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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस   (Vatican Media)

देवदूत प्रार्थना ˸ अच्छा करने के दृढ़ निर्णय के साथ विपक्ष को जवाब दें

रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा ने विश्वासियों को येसु का अनुकरण करने का प्रोत्साहन दिया जो विपक्ष को गुस्से या कठोरता के साथ जवाब नहीं देते बल्कि येरूसालेम के रास्ते पर यात्रा जारी रखने के लिए दृढ़ निर्णय लेते हैं, इस बात को अच्छी तरह जानते हुए कि तिरस्कार और मृत्यु उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

उषा मनोरमा तिर्की-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 27 जून 2022 (रेई) ˸ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार 26 जून को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, "प्रिय भाइयो एव बहनो, सुप्रभात।"

इस रविवार का सुसमचार पाठ हमें एक नये मोड़ के बारे बतलाता है। यह कहता है ˸ "अपने स्वर्गारोहण का समय निकट आने पर ईसा ने येरूसालेम जाने का निश्चय किया और संदेश देनेवालों को अपने आगे भेजा।" (लूक. 9,51) इस तरह उन्होंने पवित्र शहर की ओर एक "महान यात्रा" शुरू की, जिसने एक खास निर्णय की मांग की क्योंकि यह उनका अंतिम निर्णय था। शिष्य उत्साह से भरे हुए थे क्योंकि वे प्रभु की विजय को अब भी दुनियावालों के समान सपने देख रहे थे। जबकि येसु जान रहे थे कि येरूसालेम में तिरस्कार और मृत्यु उनकी प्रतिक्षा कर रहे थे। (लूक.9˸22,43बी-45) वे जानते थे कि उन्हें बहुत दुःख उठाना था। इसके लिए दृढ़ निश्चय की जरूरत थी। इसलिए येसु निर्णायक कदम लेते हुए येरूसालेम की ओर बढ़ते हैं।

विरोध होने पर ईश्वर की ओर मुड़ना

संत पापा ने कहा कि येसु के शिष्यों को ऐसा ही कदम लेना चाहिए। इस निर्णय का क्या अर्थ है? उन्होंने कहा, "हमें गंभीर शिष्य बनना है, सचमुच निर्णायक होना, "गुलाब जल ख्रीस्तीय" नहीं।"

सुसमाचार लेखक संत लूकस के वर्णन से हमें समझने में मदद मिलती है। "वे चले गये और उन्होंने येसु के रहने का प्रबंध करने हेतु समारियों के एक गाँव में प्रवेश किया। लोगों ने येसु का स्वागत करने से इंकार किया, क्योंकि वे येरूसालेम जा रहे थे – विरोधियों के शहर – इसलिए उन्होंने उनका स्वागत नहीं किया। नाराज होकर याकूब और योहन येसु को सलाह देते हैं कि वे आकाश से आग बरसा कर इन लोगों को दण्ड दें। पर येसु ने न केवल इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया बल्कि दोनों भाइयों को फटकारा। वे दोनों चाहते थे कि बदला लेने में येसु उनका साथ दें। (52-55) येसु जिस आग को इस धरती पर लाने आये, वह कुछ और है। (लूक.12,49) यह ईश्वर का करणावान प्रेम है। और इस आग को प्रज्वलित करने के लिए धीरज, निरंतरता और पश्चतापी मनोभाव की जरूरत है।

याकूब और योहन को गुस्सा से बाहर निकलने की आवश्यकता थी। यह हमारे साथ भी होता है, जब हम कुछ अच्छे कार्य करते हैं, शायद कष्ट उठाकर, परन्तु इसे स्वीकार किये जाने के बदले हमें बंद द्वार मिलते हैं। तब हम नाराज हो जाते। और इसमें ईश्वर को भी शामिल करना चाहते हैं, स्वर्ग की ओर से दण्ड की धमकी देते हैं। जबकि येसु एक दूसरा रास्ता अपनाते हैं, गुस्सा का रास्ता नहीं बल्कि आगे बढ़ने के लिए दृढ़ निश्चय का रास्ता, जो शांत, धैर्य, लम्बी पीड़ा, अच्छा काम करने में ढिलाई नहीं आदि को कठोरता में बदलने से काफी दूर है।

बुराई का जवाब अच्छाई से देना     

यह कमजोर होने को नहीं दिखलाता बल्कि इसके विपरीत जबरदस्त आंतरिक शक्ति प्रदान करता है। विरोध का सामना करते हुए यह आसान है, स्वाभविक है कि हम गुस्सा से ऊपर उठ सकें। लेकिन येसु के समान अपने लिए निर्णय लेना कठिन है जैसा कि सुसमाचार बतलाता है, वे दूसरी बस्ती चले गये।(56) इसका अर्थ है कि जब हम विरोधियों से मिलते हैं, तब हमें दोषारोपण के बिना अच्छे कार्यों की ओर मुड़ना चाहिए। इस तरह येसु उन लोगों को मदद करते हैं जो शांत रहते, जो खुशी से अच्छे कार्यों को पूरा करते एवं मनुष्यों की मंजूरी की खोज नहीं करते।  

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा, "अब हम अपने आप से पूछें ˸ हम किस बिन्दु पर हैं? विरोध, नसमझी के सामने क्या हम प्रभु की ओर मुड़ते हैं। क्या हम भलाई करने हेतु उसकी दृढ़ता की याचना करते हैं? या क्या हम इसके बजाय तालियों से वाहवाही की तलाश करते हैं, और जब हम इसे नहीं सुनते तो कड़वा एवं नाराज हो जाते हैं? कई बार हम जानते-जानते अथवा अनजाने में प्रसंशा, दूसरों की मंजूरी की खोज करते हैं एवं प्रशंसा पाने के लिए चीजों को करते हैं।" संत पापा ने प्रशंसा पाने के लिए नहीं बल्कि सेवा की भावना से काम करने की सलाह देते हुए कहा, "हमें सेवा की भावना से अच्छा कार्य करना चाहिए न की वाहवाही की खोज करनी चाहिए।" कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारा उत्साह एक अच्छे कारण के लिए न्याय की भावना से उत्पन्न हुआ है जबकि वास्तव में, कई बार यह हमारा घमंड होता है, हमारी कमजोरी, संवेदनशीलता और अधीरता से जुड़ी होती है। अतः आइये हम येसु से उनके समान बनने की शक्ति मांगें ताकि हम सेवा के रास्ते पर उनका अनुसरण कर सकें, कठिनाईयों के सामने अधीर न बनें, जब हम अच्छे कार्य करते लेकिन दूसरे इसे नहीं समझते अथवा हमें अयोग्य समझते हैं तब हम चुपचाप रहकर आगे बढ़ सकें।  

तब संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करते हुए कहा, "कुँवारी मरियम हमें वह दृढ़ निर्णय लेने में मदद करे, जिसमें येसु अंत तक प्रेम के साथ बने रहे।"

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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27 June 2022, 15:27