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संत पापाः हमारी असफलता येसु का मार्ग

संत पापा फ्रांसिस ने कनाडा की अपने प्रेरितिक यात्रा के पांचवें दिन बेऊपेरे के संत अन्ना राष्ट्रीय तीर्थस्थल में मेल-मिलाप का यूखारिस्तीय बदिलान अर्पित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

कनाडा, गुरूवार, 28 जुलाई 2022 (रेई) कनाडा तीर्थयात्रा के पांचवें दिन संत पापा ने बेऊपेरे के राष्ट्रीय तीर्थस्थल पर मिस्सा बलिदान अर्पित किया। उन्होंने एम्माऊस की राह में चल रहे शिष्यों के जीवन पर चिंतन करते हुए ख्रीस्तियों के जीवन में येसु की उपस्थिति पर प्रकाश डाला।

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि संत लूकस रचित सुसमाचार के अंत में शिष्यों के द्वारा एम्माऊस की यात्रा हमारे व्यक्तिगत जीवन और कलीसिया की यात्रा का हाल व्यक्त करता है। जीवन और विश्वास के मार्ग में जहाँ हम अपने हृदय की गहराई में सपनों, योजनाओं, आशाओं और इच्छाओं को प्राप्त करने की चाह रखते हैं, वहाँ हमें अपनी खाम्मियों और कमजोरियों का सामना भी करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में असफल होकर हम निराश हो जाते और अपने को असफलता के कारण कोढ़ग्रस्त का शिकार पाते हैं। यद्यपि सुसमाचार हमें यह बतलाता है कि वैसी परिस्थिति में हम अकेले नहीं होते क्योंकि येसु हमसे मिलने आते और हमारी बगल में खड़े होते हैं। वे हमारी राह में नम्रता से सह-यात्री की भांति चलते, वे हमारी आंखों को खोलना चाहते और हमारे हृदयों को उदीप्त करना चाहते हैं। हमारी असफलता में जब कभी हमारा मेल येसु से होता हम अपने मैं आशा और जीवन को पुनः पल्लवित होता पाते हैं जो हमें स्वयं से और अपने भाई-बहनों से, ईश्वर से मेल-मिलाप के योग्य बनाता है।   

संत पापा ने कहा कि अतः आइए हम इस यात्रा का अनुसरण करें। हम इसे असफलता से आशा की ओर यात्रा कह सकते हैं।

शिष्यों की हताशी

येसु की मृत्यु के बाद दो शिष्यों ने हृदय में असफलता का आतंक छाया हुआ था। उन्होंने बड़े उत्साह से येसु पर विश्वास और भरोसा में एक सपना देखा था। अब, क्रूस में येसु की घृणित मृत्यु के उपरांत वे येरुसालेम छोड़कर अपने पुराने जीवन की ओर लौट रहे थे। वे हताशा और निराश अपने घरों की राह में थे। (लूका.24.17)। उनकी उम्मीदों की सुखद अनुभूतियाँ शून्य हो गयीं, उनकी आशाएं और विश्वास चकनाचूर हो गया था, उनके सपने निराश और दुःख में तब्दील हो गये थे।

संत पापा ने कहा कि ऐसी बातें हमारे जीवन और आध्यात्मिक यात्रा में भी घटित होती हैं। जब हमारे जीवन के उच्चे आदर्शों को निराशा का शिकार होना पड़ा और हम अपनी कमजोरियों और अक्षमताओं के कारण  अपने लक्ष्य का परित्याग करने की स्थिति में होते तो वैसे परिस्थिति में हमें अपनी अपेक्षाओं को फिर से जांचने और अपनी असफलताओं और जीवन की अस्पष्टताओं और भ्रमों का सामना करने को मजबूर किया जाता है। हम किसी बड़े परियोजना की शुरूआत करते लेकिन हमें लगता कि हम आगें नहीं बढ़ सकते हैं (रोमि.7.8)। हममें हर कोई कभी न कभी अपने दैनिक जीवन और संबंधों में असफलता, एक गलती या गिरने का अनुभव किया है। ऐसी परिस्थिति में हम जिन बातों में विश्वास करते थे या जिन पर हमारा समर्पण था शून्य होने-सा लगता है। हम अपने पापों से अपने को कुंठित और उदासी में उलझा पाते हैं।

उदासी से उठते सवाल

संत पापा ने कहा कि पहले पाठ में हम आदम और हेवा को इसी परिस्थिति में पाते हैं, उनका पाप उन्हें न केवल ईश्वर से दूर कर देता वरन वे अपने को एक-दूसरे से दूर पाते हैं। वे अब एक-दूसरे के ऊपर दोष लगाते हैं। हम एम्माऊस के शिष्यों में इस बात को पाते हैं जो उदासी में अपनी वार्ता करते हैं। हम इसे कलीसिया के जीवन में भी पाते हैं जो येसु के शिष्यों स्वरुप उन दो शिष्यो में प्रस्तुत होता है। यद्यपि हम पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त के समुदाय हैं, हम बुराई और हिंसा की परिस्थिति जो हमें कलवारी की ओर अग्रसर करती है, अपने को भ्रमित और निराशा में पाते हैं। वैसे परिस्थितियों में अपनी असफलताओ में चिपके हम थोड़ा और कुछ अधिक करते हुए अपने में सवाल कर सकते हैं-क्या हुआॽ ऐसा क्यों हुआॽ यह कैसे हो सकता हैॽ

संत पापा ने कहा कि ये हमारे सवाल हैं, और ये कनाडा की यात्री कलीसिया के ज्वलंत सवाल हैं जिसे वे हृदय में दुःख स्वरूप वहन करते जो उनकी चंगाई और मेल-मिलाप की यात्रा को कठिन बनाती है। बुराई के कलंक का सामना करते हुए येसु का शारीर आदिवासी भाइयों एवं बहनों के रुप में घायल हुआ जिसका अनुभव हम भी अपने में गहराई से करते हैं, हमें भी अपनी गलती की अनुभूति होती है। संत पापा ने उन तीर्थयात्रियों के संग अपने को सहभागी किया जो “पवित्र सीढ़ी” पर चढ़ते हैं जो पिलातुस के दरबार में येसु के प्रवेश की याद दिलाती है। उन्होंने तीर्थयात्रियों के संग एक कलीसिया के रुप में उन सवालों पर चिंतन किया- ये सारी चीजें क्यों हुईॽ यह उस समुदाय में कैसे हो सकता है जो येसु का अनुसरण करते हैॽ

शत्रु के प्रलोभन

संत पापा ने कहा कि ऐसे समय में हम भागने के प्रलोभन से सचेत रहें, जिसे हम सुसमाचार के दो शिष्यों में पाते हैं। पीछे लौटने की परीक्षा, उस स्थान को छोड़ने का प्रलोभन जहाँ ये सारी बातें घटित हुई, सभी चीजों को ढ़कने और “एम्माऊस” में शरण लेने की कोशिश जहाँ हम उन बातों के बारे में फिर कभी विचार नहीं करने की सोचते हैं। जब हम अपने जीवन में असफलता का सामना करते तो उसे छुपाने हेतु उस परिस्थिति से भागने से बुरा और कुछ भी नहीं सोचते हैं। यह प्रलोभन हमारे लिए शत्रु की ओर से आता है जो हमें इस बात से भयतीत करता है कि हमारी असफलताएं अब अपरिवर्तनीय हैं। वह हमें दुःख और उदासी से पंगु बनाना चाहता है, हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि और कुछ भी नहीं हो सकता है, नये सिरे से प्रयास करना व्यर्थ है।

ईश्वर का हस्ताक्षेप

संत पापा ने कहा कि अपने जीवन की ऐसी परिस्थिति में जहाँ हमें निराश और दुःख का अनुभव करते-जब हम बुराई की हिंसा और पाप के शर्म से भयभीत हो जाते, जब जीवनदायी जल पाप और असफलता के कारण हमारे जीवन में सूखा प्रतीत होता है, हम सारी चीजों से लूट लिये जाने का अनुभव करते- ऐसी परिस्थिति में येसु हमसे मिलने आते हमारे साथ रहते और हमारी बगल में चलते हैं। एम्माऊस की राह में येसु धीरे से चेले का पास आते और उनके उदासी भरे कदमों में कदम मिलाकर चलते हैं। वे उनके साथ और क्या करते हैॽ वे उन्हें प्रोत्साहन के शब्द नहीं कहते, बल्कि धर्मग्रंथ में कही गई अपनी रहस्यमय मृत्यु और पुनरूत्थान की बातों से उन्हें अवगत कराते हैं, वे उनके जीवन को और अपने ऊपर हुई घटनाओं को उन्हें समझने हेतु प्रकाशिकत करते हैं। वे सारी बातों को नये रुप में देखने हेतु उनकी आंखों को खोलते हैं। इस महागिरजाघर के यूखारिस्तीय बलिदान में सहभागी होने वाले अपने जीवन इतिहास की सारी बातों को नये दृष्टिकोण से देखने में सक्षम होंगे। इस स्थान में तीन गिरजाघर थे जिसे लोगों ने कठिन परिस्थितियों, अपने और दूसरों के द्वारा हुई गलतियों के बाद भी छोड़ना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने को एक सदी पहले लगी यहाँ आग से व्यकुल होने नहीं दिया बल्कि साहस और सृजनात्मकता में उसका पुनर्निर्माण किया। इस मिस्मा बलिदान में सहभागी हो रहे निकटवर्ती प्रांत के लोग अपने में धैर्यवान बनें रहे और युद्ध, घृणा और विनाश के बावजूद भी एक नये शहर और नये देश का निर्माण किया।

ईश्वर की पहचान कैसे हो

अंततः येसु ख्रीस्त ने एम्माउस के शिष्यों की उपस्थिति में रोटी तोड़ते हुए इस रहस्य का खुलासा किया कि वे प्रेमी ईश्वर हैं जो अपने मित्रों के लिए अपने जीवन को अर्पित करते हैं, जिससे उनकी आंखें खुल गई। इस भांति वे उनकी खुशी की यात्रा को नये शिरे से शुरू करते हैं जहाँ वे असफलता से आशा में प्रवेश करते हैं। संत पापा ने कहा कि येसु हम सबों से और अपनी कलीसिया से यही आशा रखते हैं। हमारी आंखें कैसे खुलेंगेॽ हमारे हृदय कैसे पुनः सुसमाचार के उदीप्त होंगेॽ आध्यात्मिक और भौतिक कठिनाइयों में, अपनी हताशी और चिंता से बाहर निकलने, अपने अतीत के घावों से चंगाई और ईश्वर तथा एक-दूसरे से मेल करने हेतु हम क्या कर सकते हैंॽ जिससे हम एक न्याय और भ्रातृत्वमय समाज की निर्माण कर सकें।

येसु ही एकमात्र मार्ग

संत पापा ने कहा कि इसके लिए सिर्फ एक ही मार्ग है और वह येसु का मार्ग है, वे स्वयं येसु हैं (यो.14.6)। आइए हम इस बात पर विश्वास करें कि वे हमारी यात्रा में हमारे साथ आते हैं। हम उनसे मिलने जायें। हम उनके वचनों से अपने इतिहास को, अपने को एक समुदाय के रूप में परिभाषित होने दें, जो हमें चंगाई और मिलन के मार्ग दिखलायेगा। विश्वास के साथ हम इस यूखारिस्त में रोटी तोड़ें, जिससे हम इस बलि बेदी के चारों ओर, अपने को पिता के प्रेमी संतान की भांति पायें जिन्होंने हम सभों को बुलाया है।

ईश्वरीय योजना में नारियाँ अहम

रोटी तोड़ना, नारी के संदेश को सुदृढ़ करता है जिनकी बातों को सुनते हुए भी शिष्य विश्वास के अयोग्य होते कि येसु ख्रीस्त जी उठे हैं। यह महागिरजाघर जो कुंवारी मरियम के निष्कलंक देहधारण को समर्पित है हम कैसे इस बात पर संदेह करें कि ईश्वर नारियों को अपनी मुक्ति योजना का अंग बनाने की चाह रखते हैं। संत अन्ना, कुंवारी मरियम, पुनरूत्थान की सुबह नारियाँ हमें मिलन की नई राहों को व्यक्त करती हैं। नारियों का मातृत्व प्रेम जो हमारे साथ, कलीसिया के संग चलती है, मृत्यु और जीवन के सूखेपन को समाप्त करती और पुनर्जीवित येसु को क्रेन्द-बिन्दु में लाती है।

संत पापा ने कहा कि हम अपने सवालों को, अपने आंतरिक संघर्षों या कलीसिया के प्रेरितिक जीवन को क्रेन्द में न लायें, बल्कि, हम येसु ख्रीस्त को क्रेन्द-बिन्दु में रखें। हम उनके वचनों को अपने जीवन के क्रेन्द में रखें क्योंकि यह हमारे जीवन की सारी चीजों को आलोकित करता और हमारी आंखों को खोलता है। यह हमारे लिए ईश्वर की उपस्थिति को देखने और निराशाजनक परिस्थितियों में भी आशा का संचार करता है। हम जीवन की रोटी जिसे येसु हमें देते हैं अपने जीवन के क्रेन्द में रखें जिससे वे हमारे संग अपने को साझा कर सकें, हमारी कमजोरियों का आलिंगन करें, हमारे कमजोर कदमों और हृदयों को मजबूत करें। इस भांति ईश्वर से मेल करते हुए हम दूसरों के संग, स्वयं अपने संग मेल-मिलाप कर सकेंगे जो हमें मेल-मिलाप और शांति के साधन बनायेगा। 

हमारे साथ रह जाइए, येसु

संत पापा ने विनयपूर्ण निवदेन के साथ अपने प्रवचन का अंत किया- हे येसु, हमारी राह, हमारी शक्ति और सांत्वना, एम्माऊस के चेलों की तरह हम याचना करते हैं, “हमारे साथ रह जाइए क्योंकि शाम हो रही है” (लूका. 24.29)। हमारे साथ रह जाइए, हे प्रभु, जब हमारी आशा धूमिल हो जाती और हम निराशा की रातों में गिर जाते हैं। हमारे साथ रह जाइए, क्योंकि आप का हमारे साथ रहना हमारी यात्रा को शक्ति से भर देता और अविश्वास की अंधी गलियों में आनंद का विस्मय पुनर्जन्म होता है। हमारे साथ रह जाइए, प्रभु, क्योंकि आप के साथ रात का दर्द भोर की जीवनदायी चमक में बदल जाता है। हम सभी यह कहें- हमारे साथ रह जाइए, प्रभु, क्योंकि यदि आप हमारे साथ चलते तो असफलता हमारे लिए आशा और नये जीवन का कारण बनती है।

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28 July 2022, 19:08