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संत पापाः शांति स्थापना हेतु शांति की अनुभूति जरूरी

संत पापा फ्रांसिस ने कजाकिस्तान की प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन कजाकिस्तान की प्रशंसा करते हुए वहाँ के नेताओं को शांति स्थापक बनने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 13 सितम्बर 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने कजाकिस्तान की प्रेरितिक यात्रा के पहले चरण में वहाँ के राष्ट्रपति, राजनायिकों और नागर अधिकारियों से भेंट की।

संता पापा ने उन्हें अपने संबोधन में कहा कि मैं इस देश में शांति, वार्ता की चाह और एकता के एक तीर्थयात्री स्वरूप आया हूँ। “हमारी दुनिया को आवश्यक रुप से शांति की जरुरत है, इसे एकता की आवश्यकता है”। उन्होंने एकता को कजाकिस्तान के एक प्रमुख पारंपरिक वाद्य यंत्र “दोम्बरा” से तुलना किया।

संगीत में यादें

संत पापा ने कहा कि दोम्बरा जैसे कि मैंने इसके बारे में जाना, इसका प्रयोग मध्यकालीन समय में गाथाओं और कविताओं के पठन-पाठन के दौरान किया जाता था, जो अतीत को वर्तमान से संयुक्त करता है। विविधता में निरंतरता का यह प्रतीकात्मक लय आपके देश की इस स्मृति की याद दिलाती है कि वर्तमान तीव्र आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के बीच, यह कितना महत्वपूर्ण है कि हम उन बंधनों की उपेक्षा न करें जो हमें उन लोगों के जीवन से पिरोते हैं जो हमसे पहले चले गए हैं। इस संदर्भ मे संत पापा ने काजकिस्तान की उस समृद्ध परंपरा का जिक्र किया जहां वे शुक्रवार की सुबह अपने पूर्वजों के आदर में “सात रोटियां” पकाते हैं।

दुःख-तकलीफें, समझ के स्रोत

संत पापा योहन पौल द्वितीय द्वारा कजाकिस्तान की तीर्थयात्रा की याद करते हुए संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि उन्होंने इस देश को,“शहीदों और विश्वासियों की भूमि, निर्वासितों और नायकों, बुद्धिजीवियों और कलाकारों की भूमि” स्वरुप परिभाषित किया, जो महिमामय संस्कृति के इतिहास, मानवता और दुःखों को अपने में वहन करती है। उन्होंने कहा कि हम खास कर इस देश के कैदखानों और बहुतायत में हुए निर्वासनों को कैसे भूल सकते हैं जो लोगों की प्रताड़ना को व्यक्त करती है। यद्यपि कजाखी ने अपने को उन अन्यायों शिकार होने नहीं दिया। “आप के दुःख-तकलीफ, जिसका सामना आप ने किया, आपकी यात्रा का एक अनिवार्य हिस्सा बने, जो आपको मानवीय गरिमा, प्रत्येक पुरुष और महिला की गरिमा और हर जातीय, सामाजिक तथा धार्मिक समूह को पूर्ण प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करे”।

दोम्बरा सामंजस्य का प्रतीक

वाध्य यंत्र दोम्बरा की चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा कि यह दो डोरियों को छेड़ते हुए बजाया जाता है। यह “दो समान्तर तारों के मध्य” एक मधुर स्वर उत्पन्न करने की योग्यता को दिखलाता है। यह हमारे लिए ठंढ़ और गर्मी, ऐतिहासिक शहरों और आधुनिक शहरों के बीच सामंजस्य को प्रकट करता है। इससे भी बढ़कर हम इस देश में हम दो आत्माओं, एशियाई और यूरोपीय, के “सुरों” को सुन सकते हैं, जो दो महादेशों की प्रेरिताई को स्थायित्व प्रदान करता है। स्थानीय कहावत,“एकता सफलता का स्रोत है” को उद्धरित करते हुए संत पापा ने कहा कि यदि यह सभी जगहों में सही है तो यह विशेष रुप से यहाँ लागू होती है, क्योंकि यहाँ 550 विभिन्न जातियों के समूह हैं जो 80 से अधिक भाषाएँ बोलते हैं। अपने ऐतिहासिक विभिन्नताओं, संस्कृतियों, और धार्मिक परांपराओं के कारण वे एक अतिविशेष “संगीत समारोह” का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कजाकिस्तान को एक अद्वितीय बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक और बहु-धार्मिक प्रयोगशाला बनाता है जहाँ हम इसे एक मिलन के देश स्वरूप पाते हैं। 

मिलन की संस्कृति

संत पापा ने कहा कि विश्व और पारंपरिक धर्मों के नेताओं के सातवें मिलन समारोह में सहभागी होते हुए मैं यहाँ मिलन की संस्कृति की महत्वपूर्णत पर जोर देने आया हूँ जिसे सभी धर्मों को अपनाने की जरुरत है। कजाकिस्तान का संविधान इस संदर्भ में सटीक संप्रदायिक राष्ट्र है जो धर्मों और विश्वास की स्वतंत्रता प्रदान करता है। धर्मों को ईश्वर का साक्ष्य देने हेतु आत्म-अभिव्यक्ति रूपी स्वतंत्रता की जरूरत है। धार्मिक स्वतंत्रता नागरिकों के मध्य सह-अस्तित्व के लिए सबसे अच्छा साधन है।

संत पापा ने कहा कि शब्द “कजाख” का तत्पर्य स्वतंत्रता में एक साथ चलना है। स्वतंत्रता की रक्षा मुख्य रूप से अधिकारों की मान्यता द्वारा नागरिक समाज में व्यक्त की जाती है, जो कर्तव्यों के साथ चलती है। इस संदर्भ मे संत पापा ने कजाकिस्तान मृत्युदंड के उन्मूलन की सराहना करते हुए विचारों, अतःकरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया जो हर व्यक्ति की ओर से समाज निर्माण में मददगार होता है।

अधिकारियों का कर्तव्य, जनसामान्य की भलाई

वाध्य यंत्र दोम्बरा, संत पापा ने कहा कि लोगों की प्रतिभा और भावना को संरक्षित करने की सुंदरता को दिखलाता है। नागर अधिकारियों का प्रथम कर्तव्य जनसामान्य की भलाई का ख्याल रखना है जो लोकतंत्र के समर्थन में अभिव्यक्ति होती है जहाँ वे सभों की सेवा में अपने अधिकारों का उपयोग करते हैं। उन्होंने हाल ही में लोकतंत्रीकरण के प्रयास की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए उनकी सराहना की जहाँ स्थानीय अधिकारों को और अधिक शक्ति दिये जाने की पहल की गई है। यह सदैव आगे बढ़ने वाली एक लम्बी प्रक्रिया है जहाँ हम पीछे की ओर नहीं लौट सकते हैं। वास्तव में, शासन करने वालों में विश्वास का आधार उनके शब्द नहीं अपितु उनके प्रभावकारी कार्य होते हैं।   

संत पापा ने लोकतंत्र और आधुनिकता को शब्दों से परे होने की बात कही जिसे लोगों के लिए ठोस कार्य में परिलक्षित करने की जरुरत है। “अच्छी राजनीति लोगों को सुनने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति में होती है, जहाँ हम युवाओं, कार्यकर्ताओं और समाज के सबसे संवेदनशील लोगों के बारे में खास ध्यान देते हैं”। दुनिया के हर देश को भ्रष्टाचार से लड़ने की आवश्यकता है। यह वास्तव में, लोकतांत्रिक राजनीतिक की एक प्रभावकारी “शैली” है जो चरमपंथ, व्यक्तिगतवाद और लोकलुभावनवाद जैसे मामलों का सामना करती है जो लोगों की स्थिरता और कल्याण को खतरे में डालती है। उन्होंने आर्थिक सुरक्षा के बारे में भी जोर दिया जो कजाकिस्तान का केवल नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए एक चुनौती है जहाँ अन्याय के कारण लोगों का सम्पूर्ण विकास नहीं होता है क्योंकि संपति का मलिकाना हक कुछेक लोगों तक सीमित है। “यह सरकार के अलावे निजी विभागों का भी कर्तव्य है के वि समाज के सभी लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते हुए अर्थव्यवस्था के विकास में मदद करें, जहाँ लाभ कुछ लोगों के लिए नहीं बल्कि सभों के कार्य का सम्मान हो”।  

कजाकिस्तान शांति की निशानी बने

संत पापा ने कहा कि दोम्बरा के संदर्भानुसार हम कजाकिस्तान को अपने इर्द-गिर्द के पड़ोसियों संग संयुक्त पाते हैं जो अपनी संस्कृति को प्रसारित करती है। उन्होंने इस बात की आशा व्यक्त की यह देश दूसरे देशों में एकता और शांति को प्रचार करने की एक निशानी बने। कजाकिस्तान एक विशेष भैगोलिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करती है और इस भांति युद्धों के रोकथाम में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। संत पापा जोन पौल द्वितीय ने सन् 2001 के युद्ध उपरांत आशा के बीज बोने हेतु यहाँ की यात्रा की। “मैं विचारहीन यूक्रेन युद्ध के समय में अपनी यह यात्रा कर रहा हूँ जो शांति स्थापना की पुकार को दिखलाती है, जो विश्व विकास हेतु जरुरी है”।

संत पापा ने वार्ता और मिलन की आवश्यकता पर बल देते हुए शाक्तिशालियों का ध्यान आकर्षित किया विशेष कर जो युद्ध और अशांति के कारण हैं। उन्होंने कहा, “हमें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नेताओं की आवश्यकता है जो आपसी समझ और वार्ता में बढ़ते हुए शांतिमय विश्व की स्थापना कर सकें। इसके लिए हमें समझ, धैर्य और वार्ता की जरुरत है”।

शांति हेतु कलीसिया प्रतिबद्ध 

संत पापा फ्रांसिस ने विशेष रूप से शांति हेतु वैश्विक प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए देश के परमाणु हथियारों के निर्णायक प्रतिवाद और कार्बन ईंधन पर कम निर्भरता, ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों में निवेश और पर्यावरण नीतियों को विकसित करने के लिए कजाकिस्तान की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भविष्य की आने वाली पीढ़ी, युवाओं के लिए मानवता के बीज बोना हमारे ऊपर निर्भर करता है। संत पापा ने इस नेक कार्य हेतु वाटिकन की ओर से अपनी प्रतिबद्धता का आश्वासन देते हुए कहा कि ख्रीस्तीय जो केन्द्रीय एशिया में प्राचीन समय से निवास करते आ रहे हैं खुलेपन और सम्मानजनक संवाद की भावना से गवाही देना जारी रखेंगे जो इस भूमि को अलग पहचान प्रदान करती है।

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13 September 2022, 16:29