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संत पापाः आत्म-परीक्षण में चाह दिशा सूचक यंत्र

संत पापा फ्रांसिस ने आत्म-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला के अंतरगर्त “चाह” पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरूवार, 12 अक्तूबर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

इन धर्मशिक्षा मालाओं में हम आत्म-परिक्षण के कारकों की समीक्षा कर रहे हैं। प्रार्थना और आत्म-ज्ञान की चर्चा करने के उपरांत आज मैं एक अन्य महत्वपूर्ण कारक “चाह” के बारे में जिक्र करना चाहूँगा। वास्तव में, आत्म-परीक्षण खोज करने का एक स्वरुप है और इस खोज की उत्पत्ति सदैव हमारे कुछ कमी से होती है जिसे हम जानना चाहते हैं।

चाह, दिशा सूचक यंत्र

संत पापा ने कहा कि यह किस तरह का ज्ञान हैॽ आध्यात्मिक गुरू से इसे “चाह” की संज्ञा देते हैं जो हममें पूर्णतः को प्राप्त करने की एक तमन्ना उत्पन्न करती जो कभी पूरी नहीं होती है, और यह उस निशानी को व्यक्त करती है कि ईश्वर हममें निवास करते हैं। यह चाह समय की चाह नहीं है। इतालवी भाषा में देसीदेरियो मूल रुप से लातीनी भाषा के शब्द दे-सीदुस से आती है जिसका शब्दिक अर्थ “तारे की कमी” है, तारे की कमी जिसका संदर्भ हमारे जीवन की राह प्रशस्त करने से है। यह हममें एक दुःख, एक कमी को दिखलाती है, वहीं यह एक तनाव में उस अच्छी वस्तु की ओर आना है जिसकी कमी हम अपने में महसूस करते हैं। चाह इस भांति हमारे लिए दिशा सूचक यंत्र की तरह है जो हमें यह समझने में मदद करता कि मैं कहाँ हूँ और किधर जा रहा हूँ, बल्कि यह बतलाता है कि मैं जड़ित हूँ या आगे बढ़ रहा हूँ। एक व्यक्ति जो अपने में चाह नहीं रखता वह अपनी स्थिरता में बने रहता है, शायद वह बीमार, एकदम मृत की भांति रह जाता है। हम स्थित हैं यह आगे बढ़ रहे हैं इसे हम कैसे पहचानते हैंॽ

संत पापा ने कहा कि एक निष्ठापूर्ण चाह हृदय की गहराई में होने वाले हलचल का स्पर्श करती है और यही कारण है कि कठिनाइयों या संकटों का सामना करने पर भी वह अपने में नहीं बुझती है। “यह एक प्यास के समान है, यदि हमें पीने को कुछ नहीं मिलता, तो हम हार नहीं मानते हैं, इसके विपरीत हमारी चाह हमारे सोच-विचार और कार्य में बढ़ती जाती है, यहां तक कि हम अपनी प्यास बुझाने के लिए कुछ भी बलिदान करने को तैयार हो जाते हैं।” बाधाएं और असफलताएं हमारी चाह का दमन नहीं करते हैं बल्कि वे उसे और भी सजीव बना देते हैं।

चाह, मजबूती का कारण

एक क्षणिक भूख या भावना के विपिरीत हमारी चाह लम्बे समय तक हममें कायम रहती और अपने को कार्यरूप प्रदान करती है। संत पापा ने चिकित्सक बनने की चाह रखने वाले युवा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसके लिए उसे लम्बे समय तक अध्ययन करने की जरुरत है। उसे अपने जीवन में आने वाले संभावित भटकाव और विभाजनों में अपने को सबल बनाये रखना होता है। अपने जीवन को एक दिशा देने की चाह और अपने लक्ष्य को प्राप्त करना उसे कठिनाइयों से परे जाने में मदद करता है। “चाह हममें मजबूती लाती, हमें साहस प्रदान करती है, यह हमें सदैव आगे लेकर चलती है क्योंकि चाह हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करता है।

वास्तव में, एक मूल्य, जब अपने में आकर्षक होता तो यह सुन्दर और सहज ही प्राप्ति के योग्य हो जाता है है। इसके बारे में किसी ने कहा है, “अच्छा होने से महत्वपूर्ण अपने में अच्छा होने की चाह रखना है”। आकर्षक होना अच्छा है, हम सभी अच्छा होना चाहते हैं, लेकिन क्या हम अच्छा होने की चाह रखते हैंॽ

येसु की चाह

संत पापा ने कहा कि एक चमत्कार करने के पहले येसु व्यक्ति से उसकी चाह के बारे में पूछते  हैं। उदाहरण के लिए, जब वे बेथेसाइदा के जलकुंड के पास कोढ़ी व्यक्ति से मिलते, जो बहुत सालों से वहाँ पड़ा था और वह सही समय में पानी पर नहीं उतर सका, येसु उसे पूछते हैं,“क्या तुम चंगाई प्राप्त करना चाहते होॽ” (यो.5.6)। यह कैसे हो सकता हैॽ कोढ़ी व्यक्ति के उत्तर विस्मयजनक अवरोध को व्यक्त करते हैं। येसु का सावल उसके लिए एक निमंत्रण स्वरुप उसे अपने हृदय की स्पष्टता देखने का आहृवान करता है कि वह अपने लिए किस चीज की चाह रखता है। लेकिन वह व्यक्ति विश्वस्त नहीं लगता है। संत पापा ने कहा कि येसु के संग वार्ता करते हुए हम अपने में इस बात को जानते और समझते हैं कि हम अपने जीवन में किसी बात की चाह रखते हैं।

संत पापा ने कोढ़ी व्यक्ति की स्थिति पर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि वह हमारे लिए एक विशिष्ट उदाहरण है, “हाँ, हाँ मैं चाहता हूँ, लेकिन मैं नहीं चाहता, मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ”। हमारी चाह, यदि हम उसे पूरा करने हेतु कोई कदम न लें तो वह एक ख्वाब बन कर रह जाती है। बहुत से हैं जो चाहते हैं लेकिन नहीं चाहते हैं। 38 सालों से पड़ा व्यक्ति इस भांति केवल शिकायत करता है। संत पापा ने यह कहते हुए लोगों को सचेत किया कि शिकायत हमारे लिए एक जहर है, यह हमारी आत्मा, हमारे जीवन के लिए एक जहर है क्योंकि वह हमें कहीं भी आगे बढ़ने नहीं देता है। हमें इससे सचेत रहने की जररुत है। हम सावधान रहें शिकायत एक तरह का पाप है जो हमारी चाह को बढ़ने नहीं देता है।

चाह पूर्ति हेतु कार्य जरूरी

बहुधा, यह इच्छा है जो एक सफल, सुसंगत तथा स्थायी परियोजना और हजारों महत्वाकांक्षाओं तथा कई अच्छे इरादों के बीच अंतर स्थापित करता है। “मैं करना चाहता हूँ, मैं करना चाहता हूँ... लेकिन अंतत कुछ नहीं होता है।” हम जिस परिस्थिति में जी रहे हैं वह हमें स्वतंत्रता के अत्यधिक विकल्प प्रदान करती है लेकिन यह चाह को समाप्त कर देती है, जो बहुत हद तक क्षणिक चाह बन कर रह जाती है। हम सावधान रहें कि हम अपनी चाह का शोषण नहीं करते हों। हम अपने लिए हजारों योजनाओं, सुझावों, संभावनाओं को पाते हैं जो हमें भटकने की जोखिम में डालते और हमें शांति से मूल्यांकन करने की अनुमति नहीं देते हैं कि हम वास्तव में क्या चाहते हैं। कई बार, हम लोगों को खोजते हुए देखते हैं, संत पापा ने युवा लोगों के बारे में कहा जो हाथ में मोबाइल फोन लिये चीजों को खोजते हैं, देखते हैं... हमारी चाह का विकास इस भांति नहीं होता है, ऐसा करने में हम क्षणिक पल में जीते हैं, क्षणिक रुप में तृप्त होते लेकिन अपनी चाह में नहीं बढ़ते हैं।

हमारी असल चाह क्या है

संत पापा ने कहा कि बहुत सारे लोग हैं जो अपने जीवन में इसलिए दुःखी हैं क्योंकि वे यह नहीं जानते कि वे अपने जीवन से क्या चाहते हैं, उन्होंने शायद अपने जीवन की गहराई में उस चाह का स्पर्श नहीं किया है। उन्होंने उसे कभी नहीं जाना है कि वे अपने जीवन से क्या चाहते हैं। इस भांति वे अपने जीवन में कई तरह के प्रयास और विभिन्न तरह के प्रयोग करते हैं, लेकिन वे कहीं के नहीं रहते और अपना कीमती अवसर गंवाते हैं। और इसलिए कुछ परिवर्तन, हालांकि सैद्धांतिक रूप से सुनिश्चित हैं, जब अवसर उत्पन्न होते हैं, तो उन्हें कभी भी लागू नहीं किया जाता है, कुछ को आगे बढ़ने की कोई तीव्र इच्छा नहीं होती है।

चाह का ज्ञान

संत पापा ने कहा कि यदि ईश्वर हमें वह सवाल पूछें जिसे उन्होंने येरिखो के अंधे व्यक्ति से पूछा था, “तुम क्या चाहते हो मैं तुम्हारे लिए क्या करूॽ” हम इसका उत्तर कैसे देंगेॽ उन्होंने येसु के इस सवाल पर चिंतन करने का आग्रह किया। शायद हम उनसे इस बात की मदद मांगगें कि वे हमें यह जानने में सहायता करें कि उन्होंने हमारे हृदय की गहराई में किस चाह को रखा है। और वे हम उसे पूरा करने की शक्ति प्रदान करें। ईश्वर को अपने जीवन में कार्य करने देना एक बहुत बड़ी कृपा है जहाँ वे हमारे द्वारा अपने चमत्कारों को करते हैं। “प्रभु मुझे में चाह उत्पन्न कर और उसे विकसित कर।” ईश्वर हमसे एक बड़ी चाह रखते हैं जिससे हम उनके परिपूर्ण जीवन को साझा कर सकें।

 

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12 October 2022, 16:53