संत पापाः मानवता की सुरक्षा बुजुर्गों और युवाओं के मेल में
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
संत पापा ने नबी दानियल के दिव्य दर्शन पर चर्चा करते हुए कहा कि दानियल का सपना जिसके बारे में हमने सुना हमारे लिए एक रहस्य को प्रकट करता है, वहीं हम उसमें ईश्वर की महिमामय दिव्य दर्शन को पाते हैं। यह दिव्य दर्शन येसु के पुनरूत्थान का संदर्भ प्रस्तुत करता है जिसे हम प्रकाशना ग्रंथ के प्रथम अध्याय में पाते जो उन्हें मसीह, पुरोहित और राजा, अनंत सर्वज्ञ और अपरिवर्तनीय प्रस्तुत करता है (1.12-15)। वह अपनी हाथ भविष्य द्र्ष्टा के कंधों पर रखा और उसे आश्वस्त करते हुए कहता है,“मत डरो, प्रथम और अंतिम, जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं अनंत काल तक जीवित रहूँगा”(17-18)। इस भांति, ईश-साक्षात्कार से होने वाले भय और चिंता को हम अपने मध्य से दूर होता पाते हैं। जीवित येसु ख्रीस्त हमें आश्वासन, निश्चितता प्रदान करते हैं। वे मर गये थे लेकिन अब वे प्रथम और अंतिम स्थान में विद्यामान हैं।
प्रतीकों के इस ताने-बाने में, हम एक तथ्य को पाते हैं जो ईश-साक्षात्कार, ईश्वर से हमारे मिलन को, हमारे जीवन चक्र, ऐतिहासिक काल, सृष्ट संसार में ईश्वर के प्रभुत्व को बेहतर रुप में समझने हेतु मदद करेगा। संत पापा ने कहा कि यह तथ्य विशेष रुप से बुढ़ापे की अवस्था से जुड़ा हुआ है।
ईश्वरीय शाश्वतता सदैव नई
उन्होंने कहा कि दिव्य दर्शन शक्ति और उत्साह, कुलीनता, सौंदर्य और आकर्षण को प्रकट करता है। उनके वस्त्र, उनकी आँखें, स्वर, और पैर सब कुछ गौरवशाली हैं। उनके केश यद्यपि श्वेत, ऊन की भांति, हिम की तरह हैं, मानों वे एक बुजुर्ग व्यक्ति के केश हों। धर्मग्रंथ बाईबल में यह शब्दावली एक बुजुर्ग व्यक्ति, “जाकेन” की ओर इंगित करता है जो जो इब्रानी भाषा के “जाकान” से आता है जिसका अर्थ “दाढ़ी” है। हिम की तरह उज्वल केश एक पुरातन चिन्ह के बारे कहता है जो एक शाश्वत अस्तित्व की एक प्राचीन निशानी है। संत पापा ने कहा कि हमें बच्चों के लिए हर पौराणिक बातों को विकृत करते हुए चर्चा करने की जरूरत नहीं है- उन्होंने धर्मग्रंथ में ईश्वर के प्रतीकात्मक रुप ईश्वर की चर्चा करते हुए कहा, “हिम की तरह श्वेत केश, ईश्वर का एक स्वरूप है जिसे हम धर्मग्रंथ बाईबल में पाते हैं जो सारी चीजों को निहारते हैं, यह अपने में एक झूठी निशानी नहीं है, यह एक कुलीन और अपने में ईश्वर का एक कोमल रुप है”। प्रकाशना ग्रंथ में वर्णित आकृति जो सोने के दीपाधार में अवस्थित है नबी दानियल की भविष्यवाणी के अनुरूप “पुरातनकाल” से मेल खाती है। वह सारी मानवता से भी पुरानी है। वह उतना ही प्राचीन और नया है जितना कि ईश्वर की शाश्वतता। ईश्वर की शाश्वतता ऐसी प्राचीन और नई क्यों हैं, क्योंकि ईश्वर सदैव अपने नयेपन से हमें आश्चर्यचकित करते हैं, वे सदैव हमसे मिलने आते हैं, प्रत्येक दिन एक विशेष रुप में।
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि पूर्वी-रीति की कलीसियाओं में, ईश-साक्षात्कार का त्योहार, 02 फरवरी को मनाया जाता है जो कलीसियाई धर्मविधि के बारह त्योहारों में एक बड़ा त्योहार है। इस त्योहार में बुजुर्ग सिमियोन और अन्ना के रूप में हम मानवता के संग ईश्वर के मिलन को पाते हैं जो येसु ख्रीस्त के रुप में शरीरधारण कर, मानव बन दुनिया में आये। यह एक अति सुन्दर दृश्य है जिसे हम रोम के संत मरिया त्रासतेबेरे गिराजघर मोज़ाइक में देख सकते हैं।
बेजेंटाईन धर्मविधि में धर्माध्यक्ष सिमियोन के संग प्रार्थना करते हैं, “यह कुंवारी से जन्म लिया सुपुत्र है। यह ईश्वर का शब्द और शाश्वत ईश्वर है, एकलौठा, जो मनाव जाति की मुक्ति हेतु मानव बन कर दुनिया में आया” यह आगे कहता है, “आज स्वर्ग का द्वारा खुला, पिता का शाश्वत वचन, अपनी दिव्यता को छोड़े बिना, एक लौकिक रुप धारण कर, कुंवारी मरियम के द्वारा जन्म लिया और मंदिर में चढ़ाया गया, और प्रतीक्षार्थी ने उसे अपनी बाहों में लिया”। ये शब्द प्रथम चार ख्रीस्तीय एकतावर्धक सम्मेलनों के विश्वासमय सार को व्यक्त करते हैं, जो सभी कलीसियाओं के लिए पवित्र है। लेकिन सिमियोन के कार्य भी बुढ़ापे के समय में अति सुन्दर बुलाहट की निशानी को व्यक्त करते हैं। उन्होंने दुनिया में आये ईश पुत्र का साक्ष्य दिया। संत पापा ने कहा कि बुजुर्गों को चाहिए कि वे ईश्वर के अनमोल उपहार दुनिया में आये बच्चों का साक्ष्य दें।
साक्ष्य, जीवन का स्रोत
उन्होंने कहा कि इससे पहले कि हम इस दुनिया से विदा लें हमें चाहिए कि हम बुजुर्गावस्था में, सिमियोन और अन्ना की भांति अपने उस कार्य को पूरा करें जिसे उन्होंने किया। बुजुर्गावस्था साक्ष्य देने का समय हो, “यह मेरे लिए बुढ़ापे की अवस्था का सार है” बुजुर्गजन बच्चों को आशीर्वाद देते हुए अपना साक्ष्य दें, इसमें हम दीक्षा को सम्मिलित पाते हैं जो अपने में- सुंदर और कठिन है - जीवन के इस रहस्य को कोई मिटा नहीं सकता है, मौत भी नहीं। बच्चों के लिए विश्वास की गवाही, उनमें जीवन का संचार करना है। मानवता को आस्था की गवाही देना बुजुर्गों की बुलाहट है।
बुजुर्गों का साक्ष्य विश्वासनीय
संत पापा ने कहा कि बुजुर्गों के द्वारा बच्चों को दिया गया साक्ष्य विश्वासनीय है। युवाजन और व्यस्क इस साक्ष्य को एक सच्चे, कोमल, मार्मिक रुप में प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं जैसे कि बुजुर्गजन करते हैं। जब बुजुर्गजन जीवन को आशीर्वाद देते तो यह अप्रतिरोध्य होता है, यह जीवन में किसी भी तरह की नाराजगी को दूर करता है। वे अपने में कटु नहीं होते क्योंकि समय के साथ वे आगे बढ़ने को तैयार रहते हैं। वे अपने में अच्छी अंगूरी की भांति होते जो सालों बीतने के साथ और भी अच्छे लगते हैं। बुजुर्गों का आशीर्वाद पीढ़ियों को जोड़ती है यह अतीत, वर्तमान और भविष्य के आयाम को एकता की डोर में पिरोती है, क्योंकि वे केवल यादें नहीं बल्कि आज और कल कि प्रतिज्ञा भी हैं। जीवन के युगों को अलग-अलग दुनिया के रूप में देखना अपने में कष्टप्रद है जहाँ हम आपसी प्रतिस्पर्धा में, एक-दूसरे के जीवन की कीमत पर अपने जीवन को जीने की कोशिश करते हैं। यदि हम समय को घड़ी के आधार पर देखें तो मानवता प्राचीन है, बहुत प्राचीन। लेकिन ईश्वर का पुत्र, जो एक नारी से उत्पन्न हुए, वे हर समय के आदि और अंत हैं। इसका अर्थ यह है कि कोई भी अपनी अनंत पीढ़ी से, अपनी महिमामयी शक्ति, उसकी प्रेममयी निकटता से बाहर नहीं आता है।
पीढ़ियों के मेल में, परिवार की सुरक्षा
संत पापा ने कहा कि बुजुर्गों और युवाओं के बीच मेल मानव परिवार को बचा कर रखेगा। जहाँ बच्चे और युवागण बुजुर्गों की चर्चा करते वहां एक भविष्य है यदि उनके बीच यह वार्ता नहीं होती तो भविष्य अपने में धूमिल है। उन्होंने कहा,“क्या हम बच्चों को वह वापस दे सकते हैं जो उन्हें जन्म लेने की शिक्षा देती है, एक कोमल साक्ष्य जहाँ बुजुर्ग मरने के ज्ञान को धारण करते हैंॽ क्या यह मानवता, जो अपनी सारी प्रगति के साथ कल को जन्मी एक किशोरी-सी लगती है, उस वृद्धावस्था की कृपा को पुनः प्राप्त करने में सक्षम होगी जो हमारी मंजिल के क्षितिज पर मजबूती से टिकी हुई हैॽ मृत्यु निश्चित रुप में जीवन का कठिन दौर है लेकिन यह जीवन की अनिश्चितता को खत्म करती और घड़ी को फेंक देती है। क्योंकि उसके बाद ही खासकर जीवन के खूबसूरत पल की शुरूआत होती है, जिसकी कोई और समय सीमा नहीं होती है। लेकिन इसकी शुरूआत बुजुर्गों के ज्ञान से होती है जिसका वे साक्ष्य देते हैं। हम बच्चों और बुजुर्गों के मध्य वार्ता, मेल के बारे में विचार करें और हम इस मिलन को न तोड़ें। बुजुर्गजन अपने को युवाओं के लिए व्यक्त करें और युवा उनसे जीवन का ज्ञान प्राप्त करें।
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