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संत पापा जॉन पौल प्रथम की धन्य घोषणा संत पापा जॉन पौल प्रथम की धन्य घोषणा 

पोप जॉन पौल प्रथम हुए धन्य घोषित : हमारे लिए 'आत्मा की मुस्कान' प्राप्त करें

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार को संत पापा जॉन पौल प्रथम की धन्य घोषणा की और याद किया कि वे किस तरह मुस्कान के माध्यम से प्रभु की अच्छाई को प्रकट करते थे। उन्होंने सभी लोगों को प्रोत्साहन दिया कि हम प्रभु के समान असीम प्रेम करना सीखें तथा प्रसन्नचित, शांत और मुस्कुराते हुए चेहरेवाली कलीसिया बनें, जो कभी द्वार बंद नहीं करती।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार 4 सितम्बर 2022 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 4 सितम्बर को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा जॉन पौल प्रथम की धन्य घोषणा की।

संत पापा ने ख्रीस्तयाग समारोह के दौरान अपने प्रवचन में कहा, "येसु येरूसालेम की अपनी यात्रा पर हैं और आज का सुसमाचार बतलाता है कि एक विशाल जनसमूह उनके साथ चल रही थी।" (लूक.24:25) संत पापा ने कहा, "येसु के साथ चलने का अर्थ है उनका अनुसरण करना, उनका शिष्य बनना।" फिर भी, उन लोगों के लिए येसु का संदेश आकर्षक नहीं था, क्योंकि यह एक बड़ी मांग करनेवाला था : यदि कोई मेरे पास आये और अपने माता-पिता, पत्नी, संतान, भाई-बहन और यहाँ तक कि अपने जीवन से भी बैर न रखे तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता। जो अपना क्रूस उठाकर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।" (लूक. 26-27.33) येसु भीड़ से क्यों ऐसा कहते हैं? इन नसीहतों का क्या अर्थ है? आइये, हम इन सवालों का उत्तर खोजने का प्रयास करें।

धन्य घोषणा में भाग लेते विश्वासी
धन्य घोषणा में भाग लेते विश्वासी

भीड़ द्वारा आशा की खोज

सबसे पहले हम देखते हैं कि एक बड़ी भीड़ येसु का अनुसरण करती है। हम कल्पना कर सकते हैं कि कितने लोग उनके वचनों से प्रभावित थे, उनके कार्यों से आश्चर्य चकित थे और उन्हें भविष्य के लिए आशा के स्रोत के रूप में देखते थे। उस समय कोई शिक्षक या दक्ष नेता अपने प्रभावशाली शब्दों के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित होता हुआ एवं खुद की बढ़ती लोकप्रयिता को देखकर क्या करता? संत पापा ने कहा कि आज भी यही होता है, व्यक्तिगत या सामाजिक संकट के समय में, हम गुस्सा महसूस करते अथवा उन चीजों से डरते हैं जो हमारे भविष्य को खतरे में डालते हैं। हम अधिक संवेदनशील हो जाते और हमारी भावनाओं के बढ़ने के साथ हम उन लोगों को देखते हैं जो परिस्थिति का लाभ उठाते, समाज के भय से फायदा मारते और एक ऐसे मुक्तिदाता होने का दावा करते हैं जो हर प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सकता है, जबकि वास्तव में, वे व्यापक समर्थन और अधिक शक्ति की तलाश में हैं।  

संत पापा जॉन पौल प्रथम की धन्य घोषणा

ईश्वर का तरीका अलग है

संत पापा ने कहा कि सुसमचार के अनुसार यह येसु का रास्ता नहीं है। ईश्वर का तरीका अलग है क्योंकि वे हमारी आवश्यकता का लाभ नहीं उठाते अथवा हमारी कमजोरी का प्रयोग अपनी उन्नति के लिए नहीं करते। वे हमें कपटपूर्ण वादों के साथ बहकाना या सस्ते उपकार बांटना नहीं चाहते हैं; उन्हें भारी भीड़ में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे संख्या से अधिक उत्साहित नहीं हैं; वे सहमति की खोज नहीं करते, न ही अपनी व्यक्तिगत सफलता को देवता बनाते हैं। इसके विपरीत, वे चिंतित होते हैं, जब लोग अस्थिर उत्तेजना एवं उत्साह से उनका अनुसरण करते। परिणामतः लोकप्रियता के आकर्षण के आगे झुकने के बजाय, वे प्रत्येक व्यक्ति से उसका अनुसरण करने के अपने कारण और इससे होनेवाले परिणामों को ध्यान से समझने के लिए कहते हैं। उस भीड़ में कई लोगों ने येसु का अनुसरण इस आशा से किया होगा कि वे भविष्य के नेता बनेंगे, जो उन्हें उनके शत्रुओं से मुक्त करेंगे, यदि वे सत्ता प्राप्त कर लेंगे तो उस शक्ति को उनके साथ साझा कर सकेंगे अथवा चंगाई कार्य के द्वारा भूख और बीमारी दूर करेंगे। हम प्रभु का अनुसरण इसी तरह कई कारणों से कर सकते हैं। इनमें से कुछ को स्वीकार किया जा सकता है कि वे दुनियावी हैं। एक पूर्ण बाहरी धार्मिकता वाला व्यक्ति केवल अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की खोज, एक निश्चित सामाजिक स्थिति की चाह या चीजों को नियंत्रण में रखने की इच्छा, शक्ति और विशेषाधिकार की प्यास, पहचान की इच्छा आदि को छिपाने का काम करता है। यहाँ तक कि वह इन सबके लिए ईश्वर का शोषण करने लगता है। परन्तु यह येसु का तरीका नहीं है। अतः यह उनके शिष्यों और उनकी कलीसिया का भी तरीका नहीं हो सकता।

धन्य घोषणा समारोह
धन्य घोषणा समारोह

अपना क्रूस उठाना  

प्रभु हमसे दूसरे मनोभाव की मांग करते हैं। उनका अनुसरण करने का अर्थ उनके विजयी जूलूस में भाग लेना नहीं है अथवा जीवनभर के लिए जीवन बीमा प्राप्त कर लेना भी नहीं है। दूसरी ओर इसका अर्थ है, अपना क्रूस उठाना (लूक.14,27) अपना और दूसरों का बोझ उठाना, अपने जीवन को एक उपहार बनाना, उनकी उदारता एवं हमारे लिए उनके करुणामय प्रेम का अनुकरण करते हुए, अपने आपको दूसरों के लिए उदारता पूर्वक खर्च करना। ये ऐसे निर्णय हैं जो हमारे जीवन की समग्रता को संलग्न करते हैं। यही कारण है कि येसु अपने शिष्यों से चाहते हैं कि वे इस प्रेम के बढ़कर किसी दूसरी चीज की कामना न करें।        

इसके लिए हमें अपने आपसे ज्यादा उन्हें देखना है, प्रेम करने सीखना है और इसे क्रूसित येसु से सीखना है। उनमें हम देखते है कि वे बेअंत और सीमारहित प्यार करते हैं। संत पापा जॉन पौल के शब्दों में, "हम ईश्वर की ओर से अमर प्रेम के पात्र हैं" (देवदूत प्रार्थना, 10 सितंबर 1978) एक अमर प्रेम हमारे जीवन की क्षितिज पर कभी नहीं डूबता बल्कि लगातार जलता और घोर अंधेरी रात में भी चमकता रहता है।" जब हम क्रूसित येसु को देखते हैं, तब हम उस प्रेम की चोटी पर बुलाये जाते हैं ताकि ईश्वर के प्रति हमारी विकृत विचारधारा को शुद्ध किया जा सके और हमारा आत्म अवशोषण तथा कलीसिया एवं समाज में ईश्वर और कलीसिया को प्यार करना (यहाँ तक की शत्रुओं को भी) संभव हो सके।  

प्रेम त्याग की मांग करता

त्याग, मौन, गलतफहमी, एकाकी, प्रतिरोध और उत्पीड़न की कीमत पर प्यार करना क्योंकि संत पापा जॉन पौल कहते हैं, यदि आप क्रूसित येसु को चुम्बन देना चाहते हैं, तो आपको क्रूस पर झुकना पड़ेगा और प्रभु के सिर पर रखे मुकूट के दो चार कांटों की चुभन सहने पड़ेंगे।" (आमदर्शन समारोह 27 सितम्बर 1978) यह एक ऐसा प्रेम है जो अंत तक बना रहता, चीजों को अधुरा नहीं छोड़ता और कठिनाईयों से नहीं भागता। यदि हम ऊंचा लक्ष्य रखने में असफल होते, जोखिम नहीं उठा सकते, सतही विश्वास से संतुष्ट रहते, तब हम जैसा कि येसु कहते हैं उन लोगों के समान हैं जो मकान बनाना चाहते हैं लेकिन उसके खर्च का हिसाब नहीं करते, वे नींव डालते हैं लेकिन काम पूरा नहीं कर सकते। (29) अपने आपको खो देने के डर से हम उदार होना बंद कर देते हैं, हम अपने संबंधों, कामों, जिम्मेदारियों, प्रतिबद्धताओं, हमारे सपनों एवं विश्वास को अधूरा छोड़ देते हैं। इसतरह हम अपना जीवन अधूरा अर्पित करते, कोई निर्णायक कदम नहीं उठाते, संघर्ष नहीं करते, अच्छाई के लिए जोखिम नहीं उठाते और दूसरों की सचमुच मदद में अपने को अर्पित नहीं कर सकते। येसु हमसे ठीक से कहते हैं : सुसमाचार को जीयो और तुम अपना जीवन जीयोगे आधा नहीं बल्कि पूरा। बिना समझौता किये।

धन्य घोषणा समारोह
धन्य घोषणा समारोह

 

समझौता किये बिना प्यार करना

संत पापा ने धन्य पोप जॉन पौल प्रथम की याद करते हुए कहा, "हमारे नये धन्य ने उसी तरह जीवन व्यतीत किया : समझौता किये बिना सुसमाचार के आनन्द को जीया और अंत तक प्रेम किया। उन्होंने शिष्यों की निर्धनता को अपनाया, जो न केवल भौतिक वस्तुओं से विरक्ति है बल्कि अपने आपको केंद्र में रखने, अपने लिए महिमा की खोज करने के प्रलोभन पर विजय पाना भी है। दूसरी ओर, येसु के उदाहरणों पर चलना है जो एक विनम्र और दीन चरवाहे थे। उन्होंने अपने को एक धूल समझा जिसपर ईश्वर ने लिखने की कृपा की। यही कारण है कि वे कह सकते थे : "प्रभु ने जोर देकर कहा है: विनम्र बनो। यदि तू ने बड़े-बड़े काम भी किए हों, तो कहो, 'हम तो अयोग्य दास हैं।" (आमदर्शन समारोह, 6 सितम्बर 1978)

अपनी मुस्कान से संत पापा जॉन पौल प्रथम प्रभु की अच्छाई को प्रकट करते थे। एक प्रसन्नचित, शांत एवं मुस्कुराते चेहरे के साथ कलीसिया कितनी खूबसूरत लगती है, जो द्वार कभी बंद नहीं करती, हृदय कभी कठोर नहीं बनाती, कभी शिकायत नहीं करती, कभी गुस्सा या अधीर नहीं होती, न ही अतीत के लिए कभी दुःख प्रकट करती। आइये हम, हमारे इस पिता और भाई की मध्यस्थता द्वारा प्रार्थना करें, उनसे आत्मा की मुस्कान के लिए आग्रह करें। आइये हम उनके ही शब्दों से प्रार्थना करें : "प्रभु मैं जैसा हूँ वैसा ही ग्रहण कीजिए, मेरी कमजोरी, मेरी त्रुटियों के साथ, लेकिन मुझे वैसा ही बनाइये जैसा आप चाहते हैं।” (आमदर्शन समारोह, 13 सितम्बर 1978)

संत पापा जॉन पौल प्रथम की धन्य घोषणा

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04 September 2022, 15:35