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संत पापाः ईश्वर सभी चीजें पूरी करते

संत पापा फ्रांसिस ने आक्वीला शहर का दौरा किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 29 अगस्त 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने रविवार, 28 अगस्त को इटली के आक्वीला शहर का दौर करते हुए सेलेसिटियन पाप क्षमा का ख्रीस्तीयाग अर्पित किया।

संत पापा ने अपने उपदेश में कहा कि संतगण सुसमाचार के एक बहुत आर्कषक व्याख्यान होते हैं। हम उनके जीवन में येसु ख्रीस्त की शिक्षा की झलके पाते हैं, विशेषकर ईश्वर जो हमारे पिता हैं जो हममें हर किसी को प्रेम करते हैं। यही सुसमाचार का क्रेन्द-बिन्दु है जिसका साक्ष्य येसु हमें अपने शरीरधारण के द्वारा देते हैं।

आक्वीला का विशेष दिन

आज हम यहाँ के शहर और कलीसिया के लिए एक विशेष दिन सेलेसिटियन पाप क्षमा का ख्रीस्तीयाग अर्पित कर रहे हैं। यहाँ संत पापा सेलेस्टीन पांचवें के अवशेष सुरक्षित रखे गये हैं। संत पापा ने कहा कि इस व्यक्ति ने सुसमाचार की उन बातों को पूरा किया जिसे हम आज के प्रथम पाठ में सुनते हैं, “आप जितने बड़े हैं आप को उतना ही नम्र होने की जरुरत है” (प्रव.3.18)। हम उन्हें “एक महान परित्यागी” स्वरूप याद करते हैं” जैसा कि दांते अपनी डिभाइन कोमेडी में जिक्र करते हैं। सेलेस्टीन वे व्यक्तित्व थे जिन्होंने “नहीं” के बदले “हाँ” कहा।

नम्रताः योग्यता और अयोग्यता को स्वीकारना

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि वास्तव में, नम्र व्यक्ति दुनिया की निगाहों में कमजोर और पराजित प्रतीत होते हैं लेकिन वास्तव में, वे सही अर्थ में विजयी हैं क्योंकि वे पूरी तरह ईश्वर की योजना के अनुरूप अपने कार्यों को पूरा करते हैं। “दीन-हीनों को ईश्वर अपने रहस्य प्रकट करते और उनके द्वारा उनकी महिमा होती है”(प्रव.3.19-20)। घमंड से भरी दुनिया में ईश्वर के वचन हमें नम्र और दीन-हीन बनने का निमंत्रण देते हैं। नम्रता का तत्पर्य अपने को छोटा करने में नहीं बल्कि यह सच्चाई के साथ अपनी योग्यताओं और कमजोरियों को वाहन करता है। अपने कमजोरियों से शुरू करते हुए नम्रता हमें ईश्वर की ओर अपनी निगाहें उठाने में मदद करती है, जो हमारे लिए सबकुछ कर सकते हैं यहाँ तक वे सारी चीजें जिन्हें दुनिया करने में असफल होती है जिसे हम स्वयं में नहीं कर सकते हैं। “विश्वास करने वालों के लिए सारी चीजें संभव हैं”(मर.9.23)।

करूणा धर्मग्रंथ का सार

संत पापा ने कहा कि नम्र व्यक्ति की शक्ति ईश्वर है, मानवीय साधन,कार्य योजनाएं, दुनिया के तर्क-वितर्क और तोल-मोल नहीं। सेलेस्टीन पांचवें इस अर्थ में सुसमाचार के एक सहासी साक्षी थे क्योंकि ऐसी कोई शक्ति नहीं थी जो उसे कैद या नियंत्रण में रख सकती थी। उनमें हम कलीसिया को दुनियावी सोच-विचार से मुक्त पाते हैं जहाँ उन्होंने ईश्वर के करूणामय नाम का पूर्णरूपेण साक्ष्य दिया। उन्होंने कहा कि करूणा धर्मग्रंथ का साऱ है जो हमें इस यह ज्ञान दिलाती है कि हम सभी अपनी कमजोरियों में ईश्वर के द्वारा प्रेम किये जाते हैं। कमजोरी और करूणा एक साथ जाते हैं। हम अपनी कमजोरियों को समझे बिना ईश्वर की करूणा को नहीं समझ सकते हैं। ख्रीस्तीय होने का अर्थ यह नहीं कि हम अंधेरे के निकट आते और ईश्वर से भयभीत होते हैं। इब्रानियों के नाम संत पौलुस का पत्र हमें इसकी याद दिलाता है, “आप लोग ऐसे पर्वत के निकट नहीं पहुंचे हैं, जिसे आप स्पर्श कर सकते हैं। यहाँ न तो सिनाई पर्वत की धधकती अग्नि है और न काले बादल, न घोर अंधकार, बवण्डर, तुरही का निनाद और न बोलने वाले की ऐसी वाणी, जिसे सुन कर इस्रराएली विनय करते थे कि वह फिर हम से कुछ न कहे” (12.18-19)। संत पापा ने कहा कि हम ईश्वर के पुत्र, येसु के निकट आते हैं जो पिता की करूणा और प्रेम हैं जो हमें बचाते हैं। वे करूणा हैं और हमारी कमजोरियों में केवल अपनी करूणा के माध्यम बातें करते हैं। यदि हम में से कोई ऐसा सोचता है कि हम अपनी कमजोरियों के अलावे अन्य किसी दूसरी चीजों से उनकी करूणा को प्राप्त कर सकते हैं तो यह अपने में नसमझी है। यही कारण है कि हमें अपने जीवन की सच्चाई से रुबरु होना अति महत्वपूर्ण है।

करूणाः खुशी का कारण

संत पापा ने कहा कि आक्वीला ने संत पापा सेलेस्टीन के उपहार को सजीव रखा है जिनसे उन्हें हमारे लिए छोड़ रखा है। यह हमारे लिए करूणा का उपहार है जिसे हमें एक-दूसरे को याद दिलाने की जरुरत है कि करूणा के माध्यम ही नर और नारी जीवन में खुशी से रह सकते हैं। करूणा अपने में स्वागत किये जाने की अनुभूति है जो हमारे कदमों में रखा गयी है जिसके फलस्वरुप हम साहस, चंगाई और अपने को उत्साहित पाते हैं। क्षमा की अनुभूति हमें पुनर्जीवित होने का एहसास दिलाती है। यह मृत्यु से जीवन की ओर जाना है, घोर दुःख और ग्लानि से स्वतंत्रता और आनंद की खुशी है। संत पापा ने कहा कि यह कलीसिया सदैव मेल-मिलाप का एक स्थल बनें जिससे विश्वासी अपने में कृपा को अनुभव कर सकें जहाँ हमें एक दूसरा मौका मिलता है। उन्होंने कहा, “हमारे ईश्वर हमें दूसरा मौका देते हैं। कितनी बार प्रभु, एकॽ सातॽ-सत्तर गुणा सात बार तक”। ईश्वर हमें सदैव एक दूसरा मौका देते हैं। “यह कलीसिया अपने में क्षमादान की कलीसिया हो, साल में एक बार नहीं, लेकिन सदैव, हर दिन”। क्योंकि ऐसा करने के द्वारा ही हम शांति का निर्माण करते, क्षमादान के द्वारा हम इसका आदान-प्रदान करते हैं।

कमजोरियाँ मुक्ति का कारण 

संत पापा ने कमजोरियों की ओर ध्यान देने का आहृवान किया जिससे हम क्षमादान की ओर लौट सकें  क्योंकि अपनी कमजोरियों के द्वारा ही हम ईश्वर की ओर अभिमुख होते हैं। ईश्वर हमारी कमजोरियों में हमें अपनी ज्योति प्रदान करते हैं। संत पापा ने कहा कि आज सुबह धुंध के कारण हेलीकोप्टर को नीचे उतरने में कठिनाई हुई। हम हवा में चक्कर लगाते रहें लेकिन एक छोटा छिद्र जिसके दिखने पर चालक ने हेलीकोप्टर को तुरंत नीचे उतार दिया। हमारी कमजोरियों के साथ ऐसी ही होता है उन्होंने कहा, “हम कितनी बार अपने को देखते हैं कि हम क्या हैं, कुछ नहीं...और हम अपने में चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन ईश्वर एक छोटा छेद देखते हैं। हम अपने को वहाँ स्थापित करें, वे ईश्वर के घाव हैं। वहाँ से हमारे लिए करूणा प्रवाहित होती है लेकिन हमारी कमजोरी में केवल। हमारी कमजोरी में एक छिद्र होता जिसका उपयोग करते हुए ईश्वर हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं। हमारी कमजोरी में ईश्वर हमसे करूणा में मिलने आते हैं।

दुःख हमें समृद्ध बनाये

संत पापा ने कहा कि आप सभों को भूकंप के कारण बहुत कष्ट सहना पड़ा है। आप अपने जीवन, अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन्होंने कष्ट सहा है वे अपने जीवन की दुःख को समृद्धि में परिणत कर सकते हैं। “कष्टों के दौर से होकर गुजरना आप को दूसरों के दुःखों को समझने हेतु मदद करता है। आप अपने जीवन में करूणा के उपहार को निधि के रुप में रख सकते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि सारी चीजों को खोना का अर्थ क्या होता है”।

संत पापा ने कहा कि बिना भूंकप के बिना हम अपने “हृदय में भूंकप” का अनुभव कर सकते हैं, जो हमारी तुत्रियों और कमजोरियों के कारण होता है। इसके अनुभव में हम अपना सब कुछ खो सकते हैं, लेकिन ऐसी परिस्थिति में हम सच्ची नम्रता को सीख सकते हैं। हमारे जीवन के मोड़ हमें यह तो कटु बनाते या हमें नम्र होना सीखलाते हैं। अतः करूणा की प्रेरिताई को वहन करने और उसका साक्ष्य देने वालों की विशेषता नम्रता और दीनता है। क्योंकि करूणा को अपने में धारण करना हमें करूणा के साक्षी बनाता है। “मेरी कमजोरी के कारण करूणा मेरे लिए एक उपहार बनती है, हमें इसे दूसरों के संग साझा करना है”।

पद नहीं,  मानव की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है

यह यद्यपि हमारे लिए, यदि हम गलत राह में चल रहे होते तो चेतना का कारण बनती है जिसे आज का सुसमाचार हमारे लिए व्यक्त करता है। (लूका.14.1,7-14) विवाह भोज में प्रमुख स्थान का चुनाव करने के दृष्टांत पर संत पापा ने कहा कि बहुत बार लोग पद के अनुरूप अपना मूल्य निर्धारित करते हैं। व्यक्ति पद नहीं है जिसे वह अपने में वहन करता है। व्यक्ति अपने में वह स्वतंत्रता है जिसके अनुरूप चाहे वह कहीं भी हो अपने को पूर्णरूपेण व्यक्त करने में सक्षम होता है।

संत पापा ने कहा कि एक ख्रीस्तीय जानता है कि उसका जीवन दुनिया की मान्यता अनुसार नहीं बल्कि येसु के मनोभावों को धारण करने में है जो सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने आये (मर.10.45)। जब तक हम सुसमाचार के इस सार को नहीं समझते जो स्वतंत्रता में निहित है दुनिया में युद्ध, हिंसा और अन्याय व्याप्त रहेंगे जो बाह्य स्वतंत्रता की निशानियाँ हैं। जहां आंतरिक स्वतंत्रता की कमी है वहाँ हम स्वार्थ, व्यक्तिवाद, व्यक्तिगत सोच और उत्पीड़न और अन्य तुत्रियों को पायेंगे जो अपना रास्ता खोजती हैं। तुटियाँ हमें नियंत्रण में रखती है।

अपने प्रवचन के अंत मे संत पापा ने आक्वीला को सच्ची क्षमा, शांति और मेल-मिलाप का क्रेन्द बनने का आहृवान किया। आक्वीला माता मरियम के माहिमामय भजन को सभी लोगों के बीच प्रसारित करने में सक्षम हो। येसु ख्रीस्त का परिवर्तन जो आज के सुसमाचार में कहता है,“जो अपने को छोटा समझता है वह बड़ा बनाया जायेगा और जो अपने को बड़ा समझता है वह छोटा बनाया जायेगा।”(लूका.14.11) उन्होंने आक्वीला को माता मरियम के हाथों में सुपूर्द करते हुए दुनिया में क्षमा और शांति की कामना की। हम अपनी कमजोरी और करूणा की सुन्दर से अपने को वाकिफ करें। 

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29 August 2022, 16:07