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संत पापाः मानवीय स्वतंत्रता आत्म-ज्ञान में निहित है

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की अपनी धर्मशिक्षा माला में, आत्म-परीक्षण में सहायक एक महत्वपूर्ण तथ्य “आत्म-ज्ञान” पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 05 अक्टूबर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

हम आत्म-परीक्षण की विषयवस्तु पर अपनी चर्चा जारी रखते हैं। पिछली बार हमने प्रार्थना पर चिंतन किया, जो ईश्वर के संग हमारी घनिष्टता और उनमें हमारा विश्वास है जो आत्म-परीक्षण हेतु एक अति महत्वपूर्ण कारक है। प्रार्थना, बच्चों के मनोभाव, खुले हृदय से ईश्वर के पास आना है। आज हम इसके पूरक व्यक्तिगत-ज्ञान पर जिक्र करेंगे जो एक अच्छे आत्म-परीक्षण हेतु जरूरी है। संत पापा ने कहा कि अपने आप को जानना अपने में सहज नहीं है। यह हमारी मानवीय क्षमताओं- स्मरण-शक्ति, बुद्धि, इच्छा और मनोवेगों का उपयोग करना है। “अच्छा निर्णय कैसे लेना है हम बहुत बार नहीं जानते क्योंकि हम अपने को अच्छी तरह नहीं जानते हैं, अतः हम नहीं जानते कि हम सही अर्थ में क्या चाहते हैं।”

आत्मा-परीक्षण की बाधा, आत्म-ज्ञान

आध्यात्मिक शांकाओं और बुलाहटीय संकटों के दौर के पीछे हम बहुत बार धर्मसंघी जीवन, मावनीय भावनात्मक आयामों के बीच अपर्याप्त संवाद को पाते हैं। आध्यात्मिकता पर अपने विचारों को लिखने वाले एक लेखक ने इस बात पर गौर किया कि आत्म-परीक्षण के संबंध में कितनी सारी समस्याएँ हैं जिन्हें हमें पहचाने और उनके बारे में खोज करने की जरुरत है। वे लिखते हैं,“आत्म-परीक्षण के संबंध में सबसे बड़ी बाधा जिसके बारे में, मैं आश्वस्त हूँ, वह ईश्वर का अमूर्त रूप नहीं, बल्कि यह है कि हम स्वयं अपने बारे में प्रार्याप्त नहीं जानते और न ही हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि हम सही में क्या हैं। हममें से हर कोई अपने को मुखौटा से ढ़के रखता है, न केवल दूसरों के सामने बल्कि तब भी जब हम अपने को दर्पण में देखते हैं।”

हमारे जीवन में ईश्वरीय उपस्थिति की अज्ञानता हमारे स्वयं की अज्ञानता, अपने व्यक्तित्व के लक्ष्णों और अपनी गहरी इच्छाओं की अज्ञानता के साथ-साथ चलती है।

आत्म-ज्ञान, अंतःस्थल में उतरने की मांग

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अपने को जाना कठिन नहीं है लेकिन यह मेहनत भरा कार्य है। यह धैर्य में अपने हृदय के अंतःस्थल में उतरना है। यह हमें रुकने की मांग करती है, अपने आपको- “चालक को रोकना”, यह अपनी भावनाओं को देखना है, अपने कार्य करने के तरीके से रूबरु होना है, अपने अंदर व्याप्त अनुभवों की थाह लेना है, जो निरंतर हममें होते हैं, बहुधा अवचेतना की स्थिति में। यह अपने अंदर व्याप्त भावनाओं और आध्यात्मिक योग्यताओं के बीच भी अंतर स्थापित करना है। “मैं अनुभव करता हूँ” अपने में “मैं सुनिश्चित हूँ” से भिन्न है, “मुझे ऐसा लगता है” अपने में “मुझे चाहिए” के समान नहीं है। इस भांति हम अपने में यह जानते हैं कि हमारे विचार जिन्हें हम धारण करते और सच्चाई कभी-कभी अपने में विकृत हैं। यह देख पाना अपने में एक कृपा है। वास्तव में, कई बार ऐसा हो सकता है कि पिछले अनुभवों के आधार पर वास्तविकता के बारे में हमारी गलत धारणाएं हमें बहुत अधिक प्रभावित करती हैं, यह हमारी स्वतंत्रता को सीमित कर देती है, और हम जीवन की सच्चाई को लेकर अछूते रह जाते हैं।

आध्यात्मिक जीवन का “पास वर्ड”

संत पापा ने कहा कि हम सूचना तकनीकी के युग में रहते हैं, हम यह जानते हैं कि किसी प्रोग्राम में प्रवेश करने हेतु “पास वर्ड” कितना महत्वपूर्ण है जहाँ हम अपने अति व्यक्तिगत और मूल्यवान बातों को संचित कर रखते हैं। आध्यात्मिक जीवन के भी “पास वर्डस” हैं, कुछ शब्दें हैं जो हमारे हृदय का स्पर्श करते हैं क्योंकि वे हमें उन चीजों को ओर इंगित कराते हैं जो अति संवेदनशील हैं। परीक्षक अर्थात शैतान उन विशेष शब्दों को अच्छी तरह जानता है, हम भी उन्हें अच्छी तरह जानते हैं, जिससे हम उन स्थानों में न पड़ें जहाँ हम नहीं होना चाहते हैं। यह जरूरी नहीं कि परीक्षक हमारे लिए आवश्यक रुप से बुरी चीजों को लाये, लेकिन वह बहुत बार हमारे लिए चीजों को अस्त-व्यस्त कर देता है, उन्हें जरुरत से ज्याद अत्यधिक महत्वपूर्ण रुप में प्रस्तुत करता है। इस भांति वह हमें उन अकर्षक चीजों से सम्मोहित कर देता और जो हममें हलचल उत्पन्न कर देती हैं, वे चीजें सुन्दर हैं लेकिन हमें भ्रमित करतीं, वे हमारे लिए उन चीजों को प्रदान नहीं करती जिनकी वे प्रतिज्ञा करती हैं, इस तरह वे हमें अपने में खालीपन और उदासी में छोड़ देती हैं। खालीपन और उदासी की अनुभूति हमारे लिए एक निशानी है जो हमें कहती है कि हमने सही मार्ग का चुनाव नहीं किया है। वे हमारे लिए डिग्री, कैरियर, आपसी-संबंध, वे सारी चीजें होती जो अपने में प्रशंसानीय हैं, लेकिन इन बातों के लिए, अगर हम स्वतंत्र नहीं हैं, तो हम अवास्तविक उम्मीदों को पोषित करने की जोखिम में पड़ जाते हैं, हम अपनी पहचान स्थापित करने में लग जाते हैं। इस नसमझी के कारण बहुधा हम अपने को बड़े दुःख में पाते हैं क्योंकि उनमें से कोई भी चीज हमें आत्म-सम्मान की गारंटी नहीं देती है।

सतर्क रहें

संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि हममें से हर किसी को अपने हृदय के पास वर्ड जानना जरूरी है। हम किन चीजों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं जिससे हम उनसे अपने को बचा सकें जो विश्वासपूर्ण शब्दों के द्वारा हमें दिग्भ्रामित करते हैं, इसके साथ ही हम अपने में यह जानें कि हमारे लिए क्या महत्वपूर्ण है, इस भांति हम अपने वर्तमान स्थिति की चमक, छिछली बातों से दूर रह सकें। संत पापा ने दूरदर्शन के विज्ञापनों के प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित कराया जो हमारे हृदय का स्पर्श करते और हम अपनी स्वतंत्रता को खो देते हैं। हम सावधान रहें-क्या मैं स्वतंत्र हूँ या अपने को क्षंणिक मनोभाव में या उत्तेजना में बहता हुआ पाता हूँ।

अंतःकरण की जाँच ऐसे करें

संत पापा ने अंतःकरण की जाँच हेतु लोगों का ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि हम दिन में सामान्य रुप से इस बात की जाँच करें कि इस दिन मेरे हृदय में क्या हो रहा है। “आज बहुत सारी चीजें हुई...किन बातों ने मेरे हृदय का स्पर्श किया”ॽ अंतःकरण की जाँच अपने में एक अच्छी आदत है जहाँ हम अपने दिनचर्या की बातों को मुड़कर देखते हैं, हम इस बात को जानते और सीखते हैं कि हमने किन बातों को अधिक महत्व दिया। हमने किस चीज की खोज की और क्यों, हमने अंततः क्या पाया। इससे भी बढ़कर ऐसा करने के द्वारा हम यह सीखते हैं कि हमारे हृदय को कौन-सी बातें संतुष्टि प्रदान करती हैं। क्योंकि केवल ईश्वर हमें हमारी योग्य की मुहर से अंकित करते हैं। वे अपने क्रूस से हमें इस बात को बतलाते हैं, वे हमारे लिए मरे, जिससे वे हमें यह बता सकें कि हम उनकी आँखों में कितने मूल्यवान हैं। ऐसी कोई भी बाधा या असफलता नहीं जो हमें उनके करूणामय आलिंगन से रोक सकती है। संत पापा ने पुनः अंतःकरण की जाँच के बारे में कहा कि यह हमारी बहुत सहायता करती है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने हृदय की थाह लेते हैं, यह कोई रास्ता नहीं जहाँ हर चीज पार हो जाती और हमें पता नहीं चलता। ऐसा न हो। हमें देखें कि आज क्या हुआॽ मैंने कैसी प्रतिक्रिया कीॽ किन बातों से मैं उदास हुआॽ किन बातों से मुझे खुशी हुईॽ क्या बुरा हुआ और क्या मैंने किसी को चोट पहुंचायाॽ आप अनुभवों, प्रेरणा की थाह लें। संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला के अंत में कहा कि प्रार्थना और आत्म-ज्ञान हमें स्वतंत्रता में बढ़ने हेतु मदद करते हैं। ये ख्रीस्तीय जीवन के आधारभूत तत्व हैं ये हमें अपने मूल्य की खोज करने हेतु मूल्यवान कारक हैं। 

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05 October 2022, 16:21