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इटली के काथलिक धर्मविधि (लिटरजी) विशेषज्ञों को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस इटली के काथलिक धर्मविधि (लिटरजी) विशेषज्ञों को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस  

पोप ˸ धर्मविधि को सांसारिक हुए बिना ईश्वर की ओर देखना चाहिए

इटली के काथलिक धर्मविधि (लिटरजी) विशेषज्ञों को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने चेतावनी दी कि वे धर्मविधि की सांसारिक भावना से बचें तथा कहा कि धर्मविधि को अपने दैनिक जीवन में बंद रहने से बदले ख्रीस्त के रहस्य से संचालित होना चाहिए।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को संगठन की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर इटली के धर्मविधि के प्रोफेसर एवं विशेषज्ञों के संघ को संबोधित किया।

संत पापा ने उल्लेख किया कि पचास वर्ष "इस धार्मिक सुधार के कलीसियाई मौसम" के अनुरूप: नई धर्मविधिक पुस्तकों के प्रकाशन द्वारा चिह्नित प्रारंभिक चरण के बाद, "अब हम सुधार की स्वीकृति को गहरा करने की अवधि में हैं।"

उन्होंने कहा, इस प्रक्रिया के लिए न केवल समय की आवश्यकता है, बल्कि "उत्साही और धैर्यपूर्ण देखभाल," "आध्यात्मिक और प्रेरितिक समझ," एवं जारी संगठन की भी आवश्यकता है।

उन्होंने संघ के सदस्यों को प्रोत्साहन दिया कि वे संवाद के मनोभाव से अपने कार्यों को जारी रखें। "ईशशास्त्र में एक सिनॉडल शैली हो सकती है और होनी चाहिए।"

धर्मविधि के अध्ययन में सुनना महत्वपूर्ण

यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके प्रयास "ईश्वर के लोगों की अपेक्षाओं और जरूरतों से कभी अलग न हों," पोप फ्रांसिस ने कहा, ख्रीस्तीय समुदायों को सुनना "अपरिहार्य" है।

संत पापा ने गौर किया कि धर्मविधि के शैक्षणिक कार्य को धर्मविधि के प्रेरितिक एवं आध्यात्मिक आयाम से अलग नहीं होना चाहिए। धर्मविधिक प्रशिक्षण को ईश प्रजा तक पहुँचना चाहिए। इस संबंध में, उन्होंने, एक जर्मन पुरोहित और विद्वान रोमानो गार्डिनी का मॉडल रखा, जो अन्य उल्लेखनीय उपलब्धियों के बीच, "धर्मविधि के आंदोलन की उपलब्धियों" को इस तरह से फैलाने में सक्षम थे, जो सामान्य विश्वासियों के लिए सुलभ था। "उनकी आकृति और धर्मविधि की शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण, जितना आधुनिक है उतना ही शास्त्रीय भी है, वे आपके लिए एक संदर्भ बिंदु हों।"

प्रगति का मूल परम्परा में

अंत में, संत पापा ने जोर देकर कहा कि धर्मविधि की समझ और इसे मनाने की कला की प्रगति "हमेशा परंपरा में निहित होनी चाहिए।" साथ ही उन्होंने सांसारिक भावना की ओर प्रेरित होने की भी चेतावनी दी।

उन्होंने कहा कि जड़ों की ओर वापस जाने का मतलब पीछे की ओर जाना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है सच्ची परंपरा को आगे बढ़ने देना। उन्होंने धर्मविधि के विशेषज्ञों को परंपरा और "परंपरावाद" के बीच सावधानी से अंतर करने का आग्रह किया, चेतावनी दी कि "आज का प्रलोभन परंपरा के रूप में प्रच्छन्न 'पिछड़ापन' है।"

अपने संबोधन के अंत में, संत पापा फ्राँसिस ने अपने श्रोताओं को याद दिलाया कि धर्मविधि का अध्ययन और प्रचार "प्रार्थना और कलीसिया के जीवंत अनुभव से भरा होना चाहिए, ताकि धार्मिक 'विचार' हमेशा जीवन से एक महत्वपूर्ण रस की तरह प्रवाहित हो सके।

उन्होंने कहा, पूरा ईशशास्त्र, किन्तु विशेष रूप से धर्मविधि का अध्ययन - खास है क्योंकि यह "खुद को हमें देनेवाले ईश्वर के रहस्य की सुंदरता और महानता का उत्सव मनाने के कार्य" के लिए निर्देशित करता है - जिसे "खुले मन और साथ ही प्रार्थना में 'घुटनों पर' किया जाना चाहिए।"

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01 September 2022, 17:14