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संत पापाः निराशा प्रगति का स्थल

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा में आत्म-परीक्षण के संबंध में निराशा की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए उसे विकास का एक अवसर बतलाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

हम आत्म-परिक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हैं। हमने इस बात की महत्वपूर्णतः को देखा कि अपने हृदय की हलचल को देखना कितना जरूरी है जिससे हम क्षणिक आवेग में आकर जल्दबाजी में निर्णयों को न लें, जो हमारे लिए पश्चाताप का कारण बनती है।

निराशा में प्रगति के बीज

इस संदर्भ में हमारी आध्यात्मिक स्थिति जिसे हम उदासी के क्षण कहते हैं, जहाँ हम हृदय को अंधेरे में, निराशा जैसे स्थितियों में पाते, हमारे लिए विकास के अवसर बन सकते हैं। वास्तव में, यदि हमारे जीवन में थोड़ा असंतोष, थोड़ी उदासी, एकांत में रहने, बिना हड़बड़ी में स्वयं के संग समय बिताने के योग्य नहीं होते तो हम अपने जीवन को छिछले ढ़ंग से जीने की जोखिम में पड़ जाते और अपने जीवन की गहराई में नहीं उतरते हैं। निराशा हमारे “हृदय को झंकझोरती” है, हमें सतर्क करती, हममें चेतना और नम्रता उत्पन्न करती और हमें कल्पना की दुनिया में खोये रहने की हवा से बचाती है। ये हमारे जीवन में विकास हेतु अपरिहार्य परिस्थितियाँ हैं साथ ही आध्यात्मिक जीवन हेतु। एक पूर्ण लेकिन “सड़न रोकने वाली” शांति जो भावनाहीन होती, जब हमारे जीवन के निर्णयों का आधार और व्यवहार का अंग बन जाती तो यह हमें असंवेदनशील बना देती है, जिसके फलस्वरुप हम दूसरों के दुःखों के प्रति उदासीन हो जाते और स्वयं अपने जीवन को भी स्वीकारने में अयोग्य हो जाते हैं। उपयुक्त बातों पर विचार किए बिना, हम इस “पूर्ण शांति” तक उदासीनता के मार्ग से नहीं पहुंच सकते हैं। बहुत से संतों के जीवन में व्याप्त बेचैनी उन्हें अपने जीवन में परिवर्तन लाने को अग्रसर करती है। हमारे लिए कृत्रिम शांति अर्थहीन होती है। वहीं स्वस्थ बेचैनी, हमारे हृदय में उथल-पुथल लाती है और अपने लिए एक मार्ग खोजती है। इस कड़ी में हिप्पो के संत अगुस्टीन, एदित एतीन, जुसेप्पे बेनेदेत्तो कॉटोलेंगो, चार्ल्स डी फौकॉल्ड के उदाहरणों को हम देख सकते हैं। हमारे जीवन के महत्वपूर्ण चुनाव में हमें एक कीमत चुकानी पड़ती है, वह कीमत जो हरएक की पहुंच के अंदर होता है।

निराशा में निरूद्देश्यता के भाव

निराशा हमारे लिए निरुद्देश्यता का निमंत्रण भी लाती है, जहाँ हम अपने कार्यों में सदैव मनोकामना की पूर्ति नहीं सोचते हैं। निराशा हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने की संभावाना प्रदान करती है, यह एक नई पहल को अधिक प्रौढ़ ढ़ग से शुरू करने, ईश्वर के संग और अपने अपने प्रियजनों के संग अपने संबंध को अधिक सुन्दर ढ़ग से स्थापित करने को प्रेरित करती है, जो हमें सिर्फ आदान-प्रदान तक सीमित नहीं करती है। संत पापा ने कहा कि हम अपने बचपन की याद करें। बच्चों के रुप में हम सदैव अपने माता-पिता से कुछ पाने की चाह रखते हैं, एक खिलौना, कुछ पैसे जिसे हम कुछ खरीद सकें, एक अनुमति इत्यादि... हम उनकी ओर इसलिए नहीं देखते कि वे हमारे माता-पिता हैं बल्कि हम अपनी इच्छा पूर्ति की चाह रखते हैं, हमें कुछ मिले। इसके बावजूद माता-पिता के रुप में वे हमारे लिए सबसे बड़े उपहार होते हैं और इस तथ्य को हम धीरे-धीरे बड़े होने पर समझते हैं।

हमारी प्रार्थना के मनोभाव

संत पापा ने कहा कि हमारी प्रार्थनाएँ भी कुछ इसी तरह की होती हैं- वे ईश्वर से हमारी इच्छाओं की पूर्ति हेतु निवेदन हैं, जहाँ हम उनके संग कोई सच्चे संबंध की गरहाई को नहीं पाते हैं। सुसमाचार हमारे लिए इसी परिदृश्य को व्यक्त करता है, येसु लोगों से घिरे हुए रहते जो उनसे कुछ पाने की आस लगाये रहते हैं- चंगाई, भौतिक सहायता, लेकिन वे उनसे सहज ही जुड़े नहीं होते हैं। वे भीड़ से दबे रहते हुए भी अपने में अकेले रहते हैं। कुछ संतगणों और कुछ चित्रकारों ने येसु की इस स्थिति पर चिंतन किया है। यह हमारे लिए विचित्र और अवास्तविक लगता है, जहाँ हम येसु से पूछते हैं, “आप कैसे हैंॽ” लेकिन वास्तव में, यह उनके संग एक सच्चा, निष्ठापूर्ण संबंध स्थापित करने का अति सुन्दर तरीका है, जहाँ हम उनकी मानवता में, उनके दुःखों में, उनके अकेलेपन में सहभागी होते हैं। हम उनके संग होते हैं, क्योंकि वे हमारे संग अपने सम्पूर्ण जीवन को साझा करने की चाह रखते हैं।

बिना किसी चीज की चाह किये हमारा उनके साथ एक संबंध स्थापित करना अपने में कितना अच्छा है, जैसे कि हम अपने प्रेम करने वालों के साथ करते हैं- हम उन्हें अधिक से अधिक जानने की कोशिश करते हैं क्योंकि हमें उनके साथ रहने में अच्छा लगता है।

आध्यात्मिक जीवन का सार समझें

प्रिय भाइयो एवं बहनो, संत पापा ने कहा कि आध्यात्मिक जीवन हमारे लिए कोई तकनीकी चीज नहीं है, यह हमारे लिए अंदर “अच्छाई” को बनाये रखने हेतु कोई प्रोग्राम नहीं है बल्कि हमें स्वयं इस पर कार्य करने की जरुरत है। यह जीवित व्यक्ति के संग हमारा संबंध है जिसे हम वर्गीकृत नहीं कर सकते हैं। इस भांति निराशा हमारे लिए वह स्पष्ट प्रत्युत्तर है जहाँ हम ईश्वर को एक सुझाव के रुप में पाते हैं, जहाँ हमारी मुलाकात उनसे हो सकती है। इस संदर्भ में हमें सदैव अपने में कार्य करने की जरुरत है जिससे हम खुशी और संतोष का अनुभव कर सकें, जो हमारे लिए रिकार्ड एक मधुर संगीत की भांति होती जिसे हम बारंबार सुन सकते हैं। वहीं, जो अपने जीवन में प्रार्थना करते हैं वे इस बात का अनुभव करते हैं कि परिणाम अपने में अप्रत्याशित है, धर्मग्रंथ के अनुभव और पदों ने हमें बहुत बार अचंभित किया है, वर्तमान परिस्थिति में, विचित्र बात यह है कि ये हम पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं। वहीं वे बातें और घटनाएं जिनके बारे में हमने कोई ध्यान नहीं दिया है जिसे हम अपने से दूर करने की चाह रखते हैं- जैसे कि क्रूस का अनुभव, वह हमारे शांति लेकर आती है। हम अपनी निराशा से भयभीत न हों, हम उससे भागे नहीं बल्कि धैर्य में आगे बढ़ते जायें। हम अपनी निराशा में येसु के हृदय को खोजें और वहाँ हमें सदैव उत्तर मिलेगा।

निराश न हों

संत पापा ने कहा कि आप कठिनाइयों की परिस्थितियों में कभी निराश न हों, बल्कि सुदृढ़ता से उसका सामना करें, उन ईश्वरीय कृपा की सहायता से जो हमें कभी निराश नहीं करती है। और यदि हम अपने हृदय के अंदर सदैव एक आवाज को सुनते जो हमें अपने प्रार्थनामय जीवन से दूर करना चाहती है तो हम उसे शत्रु के रुप में पहचाने, हम उसे अपने में हावी होने न दें। वह हमें जो करने के लिए कहता है हम ठीक उसके विपरीत कार्य करें।  

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16 November 2022, 13:06