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वाटिकन में कनाडा के मूलवासी लोगों के साथ संत पापा फ्राँसिस वाटिकन में कनाडा के मूलवासी लोगों के साथ संत पापा फ्राँसिस   संपादकीय

एक प्रायश्चित तीर्थयात्रा

कनाडा में संत पापा की आगामी तीर्थयात्रा की विशेषता ˸ मूलवासी लोगों के प्रति सामीप्य का ठोस भाव।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने अपने करीब एक दशक के परमाध्यक्षीय काल में अपने अंतरराष्ट्रीय यात्रा को कभी भी "प्रायश्चित तीर्थयात्रा" नहीं बतलाया। इसी व्याख्या का प्रयोग संत पापा ने रविवार 17 जुलाई के देवदूत प्रार्थना के दौरान की जो हमें कनाडा में आगामी यात्रा की विशेषता को समझने में मदद देता है। सबसे पहले, यह देश का दौरा नहीं है, न ही काथलिक समुदाय से मिलना इसका मुख्य उद्देश्य है, बल्कि यह मूलवासी लोगों के प्रति सामीप्य का ठोस भाव है जो वहाँ रहते हैं और जिन्होंने उपनिवेशवाद के परिणाम का कष्ट झेला है।  

उपनिवेशवाद की बुराइयों में से एक है मूलवासी लोगों की संस्कृति को समाप्त करना, जो तथाकथित "आवासीय विद्यालयों" में किया गया था। कई संस्थान थे जिन्होंने मूलवासी बच्चों को उनके परिवारों से अलग करते हुए कड़े अनुशासन के साथ शिक्षा देने और उनका मार्गदर्शन करने की कोशिश की। ये स्कूल, जिनकी मृत्यु दर बहुत अधिक थी, कनाडा सरकार द्वारा स्थापित किए गए थे, जिन्होंने उन्हें वित्तपोषित भी किया था, लेकिन उनका प्रबंधन काथलिक धर्मसमाजियों सहित ख्रीस्तीय कलीसियाओं को सौंपा गया था।

चंगाई और मेल-मिलाप की यात्रा कुछ समय पहले शुरू हुई है और एक मूलभूत कदम के रूप में, मार्च और अप्रेल में रोम में मुलाकात हुई, जिसमें संत पापा फ्राँसिस ने फस्ट नेशन (प्रथम राष्ट्र) मेतिस और इनसुइट दलों से मुलाकात की, पहले अलग-अलग और बाद में एक साथ तथा अतीत में जो हुआ है उसके लिए खेद एवं लज्जा प्रकट किया।

मूलवासी लोगों ने स्वागत किया गया और सबसे बढ़कर सुना गया महसूस किया। लेकिन उनकी तीव्र इच्छा थी कि संत पापा उनकी भूमि का दौरा करें एवं क्षमा मांगें।

इस तरह संत पापा की यात्रा को समझने की कुंजी पूरी तरह प्रायश्चित के मनोभाव में निहित है जो इसके उच्च बिंदुओं की विशेषता होगी। यह वही मनोभाव है जिसका सुझाव संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने 2010 में बाल यौन दुराचार के कलंक के लिए दिया था, उसी तरह, संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने 2000 की जयन्ती में "यादगारी के शुद्धिकरण" का प्रस्ताव रखा था, जब उन्होंने "उन लोगों द्वारा की गई गलतियों को पहचानने में साहस और नम्रता की मांग की थी, जो ख्रीस्तीय नाम धारण करते हैं।" इस विश्वास के आधार पर कि "उस बंधन के कारण जो हमें रहस्यमय शरीर में एक-दूसरे से जोड़ता है, हालांकि व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं है और ईश्वर के न्याय का अतिक्रमण नहीं करते, जो सभी के हृदय को जानते हैं, हम उन लोगों की गलतियों एवं दोषों का भार उठाते हैं जो हमसे पहले चले गये हैं।"

पीड़ितों एवं उनके परिवारवालों के जूते पर अपना पाँव डालकर जानना कि किस तरह सुनना है, उनके दुःखों को साझा करना और उन्हें समझना, सामीप्य के मनोभाव से उत्तर देना और केवल ऐतिहासिक विश्लेषणों अथवा आँकड़ों के ठंढेपन पर निर्भर नहीं रहना, सचमुच ख्रीस्तीयता है। अतः संत पापा फ्राँसिस येसु के नाम में, कलीसिया के चरवाहे के रूप में, मुलाकात और आलिंगन करने आ रहे हैं जो विनम्रता प्रदर्शित करने एवं क्षमा मांगने में लज्जा महसूस नहीं करते।

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19 July 2022, 14:51