुहराये। हम अपने को जितना अधिक जानते हैं उतना ही उस बात से वाकिफ होते हैं कि दुष्ट आत्मा हममें कहाँ से प्रवेश करता है। उसके प्रवेश करने का पासवर्ड क्या है जिससे वह हमारे हृदय में घुंसता है। हमें किन-किन बातों में अधिक सतर्क रहने की जरुरत है जिससे हम भविष्य में सजग रहें। हम सभों की कुछ ऐसी कमजोरियाँ हैं जहाँ से शत्रु हमारे हृदय में प्रवेश करता है।

अतःकरण की जाँच

संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि रोज अतःकरण की जाँच हमारे लिए महत्वपूर्ण है, अपने दिन की समाप्ति के पहले हम थोड़ा रुक कर देखें कि हमें क्या हुआ। हमारे हृदय में क्या हुआॽ क्या मेरा हृदय सजग थाॽ मेरे ज्ञान के बिना ही इस मार्ग में बहुत सारी चीजों हुईॽ हमें क्या हो रहा है इस बात का अनुभव करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है यह हमें ईश्वर की कृपा को पहचाने में मदद करता है, जो हमें स्वतंत्रता और चेतना में बढ़ने हेतु मदद करता है। हम अकेले नहीं हैं। पवित्र आत्मा हमारे साथ हैं हम इस बात को देखें कि हमारे साथ क्या हुआ।

सच्ची सांत्वना, सुदृढ़ता है

सच्ची सांत्वना हमारे लिए यह सुदृढ़ करती है कि हम ईश्वर की योजना के अनुरूप कार्य कर रहे हैं, हम उनकी राहों में चल रहे हैं अर्थात हम जीवन की राह, आनंद और शांति में हैं। आत्म-परीक्षण वास्तव में, अच्छी या सबसे अच्छी संभावना का पता लगाना नहीं है अपितु इस तथ्य से वाकिफ होना है कि यहाँ और अभी मेरे लिये क्या अच्छा है। मैं अपनी कमजोरियों को दूर रखते हुए इसमें बढ़ने के लिए बुलाया गया हूँ जिससे मैं अच्छी चीजों की खोज में न छला जाऊँ।

अपनी धर्मशिक्षा के अंत में संत पापा ने कहा कि हमें जीवन में आगे बढ़ने हेतु अपने हृदय में होने वाली बातों को समझने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें अतःकरण की जाँच करना जरुरी है कि हमें आज क्या हुआ। “आप अपने हृदय की किताब को पढ़ना सीखें, रोज इसे केवल दो मिनट के लिए करें, मैं निश्चित कह सकता हूँ यह आप में बेहतरी लायेगी।”

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30 November 2022, 11:53