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2022.08.04 ईश सेवक फादर पिएत्रो पावलो ओरोस  (1917-1953) 2022.08.04 ईश सेवक फादर पिएत्रो पावलो ओरोस (1917-1953) 

सोवियत शासन के तहत शहीद हुए यूक्रेनी पुरोहित की धन्य घोषणा

संत पापा ने यूक्रेन के मुकाचेवो धर्मप्रांत के ग्रीक-काथलिक पुरोहित की विश्वास के प्रति घृणा में की गई हत्या को मान्यता दी, जो 1953 में सोवियत संघ में मारे गये थे। संत पापा ने "रेडियो अपारसिदा" के निदेशक, वितोरियो कोएल्हो डी अल्मेडा, और "सोरिसो फ्रांसेस्कानो" के संस्थापक, कपुचिन उमिले दा जेनोवा और भारतीय उर्सुलाइन धर्मबहन सहित पांच नए धन्यों के आज्ञप्तियों को अनुमोदन दे दिया है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार 06 अगस्त 2022 (वाटिकन न्यूज) : एक गुप्त रुप में ख्रीस्तयाग समारोह मनाने के कुछ घंटों बाद, फादर पिएत्रो पावलो ओरोस की मृत्यु हो गई जब एक पिस्तौल की गोली उनकी ठुड्डी में प्रवेश कर गई, उनकी गर्दन को पार कर उनके कंधे से बाहर निकल गई। 28 अगस्त 1953 को, सोवियत कम्युनिस्टों ने यूक्रेन के मुकाचेवो धर्मप्रांत के ग्रीक काथलिक पुरोहित के दृढ़ विश्वास और समर्पण जीवन को समाप्त कर दिया। सिल्त्से में उनकी मृत्यु हो गई। संत पापा ने शुक्रवार को संत प्रकरण हेतु बने धर्मसंघ के प्रीफेक्ट कार्डिनल मार्सेलो सेमेरारो के साथ उनकी शहादत को मान्यता दी। ईश सेवक ओरोस को अब धन्य घोषित किया जाएगा।

परिचय और बुलाहट

ओरोस का जन्म 14 जुलाई 1917 को हंगेरियन गांव बीरी में एक संपन्न ख्रीस्तीय परिवार में हुआ था। उनके पिता ग्रीक काथलिक पुरोहित थे और जब पिएत्रो 2 साल के थे तब गायब हो गए थे। 9 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां को खो दिया। 1937 में उन्होंने यूक्रेनी-हंगेरियन सीमा पर उज़्घोरोड, ट्रांसकारपाथिया में गुरुकुल में प्रवेश किया। 18 जून 1942 को, उन्हें यूक्रेन के मुकाचेवो के ग्रीक-काथलिक धर्मप्रांत का एक ब्रह्मचारी पुरोहित नियुक्त किया गया था और उन्होंने कई गांवों में उप-पल्ली पुरोहित के रूप में अपनी प्रेरितिक सेवा शुरू की, जल्दी ही वे गरीबों के लिए अपने उत्साह और प्यार के लिए जाना जाने लगे। सन् 1943 में, युद्ध के कारण, उन्होंने स्लोवाकिया में की राजधानी कोसिसे के पास, बार्का में सैन्य चैपलिन के लिए एक कोर्स में भाग लिया। वह अपने पल्ली में लौट आया, जो 1944 में, ट्रांसकारपाथिया के पूरे क्षेत्र की तरह, सोवियत सैनिकों के कब्जे में और यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य, फिर यूएसएसआर में मिल गया।

वर्षों का उत्पीड़न

जबरन कब्जे के साथ, ग्रीक काथलिक कलीसिया में उत्पीड़न शुरू हुआ। 1946 में, फादर ओरोस को एक पल्ली पुरोहित के रूप में, इरशवा जिले के बिल्की में स्थानांतरित कर दिया गया था। फिर भी, उन्हें रूसी ऑर्थोडोक्स पल्ली में स्थानांतरित करने का दबाव मिला। 1948 में दबाव तेज हो गया। उन्होंने  इसका विरोध किया और संत पापा के प्रति वफादार रहे। 1949 में उसके प्रेरितिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और सभी ग्रीक काथलिक गिरजाघर बंद कर दिए गए थे। मुकाचेवो धर्मप्रांत को भी दबा दिया गया था।

हत्या

जब 1949 में, ग्रीक काथलिक कलीसिया को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया और समाज में प्रतिष्ठित व्यक्तियों को व्यवस्थित रूप से समाप्त कर दिया गया, तो फादर ओरोस ने अपनी सेवकाई को गुप्त रूप से करना जारी रखा। 1953 में उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन 28 अगस्त को एक पुलिसकर्मी ने उसे सिलत्से गांव में रेलवे स्टेशन पर रोक दिया और उसे मार डाला। तत्काल हत्या को शहादत माना गया, हालांकि पुरोहित के शरीर को सोवियत संघ के टूटने तक छिपाया गया। उनकी स्मृति विश्वासियों पर प्रभावित रही और उनका दृढ़ विश्वास आज तक कायम है।

ईश सेवक पिएत्रो ओरोस की शहादत के अलावा, संत पापा ने पांच नए ईश सेवकों के वीर गुणों को स्वीकार किया।

"धन्य संस्कार के दीपक"

ईश सेवक जेसुस अंतोनियो गोमेज़, एक कोलंबियाई पुरोहित जो एक पापमोचक, कॉलेज के रेक्टर और डोग्माटिक धर्मशास्त्र के प्रोफेसर थे। वे विशेष रूप से पुरोहितों के आध्यात्मिक सलाहकार, सेमिनरियों, धर्मबहनों और आम लोगों के लिए पाप स्वीकार संस्कार हेतु समर्पित थे। बीमार होने पर भी वे घंटों पवित्र संस्कार की आराधना में समय बिताते थे, इसलिए लोग उन्हें 'धन्य संस्कार के दीपक' कहते थे।

"सोरिसो फ्रांसेस्कानो" के संस्थापक

कपुचिन, उमिले दा जेनोवा, (जोवानी जुसेप्पे बोन्ज़ी) ने तत्काल युद्ध के बाद  गरीब, अनाथ और परित्यक्त बच्चों की सहायता के लिए सोरिसो फ्रांसेस्कानो की स्थापना की। उनके लिए आवश्यक धन की प्राप्ति हेतु प्रतिदिन भीख मांगने जाते थे और जो कुछ वे एकत्र करते थे, उसी से उन्होंने बालक येसु की छोटी सहायिकाओं के धर्मसंध की स्थापना की। हालांकि जेनोआ की बमबारी के दौरान अनुभव की गई पीड़ा और आघात ने उन्हें परेशानी में डाल दिया, फिर भी उन्हें अपने सहकर्मियों द्वारा प्यार और सम्मान दिया जाता रहा। जेनोआ के महाधर्माध्यक्ष, कार्डिनल जोसेफ सिरी ने उनका समर्थन किया और हमेशा उन पर भरोसा किया।

स्पानी पुरोहित जोवानी सांचेज

ईश सेवक फादर जोवानी सांचेज हर्नांडेज़ इंस्टिट्यूट ऑफ़ द सेक्युलर सर्वेंट्स ऑफ़ जीसस क्राइस्ट द प्रीस्ट के संस्थापक हैं। उन्होंने पुरोहितों के प्रेरितिक कार्यों में मदद करने हेतु संस्था को शुरु किया।

रेडियो द्वारा सुसमाचार प्रचार

विटोरियो कोएल्हो डी अल्मेडा, एक ब्राज़ीलियाई मुक्तिदाता को समर्पित धर्मसमाज के पुरोहित थे, जिन्होंने अपारसिदा के मरियम तीर्थालय में प्रेरितिक सेवा प्रदान की, जहाँ उन्हें तपेदिक होने के कारण स्थानांतरित कर दिया गया था। उनकी बीमारी की अवधि उनके लिए रेडियो के माध्यम से परिचित होने का एक अवसर था। वास्तव में, वह 1951 में प्रसारण की शुरुआत से रेडियो अपारसिदा की टीम में शामिल हुए, 1958 में उप निदेशक और '65 में महाप्रबंधक बने। संवाद करने में उनकी सादगी के लिए उनकी सराहना की गई, वह जल्द ही प्रसिद्ध हो गए और कई लोगों ने सलाह और मदद के लिए उनकी ओर रुख किया। 1969 में 1 जनवरी के भाषण को 'मानवाधिकारों की घोषणा' विध्वंसक पर टिप्पणी करने वाला मानते हुए, रेडियो अपारसिदा के प्रसारण को सैन्य शासन के आदेश से निलंबित कर दिया गया था।

भारतीय रहस्यमय धर्मबहन

नए धन्यों की सूची में भारतीय उर्सुलाइन धर्मबहन मारिया सेलिना कन्नानाइकल भी शामिल हैं, जिन्हें रहस्यमय अनुभवों के कारण, उनके समुदाय के भीतर सताया गया था। उनकी अधिकारियों ने भी उसपर संदेह किया और उनके साथ की नोभिस बहनों ने भी उसे परेशान किया। उनकी पवित्रता को मान्यता दी गई थी, लेकिन कई लोगों ने सुझाव दिया कि उन्हें मन्नत लेने के लिए जल्दी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। नोभिस के रुप में दो साल से अधिक नहीं रखा जा सकता था इसलिए उसे प्रथम मन्नत लेने के लिए छुट्टी मिली। धर्मबहन के रुप में वह प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाना शुरु किया, लेकिन जल्द ही वह गंभीर रूप से बीमार हो गई, लगातार ज्वर, सिरदर्द और खून के निशान के साथ उल्टी आने लगी। कोई भी दवाई उसे आराम नहीं दिया और उनके प्रथम मन्नत के पैंतीस दिन बाद, 1957 में 26 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

 

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06 August 2022, 15:05