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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

देवदूत प्रार्थना में पोप: हम भ्रातृ-प्रेम द्वारा येसु की घोषणा करें

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए ख्रीस्तियों से अपील की कि वे आपसी सम्मान एवं भ्रातृ-प्रेम द्वारा येसु का साक्ष्य दें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 3 जुलाई 2022 (रेई) – वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 3 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एव बहनो, सुप्रभात।

इस रविवार के सुसमाचार पाठ में हम पढ़ते हैं कि प्रभु ने अन्य 72 शिष्यों को नियुक्त किया और जिस जिस नगर एवं गाँव में वे जानेवाले थे वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा। (लूक. 10:1)

संत पापा ने कहा, "शिष्य दो-दो करके भेजे गये, अकेले नहीं। व्यवहारिक दृष्टिकोण से दो-दो करके मिशन में जाना फायदे से ज्यादा नुकसान देह होता है। क्योंकि इस बात का खतरा रहता है कि दोनों आपस में सहमत न हों, कि वे अलग गति से चलें, कि एक रास्ते में थक जाए या बीमार हो जाए और दूसरे को रुकने के लिए मजबूर कर दे। दूसरी ओर जब व्यक्ति अकेला होता है तब यात्रा तेज और सुगम होती है। हालांकि येसु ऐसा नहीं सोचते : वे शिष्यों को लोगों के पास अकेला नहीं भेजते बल्कि दो-दो करके भेजते हैं। आइये हम अपने आप से पूछें : प्रभु के इस चुनाव का क्या कारण है? यह शिष्यों का कर्तव्य था कि वे गाँवों में जाकर येसु का स्वागत करने के लिए लोगों को तैयार करें।

आपसी सम्मान में ख्रीस्त का प्रचार

येसु ने शिष्यों को जो निर्देश दिया उसमें बोलने पर अधिक नहीं बल्कि व्यवहार करने पर अनुदेश दिये गये थे। निश्चय ही वे उन्हें मजदूर के रूप में परिभाषित करते हैं। अतः उन्हें सुसमाचार प्रचार करने हेतु काम करना है, अपने व्यवहार से। और पहला व्यवहारिक कार्य जिसके द्वारा शिष्य मिशन कार्य करते है वह है दो-दो करके जाना। वे मुक्त चालक या उपदेशक नहीं हैं जो दूसरों के लिए शब्दों का प्रयोग करना नहीं जानता। यह मुख्य रूप से शिष्यों का जीवन है जो सुसमचार का प्रचार करता है : उनका एक साथ रहना, आपसी सम्मान, अपने आपको दूसरे से अधिक सक्षम सिद्ध नहीं करना, एक स्वामी के लिए उनका समवर्ती संदर्भ आदि।

उत्तम योजनाएँ

उत्तम प्रेरितिक योजनाएँ बनायी जा सकती हैं और सुव्यवस्थित तरीके से योजनाएँ लागू की जा सकती हैं, व्यक्ति भीड़ जमा कर सकता है एवं उसके पास कई साधन हो सकते हैं; किन्तु यदि उसमें भ्रातृत्व की चाह नहीं है तो मिशन आगे नहीं बढ़ सकता।

इसे समझने के लिए संत पापा ने एक उदाहरण देते हुए कहा, "एक बार एक मिशनरी ने बतलाया कि उसने किस तरह अपने साथी के साथ अफ्रीका के लिए प्रस्थान किया। किन्तु कुछ समय के बाद वह अलग हो गया, उस गाँव में रूक गया जहाँ वह सफलता पूर्वक समुदाय की भलाई के लिए निर्माण कार्य करा रहा था। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन उसे एक दिन झटका लगा, उसे महसूस हुआ कि उसका जीवन सिर्फ एक अच्छे उद्यमी का था, जहाँ वह हमेशा निर्माण स्थलों एवं लिखाई-पढ़ाई के बीच रह रहा था। अतः उसने प्रबंधन के कार्य को दूसरों के लिए छोड़ दिया और अपने साथी के साथ हो लिया। इस तरह वह समझ गया कि प्रभु ने क्यों शिष्यों को दो-दो करके भेजा था। सुसमाचार का मिशन व्यक्तिगत कार्यों पर आधारित नहीं है बल्कि भ्रातृत्व प्रेम पर आधारित है, यहाँ तक कि कठिन समय में भी एक साथ रहने पर जोर देता है।

भ्रातृ-प्रेम के साथ सुसमाचार का प्रचार

अतः हमें चिंतन करना है कि हम सुसमाचार को दूसरों तक किस तरह ले जाते हैं? क्या हम इसे भ्रातृत्व की भावना से करते हैं अथवा क्या हम दुनियावी के तरीके से, पदोन्नति, प्रतिस्पर्धा और दक्षता के साथ करते हैं? आइये हम अपने आप से पूछें, क्या हम एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकते हैं, क्या हम एक साथ निर्णय लेना जानते हैं, जो दूसरे पक्ष में हैं उनका ईमानदारी से सम्मान करना जानते हैं और उनके दृष्टिकोणों पर ध्यान देते हैं। निश्चय ही, इस तरह सच्ची घोषणा द्वारा एक शिष्य अपने जीवन से दूसरों के लिए स्वामी की झलक प्रस्तुत करता है।

तब उन्होंने माता मरियम से प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए कहा, "कुँवारी मरियम, कलीसिया की माता हमें भ्रातृत्व के साक्ष्य द्वारा प्रभु का रास्ता तैयार करना सिखा।"       

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना में संत पापा का संदेश

 

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03 July 2022, 15:10