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संत पापाः ईश्वर से हमारा मिलन अनियोजित

संत पापा फ्रांसिस ने संत इग्नासियुस की आध्यात्मिक साधना के आधार पर आत्म-परीक्षण हेतु हृदय की आवाज सुनने का आहृवान किया, जो जीवन में सही निर्णय लेने में मदद करती है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागँण में बुधवारीय आमदर्शन समारोह हेतु जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

हम आत्म-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखते हैं- हम इन दिनों हर बुधवार को  आध्यात्मिक आत्म-परीरक्षण की चर्चा करेंगे, जो हमें विशेष रूप से जीवन में साक्ष्य देने को मदद करेगा।

एक मोह से दूसरा मोह

लोयोला के संत इग्नासियुस अपने जीवन की एक निर्णयक घटना के द्वारा इसकी चर्चा हमारे लिए करते हैं। युद्ध में एक पैर के घायल होने पर वे अपने घर में चंगाई प्राप्त कर रहे थे। ऊबाऊपन को दूर करने हेतु उन्होंने अपने लिए पढ़ने को कुछ मांगा। उन्हें वीरता की कहानियाँ पसंद थीं लेकिन दुर्भाग्यवश घर में केवल संतों की जीवनियाँ उपलब्ध थीं। उन्होंने अनचाहे ढ़ंग से उन्हें पढ़ना शुरू किया और इस क्रम में एक दूसरी दुनिया की खोज की, एक दुनिया जो उन्हें जीत लेती है जहाँ वे शूरवीरों के संग प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं। वे संत फ्रांसिस और संत दोमनिक के जीवन से मोहित हो जाते और उनका अनुसरण करने की सोचते हैं। लेकिन शूरवीरता से दुनिया जीतने का मोह उनमें बना रहता है। इस भांति वे विकल्प विचारों को पाते हैं, दुनियावी और संतों की शूरवीरता, उन्हें जेहन में समान्तर चलती हैं।

विचारों का संघर्ष

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि इग्नासियुस यद्यपि अपने में कुछ अन्तरों का अनुभव करते हैं। अपनी जीवनी में वे लिखते हैं,“जब उन्होंने दुनियावी बातों के बारे में विचार किया तो उनसे उन्हें अत्यधिक आनंद का अनुभव हुआ, लेकिन बाद में उन्हें निरसता और उदासी की अनुभूति हुई। लेकिन जब उन्होंने येरूसालेम की यात्रा करने का विचार किया, और केवल साग-सब्जियों का सेवन करते हुए तपस्या करने की ठानी, तो उन्हें इस विचार मात्र से खुशी नहीं मिली अपितु यह खुशी उनमें लम्बे समय तक कायम रही” (अध्याय 8)। इस विचार में खुशी की एक छाप थी।

संत पापा ने कहा कि इस अनुभव में हम दो बातों को पाते हैं। पहला, समय अर्थात दुनियावी सोच शुरू में आकर्षक लगते हैं लेकिन उनकी चमक अपने में खत्म हो जाती और वे खालीपन तथा असंतोष की अनुभूति लाते हैं। वहीं इसके विपरीत, “ईश्वर के बारे में सोच-विचार, शुरू में एक निश्चित प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं, लेकिन जब उनका स्वागत किया जाता है, तो वे एक अज्ञात शांति लाते हैं जो लम्बे समय तक हममें बनी रहती है”।

मानव अंतरात्मा में द्वंद

उन्होंने कहा कि यहाँ तब, हम एक दूसरे तथ्य को पाते हैं, विचारों का शुरुआती दौर। शुरू में स्थिति हमारे लिए अधिक स्पष्ट नहीं लगती है। यहाँ हम आत्म-परीक्षण की जड़ों को पाते हैं-हम अपने में इस बात को समझने की कोशिश करते हैं कि हमारे लिए कौन-सी चीज अच्छी है, अमूर्त रूप, सामान्य ढ़ंग से नहीं लेकिन हमारे जीवन के लिए। अपने खास अनुभवों के आधार पर आत्म-परीक्षण के नियमों में, संत इग्नासियुस हमें एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करते हैं जो हमें इस प्रक्रिया को समझने में मदद करती है, “मानव जो एक प्राणघातक पाप से दूसरे प्राणघातक पाप की ओर बढ़ते हैं, शत्रु आमतौर पर उन्हें प्रत्यक्ष सुखों का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है, उन्हें आश्वस्त करता है कि सब कुछ ठीक है, जिससे वे कामुक सुखों और खुशियों की कल्पना में बने रहें, उन्हें अपने में धारण करें जिससे उनके द्वारा उन्हें और अधिक बुराइयों और पापों में बढ़ाया जा सके। भली आत्मा ऐसे लोगों में ठीक विपरीत कार्य करते हुए उनकी अंतरआत्मा में तर्क-वितर्क की प्रक्रिया से उनमें चुभन और विचलन उत्पन्न करती है” (आध्यात्मिक साधना, 314)।

रुककर हृदय की सुनें

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम एक इतिहास को पाते हैं जो आत्म-परीक्षण की प्रक्रिया से पहले आता है, एक ऐसा इतिहास जिसे जानना अनिवार्य है, क्योंकि आत्म-परीक्षण एक तरह का भविष्यवाणी या भाग्यवाद या प्रयोगशाला में की जाने वाली बात नहीं है, मानों हम दो संभावनाओं पर अपना भाग्य बना रहे हों। हमारे लिए बृहृद सवाल उभर कर तब आते हैं जब हमने जीवन यात्रा की है, और उस यात्रा में पीछे लौटते हुए हम उसे समझने की कोशिश करते हैं कि हमने क्या पाने की चाह रखी है। आप अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए स्वयं से पूछते हैं कि मैं इस राह में क्यों चल रहा हूँ, मैं क्या खोज रहा हूँॽ ऐसी स्थिति में हम आत्म-परीक्षण को ठोस रुप देते हैं। इग्नासियुस, जब अपने पिता के घर में घायल पड़े हुआ थे, वे ईश्वर के बारे में तनिक भी विचार नहीं कर रहे थे या अपने जीवन को सुधारने की बातें नहीं सोच रहे थे। उन्हें ईश्वर से मिलन की पहली अनुभूति अपने हृदय की बातों को सुननें में हुई, जो बातें उन्हें आकर्षक लगती थीं वे उन्हें मायूस कर देती हैं और वे चीजें जो उन्हें कम आकर्षक लगती थीं वे उन्हें लम्बी शांति प्रदान करती हैं। संत पापा ने मानवीय जीवन के अनुभवों की ओर मुड़ते हुए कहा कि हमने भी कई बार अपने जीवन में ऐसा अनुभव किया है किसी चीज के बारे में सोचना और उसका अंत निराशा में होता है। इसके बदले जब हम कोई भलाई का कार्य करते तो हमें खुशी की अनुभूति होती है। अच्छे विचार हमारे लिए खुशी का एहसास लगाते हैं। इग्नासियुस ने ईश्वर से मिलन का अनुभव अपने हृदय की बातों को सुनते हुए किया। हमें इसी बात को सीखने की जरुरत है।  हृदय की बातों को सुनना हमारी जिज्ञासा को पलट देती है। संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हम सभी अपने हृदय में होने वाली बातों को सुनें, आप को क्या लगता हैॽ आप संतुष्ट हैंॽ क्या आप उदास हैंॽ क्या आप कुछ चीज की खोज कर रहे हैंॽ अच्छे निर्णयों को लेने हेतु हमें अपने हृदय को सुनने की जरुर है।

संत पापा ने पुनः इस बात पर जोर देते हुए कहा कि यही कारण है कि इग्नासिसुय हमें संतों की जीवनी को पढ़ने हेतु निर्देश देते हैं क्योंकि वे हमारे जीवन में ईश्वरीय कार्य शैली को प्रस्तुत करते हैं। संतगण हमारी तरह हाँड़-मांस के थे, उनका कार्य हमें बोलता है जिसका अर्थ हम अपने जीवन में समझते हैं।

जीवन की नवीनता साधारण घटना में

उन प्रसिद्ध दृश्यों में, जहाँ इग्नासियुस शूरवीरों की गांथाओं और संतों के बारे में पढ़ते हैं, हम आत्म-परीक्षण के दूसरे महत्वपूर्ण तथ्य को पहचान सकते हैं जिसकी चर्चा हमने पहले ही की है। जीवन हमारे लिए अनियमित घटनाओं की श्रृंखला है, सारी चीजें हमारे लिए एक साधारण दुर्घटना से उत्पन्न होती है- वहाँ शूरवीरों की किताबों के बदले संतों की किताबें थीं। एक दुर्घटना हमारे जीवन को एक संभावित मोड़ प्रदान करती है। केवल कुछ समय के बाद इग्नासियुस इन चीजों का अनुभव करते हैं, और तब वे अपने जीवन की सारी चीजों को ईश्वर में केंन्द्रित करते हैं। संत पापा सभों ने कहा, “ईश्वर अनियोजित घटनाओं के माध्यम से काम करते हैं, और दुर्घटनाओं में भी”। हमने इसे संत मत्ती के सुसमाचार में भी सुना कि एक व्यक्ति हल चलाने के क्रम में अचानक जमीन में गाड़े गये धन को पाता है। यह एक अति अविचारीय स्थिति है। लेकिन यहाँ हमारे लिए महत्वपूर्ण यह है कि वह उसे पहचानता है और अपने जीवन की सारी चीजों को बेच कर उस खेत को खरीद लेता है।

अपनी प्रतिक्रिया पर गौर करें

संत पापा ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को एक सुझाव देते हुए कहा कि आप आश्चर्यजनक चीजों से सावधान रहें, “मैं इस बात की आशा नहीं कर रहा था”। क्या आप जीवन से वार्ता करते हैंॽ क्या ईश्वर आप से बातें करते या शैतान से वार्ता करते हैंॽ लेकिन ऐसी परिस्थिति में एक बात यह है कि इन आशातीत परिस्थितियों में हम अपनी प्रतिक्रिया कैसे व्यक्त करते हैं। हम सास के साथ किस तरह पेश आते हैंॽ प्रेम से या अपने हृदय में व्याप्त किसी दूसरी बातों से प्रभावित होकरॽ हम इसका आत्म-परीक्षण करें। हम इस बात पर गौर करें बिना आशा की गई आयी बातों पर हम किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, वहाँ हम इस बात को सीखते हैं कि हमारे हृदय में क्या होता है।

योजनाविहीन घटनाओं में ईश्वर 

संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण हमें उस निशानी को पहचानने में मदद करता है जहाँ ईश्वर बिना पूर्व योजना के हम से मिलने आते हैं, यहाँ तक की बुरी परिस्थितियों में, जैसे कि इग्नासियुस अपने पैर के घाव में पाते हैं। वहाँ से हमारे लिए जीवन का परिवर्तन शुरू होता है और हम सदैव के लिए बदल जाते हैं। हम अपने जीवन की आश्चर्यजनक चीजों के संबंध में सावधान रहें। प्रभु हमें हमारे दिल की अनूभूतियों को महसूस करने में सहायता करें और यह देखने में मदद करें कि वे कब कार्य करते हैं और कब नहीं। 

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07 September 2022, 16:43