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संत पापाः बुजुर्गावस्था, साक्ष्य देने का उचित समय

संत पापा फ्रांसिस ने बुजुर्गावस्था पर अपनी धर्मशिक्षा माला का अंत करते हुए बुजुर्गों को जीवन में साक्ष्य देने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, 10 अगस्त 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात। 

आज हम बुजुर्गों पर अपनी धर्मशिक्षा माला का अंत करेंगे। आज हम येसु का अपने शिष्यों के संग विदाई की भाव-भीनी अंतिम घड़ी का जिक्र करेंगे जिसकी चर्चा संत योहन अपने सुसमाचार में करते हैं। इस विदाई प्रवचन की शुरूआत सांत्वना और प्रतिज्ञा के शब्दों के द्वारा होती है,“तुम्हारा जी घबराये नहीं” (यो.14.1)। “मैं वहाँ जाकर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आऊँगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, जिससे जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम भी रहो” (यो.14.3)। येसु ख्रीस्त के ये वाक्य अपने में कितने सुन्दर हैं।

येसु की प्रतिज्ञा

इसके ठीक पहले येसु ने पेत्रुस से कहा था,“तुम वहाँ बाद में आओगे”(13.36)। यह कमजोर विश्वास को पुख्ता करने की बात कहता है। शिष्यों का बचा हुआ जीवन, अनिवार्य रूप से येसु ख्रीस्त के साक्ष्य की नाजुकता और भ्रातृत्व के मार्ग में चुनौतियों से होकर गुजरने वाला एक मार्ग होगा। लेकिन यह विश्वास में विस्मित आशीषों से भरा हुआ एक राह भी होगा, “जो मुझ में विश्वास करता है वह स्वयं वे कार्य करेगा, जिन्हें मैं करता हूँ” (14.12) हम इसके बारे में विचार करें यह कितनी बड़ी प्रतिज्ञा है। संत पापा ने कहा कि मैं नहीं सोचता हूँ कि हम इसके बारे में पूरी तरह विचार करते, या इस पर पूर्ण विश्वास करते हैं।

जीवन का लक्ष्य

उन्होंने कहा कि बुजुर्गावस्था हमारे लिए एक उचित समय होता है जब हम अपने हृदयस्पर्शी बातों और खुशी के साक्ष्य को बांटते हैं। बुजुर्गावस्था में विश्वास के कार्य हमें और दूसरों को ईश्वरीय राज्य के निकट लेकर आता है, जो अब ऊर्जा, शब्द, युवावस्था और परिपक्वता की शक्ति से परे है। लेकिन ऐसा करने के द्वारा ही वे सच्चे जीवन के लक्ष्य की प्रतिज्ञा को अधिक पारदर्शी रुप में हमें प्रदान करते हैं। जीवन का सच्चा लक्ष्य क्या हैॽ ईश्वर के संग उनके राज्य में एक स्थान प्राप्त करना। यहाँ यह देखना हमारे लिए आकर्षक होगा कि इस संदर्भ में स्थानीय कलीसिया हमें किस हद तक मदद करती है जिससे हम ईश्वर के संग अपने मिलन की प्रतीक्षा, उन्हें प्राप्त करने के लक्ष्य को कैसे पुनः जागृत कर सकते हैं- यह एक प्रेरिताई है, प्रतीक्षा में येसु के संग हमारे मिलन की प्रेरिताई- जहाँ हम व्यक्तिगत आदर्शो और सामुदायिक रुप में बुजुर्गों के गुणों से अपने को प्रोत्साहित होता पाते हैं।

संत पापा ने कहा कि एक बुजुर्गावस्था जो छूटे हुए अवसरों की निराशा में भस्म हो जाता है, स्वयं के लिए और दूसरों में निराशा का कारण बनता है। वहीं, बुजुर्गावस्था जो अपनी विनम्रता में जीवन व्यतीत करते हुए जीवन की सत्यता का सम्मान करता है, यह निश्चित रूप से एक अधिकार की गलतफहमी का समाधान करता है जो अपने में और अपनी सफलता के लिए प्रर्याप्त है। यह एक कलीसिया की नसमझी का भी समाधान करता है जो अपने को दुनियावी रुप में ढ़ालते हुए यह सोचती है कि इस प्रकार का संचालन निश्चित ही अपने में सर्वश्रेष्टता और पूर्णता लायेगी। जब हम अपने को इस तरह के विचार से मुक्त करते हैं, तो बुढ़ापे का समय जिसे ईश्वर हमें देते हैं, हमारे लिए उन “महान” कार्यों की भाँति है जिसकी चर्चा येसु करते हैं। वास्तव में, यह येसु का कार्य नहीं था जिसे उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, विशेष कर उनकी मृत्यु, पुनरूत्थान और स्वर्गारोहण जिसे हम मानवता के लिए पाते हैं। संत पापा ने कहा कि हम इसे याद रखें,“समय स्थान से बलवान होता है”। यह प्रकृति का नियम है। हम भौतिक जीवन में ही घिरे रहने हेतु नहीं बनाये गये हैं, बल्कि हमें मृत्यु से पार होकर इसके पारे जाना है। वास्तव में, हम इस पृथ्वी हेतु नहीं बने हैं बल्कि हम ईश्वर के संग निवास करने हेतु बनाये गये हैं।

मानव, जीवन का प्रशिक्षु

संत पापा ने कहा कि इस पृथ्वी पर हमारे “नवशिष्यालय” की शुरूआत होती है, हम जीवन के प्रशिक्षु हैं, जो जीवन की हजारों कठिनाइयों के बीच, ईश्वर के उपहार की प्रशंसा करना सीखते हैं, हम इसे दूसरे के संग बांटने में अपने उत्तरदायित्व का सम्मान करते हैं और उसे सब के लिए फलहित करते हैं। पृथ्वी पर जीवन का समय इस मार्ग की कृपा है। समय को रोकने का मिथ्याभिमान – सदैव जवान बने रहना, असीमित सलामती, सम्पूर्ण शक्ति की चाहत- असंभव ही नहीं,यह एक भ्रम है।

बुजुर्गावस्था एक विवेकी अवस्था

इस पृथ्वी पर हमारा रहना, जीवन की दीक्षा का समय है, जिसकी परिपूर्णत सिर्फ ईश्वर में है।  हम शुरू से ही अपूर्ण हैं, और हम अपने जीवन के अंत तक अपूर्ण रहेंगे। ईश्वर की प्रतिज्ञा पूर्ति में यह संबंध बदल जाता है, ईश्वर का स्थान, जिसे येसु हमारे लिए अति सावधानी से तैयार करते हैं, हमारे नश्वर जीवन के समय से बेहतर है। अतः बुढ़ावे की अवस्था हमें उस आशा की पूर्णतः के करीब लेकर आती है। बुजुर्गावस्था, अपनी परिस्थिति के अनुरूप निश्चित रुप में समय के अर्थ और स्थान की सीमाओं को जानता है जहाँ हम अपनी दीक्षा को जीते हैं। बुजुर्गावस्था इसके लिए विवेकी है, बुजुर्गजन इसके बारे में जानते हैं। यही कारण है यह हमें बुजुर्गावस्था को मानने हेतु निमंत्रण पर हमें चाहिए कि हम खुशी में सहभागी हों, यह किसी के लिए भय नहीं है, यह एक प्रतिज्ञा है। बुढ़ापे की उम्र अपने में कुलीन है, और उस कुलीनता को प्रकट करने के लिए कभी बाह्य रूप-सज्जा की जरुरत नहीं होती है। बुजुर्गावस्था जो विश्वास की गहराई को खोज निकालता है वह अपनी प्रकृति में रूढ़िवादी नहीं होता है। ईश्वर का स्थल अपने में अनंत है जहाँ समय के प्रवाह का कोई अर्थ नहीं होता। और खास कर येसु अंतिम व्यारी के भोज में इस बात को यह कहते हुए अस्वीकार करते हैं,“मैं तुम लोगों से कहता हूँ- जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नवीन रस न पी लूं, तब तक मैं दाख का यह रस फिर नहीं पिऊँगा” (मत्ती.26.29)। हमारे प्रवचन में स्वर्ग को हम ज्योति और प्रेम से भरा पाते हैं। शायद इसमें एक जीवन की कमी है। येसु अपने दृष्टांन में जीवन का अधिक उपयोग करते स्वर्ग राज्य के बारे में शिक्षा देते हैं। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते हैंॽ

बुजुर्गावस्था सुसमाचार प्रचार का काल

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा, “ईश्वर से मिलन की आशा में व्यतीत किया गया बुजुर्गावस्था विश्वास में हमारे लिए “क्षमा” हो सकता है जो हमारे लिए आशा को जन्म देता है। बुढ़ापे की उम्र येसु की प्रतिज्ञा को हमारे लिए पारदर्शी बनाता और पवित्र येरुसालेम की ओर ले चला है जैसे प्रकाशना ग्रंथ का अध्याय 21-22 हमारे लिए जिक्र करता है। बुढ़ापा जीवन का वह चरण है जो इस आनंदपूर्ण समाचार को फैलाने के लिए सबसे उपयुक्त है कि जीवन अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक दीक्षा है। बुढ़पा एक प्रतिज्ञा है, प्रतिज्ञा का साक्ष्य। और इसमें सबसे अच्छा आना अभी बाकी ही है। यह संदेश बुजुर्गों के लिए है कि सबसे अच्छा आना अब भी बाकी है। ईश्वर हमें अपनी कृपा से भर दे कि हम अपने बुजुर्गावस्था को योग्य पूर्ण ढ़ंग से जी सकें। 

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10 August 2022, 16:32