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संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः निराशा से न भागें

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में आत्म-परीक्षण पर धर्मशिक्षा देते हुए निराशा पर प्रकाश डालते हुए उसमें बने रहने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 19 अक्टूबर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आत्म-परीक्षण, हम इस पर अपनी धर्मशिक्षा जारी रखते हैं, जैसे कि हमने अपने विगत धर्मशिक्षा मालाओं में देखा है, अपने में मुख्यतः तार्किक प्रक्रिया नहीं है, यह कार्यों पर निर्भर करता है और उन कार्यों का एक भावनात्मक अर्थ है, जिसे हमें स्वीकारने की जरुरत है क्योंकि ईश्वर हमारे हृदय में बोल रहे होते हैं। आइए हम इसके प्रथम भावनात्मक रुप निराशा पर जिक्र करें, जो आत्म-परीक्षा की विषयवस्तु है। इसका अर्थ क्या होता हैॽ

निराशा, आत्मा का अंधेरापन

निराशा को इस रुप में परिभाषित किया गया है- “यह आत्मा का अंधेरे में होना है, जिसमें बेचैनी है, यह तुच्छ और भौतिक चीजों से प्रभावित होती, जिसमें कई तरह के अस्थिर उथल-पुथल और प्रलोभनों का समावेश होता, इसमें आत्मविश्वास की कमी होती, वह आशाहीन, प्रेमविहीन होता है, एक व्यक्ति ऐसी परिस्थिति में सुस्त, नीरस, उदासी में जीवन व्यतीत कर रहा होता है मानो वह अपने सृष्टिकर्ता ईश्वर से विखंडित हो गया हो”। (संत इग्नासियुस की आध्यात्मिक साधना,317) संत पापा ने कहा कि मैं विश्वास करता हूँ कि हममें से हरएक ने किसी न किसी रूप में इस निराशा का अनुभव किया है। हमारे लिए समस्या यहां यह होती है कि हम इसे किस रुप में परिभाषित करते हैं क्योंकि यह भी हमारे लिए कुछ महत्वपूर्ण बात कहती है, और यदि हम जल्दबाजी में इससे छुटकारा पाने की चाह रखते तो हम इसे खोने की जोखिम में पड़ जाते हैं।

मानव की चाह

संत पापा ने कहा, “यह सच है कि कोई भी निराशा, दुःख की स्थिति में रहना पंसद नहीं करता है।” हम अपने जीवन में सदैव खुश, हंसमुख और पूर्णत में बने रहने की चाह रखते हैं। यद्यपि यह हमारे लिए संभव नहीं है और न ही यह हमारे लिए अच्छा होगा। वास्तव में, अच्छाई से बुराई की ओर हमारा जीवन तब उन्मुख होता है जब हम अपने में उदासी का अनुभव करते हैं, यह हमारे किसी कार्य के कारण हममें आत्म-ग्लानि के भाव लाता है। “आत्म-ग्लानि” एक सुन्दर शब्द है जिसका शब्दिक अर्थ अंतःकरण का कचोटना है जहाँ हम अपने में शांति का अनुभव नहीं करते हैं। आत्म-ग्लानि के संदर्भ में संत पापा फ्रांसिस ने आलेसांद्रो मनजोनी के “द बित्रोथड” की चर्चा की जहाँ हम कार्डिलन फेद्रिको बेरोमेयो और अनामित व्यक्ति के बीच एक संवाद को पाते हैं। ईश्वर भक्त कार्डिनल हृदय के अन्दर व्याप्त अनुभूतियों को देखना और परखना जानते थे।

अपनी उदासी को पढ़ें

संत पापा ने कहा कि उदासी को पढ़ने जानना अपने में महत्वपूर्ण है। हम सभी जानते हैं कि उदासी क्या है। लेकिन क्या हम इसे पढ़ना जानते हैंॽ क्या हम यह समझते हैं कि आज की उदासी का अर्थ हमारे लिए क्या हैॽ हमारे समय में, उदासी को सबसे नकारात्मक रूप में देखा जाता है, एक बीमारी स्वरुप जिसे किसी भी कीमत में दूर करने की जरुरत है, जबकि यह जीवन के लिए एक अनिवार्य सचेत करने वाली घंटी हो सकती है, जो हमें समृद्ध और अधिक उपजाऊ परिदृश्यों का पता लगाने का निमंत्रण देती है, यह हमें क्षणभंगुरता और पलायनवाद की अनुमति नहीं देती है। संत थोमस अक्कवीन्स उदासी को हृदय का दर्द परिभाषित करते हैं-मानों वह शरीर की तंत्रिकाएं हों, जो आने वाले संभावित खतरे या एक उपेक्षित लाभ की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराता है।  (cf. Summa Theologica I-II, q. 36, a.1).  अतः यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अपरिहार्य है, यह हमें और दूसरों को हानि पहुंचाने से सुरक्षित रखता है। यदि हम इसके बारे में अनुभव न करें तो यह हमारे लिए अधिक खतरे का कारण बन सकती है। संत पापा ने कहा कि उदासी कई बार हमारे लिए ट्रैफिक संकेत स्वरूप कार्य करती है,“रूको,रूको, यह लाल है, मैं उदास हूँ, यहाँ मेरे लिए कुछ तो है”।

निराशा में परिवर्तन न करें

संत पापा ने कहा कि वहीं दूसरी ओर, जो अपने जीवन में अच्छा करने की चाह रखते हैं, उदासी उनके लिए एक बाधा बनती है जिसके द्वारा शैतान हमें हताश करना चाहता है। ऐसी परिस्थिति में एक व्यक्ति को चाहिए कि वह ठीक उसके विपरीत कार्य करें (आध्यात्मिक साधना, 318)। यहाँ हम अपने कार्य, अध्ययन, प्रार्थना, किसी काम हेतु एक समर्पण के बारे में विचार कर सकते हैं, यदि हम उनका परित्याग उबाऊ या उदासी की स्थिति में तुरंत कर देते तो हम कभी भी किसी चीज को पूरा नहीं कर पायेंगे। यह हमारे आध्यात्मिक जीवन की भी एक सामान्य अनुभूति है। अच्छाई का मार्ग, सुसमाचार हमें बतलाता है, अपने में संकीर्ण और चढ़ान भरा है, यह हमें संघर्ष करने और स्वयं पर विजयी होने की मांग करता है। संत पापा ने कहा कि मैं प्रार्थना करना शुरू करता हूं या किसी अच्छे कार्य के लिए अपने को समर्पित करता हूँ और विचित्र रुप से मेरे दिमाग में वे चीजें आती हैं जो अति जरुरी है जिन्हें मुझे पूरा करना है,यह हमें प्रार्थना से विचलित करता और अच्छा करने में बाधा डालता है। यह महत्वपूर्ण है, उनके लिए जो येसु की सेवा करना चाहते हैं वे निराशा से विचलित न हों। दुर्भाग्य की बात है कि कुछ प्रार्थनामय जीवन का परित्याग करते हैं या वैवाहिक जीवन या धर्मसंघी जीवन जिसका चुनाव उन्होंने किया है, वे अपने मन की स्थिति को जानने हेतु रूके बिना और विशेषकर एक सहायक की मांग किया बिना निराशा के कारण अपने जीवन में परिवर्तन लाते हैं। एक विवेकपूर्ण नियम कहता है कि आप निराशा की स्थिति में अपने जीवन में परिवर्तन न लायें।

येसु की दृढ़ता

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में हम येसु को देखते हैं कि वे अपनी दृढ़ मनोभाव के कारण परीक्षाओं पर विजयी होते हैं। परीक्षाएँ उनके जीवन में चारों तरफ से आती हैं लेकिन वे उनमें दृढ़ से बने रहते, पिता की योजना के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं, ऐसे स्थिति में परीक्षाएं असफल हो जातीं और उनके मार्ग में बाधक बनना छोड़ देती हैं। आध्यात्मिक जीवन में, प्रलोभन एक महत्वपूर्ण क्षण होता है जैसे कि धर्मग्रंथ इसे हमारे लिए स्पष्ट रुप में व्यक्त करता है, “यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने को तैयार हो जाओ” (प्रवक्त.2.1)। यह एक प्रध्यापक की भांति होता है जो एक विद्यार्थी की जांच लेता है, यदि वह देखता कि विद्यार्थी विषय की जरुरी बातों को जानता तो वह उस पर दबाव नहीं डालता है, अतः विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण घोषित हो जाता है।

निराशा में ड़टे रहें

यदि हम खुलेपन और जागरूकता के साथ अकेलेपन और उदासी को पार करना जानते हैं, तो हम मानवीय और आध्यात्मिक दृष्टि से मजबूत होकर उभर सकते हैं। ऐसी कोई भी परीक्षा नहीं है जिसपर हम विजय नहीं हो सकते हैं। लेकिन हमें चाहिए कि हम उन परीक्षाओं से न भागें, हम रुक कर देखें उस परीक्षा, प्रलोभन का क्या अर्थ है, मेरी उदासी का अर्थ क्या है, मैं क्यों उदास हूँॽ इस निराशा का अर्थ मेरे लिए क्या हैॽ इसका अर्थ क्या है कि मैं अपनी निराशा में आगे क्यों नहीं बढ़ सकता हूँॽ संत पापा ने संत पौलुस की बातों को याद दिलाते हुए कहा कि कोई भी अपनी क्षमता के परे प्रलोभन का शिकार नहीं होता है क्योंकि ईश्वर हमारा परित्याग नहीं करते हैं, और उनकी निकटता में हम अपने हर प्रलोभन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम आज नहीं जीतते तो हम उठकर पुनः आगे बढ़ें. और हम कल उस पर विजयी होंगे। लेकिन आप मृत पड़े न रहें, आप उदासी से, निराशा से हार न मानें बल्कि आगे बढ़ें। आध्यात्मिक यात्रा सदैव आगे बढ़ना है जहाँ ईश्वर हमें अपनी आशीष से भर देते हैं। 

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26 October 2022, 15:53