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पुरोहितों के साथ संत पापा फ्रांँसिस पुरोहितों के साथ संत पापा फ्रांँसिस 

पोप फ्राँसिस ˸ पुरोहित लोगों के करीब रहें

रोम में अध्ययनरत पुरोहितों एवं सेमिनरी के छात्रों के साथ सोमवार को एक लम्बी बातचीत में संत पापा फ्राँसिस ने कई विषयों पर चर्चा की; पुरोहितों के सहानुभूतिपूर्ण तरीके, लोगों के करीब होने के लिए बुलाये गये, आध्यात्मिक मार्गदर्शन आदि।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

24 अक्टूबर को वाटिकन के संत पौल छटवें सभागार में एक लम्बी बातचीत में, रोम में अध्ययनरत पुरोहितों एवं सेमिनरी के छात्रों ने संत पापा फ्राँसिस से कई सवाल किये। 

एक अच्छा पुरोहित एवं ईश्वर का तरीका

करूणा के ठोस रूप पर किये गये सवाल का उत्तर देते हुए संत पापा फ्राँसिस ने जोर दिया कि उस भाव को सीखना बहुत जरूरी है जिसमें सामीप्य और कोमलता व्यक्त होते। यह उपदेश देते समय भी लागू होता है। उन्होंने कहा, "अभिव्यक्ति पूर्ण हो।" संत पापा ने तीन भाषाओं के बारे बतलाया जो व्यक्ति की परिपक्वता व्यक्त करती हैं ˸ मन की भाषा, हृदय की भाषा और हाथ की भाषा। उन्होंने आग्रह किया कि वे इन भाषाओं में व्यक्त करना सीखें, "कि मैं वही सोचता हूँ जो मैं महसूस करता और करता हूँ, जो मैं सोचता हूँ और करता हूँ उसे महसूस करता हूँ, वही करता हूँ जो मैं महसूस करता और सोचता हूँ।"

ईश प्रजा के सम्पर्क में रहें

उन पुरोहितों के सवालों का जवाब देते हुए जिन्होंने पूछा कि "भेड़ों की गंध" को खोये बिना किस तरह पुरोहिताई को जीया जा सकता है, जो पुरोहिताई के मिशन के लिए उपयुक्त हो, संत पापा ने कहा कि पुरोहित चाहे वह अध्ययन में संलग्न हो अथवा ऑफिस का काम संभाल रहा हो, "आवश्यक है कि  वह लोगों के, ईश्वर की प्रजा के सम्पर्क में रहे क्योंकि उसमें ईश प्रजा का अभियंजन है ˸ वे भेड़ें हैं। भेड़ की गंध खोने, उनसे अपने आपको दूर करने के द्वारा आप एक विचारक हो सकते हैं, एक अच्छे ईशशास्त्री बन सकते हैं, ऑफिस में अच्छी तरह काम संभालनेवाले हो सकते हैं, किन्तु आप भेड़ की गंध पाने की क्षमता को खो देंगे।" पोप ने पुरोहितों को "निकटता" के चार सिद्धांतों को बतलाया : प्रार्थना के माध्यम से ईश्वर के साथ निकटता, धर्माध्यक्ष के साथ निकटता, अन्य पुरोहितों के साथ निकटता, और ईश प्रजा के साथ निकटता। उन्होंने कहा, "यदि ईश प्रजा के साथ कोई निकटता नहीं है तब आप एक अच्छे पुरोहित नहीं हो।"

पुरोहिताई कोई नौकरी नहीं

तब संत पापा ने ऐसे पुरोहितों का जिक्र किया जो पुरोहिताई को नौकरी की तरह लेते हैं, निश्चित समय निर्धारित करते, अधिकारी पुरोहित बनते, शांत की खोज करते। संत पापा ने कहा, "पुरोहिताई ईश्वर की पवित्र सेवा है। जिनकी सबसे बड़ी सेवा है पवित्र यूखरिस्त, यह समुदाय की सेवा है।"  

आध्यात्मिक साथ

विभिन्न विषयों पर बात करते हुए संत पापा ने आध्यात्मिक मार्गदर्शन के महत्व पर भी जोर दिया- यह उल्लेख करते हुए कि वे इसे "आध्यात्मिक साथ" कहना पसंद करते हैं। जो दबाव नहीं बल्कि जीवन की यात्रा में एक मदद है और जिसमें पापमोचक के अलावा एक दूसरे व्यक्ति पर भरोसा रखना अच्छा होता है। संत पापा ने जोर दिया कि इन दोनों की अलग-अलग भूमिकाएँ हैं। आप पापमोचक के पास जाते हैं ताकि वह आपके पापों को क्षमा कर दे। आप अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के पास जाते हैं, उन्हें बतलाने के लिए कि आपके हृदय में क्या हो रहा है, आध्यात्मिक भावना, आनन्द, गुस्सा और अंदर में जो कुछ भी हो रहा है। संत पापा ने कहा, "यह महत्वपूर्ण है कि आपका साथ दिया जाए, यह पहचाना जाए कि आपको साथ देने की जरूरत है, "चीजों को स्पष्ट करने" के लिए, यह पहचानने के लिए कि आपको अपनी आध्यात्मिक भावनाओं को समझने में मदद करने के लिए किसी की आवश्यकता है।"

विज्ञान और आस्था के बीच संवाद: हर सवाल का जवाब नहीं होता

विज्ञान और विश्वास के बीच संवाद पर एक प्रश्न से अपना संकेत लेते हुए, संत पापा ने निमंत्रण दिया कि विद्वानों के सवालों, लोगों एवं कॉलेज के विद्यार्थियों की चिंताओं को सुनने और हमेशा सकारात्मक रहने के लिए खुला और विनम्र रहना है। विनम्र रहने, विश्वास करने का ये अर्थ नहीं होता कि आप सभी सवालों का उत्तर जानें। विश्वास का बचाव करना काम नहीं देता। यह एक कालदोष-युक्त प्रद्धति है। विश्वास करना, येसु ख्रीस्त में विश्वास करने की कृपा प्राप्त करना है, एक रास्ता है। संत पापा ने विज्ञान के साथ हमेशा खुला वार्ता करने पर जोर दिया, चाहे उसका उत्तर न मिले। और यदि किसी ने स्पष्ट जवाब न दिया हो। वार्ता है यह कहना, "मैं इसकी व्याख्या नहीं कर सकता, लेकिन आप उस वैज्ञानिक के पास जा सकते हैं, ये लोग हैं जो आपको मदद दे सकते हैं।"

जीवन अकेला चलना कठिन है

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में, पोप ने जीवन को "निरंतर असंतुलन" के रूप में वर्णित किया, क्योंकि इसका अर्थ है कई कठिनाइयों के बीच चलना, गिरना और उठना। उन्होंने अपने श्रोताओं को इससे डरने के बजाय, इस तरह के दैनिक असंतुलन को समझने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि "असंतुलन में, ईश्वर की गति होती है जो आपको कुछ करने के लिए, अच्छा करने की इच्छा के लिए आमंत्रित करती है"। "असंतुलन में कैसे रहना है, यह जानना" एक "अलग संतुलन" की ओर ले जाता है, एक "गतिशील संतुलन" की ओर जो ईश्वर द्वारा शासित है।

इंटरनेट का खतरा

पुरोहितों और सेमिनारियों के साथ मुलाकात में, संत पापा ने प्रौद्योगिकी के साथ अपने संबंधों और आधुनिक डिजिटल उपकरणों के साथ अपनी परेशानी के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया कि कैसे, एक उपहार के रूप में, जैसे ही उन्हें अर्जेंटीना में धर्माध्यक्ष नियुक्त किया गया, उन्हें एक मोबाइल फोन मिला, जिसका उन्होंने अपनी बहन को एक फोन कॉल के लिए इस्तेमाल किया, और तुरंत इसे वापस कर दिया। उन्होंने सावधानी बरतने की सलाह देते हुए कहा, "यह मेरी दुनिया नहीं है लेकिन आप उसका प्रयोग कर सकते हैं।" संत पापा ने इंटरनेट के खतरे पर जोर दिया, खासकर, डिजिटल पोरनोग्राफी से, जो दुर्भाग्य से कई लोगों के लिए प्रलोभन है और जिसमें धर्मसमाजी भी शामिल हैं। यह आत्मा को दुर्बल कर देता है। वहाँ से बुराई घुस जाती है और यह पुरोहित के हृदय को कमजोर बना देता है।

कलीसिया युद्ध का चेहरा

अंत में, एक यूक्रेनी पुरोहितों को जवाब देते हुए, पोप ने कहा कि कलीसिया, एक माँ की तरह, युद्धों का सामना कर रही है "क्योंकि युद्ध बच्चों का विनाश है"। पोप कहा कि " कलीसिया को पीड़ित होना चाहिए, रोना चाहिए, प्रार्थना करना चाहिए।"

यूक्रेन पुरोहित जिसने सवाल पूछा था उसे सीधे सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, "आप, आपके लोग बहुत दुःख सह रहे है, मैं जानता हूँ, मैं आपके निकट हूँ। लेकिन आक्रमकों के लिए प्रार्थना करता हूँ क्योंकि वे आपसे कहीं अधिक पीड़ित हैं। वे अपनी आत्मा में घाव नहीं देख सकते किन्तु प्रार्थना करें कि उनका मन-परिवर्तन हो जाए और शांति आ जाए।

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26 October 2022, 17:08