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संत पापाः भविष्य, इतिहास से जुड़े रहने में है

संत पापा फ्रांसिस ने कनाडा की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन संत अन्ना और जोवाकिम के पर्व दिवस पर एडमोनटोन कोमनवेल्थ स्टेडियम में यूखारिस्तीय बलिदान अर्पित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

कनाडा, बुधवार, 27 जुलाई 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन एडमोनटोन में मिस्सा बलिदान के दौरान दिये गये अपने प्रवचन में इतिहास से जुड़े रहने का आहृवान किया जिससे भविष्य को सुरक्षित रखा जा सके।

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि आज हम येसु के नाना-नानी का त्योहार मनाते हैं। ईश्वर ने हमें विशेष रूप से इस अवसर पर जमा किया है जो आपके लिए और मेरे अति प्रिय हैं। जोवाकिम और अन्ना के घर में बालक येसु अपने बुजुर्गजनों को जानते और उनकी निकटता का एहसास करते हुए उनके कोमल प्रेम और ज्ञान का अनुभव करते हैं। संत पापा ने विश्वासी समुदाय को अपने नाना-नानी और दादा-दादी की याद करते हुए दो महत्वपूर्ण बातों में चिंतन करने का आहृवान किया।

इतिहास को सुरक्षित रखें

हम सभी इतिहास की संतान हैं जिसे हमें सुरक्षित रखने की जरुरत है। इस प्रथम बिन्दु पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि हम अलग-थलग, अकेले जीवनयापन करने वाले व्यक्तिगण नहीं हैं। ऐसा कोई भी नहीं जो दूसरों से अलग रहते हुए इस दुनिया में आता है। हमारी जड़ें हमारे परिवारों में हैं जहाँ हम जन्म लेते बढ़ते और महत्वूपर्ण इतिहास का एक अंग बनते हैं। संत पापा ने कहा कि हमने इस इतिहास का चुनाव नहीं किया है बल्कि यह हमें एक उपहार स्वरुप दिया गया है जिसका हम रसास्वादन करने हेतु बुलाये गये हैं जैसे कि प्रवक्ता ग्रंथ हमें याद दिलाता है, हम उनकी “संतति” हैं जो हमसे पहले चले गये हैं हम उनके “उत्तराधिकारी” हैं (प्रव.44.11)। उत्तराधिकार का संदर्भ हमारे लिए अधिकार या गरिमा या गीत में रचनात्मकता या काव्य से नहीं है बल्कि यह धार्मिकता पर आधारित, ईश्वर के प्रति और उनकी इच्छा के प्रति निष्ठावान बने रहना है। उन्होंने हमारे लिए इसी निधि को छोडा है। हम वास्तव में क्या हैं और कितने मूल्यवान हैं इस तथ्य को समझने हेतु हमें अपने को उन नर और नारियों से संयुक्त करने की जरुरत है जिनसे हम आते हैं। उन्हें सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचा बल्कि उन्हें हमें जीवन का दान दिया। हम अपने माता-पिता, नाना-नानियों और दादा-दादियों का शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने इस दुनिया में हमारा स्वागत किया है। ये वे हैं जिन्होंने हमें बिना किसी चीज की चाह रखे शर्तहीन प्रेम किया है। जब हम भयग्रस्ति हुए उन्होंने हमारे हाथों को पकड़ लिया, रात्रि में हमारा ढ़ारस बंधाया और जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों की घड़ी हमें प्रोत्साहित किया। हम अपने नाना-नानियों के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं जिन्होंने हमें दुलार का अनुभव कराया, उनके द्वारा हमने अच्छाई, करूणामय प्रेम और ज्ञान को सीखा जो मानवता की मजबूत जड़ें हैं। अपने दादा-दादियों के घरों में हममें से बहुतों ने सुसमाचार की खुशबू को, मजबूत विश्वास को सांसों के रूप में ग्रहण किया जो हमें सहजता की अनुभूति देती है। हम उनका धन्यवाद करते हैं क्योंकि उनमें हमने अपने परिचित विश्वास को खोज पाया। विश्वास का प्रसार घरों में इसी रूप में होता है जहाँ हम स्नेह और प्रोत्साहन, चिंता और निकटता का अनुभव करते हैं।

जोवाकिम और अन्ना का प्रेम

संत पापा ने कहा कि यह हमारा इतिहास है जहाँ हम अपने को उत्तराधिकारियों के रुप में पाते हैं जिसे हम सुरक्षित रखने हेतु बुलाये गये हैं। हम संतति हैं क्योंकि हम नाती-पोते हैं। हमारे पुरखों ने अपने जीवन जीने के क्रम में हमारे लिए एक अद्वितीय निशानी छोड़ा है, उन्होंने हमें सम्मान और विश्वास प्रदान किया है।  उन्होंने हमें कुछ ऐसी चीजों को दिया है जो हमसे कोई कभी छीन सही सकता है जो हमें अभूतपूर्व, वास्ताविक और स्वतंत्र होने में मददगार होता है। हमने अपने पूर्वजों के द्वारा इस बात को सीखा कि प्रेम कभी थोपा नहीं जा सकता है, यह कभी भी किसी को आंतिरक स्वतंत्रता से वंचित नहीं करता है। जोवाकिम और अन्ना ने मरियम को इसी भांति प्रेम किया और मरियम ने येसु को भी ऐसा ही प्रेम किया, एक प्रेम जो कभी उनका गला नहीं घोंटा या उनको रोका, बल्कि उन्हें अपनी प्रेरिताई को पूरा करने हेतु साथ दिया जिसके लिए वे दुनिया में भेजे गये थे। आइए हम व्यक्तिगत और एक कलीसिया के रुप में इस बात को सीखने की कोशिश करें। हम कभी भी किसी दूसरे के अंतःकरण पर दबाव डालने की कोशिश न करें, किसी की स्वतंत्रता पर रोक न लगाये और उससे भी बढ़कर उन्हें प्रेम करने और उनका सम्मान करने में कभी न चूकें जो हमसे पहले चले गये हैं, जिनकी देख-रेख की जिम्मेदारी हमें सौंपी गई है। क्योंकि वे एक अनमोल निधि हैं जो अपने से अधिक एक इतिहास को अपने में धारण करते हैं।

इतिहास की सुरक्षा का अर्थ

संत पापा ने कहा कि प्रवक्ता ग्रंथ हम कहता है कि इतिहास को सुरक्षित रखने का अर्थ पूर्वजों की “प्रतिष्ठा” को धूमिल करना नहीं है। हम उनकी यादों को न खोयें, न ही उस इतिहास को भूलें जहां हमारा जन्म हुआ। हम उन हाथों और बाहों को सदैव याद करें जिन्होंने हमें पुचकारते हुए प्यार किया, क्योंकि हम इतिहास में अपने निराशा की घड़ी में प्रोत्साहन को कहीं नहीं पायेंगे, एक ज्योति जो हमें निर्देशित करती और चुनौतीपूर्ण जीवन की स्थिति में हमें साहस प्रदान करती है। उनकी यादों को संजोकर रखने का अर्थ निरंतर उस विद्यालय की ओर लौट कर आना है जहाँ हमने सर्वप्रथम यह सीखा कि प्रेम कैसे करना है। इसका अर्थ हमारे लिए यह है कि हम अपने जीवन में यह पूछें कि प्रति-दिन चुनाव करने की परिस्थिति में हमारे पूर्वज कौन-सी उत्तम चीज का चुनाव करते जिसे हमने उनसे सीखा है, हमारे पूर्वज वैसे स्थिति में हमें क्या नसीहत देते।

यादगारी को संजोकर रखें

संत पापा ने कहा कि हम अपने आप से पूछेः क्या हमारे बच्चें और नाती-पोते उस निधि को सुरक्षा रखने के काबिल हैं जिसे हमने उन्हें सौंपा हैॽ क्या हम अपने को मिली अच्छी शिक्षाओं को याद करते हैंॽ क्या हम अपने बुजुर्गों से वार्ता करते और उन्हें सुनने हेतु समय देते हैंॽ और हम अपने सुन्दर व्यवस्थित घर में, आधुनिक और कार्यकुशल निवास में, क्या हम मूल्यवान चीजों को यादगारी स्वरुप संजोकर रखते हैं, उन्हें एक विशेष स्थान देते, परिवार की एक छोटी यादगारी जो कीमती तस्वीरों या वस्तुओं के रुप में अपने से पहले चले गये लोगों को प्रार्थना में याद करने को मदद करती होॽ। हम उनके धर्मग्रंथ, उनकी रोजरी को कैसे रखते हैंॽ भुलने की धुंध जो हमारे अंशात समय में घनी होने लगती है, यह जरुरी है कि हम अपनी जड़ों को मजबूत करें, अपने पुरखों के लिए और उनके संग प्रार्थना करें, अपने समय उन्हें देते हुए उनकी विरासत की रक्षा करें। ऐसे करने के द्वारा परिवार का वृक्ष विकसित होता है ऐसा करने के द्वारा हम भविष्य का निर्माण करते हैं।

इतिहास के निर्माता हम हैं

हम इतिहास के रचियता हैं इस संदर्भ में संत पापा ने कहा कि हमें अपनी सकारात्मक और नकारात्मक पहलूओं के आधार, अपने को प्रेम किये जाने या प्रेम की कमी को अपने में पहचाने। यह मानवीय जीवन का रहस्य हैः हम किसी की संतान हैं, ईश्वर के द्वारा उत्पन्न और किसी दूसरे के द्वारा बनाये गये, लेकिन हम जैसे-जैसे प्रौढ़ता को प्राप्त करते हैं, तो हमें भी जीवन देने का आहृवान किया जाता है जहाँ हम माता-पिता या किसे के दादा-दादी होने के लिए बुलाये जाते हैं। हम विचार करें, हम अपने बारे में क्या करने की सोचते हैंॽ दादा-दादी जो हमें से पहले चले गये, बुजुर्ग जिनमें हमारे लिए सपने और आशाएँ थीं, जिन्होंने  हमारे लिए बड़ा त्याग किया, वे हम से पूछते हैं कि तुम कैसे समाज का निर्माण करना चाहते होॽ हमने अपने से पहले गुजर गये लोगों के हाथों से इतना अधिक पाया है। बदले में, हम अपने बाद आने वालों के लिए क्या छोड़ना चाहते हैं। “गुलाब पानी या संजीवन जल”ॽ क्या हम उस समाज का निर्माण करते जो व्यक्तिगत लाभ या भ्रातृत्व को बढ़ावा देती हैॽ युद्ध की दुनिया या शांति की दुनियाॽ एक विध्वंसकारी दुनिया या एक घर जो निरंतर दूसरों का स्वागत करता हैॽ

जड़ें अति महत्वपूर्ण हैं

संत पापा ने कहा कि हम इस बात को न भूलें की जीवनदायी रस का प्रवाह जड़ों से टहनियों में, पत्तियों में, फूलों में और तब पेड़ के फलों में होता है। सच्ची परंपरा लंबवत आयाम में नीचे से ऊपर की अपने को व्यक्त करती है। हम इस बात को याद करने की जरुरत है जिससे हम भोंडी नकल के शिकार न हों जो जड़ों से नहीं बल्कि क्षैतिज, आगे-पीछे चलती है। ऐसी परंपरा हमें “पिछड़ी संस्कृति” की ओर ले चलती है जहाँ हम स्वार्थ का शिकार होते हैं जहाँ हम यह कहते हैं कि “हम हमेशा से ऐसा ही करते आ रहे हैं”।

आज के सुसमाचार में हमने येसु को अपने शिष्यों से यह कहते सुना, “धन्य हो तुम क्योंकि तुम उन बातों को सुनते और देखते हो बहुत ने इन्हें सुनना चाहा लेकिन यह उनकी आशा ही रह गई” (मत्ती 13.16-17)। बहुतों ने ईश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास करते हुए मसीह के लिए मार्ग तैयार किये लेकिन मसीह अब हमारे बीच में हैं, जो उन्हें देखना और सुनना चहाते हैं वे उनका स्वागत करने और उन्हें घोषित करने हेतु आमंत्रित किये जाते हैं।

यह युवाओं की बारी 

संत पापा ने कहा कि यह हम सबों के लिए भी लागू होता है। हम से पहले गुजर गये लोगों ने हमारे लिए जुनून, एक शक्ति और एक चाहत, एक आग छोड़ रखी है यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसे जलायें। यह राख जमा करने का वक्त नहीं लेकिन आग प्रज्जवलित करने का है जिसे उन्होंने सुलगाया है। हमारे पूर्वजों ने एक अधिक न्यायपूर्ण, भ्रातृत्वमय और एकता की दुनिया देखनी चाही और इसके लिए उन्हें हमें देने हेतु लड़ाई लड़ी। अब यह हमारी बारी है कि हम उसे जारी रखें। अपने को उनकी जड़ों में बनाये रखते हुए यह हमारी बारी है कि हम फल उत्पन्न करें। हम वे शाखाएं हैं जिन्हें आज फूलना और नय़े बीजों  को इतिहास हेतु प्रसारित करना है। हम अपने लिए अतः कुछ ठोस सवाल पूछें। मुक्ति इतिहास के अलग, जो हमसे पहले चले गये और जिन्होंने हमें प्रेम किया, आज मुझे क्या करना चाहिए हैॽ इतिहास में मेरा एक अद्वितीय और अपरिहार्य भूमिका है, लेकिन मैं क्या छाप अपने पीछे छोडूंगाॽ मैं उनके लिए क्या छोड़ रहा हूँ जो मेरे पीछे आने वाले हैंॽ मैं अपनी ओर से क्या दे रहा हूँॽ बहुत बार हम रूपये-पैसे के रुप में अपने जीवन का मूल्यांकन करते हैं, अपने कैरियर के आधार पर, अपनी डिग्री की सफलता और कि दूसरे हमें कैसे देखते हैं। यद्यपि ये सारी चीजें जीवन देने के रुप नहीं हैं। हमारे लिए असल सवाल यह है- क्या मैं जीवन दे रहा हूँॽ क्या मैं अपने पड़ोस में सुसमाचार का प्रचार करता हूँॽ क्या मैं स्वतंत्र रुप से दूसरों की सेवा करता हूँ जैसे कि मुझ से पहले गुजरे लोगों ने मेरे लिया कियाॽ हमारी कलीसिया, शहर, हमारे समाज के लिए मैं क्या कर रहा हूँॽ आलोचना करना हमारे लिए सहज होता है लेकिन ईश्वर हमसे यह नहीं चाहते कि हम सामाजिक प्रणाली की टीका-टिप्पणी करें या बंद होकर “अतीत को निहारे”। इसके बदले वे हमसे चाहते हैं कि हम एक नये इतिहास के शिल्पकार बनें, आशा बुनें, भविष्य के निर्माणकर्ता बनें, शांति के संस्थापक हों।

एक बेहतर भविष्य

अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने संत जोवाकिम और संत अन्ना से निवेदन किया कि वे हमें इतिहास का रसास्वादन करने में मदद करें जो हमें जीवन देता है यह हमें जीवन देने वाले इतिहास का निर्माण करने में मदद करेगा। वे हमें हमारी आध्यात्मिक कर्तव्यों की याद दिलायें और हम अपने दादा-दादियों और बुजुर्गों का सम्मान कर सकें, उनकी अमानत को अपने बीच बनाये रखे जिससे हम बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें। एक भविष्य जहाँ बुजुर्ग अपने में परित्याग का शिकार नहीं होते क्योंकि वे “उपयोगीहीन” हो गये हैं। एक भविष्य जो इस बात पर लोगों के मूल्य का नाप-तौल इस आधार पर नहीं करती कि उन्होंने कितना सरर्थक जीवन व्यतीत किया है। एक भविष्य जो बुजुर्गो की आवश्यकता के प्रति उदासीन नहीं होती जहाँ वे सेवा और सुने जाने की चाह रखते हैं। एक भविष्य जहाँ इतिहास हिंसा और परित्याग के कारण प्रभावित हुआ यह हमारे भाई-बहनों के साथ पुनः न हो। ईश्वर की सहायता से यह भविष्य हमारे लिए संभव है यदि हम अपने को पूर्वज और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों से युवाओं और बुजुर्गों, दादा-दादियों और नाती-पोतियों से संयुक्त करते हैं। हम एक साथ आगे बढ़ें और एक साथ मिलकर सपने देखें। 

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27 July 2022, 10:48