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संत पापा कजाकिस्तान की प्रेरितिक यात्रा में संत पापा कजाकिस्तान की प्रेरितिक यात्रा में 

संत पापाः सुसमाचार की खुशी का साक्ष्य दें

संत पापा फ्रांसिस ने कजाकिस्तान की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन नूर-सुल्तान में कलीसिया के चरवाहों, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसमाजियों, धर्मबंधुओं और लोकधर्मिकयों से मुलाकात की और उन्हें सुसमाचार का साक्षी बनने का संदेश दिया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाकिटन सिटी, बुहस्पतिवार, 15 सितम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने काजकिस्तान कलीसियाई धर्म अगुवों को संबोधित करते हुए कहा कि कलीसिया की सुन्दरता हमारे लिए एक परिवार के रुप में है जहाँ कोई अपरिचित नहीं है। कलीसिया अपने में अजनबी नहीं है क्योंकि हम सभी एक पवित्र प्रजा के रुप में असंख्य हैं जो अपने में एक समद्धि है। उन्होंने कहा कि इस पुरोहितिक और पवित्र प्रजा की समृद्धि विविधता से आती है जहाँ हम एक-दूसरे के साथ अपने जीवन को साझा करते हैं। “अपने जीवन को साझा करने के द्वारा हम अपने “छोटेपन” में बड़े होते हैं।

ईश्वर का रहस्य प्रकट है

संत पापा ने कहा कि संत पौल हमें कहते हैं कि ईश्वर का रहस्य सभी लोगों के लिए प्रकट किया गया है। यह चुनिन्दे लोगों के लिए नहीं बल्कि सभों के लिए है। संत पौलुस कहते हैं कि हम सभी ईश्वर के पास पहुंच सकते हैं “हम एक ही विरासत के अधिकारी हैं, एक ही शरीर के अंग हैं और ईसा मसीह विषयक प्रतिज्ञा के सहभागी हैं” (एफे.3.6)।

इस संदर्भ मे संत पापा ने दो शब्दों उत्तराधिकारी और प्रतिज्ञा पर जोर दिया। एक ओर कलीसिया का जन्म सुसमाचार की घोषणा में हुआ है जिसे हम प्रेरितों और सुसमाचार प्रचरकों स्वरुप प्रराम्भिक कलीसिया के रुप में स्थापित पाते हैं तो वहीं दूसरी ओर कलीसिया उन लोगों का समुदाय है जिन्होंने ईश्वरीय प्रतिज्ञा को पूरा होते देखा है, जो आशा में पुनरूत्थान की प्रतिक्षा करते हैं। इस भांति हम अपने को उत्तराधिकारी और प्रतिज्ञा से संयुक्त पाते हैं। अतीत हमारे लिए यादगारी है और सुसमाचार हमारे लिए भविष्य में ईश्वर के आने की प्रतीक्षा जो हमसे मिलने आते हैं। संत पापा ने कलीसिया को जो स्मृति और भविष्य के बीच इतिहास की एक यात्रा है, अपने विचार व्यक्त किये।  

स्मृति की चर्चा करते हुए संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम आज सजीव-सक्रिय कलीसियाई समुदायों को पाते हैं जो हमारे अतीत की समृदधि को व्यक्त करती है। उन्होंने प्रथम शताब्दी, क्रेन्दीय एशिया में ख्रीस्तयता के प्रचार की याद की जहाँ हम सुसमाचार के प्रकाश में समुदायों, तीर्थस्थलों, मठों और आराधना स्थलों को पाते हैं। “हमें ख्रीस्तयता और एकतावर्धकधार्मिक स्थलों को सुरक्षित रखने की जरूरत है जिसके लिए हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ हैं”। उन्होंने कहा कि यह यादगारी हमें ईश्वर के आश्चर्यजनक कार्यों पर चिंतन करने को प्रेरित करती है जिसे उन्होंने हमारे व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवन इतिहास में, हमारी कमजोरियों के बावजूद प्रकट किये हैं।

अतीत आश्चर्यजनक  

संत पापा ने कहा कि जब ख्रीस्तीय अपने अतीत को मुढ़कर देखते तो उनका हृदय ईश्वर के आश्चर्यजनक कार्यों से सराबोर हो उठता है। इस तरह वे अपने हृदय को कृतज्ञता से भरा हुआ पाते और कृतज्ञता से भरा हृदय आहें नहीं भरता बल्कि हर दिन हर क्षण सदैव ईश्वर की स्तुति करता है। इस भांति वे ईश्वर के वचनों को घोषित करने हेतु निकल पड़ते हैं जैसे कि हम पुनरूत्थान में नारियों और एम्माऊस के चेलों ने किया।

सजीव और आश्चर्य भरी येसु की यादें जिसे हम यूखारिस्तीय बलिदान में अपने लिए पाते हैं, प्रेम भरी एक शक्ति होती है जो हमें प्रेरित करती है। यह हमारे लिए एक निधि बनती है। यादगारी के बिना हम अपने में आश्चर्य का अभाव पाते हैं। अपने विश्वास में स्मृति को खोना हमारी खुशी को धूमिल कर देती है। ईश्वर के प्रति और अपने भाई-बहनों के प्रति हमारी कृतज्ञता के भाव भी धूमिल हो जाती हैं और हम सारी चीजों में अपने सामर्थ्य को देखने लगते हैं।

हम ईश्वर के उत्तराधिकारी 

संत पापा ने कहा कि यदि हम उत्तराधिकार को और अधिक निकटता से देखते तो हम क्या पाते हैंॽ यह विश्वास को पीढ़ी दर पीढ़ी, विचारों का एक स्वरुप नहीं जिसे हम बांटते हों, जिसे समझा और अनुसरण किया जाता है। विश्वास को हम अपने जीवन के द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में साक्ष्यों के रुप में प्रस्तुत करते हैं, जो येसु ख्रीस्त की सांत्वना, प्रेम में बचाये जाने की खुशी और आशा भरी प्रतिज्ञा को व्यक्त करता है। यही हम सभों की बुलाहट है। संत पापा ने कहा कि हम अपने जीवन के द्वारा साक्ष्य देने हेतु कभी न थकें जो मुक्ति का केन्द्र बिन्दु और येसु की नवीनता को प्रकट करता है। विश्वास अतीत की घटनाओं तथा कलाकृतियों की सुंदर प्रदर्शनी नहीं है बल्कि यह ईश्वर से मिलन की घटना है जो हर वक्त हमारे जीवन में सदैव बनी रहती है। इसमें हम पुरानी चीजों को बार-बार नहीं दुहराते लेकिन सुसमाचार को नये रुप में प्रसारित करते हैं और ऐसा करने के द्वारा विश्वास सजीव और भविष्य को धारण करता है।

अतीत की यादें

संत पापा ने दूसरे शब्द भविष्य के बारे में कहा कि अतीत की याद करना हमें अपने में बंद नहीं करता है बल्कि यह हमें सुसमाचार की प्रतिज्ञा हेतु खोलता है। येसु इस बात की प्रतिज्ञा करते हैं कि वे सदैव हमारे संग रहेंगे अतः उनकी प्रतिज्ञा केवल भविष्य हेतु नहीं है। हम पुनर्जीवित येसु में मिलने वाली नवीनता का आलिंगन करने हेतु बुलाये जाते हैं। हमारी कमजोरियों के बावजूद वे हमारे साथ रहने हेतु नहीं थकते हैं जहाँ वे हमारे संग कलीसिया का निर्माण करते हैं।

नम्रता के भाव  

संत पापा ने विश्वास के संबंध में युवाओं की चुनौतियों के बारे में कहा जो अपने में मुसीबतों और कठिनाइयों का सामना करते, जिसके कारण विश्वासियों की संख्या में कमी देखी जाती है और हम अपने को छोटे समुदाय के रुप में पाते हैं। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद यदि हम ईश्वर की आशा भरी नजरों से देखें तो हम अपने में एक आश्चर्य को पाते हैं। सुसमाचार हमें कहता है, “छोटे”, अपने में दीन-हीन, धन्य हैं” (मत्ती.5.3)। एक बार जब हम अपने में छोटा होने का अनुभव करते तो हम अपने को ईश्वर के शक्तिशाली हाथों में समर्पित करते हैं जो हमें कलीसियाई कार्यों के निष्पादन हेतु, अपनी योग्यता पर आधारित नहीं होने की शिक्षा देते हैं, जो हमारे लिए कृपा है। इस भांति अपने को दिखाने के बदले हम अपने को ईश्वर के द्वारा संचालित होने देते हैं जहाँ हम दूसरों के निकट आते हैं। किसी भी बात में धनी नहीं और सभी चीजों में गरीबी, हमें अपने भाई-बहनों के साथ चलते हुए जीवन की सभी परिस्थितियों में, हर दिन हमारे लिए सुसमाचार की खुशी लाती है। खमीर और राई के छोटे दाने स्वरुप हम अपने को दुनिया की खुशी और दुःख भर स्थिति में संलग्न करें जिससे हम उनकी सेवा कर सकें।

छोटा होने का अर्थ

संत पापा ने कहा कि छोटा होने का अर्थ हमें इस बात की याद दिलाती है कि हम अपने में आत्म-निर्भर नहीं हैं, बल्कि हमें ईश्वर की जरुरत है। हमें दूसरों की भी आवश्यकता है जो दूसरों मजहबों, नेक हृदयी हैं। अपनी नम्रता में हम इस बात का अनुभव करें कि सिर्फ वार्ता और एक-दूसरे को स्वीकारने के द्वारा ही हम उस सच्चाई को प्राप्त कर सकते हैं जो सभों के लिए हितकर है। इस देश की कलीसिया का कर्तव्य यही है हम अपनी पुरानी बातों में या छोटे होने की बात सोचकर स्वयं में बंद न रहें वरन् ईश्वर के भविष्य हेतु पवित्र आत्मा में खुले और प्रज्जवलित रहें। हम एक सजीव, आशा से पूर्ण, पवित्र आत्मा में खुला एक नया समुदाय बनें जो समय की मांग अनुरूप सुसमाचार से प्रेरित होकर अपने छोटे बीज को नम्रता और सृजनात्मकता प्रेम में विकसित करते हुए फल उत्पन्न करती है। ऐसा करने के द्वारा हम जीवन की प्रतिज्ञा और पिता ईश्वर की आशीष को येसु ख्रीस्त में अपने लिए और दूसरों के लिए प्राप्त करते हैं।

अच्छाई के बीज बोयें

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि ऐसा तब होता है जब हम भ्रातृत्वमय जीवनयापन करते हैं। जब हम गरीबों, दुःखियों की चिंता करते, न्याय और सच्चाई का साक्ष्य देते हुए सामाजिक संबंधों को मजबूत बनते और भ्रष्टचार और झूठेपन को अपने से दूर करते हैं। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय समुदायों और गुरूकुलों को विशेष रूप से चाहिए कि वे “निष्ठा के विद्यालय” बनें, न कि कठोरता और औपचारिकता के स्थल, वहाँ सच्चाई, खुलेपन और साझा करने का प्रशिक्षण दिया जाये। इस संदर्भ में संत पापा ने येसु और उनके शिष्यों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए सभों को मानवीय सम्मान दिए जाने की बात कही। हम सभी बपतिस्मा के द्वारा पवित्र किये गये हैं, हम येसु के जीवन में सम्मिलित किये गये हैं जो सुसमाचार की प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी हैं। संत पापा ने सिनोडलिटी की विषयवस्तु से संबंधित तथ्य पर कहा कि हम लोकधर्मियों को स्थान देने की जरुरत है जिससे हमारे समुदाय कठोर या याजकीय न बनें। सिनोडल कलीसिया सहभागिता का आलिंगन करते हुए उत्तरदायित्व को अपने में वहन करती है। एकता में चलते हुए कलीसिया इस भांति विश्व से मेल-मिलाप करती है। दिये गये साक्ष्यों के आधार पर संत पापा ने कलीसिया को सुसमाचार के गुणों को जीने का आहृवान करते हुए कहा कि हम स्वार्थ से निकलते हुए शर्तहीन प्रेम करना सीखें, जो हमें अपने आप से बाहर जाने की मांग करती है। उन्होंने बपतिस्मा में मिले उपहारों को अपने में विकसित करने की बात कही, “हम एकता और शांति के नर-नारी बनते हुए जहाँ कही भी जायें अच्छाई के बीज बोयें”। खुलापन, खुशी और साझा करने के मनोभाव नवजात और भविष्य की कलीसिया की निशानियाँ हैं। “हम इसका सपना देखें और ईश्वर की कृपा हेतु निवेदन करें कि कलीसिया पुनर्जीवित येसु के प्रेम से पोषित, भयवहीन हो, शिकायत करने से बाज आये, कठोरता का त्याग करें, निधि-निर्धारण और नौतिकता को थोपने से दूर रहे।

अगुवों से विशेष आहृवान

अपने संबोधन के अंत में संत पापा ने धर्माध्यक्षों और पुरोहितों से विशेष रुप में कहा कि हमारी प्रेरिताई पवित्र या धार्मिक नियमों के प्रवर्तक होना नहीं बल्कि ख्रीस्त के करूणामय हृदय से लोगों के निकट रहना है। उन्होंने उन्हें आध्यात्मिकता के वस्त्र धारण करते हुए खुशी में उदारतापूर्ण ढ़ग से आशा की प्रतिज्ञा का साक्षी होने  का आहृवान किया। 

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15 September 2022, 15:48