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कनाडा की प्रेरितिक यात्रा  में  संत पापा फ्रांसिस कनाडा की प्रेरितिक यात्रा में संत पापा फ्रांसिस  

संत पापाः पश्चताप और क्षमा याचना का तीर्थ

संत पापा फ्रांसिस ने कनाडा की अपनी यात्रा को पश्चताप और क्षमा याचना का दौर कहा।

दिलीप संजय  एक्का-वाटिकन सिटी

कनाडा, रोमवार, 25 जुलाई 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने कनाडा की अपनी प्रेरितिक यात्रा के प्रथम दिन मास्कवासिस से आदिवासियों से मुलाकात करते हुए आवासीय विद्यालयों में हुई घटनाओं के लिए दुःख व्यक्त करते हुए पश्चतापी हृदय से क्षमा की याचना की।

संत पापा ने फस्ट नेशंस के आदिवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस स्थान की दर्दभरी यादों के साथ मैं अपने पश्चतापी तीर्थयात्रा की शुरूआत करना चाहूँगा। “मैं आप के देश में व्यक्तिगत रुप से अपने दुःख को व्यक्त करने, ईश्वर से क्षमा मांगने, चंगाई और मेल-मिलाप करने, आप सभों के संग सामीप्य व्यक्त करते हुए आपके लिए और आप के साथ प्रार्थना करने आया हूँ”।

दुःख की यादें नई राह बने

संत पापा ने कहा कि मैं चार महीने पूर्व रोम में हमारी मुलाकात की याद करता हूँ। उस समय मुझे हिरन खाल के दो जोड़े जूते दिये गये थे जो आदिवासी बच्चों के दुःखों को व्यक्त करता है विशेष कर उन दुर्भाग्यपूर्ण बच्चों की जो आवासीय स्कूलों के कभी लौट कर नहीं आये। कनाडा की अपनी इस यात्रा में मुझे उन जूतों को वापस करने करने का आग्रह किया गया जिसे में अपने इस संबोधन के बाद करूंगा। मैं इस निशानी पर चिंतन करना चाहूँगा जो विगत महीनों में मेरे लिए दुःख, आक्रोश और शर्म के कारण रहे हैं। सचमुच में उन बच्चों की यादें अपने में दुखदायी हैं जो हमें यह सुनिश्चित करने का आहृवान करती है कि हर बच्चा प्रेम, सम्मान और आदर के साथ देखा जाये। वे जूते हमें एक राह के बारे भी कहते हैं जिसमें हम एक साथ आगे बढ़ने की चाह रखते हैं। वे हम एक साथ आगे बढ़ने, प्रार्थना और मिलकर कार्य करने हेतु आमंत्रित करते हैं जिससे अतीत की दुःखदायी यादें हमें भविष्य में न्याय, चंगाई और मेल-मिलाप की ओर अग्रसर कर सकें।

यही कारण है कि मेरी इस यात्रा का प्रथम चारण यह प्रांत है जहाँ आदि काल से आदिवासी लोग रहते हैं। यह भूमि हमें याद करने के योग्य बनाती है। 

पृथ्वी ईश्वर का उपहार

संत पापा ने याद करने के विषय में कहा कि आप इस भूमि में हजारों सालों से निवास कर रहे हैं, आप जीवन में उन चीजों का अनुसरण करते हैं जो पृथ्वी का आदर करती है जिसे आप ने अपने पुरखों से पाया और जिसे आप अपने आने वाली पीढ़ी के लिए देने की चाह रखते हैं। आप ने इसे ईश्वर से एक उपहार स्वरूप पाया है जिसे आप एक-दूसरे के साथ और सभी जीवों के संग एक गहरी मित्रता के रुप में साझा करते हैं। इस भांति आप ने एक परिवार और समुदाय की सोच को जन्म दिया है, जहाँ आप बड़ों का आदर और छोटों का सम्मान करते हुए पीढ़ियों के बीच एक सशक्त संबंध बनाते हैं। समृद्ध रीति-रिवाजों और शिक्षाओं का खजाना, जो दूसरों की चिंता, सच्चाई, साहस और सम्मान, नम्रता, ईमानदारी और व्यवाहारिक ज्ञान पर केन्द्रित है।

भूलना उदासीनता का उद्गम बनता है

यदि वे उन भूमियों पर प्रथम कदम थे, तो यादगारी के मार्ग को हम दुःख स्वरूप अनुसरण करते हैं। यह स्थान जहाँ हम जमा हुए हैं मुझ में घोर दुःख और दर्द की भावना जागृत करती है जिसका अनुभव मैंने विगत महीनों में किया है। मैं आवासीय विद्यालयों में हुए उन हृदय विदारक घटनाओं के बारे में विचार करता हूँ जिसे आपको, आपके परिवारों और समुदायों को झेलना पड़ा। ये वे दिल हिला देने वाली घटनाएं हैं जिन्हें याद करते हुए जिक्र करने से हमें ऐसा लगता है मानों वे पुनः घटित हो रही हैं। “मैं इस बात का अनुभव करता हूँ आज का हमारा यह मिलन उन पुरानी यादों को लेकर आती और हमें दुःख पहुँचाती है और आप में बहुत से हैं जो उसके बारे में चर्चा करने हेतु असहज महसूस करते हैं। यद्यपि यह उचित है क्योंकि उन्हें भूलना हमें उदासीनता की ओर ले चलता है, जैसे कि कहा गया है “प्रेम का विपरीतार्थक घृणा नहीं बल्कि उदासीनता है...और जीवन का विपरीतार्थक मृत्यु नहीं उदासीनता है”(E. WIESEL)। उन भयावह अनुभवों की याद करना जो आवासीय विद्यालयों में घटित हुए हमें चोट, क्रोध, दर्द से भर देती है और इसके बावजूद यह हमारे लिए जरुरी है। 

नीतियों का कहर

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हमें मिलान और मताधिकार की नीतियों को याद करने की जरुरत है जो आवासीय विद्यलयों को अपने में सम्माहित करता है, जो इन भूमियों में रहने वाले के लिए खतरनाक है। जब यूरोपीयन उपनिवेशों का पहली बार यहाँ आगमन हुआ था, उनके बीच संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और आध्यात्मिकता के स्वरुपों को फलहित करने के एक बहुत बड़े अवसर थे। लेकिन इसमें अधिकतर कुछ नहीं हुआ। पुनः मैं आप के द्वारा बतलाई गई कहनियाँ के बारे में सोचता हूँ कि कैसे मिलान की नीतियों ने व्यवस्थित रुप में हशिए पर रहने वालों को खत्म कर दिया, कैसे आवासीय विद्यालयों की प्रणाली द्वारा आप की भाषा और संस्कृति को कलंकित करते हुए कुचल दिया, कैसे बच्चों को शारीरिक, शाब्दिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक शोषण का शिकार होना पड़ा, कैसे उन्हें छोटी उम्र में अपने घरों से ले जाया गया और कैसे यह माता-पिता और बच्चों, दादा-दादियों और नाती-पोतों के संबंध को अमिट रुप से प्रभावित किया।

पश्चताप और क्षमा

संत पापा ने कटु अनुभवों को अपने साथ साझा करने के लिए आदिवासियों की प्रंशसा की। “आज मैं इस धरती पर जो खुले घावों को अपने में वहन करती है, यहां की पुरानी यादों के साथ हूँ।” उन्होंने अपनी प्रेरितिक यात्रा के सार को व्यक्त हुए कहा कि मैं पश्चताप की यात्रा करते हुए और एक बार क्षमा की याचना करता हूँ। उन्होंने ख्रीस्तीय के द्वारा उपनिवेश को बढ़ावा देने हेतु खेद प्रकट किया जो आदिवासियों के लिए प्रताड़ना का कारण बना। “मैं दुःखी हूँ। मैं क्षमा की याचना करता हूँ विशेष रुप से कलीसिया के सदस्यों और धार्मिक समुदायों की उदासीनता के लिए जिसके कारण आवासीय विद्ययालयों को अत्यधिक बढ़ावा मिला।”

ऐसा भी नहीं कि उस समय ख्रीस्तीय करूणा अनुपस्थिति थी बल्कि हम बहुत से उत्तम उदाहरणों को पाते हैं जिस के द्वारा बच्चों की देख-रेख की गई, लेकिन आवासीय विद्यालयों की नीतियों का प्रभाव विनाशकारी रहा। ख्रीस्तीय विश्वास हमें यह बतलाता है कि यह एक विनाशकारी त्रुटि थी, जो येसु मसीह के सुसमाचार से एकदम भिन्न थी। यह सोचकर दुःख होता है कि आपकी पहचान बनाने वाले मूल्यों, भाषा और संस्कृति की दृढ़ मिट्टी कैसे मिट गई और आप अब भी इसकी कीमत चुका रहे हैं। बुराई के इस चेहरे के सामने कलीसिया अपने घुटनों में झुक ईश्वर से उसकी संतानों के पापों की खातिर क्षमा की याचना करती है। (cf. JOHN PAUL II, Bull Incarnationis Mysterium [29 November 1998), 11: AAS 91 [1999], 140). मैं शर्म और स्पष्टता में स्वयं इस बात को सुनिश्चित करता हूँ। मैं बहुत से ख्रीस्तियों के द्वारा आदिवासियों के प्रति किये गये बुरे कार्यों के लिए नम्रतापूर्वक क्षमा की याचना करता हूँ।

संत पापा ने कहा कि आपके बहुत से प्रतिनिधियों ने यह कहा है कि क्षमा याचना करना इन बातों को समाप्त नहीं करता है। मैं इस बात से पूर्णरूपेण सहमत हूँ- यह केवल एक शुरूआती दौर है। “अतीत की ओर देखते हुए, क्षमा मांगने का प्रयास नहीं करना और क्षति की भरपाई का प्रयास करना अपने में कॉफी नहीं होगा” उसी प्रकार “भविष्य की ओर देखते हुए, संस्कृति को प्रसारित करने हेतु हमें कोई कसर नहीं छोड़ी चाहिए” (Letter to the People of God, 20 August 2018)। इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अतीत में हुई घटनाओं के तथ्यों की गंभीर जांच करना और आवासीय विद्ययालयों के बचे लोगों को उनके द्वारा झेले गए आघात से मुक्त होने में सहायता करना होगा।

मूलवासियों की सहायता करें

संत पापा ने कहा कि मैं आशा करता हूँ इस धरती पर ख्रीस्तीयता और सामाजिक जीवन का विकास हो जहाँ आदिवासियों के अनुभवों का सम्मान किया जाये और उन्हें सम्मान मिले। उन्होंने इस बात की आशा की कि लोगों को आदर और सम्मान देने हेतु ठोस कदम उठाये जायें जिससे वे सभी एक साथ चलना सीख सकें। “मैं अपनी ओर से सदा इस बात पर जोर दूंगा की सभी काथलिक आदिवासियों की सहायता हेतु आगे आयें”। मैंने इसे कई रुपों में किया है जो हमसे समय और धैर्य की मांग करती है। प्रक्रिया को हृदय में प्रवेश करने में समय लगता है। मेरी यहाँ उपस्थिति और कानाडा के धर्माध्यक्षों की निष्ठा इस मार्ग में बने रहने का एक साक्ष्य है।

संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में विभिन्न स्थानों के मूल निवासियों और आदिवासियों को इस बात का विश्वास दिलाया कि वे उनके दुखों और कठिनाइयों, चुनौतियों और आपदाओं से वाकिफ हैं तथा उन्हें अपने विचारों और प्रार्थनाओं में सदैव याद करते हैं। पश्चताप के इस तीर्थ में कही गई मेरी बातें सभी देश के आदिवासियों को अपने में सम्माहित करती हैं जिन्हें मैं प्रेम से आलिंगन करता हूँ।

हमें ईश्वर की आवश्यकता है

संत पापा ने पुनः अपनी इस विशेष प्रेरितिक यात्रा की विषयवस्तु पर जोर देते हुए कहा कि मैं यहाँ आप के साथ हूँ और आप के अतीत की याद करते हुए दुःख का अनुभव करता हूँ। हम एक साथ शांति में सिर झुकाते हुए कब्रों के सामने प्रार्थना करते हैं। शांति के ये क्षण हमें दर्द को अनुभव करने में मदद करे। बुराई की उपस्थिति में हम अच्छाई के ईश्वर से निवेदन करें, मृत्यु के समाने हम जीवनदाता ईश्वर से प्रार्थना करें। येसु ख्रीस्त कब्र में दफनाये गये जो हमारे लिए आशा और सपने लाता है, जहाँ हम अपने दुःख, दर्द और परित्यक्त की भावना को पीछे छोड़ते और उसे पुनर्जन्म और पुनरूत्थान का एक स्थल बनाते हैं, जहाँ से नये जीवन का एक इतिहास और वैश्विक मेल-मिलाप की शुरूआत होती है। मेल-मिलाप के हमारे प्रयास अपने में काफी नहीं हैं हमें ईश्वर की कृपा की आवश्यकता है। हमें पवित्र आत्मा की शांतिमय शक्तिशाली प्रज्ञा, उनके कोमल प्रेम की जरुरत है। वे हमें हृदय की गरहाई में इन बातों की अनुभूति लायें। वे हमारे मार्ग को प्रशस्त करें और एक साथ हमारी यात्रा में हमें आगे ले चलें।

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कनाडा तीर्थयात्रा की एक झलक
25 July 2022, 17:38