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संत पापाः आत्म-परीक्षण मानवीय जीवन का अहम हिस्सा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में मानवीय जीवन के एक मूलभूत क्रियाकलाप आत्म-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरूआत की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 31 अगस्त 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज हम प्रभेद, आत्मा-परीक्षण एक नये विषयवस्तु पर अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरूआत करते हैं। आत्म-परीक्षण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हर व्यक्ति से जुड़ा हुआ है क्योंकि चीजों का चुनाव करना हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। हममें से हर कोई अपने जीवन में भोजन, कपड़े, अध्ययन हेतु एक विषय, किसी कार्य, एक संबंध का चुनाव करता है। इन सभी चीजों में हम जीवन की परियोजना को पाते हैं जो ईश्वर के संग हमारे ठोस संग को भी व्यक्त करता है।

सुसमाचार में येसु जीवन की साधारण चीजों को लेते हुए आत्म-परीक्षण के बारे में चर्चा करते हैं, उदाहरण के लिए, वे मछुवारों के बारे में जिक्र करते जो अच्छी मछलियों को चुनते और खराब को फेंक देते हैं या व्यापारी जो बहुत सारी मोतियों के बीच सबसे कीमती मोती को पहचाना जानता है। या वह जो खोते में हल चला रहा होता और किसी एक बहुमूल्य खजाने को पाता है (मत्ती.13.44-48)।

निर्णय लेना मानव का अहम कार्य

इन सारे उदाहरणों के प्रकाश में, आत्म-परीक्षण, प्रभेद अपने में प्रज्ञा, कला और इच्छा शक्ति को कार्यान्वित करने की बात कहती है, जिसके फलस्वरुप हम अपने लिए मिले अवसर का उपयोग करते हुए परिस्थितियों के अनुरूप अच्छी चीज का चुनाव करते हैं। यह हमसे एक कीमत की भी मांग करती है जिससे आत्म-परीक्षण अपने में प्रभावशाली हो सकें। अपने व्यवसाय में खरा उतरने हेतु मछुवारा कठिन मेहनत करता है, रात भर समुद्र में रहता, और तब कुछ मछलियों को फेंक देता है, उन लोगों के लिए भलाई हेतु जिनके लिए वे मिलेगी, वह अपने लाभ में भी घटा सहता है। बहुमूल्य रत्न का व्यापारी एक कीमती रत्न को खरीदने हेतु अपनी सारी चीजों को बिक्री करने से नहीं हिचकता है। ये सारी परिस्थितियाँ अपने में आशातीत, अनियोजित हैं जहां किसी निर्णय के महत्व और तात्कालिकता को पहचानना महत्वपूर्ण है। निर्णय हम सभों के द्वारा लिया जाना है, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो हमारे लिए यह कर देता है। अपने जीवन के मोड़ में व्यस्क अपनी स्वतंत्रता में किसी से सलाह ले सकता है लेकिन निर्णय उसे स्वयं लेना होता है। कोई यह नहीं कह सकता,“मैंने इसे खो दिया क्योंकि मेरे पति ने, मेरी पत्नी ने, मेरे भाई ने यह निर्णय लिया”। संत पापा ने कहा कि ऐसी नहीं है, हम में हर किसी को निर्णय लेना है और यही कारण है कि हमें प्रभेद करने के बारे में जाना जरूरी है। उचित निर्णय लेने हेतु हमें यह जाना आवश्यक है कि प्रभेद कैसे करना है।  

आत्म-परीक्षण में भावना का समावेश

संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण के संबंध में सुसमाचार हमारे लिए एक अन्य महत्वपूर्ण बात का जिक्र करता है, यह अपने में भानवाओं को धारण करता है। वह व्यक्ति जिसने खजाने को पाया, उसकी प्राप्ति हेतु अपनी सारी चीजों को बिक्री करने में कठिनाई का अनुभव नहीं करता है क्योंकि उसकी खुशी आपार है (मत्ती.13.44)। सुसमाचार लेखक संत मत्ती द्वारा उपयोग की गई शब्दवाली यहाँ एक अति विशेष खुशी के बारे में कहती है, जिसे कोई भी मानवीय सच्चाई प्रदान नहीं कर सकती है। ऐसी खुशी की चर्चा हम सुसमाचार के बहुत कम पदों में पाते हैं, और जो भी हैं वे ईश्वर से मिलन की खुशी को व्यक्त करने हेतु उपयोग किये गये हैं। लम्बी थकान भरी यात्रा के बाद मंजूषियों का तारे को पुनः देखना (मत्ती.2.10), खाली क्रब के पास से स्वर्गदूतों द्वारा पुनरूत्थान की खबर सुन कर नारियों का खुशी में लौटना (मत्ती.28.8)। यह हमारे लिए उन लोगों की खुशी को व्यक्त करता है जिनका मिलन येसु से हुआ है। एक अच्छा, सही निर्णय हमें सदैव खुशी से सराबोर कर देता है यद्यपि इसके मार्ग में हमें कुछ अनिश्चिताओं का सामना करना पड़ता है लेकिन इसका सही निर्णय हमें अंतत खुशी से भर देता है।

आत्म-परीक्षण महत्वपूर्ण

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अंतिम न्याय के समय ईश्वर हमारे संबंध में आत्म-परीक्षण का प्रयोग करेंगे। किसान, मछुवारे और व्यपारी के उदाहरण हमारे लिए स्वर्ग राज्य में घटित होने वाली बातों की झलक देते हैं, एक राज्य जो अपने को दैनिक जीवन के साधारण क्रियाकलापों में व्यक्त करता है हमें एक निर्णय लेने की बात कहता है। यही कारण है कि आत्म-परीक्षण करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है, बड़े चुनाव हमारे लिए परिस्थितियों में उभर कर आते जो पहली नजर में हमारे लिए गौण लगते हैं लेकिन वे हमारे लिए निर्णयक होते हैं। संत पापा ने अंद्रेयस और योहन का येसु के संग प्रथम मुलाकात का जिक्र किया जो एक सामान्य सवाल से उभरता है, “गुरूवर, आप कहाँ रहते हैंॽ आओ और देखो” येसु कहते हैं (यो.1.38-39)। यह एक बहुत छोटी वार्ता है लेकिन यह धीरे-धीरे उनके पूरे जीवन को बदल देता है। सालों के बाद, सुसमाचार लेखक उस मिलन की याद करते हैं जिसके द्वारा उसका पूरा जीवन बदल गया, और वे इस बात की याद करते हुए कहते हैं कि वह दोपहर चार बजे का समय था। यह वह समय था जब उसकी मुलाकात दिव्यता से होती है। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि एक अच्छे, उचित निर्णय में ईश्वरीय इच्छा का मेल हमारी इच्छा से होता है।

आत्म-परीक्षण में हम ज्ञान, अनुभव, भावना, इच्छा को अनिवार्य तत्वों स्वरुप पाते हैं। हम अपने आने वाले दिनों की धर्मशिक्षा में इन सारी चीजों पर जिक्र करेंगे जो हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं। 

संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “आत्म-परीक्षण एक कठिन कार्य है”। धर्मग्रंथ के अनुसार हम इसे पूर्वानिर्धारित नहीं पाते हैं जिसके अनुरूप हमें जीवन जीने की जरुरत है। ईश्वर हमें मूल्यांकन करते हुए चुनाव करने का निमंत्रण देते हैं, उन्होंने हमें अपनी स्वतंत्रता में गढ़ा है औऱ वे चाहते हैं कि हम अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करें। अतः आत्म-परीक्षण अपने में कठिन प्रक्रिया है।

मानव की आधारभूत शिक्षा

उन्होंने कहा कि हमने बहुधा अपने जीवन में यह अनुभव किया है, हम उन चीजों का चुनाव करते हैं जो हमें अच्छा लगता है यद्यपि वे हमारे लिए सही नहीं होती हैं। या हम जानते हैं कि हमारे लिए कौन-सी चीजें उचित हैं लेकिन हम उनका चुनाव नहीं करते हैं। मानव जानवरों से भिन्न अपने में गलती कर सकता है, वह सही चीजों के चुनाव में अनइच्छुक रहता है। धर्मग्रंथ में हम इसे प्रथम पन्नों में ही पाते हैं। ईश्वर उसे विशिष्ट निर्देश देते हैं कि यदि तुम जीना चाहते हो, यदि तुम जीवन का आनंद उठाना चाहते हो, याद रखो कि तुम एक सृष्ट प्राणी हो, तुम सही और गलत की कसौटी नहीं हो, तुम जो चुनाव करते हो वही तुम्हारे लिए एक परिणाम होगा, तुम्हारे लिए, दूसरों के लिए और दुनिया के लिए (उत्पत्ति. 2.16-17), तुम पृथ्वी को एक अति मनोरम उद्यान बना सकते हो या उसे मरणशील मरूभूमि। यह हमारे लिए एक आधारभूत शिक्षा है यह कोई संयोग नहीं है वरन् यह ईश्वर और मनुष्य के बीच पहला संवाद है। यह एक वार्ता है जिसमें हम मानव के लिए ईश्वर से दी गई प्रेरिताई को पाते हैं, जो उसे हर कदम में आत्म-परीक्षण करते हुए निर्णय लेने की बात कहती है। आत्म-परीक्षण मन, हृदय का चिंतन है जो हमें निर्णय लेने में पूरी होती है।

आत्म-परीक्षण, आत्म-ज्ञान

संत पापा ने कहा कि आत्म-परीक्षण हमारे लिए कठिन है लेकिन यह हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। यह हमें स्वयं को जानने की मांग करता है, कि हमारे लिए यहाँ इस समय क्या अच्छा है। इससे भी बढ़कर, यह ईश्वर के संग हमारे पुत्रवत संबंध की मांग करता है। ईश्वर पिता हैं जो हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते हैं, वे सदैव हमें निर्देश देने, प्रोत्साहित करने, स्वागत करने को तैयार रहते हैं। लेकिन वे हमारे ऊपर अपनी इच्छा को नहीं थोपते हैं, क्योंॽ वे प्रेम किया जाना चाहते हैं वे हमें भयभीत नहीं करना चाहते। वे हमें स्व पुत्र के रुप में देखना चाहते हैं न कि दास के रुप में। और यह प्रेम है जो हमें स्वतंत्रता में जीवन जीने को मदद करता है। जीवन जीने सीखना हमारे लिए प्रेम करने सीखना है और इसके लिए हमें आत्म-परीक्षण करना आवश्यक है। मुझे अभी इस विकल्प के सामने क्या करना चाहिएॽ यह हमारे लिए प्रेम की बड़ी निशानी होती है जहाँ हम प्रेम में और अधिक प्रौढ़ता को प्राप्त करते हैं। संत पापा ने पवित्र आत्मा का आहृवान करते हुए कहा कि हम उन्हें रोज दिन जीवन में पुकारे विशेष कर उस समयों में जहाँ हमें चुनाव करने की जरुरत है। 

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31 August 2022, 15:49