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यूक्रेन का मरियुपोल शहर यूक्रेन का मरियुपोल शहर 

पोपः युद्ध अच्छाई और बुराई का मापदण्ड नहीं

संत पापा फ्राँसिस ने काथलिक कलीसिया की प्रसिद्ध पत्रिका ला चिविल्ता कत्तोलिका को एक साक्षात्कार दिया है एवं यूक्रेन के युद्ध पर अपने विचारों को साझा किया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

सवालः यूक्रेन में उपस्थित (येसु समाज) मेरे प्रोविंस (पोलिश) का हिस्सा है। हम एक आक्रमक युद्ध का अनुभव कर रहे हैं। हम इसके बारे अपनी पत्रिकाओं में लिखते हैं। हम जिस परिस्थिति का अनुभव कर रहे हैं उसके बारे बतलाने पर आपकी क्या सलाह है? हम किस तरह एक शांतिमय भविष्य के लिए अपना योगदान दे सकते हैं?

संत पापा ने कहा कि इसका उत्तर देने के लिए सामान्य से कुछ हटना होगा। हम सीधे तौर पर किसी चीज की तुलना अच्छे और बुरे के लिए नहीं कर सकते। कुछ ऐसी वैश्विक चीजें उभर रही हैं, जिनके तत्व आपस में बहुत अधिक जुड़े हुए हैं। कुछ महीनों पहले युद्ध शुरू हुआ, मैंने देश के एक नेता से मुलाकात की, एक बुद्धिमान व्यक्ति जो बहुत कम बोलते हैं, सचमुच कम। और वे जो कहना चाहते थे उसे कहने के बाद, उसने बतलाया कि वे नाटो के आगे बढ़ने से बहुत चिंतित हैं। मैंने उनसे पूछा क्यों और उसने जवाब दिया ˸ वे रूस के द्वार पर भौंक रहे हैं। और वे यह नहीं समझते कि रूसी साम्राज्यवादी हैं और किसी भी विदेशी शक्ति को अपने पास नहीं आने देते। उन्होंने अंत में कहा, "ये स्थिति युद्ध की ओर अग्रसर कर सकती है।" यही उनका विचार था। 24 फरवरी को युद्ध शुरू हो गया। देश का वह नेता समय के चिन्ह को पढ़ सकता था जो अभी हो रहा है।

हम जो देख रहे हैं वह क्रूरता और निर्दयता है जिसके साथ सैनिकों द्वारा यह युद्ध छेड़ा गया है, जिसमें आमतौर पर भाड़े के (सैनिक) हैं, जिनका प्रयोग रूसी करते हैं। वे  चेचन, सीरिया के भाड़े के सैनिकों को आगे रखते हैं। किन्तु खतरा यह है कि हम केवल उसे देखते हैं जो राक्षस है किन्तु हम पूरे नाटक को नहीं देखते जो युद्ध के पीछे है कि शायद किसी तरह से उसे उकसाया गया था या रोका नहीं गया था। और मैं हथियारों के परीक्षण एवं बिक्री में रूचि पर गौर करता हूँ। यह अत्यन्त दुखद है लेकिन मूल रूप से यही दांव पर लगा है।

इस बिन्दु पर कोई मुझसे कह सकता है ˸ लेकिन आप पुतिन के पक्ष में हैं, जी नहीं, ऐसा नहीं हैं। ऐसा कहना सरल और गलत हो सकता है। मैं सिर्फ अच्छे और बुरे के बीच अंतर की जटिलता को कम करना चाहता हूँ, उसके मूल और रूचि पर विचार किये बिना जो अत्यन्त जटिल है। जब हम निर्दयता देखते हैं, रूसी सैनिकों की क्रूरता, तब हमें समस्याओं का समाधान करने की कोशिश को नहीं भूलना चाहिए।

यह भी सच है कि रूसी सोचते थे कि यह हफ्ते भर में समाप्त हो जाएगा। किन्तु उनका हिसाब गलत था। उन्होंने साहसी लोगों का सामना किया, ऐसे लोग जो बचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और जिनका इतिहास संघर्ष का रहा है।

मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि हम देख रहे हैं जो यूक्रेन में अभी इस तरह हो रहा है क्योंकि यह हमारे निकट है और हमारी संवेदना को छूता है। लेकिन दूर के दूसरे देश भी हैं – हम कुछ अफ्रीकी देशों की याद करें, नाईजीरिया के उत्तरी, कोंगो के उत्तरी भाग की, जहाँ युद्ध अभी भी जारी है और कोई इसकी परवाह नहीं करता। रूवांडा में 25 साल पहले की याद करें। म्यांमार एवं रोहिन्याई लोगों पर गौर करें। दुनिया युद्ध में जी रही है। कुछ सालों पहले मुझे लगा कि हम तीसरे विश्व युद्ध को टुकड़ों में महसूस कर रहे हैं। यहाँ, मेरे लिए लग रहा है कि तीसरे विश्व युद्ध की घोषणा हो चुकी है। और यह एक आयाम है जिसपर हमें चिंतन करना चाहिए? उस मानवता को क्या हो रहा है जिसे एक शताब्दी में तीन युद्दों का सामना करना पड़ रहा है? मैंने प्रथम विश्व युद्ध को अपने दादा की याद के रूप में जीया और उसके बाद दूसरा विश्व युद्ध आया और अब तीसरा। और यह मानवता के लिए बुरा है, एक विपत्ति है। हमें याद रखना चाहिए कि तीन विश्व युद्धों ने एक ही शताब्दी में एक-दूसरे का पीछा किया है जिन सबके पीछे हथियारों का व्यापार जुड़ा है। 

चार साल पहले, सिर्फ चार वर्षों पहले, नोरमैंडी में उतरने की 60वीं वर्षगाँठ मनायी गई। और कई देशों के नेताओं और सरकारों ने जीत की खुशी मनायी। उन लाखों युवाओं को किसी ने याद नहीं किया जिनकी मौत उस समय समुद्र तट पर हुई थी। जब मैं प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी के अवसर पर 2014 में रेडिपुग्लिया गया था - मैं अपनी एक व्यक्तिगत बात बतला रहा हूँ कि मैं वहाँ रो पड़ा था जब मैंने मृत सैनिकों की उम्र देखी। उसके कुछ साल बाद, जब हर साल 2 नवम्बर को मैं कब्रस्थानों का दौरा कर रहा था – मैं अंसियो गया हुआ था, तब वहाँ भी रोया था जब मैंने मृत सैनिकों की उम्र देखी। पिछले साल मैं फ्राँसीसी कब्रस्थान गया था वहाँ मैं उन लड़कों की कब्र देखी जो ख्रीस्तीय या मुस्लिम थे जिन्हें फ्राँस ने लड़ने के लिए उत्तरी अफ्रीका भेजा था। उनकी उम्र 20,22,24 साल थी। जब मैं स्लोवाकिया गया तब मैंने जवान और बूढ़ी महिलाओं की संख्या देखकर बहुत प्रभावित हुआ। हालांकि वहाँ कोई बूढ़ा व्यक्ति नहीं था। दादियाँ अकेली थीं। युद्ध ने उनके पतियों को छीन लिया।    

मैं आपको क्यों इन चीजों के बारे बतला रहा हूँ? क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आपकी पत्रिका युद्ध के मानवीय पक्ष को सम्बोधित करे। मैं चाहता हूँ कि आपकी पत्रिका युद्ध के मानवीय पत्र को समझे। भू-राजनीतिक गणना करना, चीजों का अच्छी तरह से अध्ययन करना बिल्कुल ठीक है। आपको उन्हें करना है क्योंकि यह आपका कर्तव्य है। किन्तु आप युद्ध के मानवीय घटनाओं को भी सामने रखें। उन कब्रस्थानों के मानवीय घटनाक्रम को, नोरमांडी या अंसियो के समुद्र तट के मानवीय घटनाओं को, एक महिला का मानवीय नाटक जिसके दरवाजे पर डाकिया दस्तक देता है और उसे अपनी मातृभूमि को एक बच्चा दान करने के लिए धन्यवाद पत्र थमाता कि वह मातृभूमि की नायिक है ... और इसलिए वह अकेली रहती है। इसपर चिंतन करने से मानवता एवं कलीसिया को बड़ी सहायता मिल सकती है। युद्ध पर मानवीय प्रतिबिम्ब की उपेक्षा किए बिना, अपने सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबिंब बनाएँ।  

हम यूक्रेन लौटें। यूक्रैनी शरणार्थियों के लिए हरेक व्यक्ति अपना हृदय खोलता है, जो सामान्यतः महिला अथवा बच्चे हैं। पुरूष युद्ध के लिए ठहर जाते हैं। पिछले दिनों के आमदर्शन समारोह में, यूक्रेन के सैनिकों की दो पत्नियाँ जो अजोवस्ताल स्टील प्लांट में हैं, उन्हें बचाये जाने के लिए मुझसे आग्रह करने आयीं। हम सभी इन नाटकीय परिस्थिति के प्रति सचेत हैं। महिलाएँ अपने बच्चों के साथ हैं और पुरूष वहाँ संघर्ष कर रहे हैं। जवान और सुन्दर महिलाएँ। पर मैं अपने आप से पूछता हूँ ˸ क्या होगा जब मदद करने का उत्साह समाप्त हो जाएगा? क्योंकि चीजें ठंढी हो रही हैं, इन महिलाओं की चिंता कौन करेगा? हम इस समय की ठोस कार्रवाई से परे देखें और यह भी देखें कि हम किस तरह उनकी मदद करेंगे कि वे तस्करी के शिकार न हों क्योंकि गिद्ध मंडराने शुरू कर चुके हैं।

यूक्रेन गुलामी और युद्ध की पीड़ा पहले भी सह चुका है। यह एक समृद्ध देश है, जो टुकड़ों में बंट चुका है उन लोगों के हाथों जो उसपर शोषण करने के लिए उसे हथियाना चाहते हैं। इतिहास ने यूक्रेन को एक साहसी देश के रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी वीरता को देखना हमारे हृदय को छू लेता है। इस वीरता के साथ कोमलता मिला हुआ है। वास्तव में, जब पहले युवा रूसी सैनिक पहुँचे, उसके बाद भाड़े के सैनिक भेजे गये, "सैनिक कार्रवाई के लिए" जैसा कि वे कहते हैं, उन्हें मालूम नहीं था कि वे युद्ध के लिए जा रहे थे। और जब उन्होंने आत्म समर्पण किया तो यूक्रेन की महिलाओं ने उनकी चिंता की। महान मानवता! महान कोमलता! साहसी महिलाएँ, साहसी लोग। वे ऐसे लोग हैं जो संघर्ष करने से नहीं डरते। कठिन परिश्रम करनेवाले लोग और साथ ही अपने देश पर गर्व करनेवाले लोग। हम इस समय यूक्रेन की पहचान को मन में याद रखें। इस वीरता को देखना मुझे प्रभावित करता है। मैं यूक्रेनी लोगों की वीरता पर जोर देना चाहूँगा। हमारी नजरों के सामने जो परिस्थिति है, वह है विश्व युद्ध, वैश्विक लाभ, हथियारों की बिक्री और भू-राजनीतिक विनियोग जो साहसी लोगों को मार रही है। 

मैं एक और चीज को जोड़ना चाहूँगा। प्राधिधर्माध्यक्ष किरिल के साथ मेरी 40 मिनट तक बातचीत हुई। पहले भाग में उन्होंने एक वक्तव्य को मेरे सामने पढ़ा, जिसमें उन्होंने युद्ध को न्यायसंगत ठहराने की कोशिश की। जब उन्होंने समाप्त किया, मैंने अपनी बात शुरू की और उनसे कहा, "भाई, हम राज पुरोहित नहीं हैं, हम जनता के चरवाहे हैं।" मैं उनके साथ 14 जून को येरूसालेम में मिलनेवाला था, हमारे मामलों पर बात करने के लिए, किन्तु युद्ध के साथ, आपसी सहमति से हमने मुलाकात को स्थगित किया है बाद की तारीख के लिए। ताकि हमारी मुलाकात पर कोई गलतफहमी न हो। मैं उनसे सितम्बर में कजाखस्तान की आमसभा में मुलाकात करने की उम्मीद कर रहा हूँ। मैं आशा कर रहा हूँ कि मैं उनका अभिवादन कर पाऊंगा और एक चरवाहे के रूप में उनसे थोड़ी बातें कर पाऊँगा।  

सवालः आध्यात्मिक नवनीकरण की कौन-सी निशानियों को आप कलीसिया में देखते हैंॽ क्या आप उन्हें देखते हैंॽ क्या नवीनता की कुछ निशानियाँ हैंॽ

पुराने दृष्टिकोण की शैली का उपयोग करते हुए आध्यात्मिक नवनीकरण को देखना अति कठिन है। हमें सच्चाई को देखने, मूल्यांकन हेतु अपने दृष्टिकोण को बदलने की जरुरत है। यूरोपीय कलीसिया में, मैं स्वाभाविक चीजों में बहुत सारे नयेपन को देखता हूँ, संघों, समूहों, नये धर्माध्यक्ष इस बात को याद करते हैं कि उनके कंधों में कलीसियाई धर्मसभा की जिम्मेदारी है। क्योंकि कुछ पुरोहित हैं जो टेरेंट की धर्मसभा को बेहतर रुप में याद करते हैं। मैं जिस बात का जिक्र कर रहा हूँ वह अपने में अर्थहीन नहीं है।

पुनःस्थापनावाद का उद्भव धर्मसभा पर प्रतिबंध लगाने हेतु हुआ है। उदाहरण के लिए “पुनःप्रतिष्ठानवादियों” का एक समूह है जिसकी संख्या अमेरीका में बहुत है, जो चौंकाने वाला है। अर्जेटीना के धर्माध्यक्ष ने मुझे बतलाया कि उन्हें इस बात के लिए आग्रह किया गया कि वे एक धर्मप्रांत की देख-रेख करें जो “पुनःस्थापितकर्ताओं” के हाथों में पड़ गया है। उन्होंने धर्मसभा को कभी स्वीकार नहीं किया। बहुत सारे विचार, व्यवहार पुनःस्थापनवाद से निकलकर आते हैं जो मूलरूप से धर्मसभा को स्वीकार नहीं करते हैं। यहां हम खास रुप में कठिनाई यह पाते हैं कि कुछ संदर्भों में धर्मसभा को अब तक स्वीकार नहीं किया गया है। हमारे लिए सच्चाई यह भी है कि धर्मसभा की बातों को सारगर्भित होने में सालों लग जाते हैं। इसे पनपने और बढ़ने हेतु हमारे लिए चालीस साल अब भी बचे हैं।

दूसरी निशानियाँ जहाँ हम समूहों को पाते जो सामाजिक कार्यों या प्रेरितिक सेवा के द्वारा कलीसिया के एक नये चेहरे को प्रस्तुत करते हैं। फ्रांसीसी इस संदर्भ में बहुत अधिक सक्रिय हैं।

आप का जन्म नहीं हुआ होगा, लेकिन 1974 में मैंने फा. पेदरो अरूपे, सुपीरियर जेनेरल, की मुसीबतों को 32वें सामान्य अधिवेशन के समय साक्षात देखा। उस समय एक अपरिवर्तनवादी प्रतिक्रिया ने अरूपे की प्रेरितिक पहल को रोकने का प्रयास किया। आज वे हमारे लिए एक संत हैं, लेकिन उन्हें बहुत सारे आक्रमणों का सामना करना पड़ा। वे साहसिक थे क्योंकि उन्होंने नये कदम लेने का साहस किया। अरूपे संत पापा के प्रति एक बड़े आज्ञाकारी व्यक्ति थे। एक महान आज्ञाकारी। संत पापा पौल 6वें ने इसे समझा। किसी भी संत पापा के द्वारा येसु समाज के लिए एक बेहतरीन संबोधन पापा पौल 6वें के द्वारा 03 दिसम्बर 1974 को किया गया था जिसमें उन्होंने पाण्डुलिपि का प्रयोग किया। इसकी वास्तविक प्रति आज भी मौजूद है। प्रेरित पौल 6वें इसे लिखने हेतु स्वतंत्र थे। वहीं दूसरी ओर,येसु समाज के कुरिया से संलग्न स्पानी येसु समाजियों के एक समूह जो अपने को सही रूप में “अर्थोडाक्स” समझता था, अरूपे का विरोध किया। पौल 6वें इस खेल के शिकार नहीं हुए। अरूपे में ईश्वर की इच्छा को देखने की एक योग्यता थी जिसे उन्होंने संत पापा के संग एक बालक की भांति सरलता में संयुक्त रहते हुए किया। मैं याद करता हूँ एक दिन हम एक छोटे समूह में कॉफी पी रहे थे, वे वहाँ पहुंचे और बोले,“आइए हम चलें, आइए हम चलें। संत पापा हमारे बीच आने वाले हैं आइए हम उनका स्वागत करें”। वे एक बालक की भांति थे। उनमें एक स्वाभाविक प्रेम था।

लोयोला प्रांत का एक येसु समाजी विशेष रुप से अरूपे के खिलाफ था हम इसे याद करें। उसे विभिन्न स्थानों में भेजा गया यहाँ तक कि अर्जेंटीना भी, और वह सदैव मुसीबत का सबब था। उसने एक बार कहा, “तुम एक हो जो कुछ नहीं समझते हो। लेकिन असल गुनाहगार फादर अरूपे और फादर कलाभेज हैं। मेरे लिए वे दिन अति खुशी के होंगे जब मैं उन्हें संत पेत्रुस के प्रांगण में फांसी पर लटकता हुआ देखूंगा।” मैं इस घटना की चर्चा क्यों कर रहा हूँॽ तुम्हें इस बात का एहसास दिलाने हेतु की धर्मसभा के बाद की अवधि कैसी थी। और यह अभी पुनः हो रहा है विशेष रुप से पंरपरागतवादियों के साथ। यही कारण है कि हमारे लिए यह जरूरी है कि हम उन निशानियों को सुरक्षित करने की जरुरत है जो धर्मसभा और संत पापा के प्रति निष्ठावान हैं। हमें अरूपे के दिनों की याद करना है, वे उस समय की वह ज्योति हैं जो हम सभों को प्रज्जवलित करते हैं। यह वे हैं जिन्होंने आध्यात्मिक साधना को एक स्रोत स्वरूप पुनः खोज निकाला, जिसके द्वारा उन्होंने अपने को कठोर फार्मूलों, इपीटोमे इंस्तीतूती (Epitome Instituti) यह कठोर विचारों के लिए एक अभिव्यक्ति है, जो रहस्यपूर्णत के बदले अधिक कठोर हिदायत पर बल देता है।

सवालः जर्मनी में एक सिनोडल यात्रा है जिसे कुछ लोग विधर्मी कहते हैं, लेकिन वास्तव में वह असल जीवन के करीब है। बहुत से लोग कलीसिया का परित्याग कर रहे हैं क्योंकि वे इस पर विश्वास नहीं करते हैं। यह विशेष कर कोलोन धर्मप्रांत की घटना है। आप इसके बारे में क्या सोचते हैंॽ

जर्मनी धर्माध्यक्षीय धर्म सम्मेलन के अधिकारी, धर्माअध्यक्ष बत्ज़िंग से मैंने कहा, “जर्मनी में एक बहुत अच्छी प्रेरितिक कलीसिया है। हमें दो की जरुरत नहीं है।” हमारे लिए मुसीबत की शुरूआत तब होती है जब सिनोडल मार्ग की उत्पत्ति बौद्धिक, ईशशस्त्रीय अभिजात वर्ग और बाह्य प्रभावकारिता के अत्यधिक दबावों में होती है। कुछ धर्मप्रांत हैं जहाँ सिनोडल मार्ग का अनुपालन निष्ठामय तरीके से, लोगों के संग धीरे से हो रहा है। मैंने सिनोडल यात्रा के संबंध में एक पत्र लिखना चाहा। मैंने स्वयं इसे लिखा, और इसे पूरा करने में एक महीना लगा। मैंने इसमें कूरिया को शामिल करना नहीं चाहा। मैंने स्वयं इसे किया। मूल प्रति स्पानी भाषा में लिखा और जर्मन में इसका अनुवाद किया। मैंने अपने विचारों को इस पत्र में अभिव्यक्त किया।

दूसरी बात, कोलोन धर्मप्रांत की समस्या के संबंध में। जब समस्या एकदम जटिल हो गई तो मैंने महाधर्माध्यक्ष से कहा कि वे छः महीने के लिए दूर चले जायें जिससे चीजें शांत हो और मैं उन्हें स्पष्ट रुप में देख सकूं। क्योंकि जब पानी में हलचल है तो आप स्पष्ट रूप में नहीं देख सकते हैं। जब वे लौट कर आये तो मैंने उन्हें त्यागपत्र लिखने को कहा। उन्होंने ऐसा किया और मुझे दिया। उन्होंने धर्मप्रांत ने नाम एक माफीनामा पत्र लिखा। मैंने उसे अपने पद पर छोड़ दिया यह देखने के लिए कि क्या होता है, लेकिन मेरे पास उसका त्याग पत्र था।

क्या हो रहा कि हमारे बीच में बहुत सारे दल हैं जो दबाव डालते हैं, और हम दबाव में सही निर्णय नहीं ले सकते हैं। इसके साथ ही, आर्थिक समस्या है जिसके संबंध में मैं एक वित्त वार्ता हेतु भेजने की सोच रहा हूँ। मैं दबाव की अनुपस्थिति में निर्णय लेने की प्रतीक्षा में हूँ। वास्तव में, बहुत सारी बातें हैं जो कि उचित हैं। हमारे लिए समस्या तब होती है जब दबाव होता है। यह सहायक नहीं है। यद्यपि, मैं नहीं सोचता कि कोलोन ही विश्व में एकमात्र ऐसा धर्मप्रांत है जहाँ समस्याएँ हैं। मैं इसके विश्व के अन्य धर्मप्रांतों की तरह लेता हूँ जो संघर्षो का अनुभव करते हैं। मैं एक दूसरे के बारे में सोचता हूँ, पोरतो रिको, जहाँ सालों से समस्या का अंत नहीं हुआ है। यह सालों के चली आ रही है। वैसे ही बहुत सारे धर्मप्रांत हैं।

सवालः संत पापा, हम एक संचार पत्रिका हैं और हम युवाओं के बारे में कहते जो कलीसिया के हाशिए में हैं। युवा शीघ्र और तुरंत विचारों और सूचनाओं की चाह रखते हैं। हम कैसे उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में बता सकते हैंॽ

हमें स्थिर नहीं रहना चाहिए। जब हम युवाओं से कार्य कर रहे हैं, हमें चाहिए कि हम उन्हें सदैव एक प्रभावित करने वाली दृष्टि प्रदान करें, न की एक जड़ित। हमें ईश्वर से प्रज्ञा और कृपा की याचना करनी चाहिए जिससे वे हमें सही कदम लेने में मदद करें। मेरे समय में, युवाओं के संग कार्य करने का संदर्भ अध्ययन के संबंध में मुलाकात करना था। वर्तमान में यह कारगर नहीं रह गया है।  हमें उन्हें ठोस आदर्शों, कार्यों, और राहों के द्वारा आगे बढ़ाने की जरुरत है। युवा अपने में उन कारणों को खोजते जिससे वे अपनी राह में बने रहते हैं, वे निष्क्रिय कभी नहीं रहते। हममें से कुछ आनाकानी करते हैं क्योंकि हम युवाओं में विश्वास की कमी को पाते हैं। लेकिन हम उन्हें ईश्वर के हाथों में छोड़ दें जो उनकी चिंता करते हैं। हमारा कार्य उन्हें सही मार्ग में व्यवस्थित करना है। मैंने सोचता हूँ हमारे लिए यह बेहतर चीज है जिसे हम कर सकते हैं।

  

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14 June 2022, 17:16