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संत पापा फ्रांसिस देवदूत प्रार्थना में संत पापा फ्रांसिस देवदूत प्रार्थना में 

संत पापाः संतों की भांति शांति के शिल्पकार बनें

संत पापा फ्रांसिस ने सब संतों के पर्व दिवस पर देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने दिये गये संदेश में संतों की भांति शांति के निर्माता होने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 1 नवम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने सब संतों के महोत्सव पर वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

उन्होंने सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, खुश पर्व, सुप्रभात।

आज हम सब संतों का महोत्सव मनाते हैं, जो हमें भ्रमित कर सकता है क्योंकि ऐसा करते हुए हम यह सोच सकते हैं कि हम अपने उन भाई-बहनों की याद करते हैं जो एक पूर्णतः की स्थिति में निवास करते हैं। लेकिन आज का सुसमाचार इस रूढ़िबद्ध धारणा, इस “पवित्रता के परिपूर्ण चित्रण” को झूठलाता है। वास्तव में, येसु के धन्य वचन जो संतों के लिए पहचान-पत्र की भांति हैं पूरी तरह इसके विपरीत हैं वे एक ऐसे जीवन की बात करते हैं जो संस्कृति विरोधी और क्रांतिकारी है। संतगण सही अर्थ में क्रांतिकारी हैं।

ख्रीस्त की शांति हमारी शांति से भिन्न

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि एक विशिष्ट धन्य वचन का उदाहरण लेते हुए हम इसके बारे में चिंतन करें,“धन्य हैं वे जो शांति स्थापित करते हैं,” यहाँ हम येसु की शांति को अपनी सोच से एकदम विभिन्न पाते हैं। हम सभी शांति की अभिलाषा रखते हैं लेकिन बहुत बार हम जिस शांति की चाह करते हैं वह सही अर्थ में शांति नहीं है, हम शांति में जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, शांति में छोड़ दिये जाना चाहते हैं, जहाँ हमारे लिए कोई मुसीबत न हो, हमारे जीवन में सिर्फ शांति व्याप्त करती हो। येसु उन लोगों को धन्य नहीं कहते जो शांति में अपना जीवनयापन करते हैं बल्कि उन्हें जो शांति स्थापित करते, इसके लिए संघर्ष करते हैं, वे शांति के निर्माता होते हैं। वास्तव में, शांति स्थापित करना किसी भी निर्माण कार्य की भांति हमसे प्रयास, सहयोग, धैर्य की मांग करती है। हमारी चाह यह होती है कि शांति की वर्षा ऊपर से पानी की भांति हो, लेकिन धर्मग्रंथ हमें “शांति बोने” की बात कहता है क्योंकि यह जीवन की भूमि से पनपती है, हमारे हृदयों रूपी बीज से, जहाँ से यह चुपचाप, न्याय और करूणामय कार्यों के माध्यम दिन-व-दिन बढ़ती जाती है, जैसे कि यह ज्योतिमय साक्ष्य का दिवस जिसे हम मना रहे हैं हमें बतलाती है। पुनः हमें यह विश्वास दिलाया जाता है कि शांति शक्ति के माध्यम स्थापित की जाती है लेकिन येसु के लिए यह एकदम विपरीत है। येसु ख्रीस्त और संतों का जीवन हमें यह बतलाता है शांति के बीज को बढ़ने और फलहित होने के लिए, सर्वप्रथम मरने की जरुरत है। शांति को हम किसी को हारा कर या किसी पर विजय प्राप्त कर हासिल नहीं करते हैं,यह कभी हिंसक नहीं होती, यह अपने में कभी हथियार नहीं उठाती है। संतों ने अपने कार्यो के द्वारा, स्वयं अपने जीवन की आहूति देते हुए शांति स्थापित की है।

क्रूस शांति का उद्गम स्थल

संत पापा ने कहा, “कैसे तब कोई शांति का निर्माता होता हैॽ” इसके लिए व्यक्ति को सबसे पहले, अपने हृदय को हथियार मुक्त करने की जरुरत है। हाँ, क्योंकि हम सब अपने में आक्रमक विचारों और तीखे शब्दों से भरे हुए हैं। हम अपने को शिकायत के काटीले तार और उदासीनता की कठोर दीवारों से सुरक्षित रखने का विचार करते हैं। यह शांति नहीं लेकिन युद्ध है। शांति का बीज हृदय के विसैन्यीकरण हेतु आह्वान करता है। हम अपने हृदय का विसैन्यीकरण कैसे करते हैंॽ संत पापा ने कहा कि ऐसा तब होता है जब हम क्रूस के सामने खड़े होते हुए, जो शांति का सिंहासन है अपने को येसु के लिए खोलते हैं, जो “हमारी शांति” हैं। हम उनसे शांति को प्राप्त करते हैं, पापस्वीकार में हम उनसे “क्षमा और शांति” को पाते हैं। हमारी शुरूआत यहाँ से होती है क्योंकि शांति के शिल्पकार होना, संत बनना हमारे बस की बात नहीं है, यह उनका उपहार है, यह ईश्वर से मिलने वाली कृपा है।

क्या हम शांति के जनक हैं

प्रिय भाइयो एवं बहनो, संत पापा ने कहा, “हम अपने अंदर झांक कर देखें और स्वयं से पूछें, क्या हम शांति के निर्माता हैंॽ” वह स्थल जहाँ हम जीवनयापन करते हैं, अपने अध्ययन और कार्य क्षेत्र में, क्या हम तनाव उत्पन्न करते हैं, अपने शब्दों के द्वारा हम दूसरों को चोट पहुंचाते हैं, क्या  हम गपशप करते जो दूसरे के जीवन को जहरीला बना देता और विवाद उत्पन्न करता हैॽ या हम शांति के मार्ग को प्रशस्त करते हैं- क्या हम उन्हें क्षमा करते हैं जिन्होंने हमें दुःख पहुंचाया है, क्या हम उनकी चिंता करते हैं जो हाशिये में पड़े हुए हैं, क्या हम अन्याय के प्रति आवाज उठते हुए उनकी मदद करते जो कमजोर हैंॽ ऐसा करने के द्वारा हम शांति के निर्माणकर्ता बनते हैं।

शांति के जनक, ईश्वर की संतान

संत पापा ने कहा कि हमारे लिए एक अंतिम सवाल उभर कर आ सकता है यद्यपि यह सभी धन्य वचनों के लिए लागू होता है, क्या इस तरह का जीवन व्यतीत करना अपने में अर्थपूर्ण हैॽ क्या यह खोना नहीं हैॽ यह येसु हैं जो हमें इसका उत्तर देते हैं- वे जो शांति की स्थापना करते हैं वे ईश्वर की संतान कहलायेंगे (मत्ती.5.9)। ऐसे लोग अपने को दुनिया से बाहर पाते हैं क्योंकि वे शक्ति और तर्क की प्रबलता के आगे नहीं झुकते हैं, स्वर्ग में वे ईश्वर के निकटतम, उन्हीं की तरह होंगे। लेकिन सही अर्थ में, यहाँ जो ऐसा करते हैं वे खाली हाथ ही रहते हैं, जबकि वे जो सभी से प्रेम करते हैं और किसी को चोट नहीं पहुँचाते विजय होते हैं, जैसा कि स्तोत्र हमें कहा है,“शांति प्रिय मनुष्य के लिए एक भविष्य है”(स्तोत्र 37.37)।

कुंवारी मरियम, सभी संतों की रानी हमें अपने दैनिक जीवन में शांति स्थापित करने में मदद करें।

प्रार्थना का आहृवान

देवदूत प्रार्थना के उपरांत संत पापा ने कहा कि परसों मैं बरहीन की प्रेरितिक यात्रा करूंगा, जहां मैं रविवार तक रहूंगा। उन्होंने बरहीन के राजकुमार, अधिकारियों, विश्वासियों भाई-बहनों और देश की पूरी आबादी को, विशेष रूप से उन लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव प्रकट किये जो इसकी तैयारी में लगे हैं। संत पापा ने कहा कि यह आपसी वार्ता के तहत एक यात्रा होगी, “मैं एक ऐसे मंच में सहभागी होऊँगा जो मानव सह-अस्तित्व के लिए पूर्व और पश्चिम के मध्य भ्रातृत्वमय मेल की चाह रखता है। मुझे और धार्मिक प्रतिनिधियों को इस यात्रा में, विशेषकर मुसलमानों से वार्ता करने का अवसर मिलेगा। संत पापा ने अपनी इस यात्रा की सफलता हेतु सबों से प्रार्थना की आपील करते हुए सभों का अभिवादन किया और पुनः पर्व की शुभकामनाएँ अर्पित कीं। 

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01 November 2022, 16:13